भारत में आतंकवाद | Terrorism in India in Hindi!

प्रस्तावना:

आतंकबाद वर्तमान समय में भयंकर विश्वव्यापी समस्या बन-गया है । यह समस्या न केवल भारत में ही अपनी पकड़ मजबूत किये हुये है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यह समस्या विकराल रूप धारण कर रही है ।

आतंकवाद भारत की प्रमुख सबसे बड़ी समस्या है, जिसने भारतीय शासन-व्यवस्था को जर्जर कर दिया है । आतंकवाद ने भारत की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि परिस्थितियों को प्रभावित किया है । अत: इसे दूर करना अत्यधिक आवश्यक है ।

चिन्तनात्मक विकास:

‘आतंकवाद’ शब्द का तात्पर्य ऐभय एवं चिंता की स्थिति । इसका उद्देश्य है हिंसा द्वारा जनता में आतंक फैलाकर अपनी शक्ति प्रदर्शित करना । भारत में ही नहीं अपितु आज विश्व स्तर पर आतंकवाद की समस्या प्रमुख है । भारत में यह भयंकर रूप धारण किये हुये है ।

आतंकवादी अपने तुच्छ स्वार्थो की पूर्ति हेतु निरीह लोगों की हत्यायें कर रहे हैं । भारतीय लोकतन्त्र को कमजोर बना रहे हैं । पंजाब, जम्यू-कश्मीर, असम, तमिलनाडु, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, आध प्रदेश आदि राज्यों में आतंकवाद के अनेक कारण हैं ।

अत: इन कारणों का अध्ययन कर इर्न्हे दूर किया जाना अति आवश्यक है तभी भारत से आतंकवाद की समस्या को समाप्त किया खा सकता है ।

उपसंहार:

वर्तमान समय में आतंकयाद के कारण विक्कोटक स्थिति उत्पन्न हो र्प्य है जिसके कारण प्रशासनिक चरमरा उठा है । अत: आतंकबाद की समस्या को हल किया जा सकता है, आवश्यकता इस बात की है कि प्रशासन को सद्‌भावना एवं सहिष्णुता की भावना को अपनाना होगा, क्षेत्रीय असमानता को दूर करना होगा, बेरोजगारी को दूर करना होगा ।

यदि समस्या शांतिपूर्ण तरीकों से हल न हो तो कठोरता से भी कदम उठाने होंगे । इसके लिए कानूनी व्यवस्था को भी कठोर होना पड़ेगा, भ्रष्टाचार को दूर करना होगा । आतंकवाद से तात्पर्य है कि कुछ व्यक्तियों के समूह द्वारा लोगों, निजी एवं सार्वजनिक सम्पत्ति, तथा सुविधाओं के विरुद्ध किया जाना वाला जघन्य आपराधिक का। जो इन व्यक्तियों द्वारा अपनी अनुचित मागों को पूरा करने हेतु किया जाता है ।

इनका उद्देश्य हिसक कार्यो द्वारा समाज या राज्य से अपनी मांगे मनवाना, जान-माल को नुकसान पहुँचाना तथा आतंकवादी गतिविधियाँ बार-बार किया जाना जिससे कि जनसाधारण में आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिरोध की भावना खत्म हो जाए और उनमें असुरक्षा की भावना पैदा हो जाए ।

लम्बे समय तक आतंकवाद के जारी रहने का गम्भीर परिणाम यह होता है कि जनता का भी विश्वास सरकार पर से उठ जाता है और आर्थिक विनाश, राजनीतिक अस्थिरता तथा सरकार का पतन होने का भय निरन्तर बना रहता है ।

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आतंकवादी अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सामान्यता विभिन्न प्रणालियों एवं तकनीकी को अपनाता है । जैसे-विमानों का अपहरण, राजनयिकों मे प्रमुख हस्तियों का अपहरण, सार्वजनिक नेताओं की हत्या, तोड़-फोड़ करना और बम आदि रखना, जनता की आए दिन निर्मम हत्यायें करना आदि ।

वे सोचते हैं कि दो समुदायों के बीच धृणा का वातावरण उत्पन्न कर वे अपने लक्ष्य प्राप्ति में सफल हो सकेंगे । इसी कारण वह दूसरे समुदायो के निर्दोष साधारण जनों की व्यक्तिगत या सामूहिक हत्या का मार्ग अपनाते हैं ।

