निरक्षरता पर अनुच्छेद | Paragraph on Illiteracy in Hindi

भारत में छ: करोड़ तीस लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा । जाहिर है इसकी वजह भारत जैसे विकासशील देश की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि है ।

गावों मे यह देखकर दुःख होता है कि पांच से सात वर्ष की आयु की लड़कियां दस-दस घण्टे काम करती है । ऐसे परिवारों के बच्चे बहुत छोटी उम्र से ही अपने परिवार या आपने माता-पिता के काम मे हाथ बंटाने लगते हैं ।

वर्ष 1998-99 के आंकड़ों के अनुसार केरल और हिमाचल प्रदेश ही ऐसे राज्य हैं जहां छ: से चौदह वर्ष तक की स्कूल न जाने वाली लडकियों की संख्या पांच प्रतिशत से कम है । स्त्री शिक्षा का स्तर शेष देश में चिन्ताजनक है ।

इसकी एक अहम वजह यह भी है कि दूरदराज के कई ग्रामीण इलाकों में स्कूल प्राय: इतने दूर होते हैं कि परिवार वालों की राय में लड़कियों को वहां भेजना जोखिम भरा होता है । ग्रामीण इलाको में महिला अध्यापकों के न होने के कारण भी लड़कियां रकूल जाने से हिचकती हैं और बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं ।

विभिन्न राज्यों में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयो में स्कूलों के शिक्षकों के हजारों पद खाली पड़े हैं । दूरदराज के गावों तथा आदिवासी इलाकों में तो स्कूलों की संख्या बहुत कम हैं जो हैं भी उनमें अध्यापक जाने में रुचि नहीं दिखाते । ग्रामीण बच्चों की सुविधा के लिए स्कूल एक किलोमीटर के दायरे में खोले गये हैं । इनका सर्वेक्षण करने पर पता चला कि इन स्कूलों में पर्याप्त सुविधाए नहीं हैं ।

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सर्वेक्षण के अनुसार 84 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय नहीं पाये गये तथा 54 प्रतिशत स्कूलों में पीने का पानी नहीं था । 12 प्रतिशत स्कूलों में केवल एक ही अध्यापक थे । ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की आशा कैसे की जा सकती है । आज से 90 वर्ष पूर्व ‘सभी को शिक्षा’ नीति की परिकल्पना गोपालकृष्ण गोखले ने की थी ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारत का संविधान बना तो उसमें भी चौदह साल तक के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा और अनिवार्य शिक्षा देने की बात कही गयी साथ ही यह भी कहा गया कि इस लक्ष्य को हमें 1960 तक हासिल कर लेना है । लेकिन यह लक्ष्य बीसवीं सदी तक तो पूरा हो नहीं सका अब इसे वर्ष 2010 तक के लिए बढ़ा दिया गया है ।

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मनुष्य के विकास में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान है । बौद्धिक स्तर के साथ-साथ मनुष्य का जीवन स्तर भी ऊंचा उठता है, विशेषकर स्त्रियों में । लडकियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर कई कार्यक्रम बनाये गये लेकिन उनमें साक्षरता की गति विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की लडकियों मे उतनी नहीं बढी है जितनी बढ़नी चाहिए थी ।

सरकार के अनुसार देश में 98 प्रतिशत जिलों में सरकारी साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है । हमारे संविधान तथा पंचवर्षीय योजनाओं मे शिक्षाओं पर जोर दिया गया है लेकिन देश की कुल साक्षरता के आंकड़ों में लिंग भेद स्पष्ट नजर आता है । देशभर में केरल मेघालय से कम है । हम हमेशा इसी विवाद में उलझकर रह गये हैं कि प्राथमिक शिक्षा को बुनियादी आधार बनाया जाए कि नहीं ।

शिक्षा भले ही हमारे मूलभूत आवश्यकताओं में से एक हो पर सरकार शिक्षा पर कुल घरेलू सकल उत्पाद का मात्र छ: प्रतिशत व्यय करती है । इसमें प्राथमिक शिक्षा का हिस्सा आज भी नाम-मात्र को है । इसलिए निरक्षता उन्मूलन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों मे वहीं के पढ़े-लिखे युवओं को जिम्मेदारी सौंपी जाए ।

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