हमारी सामाजिक समस्याएँ | Essay on Our Social Problems in Hindi!

भारतीय समाज अति प्राचीन है, जिसकी विशेषताएँ वैदिक साहित्य में वर्णित है । उस काल के समाज का एक निश्चित स्वरूप था, उसकी कुछ मूल विशेषताएँ रहीं । समय-समय पर इसमें अन्य समाजों के लोग भी मिलते चले गए ।

इससे भारतीय समाज के बाह्य आकार में सामान्य परिवर्तन आने लगा, जो वर्ण-विभाजन में देखा जा सकता है । आगंतुक जातियों को अपने में लीन करनेवाला भारतीय समाज भारत में इसलाम के आते-आते इतना संकुचित हो गया कि उसका एक अंग ‘शूद्र’ या ‘अस्पृश्य’ कहलाया, जिसे आगत इसलाम ने अपने में पचा लिया । यह भारतीय समाज का एक मोड़ कहा जा सकता है ।

वर्ण-व्यवस्था की प्रारंभिक दिशा में सभी वर्णों में रोटी-बेटी का संबंध था । वेदों में विराट् पुरुष के वर्णन-प्रसंग में कहा गया है कि ब्राह्मण उसके मुख, क्षत्रिय उसकी बाँहें, वैश्य उसके मध्य भाग और शूद्र उसके चरण हैं । कर्म के अनुसार यह विभाजन बाद में जन्म के अनुसार होने लगा और अपने ही वर्ण में रोटी-बेटी की कट्‌टरता दृढ़मूल हो गई तथा अस्पृश्यता एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गई ।

कालांतर में प्रजातांत्रिक शासन-पद्धतियाँ अस्तित्व में आईं और अब साम्यवादी विचारधारा के अनुसार जातिहीन, वर्गहीन समाज की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है । आज हमारी सामाजिक समस्याओं में जातिवाद, छुआछूत, दहेज, अंधविश्वास, बलात्कार, बाल शोषण, बेगार अशिक्षा आदि समस्याएँ विकराल बनी हुई हैं ।

जातिवाद हिंदू समाज की कट्‌टरता की देन है । किसी भी अपराध के कारण एक बार जो जाति से बहिस्कृत होता है, उसके लिए समाज के द्वार सदा के लिए बंद हो जाने से वर्णों में सैकड़ों अवांतर हो गए; अनेक सवर्ण-अवर्ण जातियाँ खड़ी हुईं ।

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भारत में प्राय: पैतृक उत्तराधिकार का नियम होने के कारण विवाहिता स्त्री और उसकी संतानें भी पति की जाति की मानी जाने लगीं । इस प्रकार शूद्रों की संख्या बढ़ती गई । स्वतंत्रता संग्राम के समय से हरिजनों की दशा सुधारने के यत्न शुरू हुए । स्वतंत्र भारत के संविधान में भी इस संबंध में काफी-कुछ वर्णित है ।

संविधान में छुआछूत, बेगार, बाल शोषण आदि को दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया है । इन बुराइयों से निजात दिलाने के लिए दलित तथा दबे-कुचलों के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई । जातीय बंधनों की समस्या जितनी हिंदू धर्म में है उतनी अन्य धर्मों में नहीं है ।

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सामाजिक भेदभाव को मिटाने के लिए समाज के हर वर्ग को उन्नति करने का समान अवसर मिलना चाहिए, सबकी शिक्षा-व्यवस्था समान स्तर पर होनी चाहिए, पिछड़े वर्ग की आर्थिक दशा को सुधारने के उपाय होने चाहिए ।

जाति-भेद मिटाने के लिए अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित किया जा सकता है । नारी समाज को शिक्षित करके स्वावलंबी बनाने से दहेज प्रथा को रोका जा सकता है । भारतीय जीवन की मूल प्रवृत्ति भौतिक और आध्यात्मिक पक्षों के समन्वय पर आधारित है ।

यही कल्याणकारी मार्ग भी है । जो राष्ट्र अपनी मान्यताओं पर ध्यान न देकर दूसरों का अंधानुकरण करता है, वह कभी अपनी सामाजिक समस्याओं का निराकरण नहीं कर सकता ।

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