1946 में मुस्लिम लीग से जुड़े आतंकवादियो द्वारा भारत-विभाजन की माग मनवाने के लिए ऐसा किया गया था और सन् 1982 से 1996 के वर्षो में ‘खालिस्तान’ की मांग से जुड़े हुए पजाब में कुछ आतंकवादियों द्वारा इस प्रकार के घूर्णित आचरण को अपनाया जा रहा है ।

आतंकवाद की दृष्टि से आज भारत की स्थितियाँ अत्यन्त कष्टप्रद एवं चिन्ताजनक हैं । भारत में आतंकवाद का प्रारम्भ स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् ही हो गया था आतंकवाद का उदय उत्तर-पूर्वी भारत में हुआ ।  सर्वप्रथम, आतंकवादी संगठन संभवत: अंगामी जायू फिजी की ‘नागा नेशनल कौसिल’ था ।

इन विद्रोहियों ने नागालैण्ड को भारत से पृथक् करने के लिए गुरिल्ला युद्ध शुरु किया था ।  शीघ्र ही विश्वेश्वरसिंह की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ और लालडेंगा की मिजो नेशनल फ्रण्ट’ की गतिविधियों के कारण आतंकवाद मणिपुर और मिजोरम में भी फैल गया ।

लगभग 20 वर्षों तक की आतंकवादी गतिविधियों से कोई खतरा पैदा नहीं हुआ, किन्तु सातवें दशक में ”शहरी आतंकवाद” तब उजागर हुआ, जब ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ ने महत्वपूर्ण ठिकानों एवं हस्तियों पर हमले किये । भारत सरकार ने आतकवादियों पर आशिक नियन्त्रण भी स्थापित किया, साथ ही इन क्षेत्रों की जनता की कठिनाइयों को समझने और ‘समझौता वार्ता’ के भी प्रयत्न किये गये ।

परिणामस्वरूप स्थिति पर काफी नियन्त्रण स्थापित किया जा सका । अत: इन क्षेत्रों में आतंकवाद की स्थिति लगमग समाप्त हो गई है । भारत में आतंकनाद का सबसे भयंकर रूप पंजाब राज्य में देखने पर आया है जो अत्यधिक चिन्ता का विषय बना हुआ है । यह स्थिति 1983 से चली आ रही है ।

पंजाब में ‘ऑल इण्डिया सिक्स स्ट्रडेण्ट्स फेडरेशन’, ‘दशमेश रेजीमेण्ट’ तथा ‘बबर खालसा’ के सदस्यों ने देश में आतंकवाद की लहर छेड़ दी । इन आतंकवादियों ने विभिन्न तरीके अपनाकर मासूम लोगों की जानें ली । 1981 में दो सिक्स नौजवान इण्डियन एयरलाइन्स के एक विमान का अपहरण कर ढ़से लाहौर ले गए ।

1984 में आतंकवादियों की गतिविधियाँ अपने शीर्ष पर पहुंच गई, तो सरकार ने ‘ऑपरेशन’, ‘जू स्टार’ संगठित कर आतंकवाद के केन्द्र ‘स्वर्ण मंदिर’ में सेना का प्रवेश करवा, आतंकवादियों को गिरफ्तार किया । 30 अक्तूबर, 1984 क आतंकवादियों द्वारा श्रीमती गाँधी की हत्या कर दी गई । आतंकवादियों ने ‘ट्रांजिस्टर बम’ का उपयोग भी किया ।

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इस समस्या को केवल कठोरता से हल न करके ‘कठोरता एवं सदभावना’ के द्वारा हल किया जा सकता है और सरकार, इस ओर प्रयासरत भी है । जम्मू-कश्मीर राज्य में भी 1987 से ही आतंकवाद की स्थिति बनी हुई है । इस क्षेत्र में प्रमुख रूप से तीन आतंकवादी संगठन संलग्न हैं-जप्तकश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट, कश्मीर लिबरेशन आर्मी हिजबुल मुजाहिहेनि और जमाते तुबला ।

इनका उद्देश्य जन्तु-कश्मीर राज्य के लिये स्वतन्त्र सम्प्रभु राज्य की स्थिति प्राप्त करना है । चिन्ता का विषय यह है कि 1990 के मध्य तक आतंकवाद कश्मीर तक ही सीमित था, इसके बाद आतंकवाद जम्पू क्षेत्र में पैर पसारने लगा है । भारत सरकार स्थिति को नियत्रित करने हेतु प्रयत्नशील है किन्तु सफलता नहीं मिली है ।

असम, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, गोरखालैण्ड और झारखण्ड, आदि क्षेत्रों में भी आतंकवाद व्याप्त है । 1989 के अन्तिम महीनो से ही असम में एक नया आतंकवादी संगठन ‘उल्का’ का जन्म हुआ । इनका लक्ष्य था ‘असम के सम्प्रभु राज्य की स्थापना ।’ उल्का ने हिसंक आन्दोलन, जबरन वसूली, अपहरण और हत्या के तौर-तरीके अपना लिए ।

फलस्वरूप सरकार ने उल्का से प्रभावित क्षेत्र को ‘अशान्त क्षेत्र’ घोषित किया और उल्का के विरुद्ध ‘ऑपरेशन बजरंग’ के नाम से सैनिक कार्यवाही की । अत: आशिक सफलता ही प्राप्त की जा सकी है । आजकल तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्र के कई स्थानों पर ‘तमिल टाइगर्स’ का राज है ।

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1991 में चन्द्रशेखर सरकार ने लिट्टे की गतिविधियों में राज्य सरकार की सांठ-गांठ पर करुणानिधि शासन को बर्खास्त किया था । लिट्टे भी बम-बंदूक की संस्कृति में विश्वास करता है । अत: समय रहते ही इनकी गतिविधियों पर रोक लगानी आवश्यक है ।

अब एक अन्य आतंकवादी रूप उभर कर आया है-नक्सलवादी आतंकवाद । यह ‘माओत्से तुंग’ के क्रांतिकारी वामपंथी दर्शन से प्रेरित आतंकवाद है इनका लक्ष्य हैं-सामाजिक-आर्थिक न्याय पर आधारित व्यवस्था की स्थापना ।

सबसे पहले 1867-71 के वर्षों में बंगाल, बिहार और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में यह आतंकवादी रूप उभर कर आया । नक्सलवादियों ने लोकतान्त्रिक राजनीति का पूर्ण विरोध करके जनक्रान्ति पर बल दिया और इसके लिए प्रमुख तरीका अपनाया कि भूमिहीन मजदूरी को संगठित कर ‘गुरिल्ला युद्ध पद्धति के आधार पर भूमिपतियो के विरुद्ध खूनी संघर्ष ।’

वर्तमान समय में आध्र, बिहार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में कम-अधिक अंशों मे नक्सलवादी हिंसा की स्थिति है । ये आतंकवादी भूमिपतियों की भूमि पर जबरन कब्जा, भूमिपतियो और शासन से जुड़े व्यक्तियों का अपहरण और हत्या आदि तौर-तरीकों को अपना रहे हैं ।

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आधुनिक समय में आतकवाद की जो गम्भीर स्थिति विद्यमान है उसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं, जिन्होंने भारत में विभिन्न क्षेत्रों में आतंकवाद को जन्म दिया हे और उसे बनाये रखा है । देश की वर्तमान समय की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, कानूनी, न्यायिक और पुलिस एवं प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी है जो आतंकवाद के जन्म का कारण है ।

हमारे देश में सदियों से ही अन्याय और शोषण चला आ रहा है । स्वतन्त्रता प्राप्ति, और नवीन संविधान लागू होने के पश्चात् भी इसमें कोई कमी नहीं आई है । सामाजिक-आर्थिक न्याय हेतु केवल नारेबाजी की जाती है । अनेक राज्यों में भूमिहीन श्रमिकों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है ।

भूमि सुधार कानूनों का न लागू होना नक्सलवादी आतंकवाद का ही एक रूप है । शोषित वर्ग की आवाज तब तक नही सुनी जाती जब तक कि कोई विस्फोट न हो, ऐसी स्थिति में ये लोग जनता को विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि ये आतंकवादी नहीं अपितु अन्याय के विरुद्ध संघर्षरत हैं, जिससे कि आतंकवादी शक्ति और बढ़ जाती है ।

नवयुवकों में तीव्र असन्तोष की प्रवृत्ति भी देश में आतंकवादी प्रवृत्ति को बढावा देती है । सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था में विद्यमान आपाधापी, शिक्षित बेरोजगारी, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्याओ ने नवयुवक वर्ग में तीव्र असन्तोष पैदा कर दिया है ।

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जब यह वर्ग देखता है कि योग्यतानुसार नौकरियाँ नहीं मिल पा रही तथा मेहनत-मजदूरी या नौकरी के आधार पर सम्मान व सुविधाजनक जीवन जी पाना अत्यन्त कठिन हो गया है और वे यह भी देखते हैं कि तस्कर और नशीले पदार्थो के व्यापारी मौज कर रहे हैं तो वे इन कार्यो की ओर आकर्षित होते हैं ।

इन सबका सीधा सम्बंध आतंकवादियों से होता है । अत: हैरोइन, अन्य नशीले पदार्थों के व्यसन से ग्रस्त नवयुवक आतंकवादियों के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं और आतंकवादी गतिविधियो को बढ़ावा मिलता है । अवैध शस्त्र निर्माण और शस्त्र भण्डार भी आतंकवादी गतिविधियों को बढावा देते हैं ।

आज भयानक एवं आधुनिकतम शस्त्र अवैध रूप से प्राप्त कर लेना अत्यन्त सरल है और आतंकवादी इन हथियारों को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, इन्हीं के बलबूते पर सर्वत्र देश एवं राज्य में आतंक फैलाते हैं । लोगों की हत्यायें करना, साम्प्रदायिक दंगे फैलाना, सार्वजनिक इमारतों एवं पुलों को उडाना इन लोगों का पेशा बन गया है ।

प्रजातन्त्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें शासक व शासित के मध्य निरन्तर सम्पर्क की स्थिति बनी रहनी चाहिए । ऐसी स्थिति न होने पर जनता तो धैर्य नहीं खोती किन्तु भारतीय शासक वर्ग में संवदेनशीलता का अभाव है । वह विलासिता एवं शान-शौकत में डूबे रहते हैं । जनता के दुःख- दर्द से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं है । आम जनता की हर बात को अनसुना कर दिया जाता है परिणामस्वरूप वह शक्ति की भाषा को अपनाता है तो उसकी अनुचित बात पर भी ध्यान दिया जाता है ।

अत: शासक और शासित में संवादहीनता की स्थिति और शासक वर्ग की संवेदनशून्यता ही आतंकवाद को जन्म देने का एक मुख्य कारण है । दलीय राजनीति, चुनावी राजनीति और शासक वर्ग द्वारा सवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग भी आतंकवादी प्रवृत्ति को उभारने के लिए जिम्मेदार है ।

आज राजनीति हमारे समस्त जीवन पर छा गई है । राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए कोई भी मार्ग अपनाने से नहीं चूकते । ये व्यक्तिगत और राजनीतिक लाभ हेतु अपराधी एवं आतकवादी तत्वो को प्रश्रय देते हैं एवं प्रोत्साहित करते हैं । कई बार तो इन राजनीतिज्ञों के लिये ही आतंकवादी संकट का कारण बन जाते हैं ।

वर्तमान समय में भारत में सर्वत्र भ्रष्टाचार व्याप्त है । भारत ही नहीं अपितु समूचा विश्व खई भ्रष्टचार से ग्रस्त है । भारत में यह अपनी पकड़ मजबूत बनाये हुये है । निम्न स्तर से लेकर उच्च स्तर तक भ्रष्टाचार अपनी जडे फैलाये हुये है ।

नवयुवक वर्ग के हृदय में राजनीतिज्ञों, उच्च नौकरशाहों और उद्योग तथा व्यापार से जुड़े व्यक्तियों के आचरण को देखकर देशहित की भावना समाप्त हो गई है । अब नैतिक-अनैतिकता का प्रश्न ही नहीं उठता । शासक बर्ग की कथनी और करनी में भारी भेद है, जिसने नवयुवक वर्ग में भारी आक्रोश भर दिया है ।

अभिजात वर्ग का जीवन व्यवहार नवयुवकों मे भारी नैतिक गिरावट उत्पन्न कर रहा है, दूसरी ओर धर्म-निरपेक्षता की भावना भी प्राय: लुप्त हो गई है । इस देश की शिक्षण संस्थाओं में नैतिक शिक्षा, देश के हित चिन्तन और लोक कंल्याण की विधिवत् शिक्षा हेतु कोई व्यवस्था ही नहीं है, तो आतंकवाद को अपनी जड़े जमाने का अवसर मिलेगा ही ।

प्रशासन की विभिन्न इकाइयों:

विभिन्न राज्यों के पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बलों और आवश्यक्ड़घनुसार अर्द्ध-सैनिक बलों में उचित सहयोग हो, गुप्तचर पुलिस कार्यकुशल हो, राजनीतिक कार्यपालिका की कोई स्पष्ट नीति हो, वह स्पष्ट निर्देश देने में समर्थ हो और न्याय व्यवस्था ऐसी हो कि आतकवादी को तत्काल दण्डित किया जाये और निरपराधी शीघ्र मुक्त हो सकें ।

किन्तु भारत में तो कोई भी ऐसी व्यवस्था नहीं है अर्थात् प्रशासन की विभिन्न इकाइयों में सहयोग का अभाव है । साथ ही भारत में कानून एवं न्याय व्यवस्था की प्रक्रिया इतनी लम्बी एवं जटिल हे कि साधन सम्पन्न अपराधी के लिए कानून और न्याय के शिकंजे से मुक्ति पाना सरल हो गया है ।

यह स्थिति उग्र स्वभाव वाले नवयुवकों को आतंकवाद का मार्ग अपनाने से रोक नहीं सकती । दूसरी ओर निरपराधी व्यक्ति पुलिस के चंगुल में फंस जाते हैं, उनके पास वकील व जमानत हेतु पैसे नहीं होते फलस्वरूप वह महीनों एवं वर्षो जेल में सड़ता रहता है ।

ऐसी स्थिति समूची व्यवस्था मे आक्रोश का कारण बनती है । इस प्रकार से पुलिस एवं न्याय व्यवस्था उस निरपराधी को अपराधी एवं आतंकवादी बना देती है । देश के आर्थिक क्षेत्र में सन्तुलित विकास का अभाव भी देश में विद्रोही भावना को जन्म देता है ।

आज आतंकवादियों को विदेशों से प्राप्त भारी सहायता एवं प्रोत्साहन भी आतंकवादियों को बढ़ावा दे रहा है । अनेक देशों की सरकारें आतंकवादियों को सैनिक प्रशिक्षण, शस्त्र सामग्री और शरण स्थलों आदि र्को सहायता देकर आतंकवाद को प्रोत्साहित करती है ।

भारत के आतंकवादी गुटों को विदेशी शक्तियों का प्रत्यक्ष या पुरोक्ष समर्थन प्राप्त होता रहा है । अत: वर्तमान समय में भारत में आतंकवाद की स्थिति ने बहुत गम्भीर रूप ले लिया है । भारत में आतंकवाद को रोकने के लिये अनेक उपाय किये गये, जैसे मई, 1985 में दिल्ली व उत्तरी भारत के अन्य नगरों में जो बम विस्फोट हुये उसने सरकार को कानून निर्माण और प्रशासनिक क्षेत्र मे आतंकवाद के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के लिए बाध्य किया ।

आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (निरोधक) कानून मई, 1985 में बनाया गया, वर्तमान कानूनों में सशोधन किया गया । प्रथम संशोधन ‘भारतीय दण्ड संहिता’ की धारा 124 (क) में किया गया है जिसमे सरकार के विरुद्ध किये गए कार्य को राजद्रोह माना गया है । द्वितीय संशोधन शस्त्र कानून मे किया गया, जिसके अन्तर्गत जिस भी किसी के पास बिना लाइसेस या अधिकार के शस्त्र पाये जाएंगे, उन्हें तीन साल की सजा दी जाएगी ।

अशान्त क्षेत्रों मे निवारक नजरबन्दी कानूनों के दायरे को और बढा दिया गया है । इसके अतिरिक्त कानून में ऐसी व्यवस्था की गई है कि यदि आतकवादी कार्यवाही के फलस्वरूप किसी की जान जाती है तो अपराधी को मृत्युदण्ड दिया जाएगा । वस्तुत: इस संबंध में सतर्कता बरतने की जरूरत है ।

आतंकवाद के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए पश्चिम जर्मनी ने जी.एस.जी.-9, ब्रिटेन ने एस.ए.एस. और अमरीका ने ग्रीन बेरेटस तथा रेंजर्स का गठन किया है । इजरायल के पास भी ‘कमाण्डो बल’ है । परन्तु भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए कोई कारगर सगठन नहीं है ।

आतंकवादी गतिविधियों से निपटने हेहु कुछ समय पूर्व – केन्द्रीय सचिव मण्डल का अलग से ‘सेल’ बनाया गया था जोकि बहुत कारगर सिद्ध नहीं हुआ । हमारे अर्ध-सैनिक बल जैसे केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, असम रायफल्स, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल भी आतंकवाद की रोकथाम हेतु नाकाम रहे हैं ।

इसीलिए सरकार अब आतंकवाद से सघर्ष के लिये विशेष तौर पर बनाये गए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डो को बढ़ाने रार जोर दे रही है । इसके द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध अधिक सक्षम होने की आशा की जा सकती है । वर्तमान समय में आतकवाद भारतीय लोकतन्त्र के लिए गम्भीर चुनौती बन गया हैं । भारतीय परिस्थितियाँ चाहे वह राजनीतिक हो, धार्मिक, सास्कृतिक, सामाजिक अथवा आर्थिक हो, इन सभी को आतकवाद गम्भीर रूप से प्रभावित करता है ।

आतंकवाद की समाप्ति हेतु सरकार द्वारा कठोर प्रयास किये जाने अति आवश्यक हैं ताकि राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या का समाधान किया जा सके । आतंकवाद का प्रमुख पहलू राजनीतिक है, कानून एवं प्रशासनिक व्यवस्था इतना नहीं । चाहे समस्या पंजाब की हो, जन्तु-कश्मीर की हो अथवा असम की हो, आवश्यकता इस बात की है दलीय हित-अहित एव चुनावी हित-अहित को ध्यान में न रखते हुये कठोरता से इसका समाधान ढूंडा जाये ।

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राष्ट्रीय समस्याओं को राजनीति की अपेक्षा सर्वोपरि मानते हुये म् आम सहमति को अपनाया जाना चाहिए । हमें कानून एवं न्याय व्यवस्था में क्रान्तिकारी सुधार करने होगे जैसे, अपराधी को तत्काल दण्ड दिया जाये जिससे कि न्याय व्यवस्था के प्रति जनता में विश्वास पैदा हो सके ।

पुलिस एवं सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए क्योकि आतकवादियो के पास अत्याधुनिक हथियार होता हैं । इसलिए पुलिस और सुरक्षा बलो की सेवा शर्तो मे भारी सुधार जरूरी है । शासन और जनता के बीच भी व्यापक सहयोग को बढ़ावा देना होगा जिससे कि आतंकवाद समस्या को दूर किया जा सके । आतंकवाद का जवाब आतंकवाद से देने पर समस्या का हल कदापि नहीं होता वरन् इसमें वक्त होने का भय बना रहता है । पंजाब में यह स्थिति विशेषकर देखने में आती है ।

अत: पंजाब आतंकवाद की समस्या को हल करने का सबसे अच्छा विकल्प है कि वहाँ ”प्रत्येक कीमत र हिन्दू-सिक्स भाईचारे को बनाये रखा जाए ।” नक्सलवादी आतंकवाद का प्रमुख कारण आर्थिक अन्याय है क्योंकि राज्य विधानमण्डलों ने गत लगभग 40 वर्षों से जो भूमि सुधार कानून किये, वे केवल कागजों पर ही रहे ।

अत: उन्हे सही भावना सहित एवं सम्पूर्ण रूप से किया जाए । इसके अतिरिक्त आतंकवाद का कारण बेरोजगारी विशेष रूप से शिक्षित बेरोजगारी । इसलिए आवश्यक है कि शिक्षा को रोजगार के साथ जोड़ा जाए और प्रतिवर्ष करोडों व्यक्तियों रोजगार उपलब्ध कराये जायें । इस प्रकार आर्थिक असमानता को पूर्णतया समाप्त तो नहीं न्या जा सकता वरन् नियन्त्रित किया जा सकता है । संवैधानिक प्रावधानों के दुरुपयोग पर भी रोक लगानी अति आवश्यक है ।

सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट (नवम्बर, 1987) में अनुच्छेद 356 के आधार पर राष्ट्रपति शासन लागू करने की व्यवस्था का दुरुपयोग रोकने की पर बल दिया । विशेषकर पंजाब एवं जम्यू-कश्मीर की जो स्थिति है उसके संदर्भ में । कुछ सुझाव दिये हैं: प्रथम, राज्य में राष्ट्रपति शासन अन्तिम विकल्प के रूप में ही लागू ना चाहिए, जबकि राज्य का शासन संविधान में दी गई व्यवस्था के अनुसार चलाना असम्भव ।

द्वितीय, राष्ट्रपति शासन लागू करने के पीछे जो कारण हैं, उन्हें स्पष्ट रूप से बतलाया जाना । राज्यपाल द्वारा इस प्रसंग में राष्ट्रपति को भेजी गई रिपोर्ट भी संसद में रखी जानी चाहिए । यदि अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को रोकने की प्रभावी व्यवस्था नहीं की गई, तो अलगाववादी आतंकवादी तत्व बहुत अधिक शक्ति प्राप्त करते रहेंगे ।

शासन की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित भी अति आवश्यक है । इस संबंध में कुछ सुझाव दिये गए हैं: पहला, भारतीय संविधान माताओं ने भारत में ‘सहयोगी संघवाद’ की कल्पना की थी और आज इस ‘सहयोगी सघवाद’ अपनाना नितान्त आवश्यक हो गया है ।

अत: आवश्यक है कि केन्द्र एवं राज्य सरकारें एक- की कठिनाइयों को समझे तथा राष्ट्रीय समस्याओ को हल करने के लिए एक-दूसरे का हे से अधिक सहयोग करें । दूसरा, किसी भी परिस्थिति में शासन द्वारा आतंकवाद के सम्मुख नहीं किया जाना चाहिए बल्कि सभी प्रकार के जोखिम उठाते हुये आतंकवाद के विरुद्ध बल-प्रयोग किया जाना चाहिए ।

तीसरा, सभी अवांछित तत्वों को शासन और प्रशासन से करना होगा, राजनीतिज्ञों द्वारा अपराधी एवं आतंकवादी तत्वों को आश्रय देने की प्रवृत्ति करनी होगी और भ्रष्टाचार को नियन्त्रित करना होगा, दलीय राजनीति और चुनावी राजनीति सीमायें निर्धारित करनी होंगी ।

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भारतीय मामलों में पाकिस्तान की दखलंदाजी को समाप्त करना होगा क्योंकि पाकिस्तान के आतंकवादियों को हमेशा से भारी प्रोत्साहन देता आ रहा है । अत: आवश्यक है कि के साथ लगने वाली समस्त भारतीय सीमा को ‘सील’ कर दिया जाए, पाकिस्तान के थे मैत्रीपूर्ण सम्बंध बनाने के लिए प्रयास करने होगे ।

भारत से आतंकवाद को समाप्त करने लिए कुछ अन्य सुझाव भी हैं, जैसे कि आतंकवादियों में एक वर्ग ऐसा भी है जो परिस्थितिवश तंकवाद से जुड गया है, इन भूले-भटके नवयुवकों को सद्‌भावना एवं सहनशीलता के साथ राह पर लाना होगा ।

झारखण्ड राज्य, वनांचल, उत्तरांचल और बोदोलैण्ड, आदि की भारतीय संघ में ही अलग राज्य के रूप में स्थापना के लिए जो मांग और आन्दोलन किया जा रहा है, उसके लिए सुझाव है कि एक नवीन राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कर राज्यों के पुनर्गठन का समस्त मसला उसे सौंप दिया जाना चाहिए ।

एक अन्य उपाय भी है कि शासन द्वारा आतंकवादियों के साथ बातचीत अवश्य ही की जानी चाहिए, परन्तु यह बातचीत संविधान के दायरे में होनी चाहिए । इनके अतिरिक्त भी कुछ सुझाव हैं, जैसे कानून के आधार पर व्यवस्था की जानी चाहिए कि हथियारों का निर्माण केवल सार्वजनिक क्षेत्र में हो, विकास के क्षेत्र में क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करना होगा, विदर्भ, तेलंगाना, झारखण्ड क्षेत्र, छत्तीसगढ़ क्षेत्र, उत्तरी-पूर्वी भारत के राज्यों और जम्यू-कश्मीर, आदि विकास की दृष्टि से पिछड़े हुये क्षेत्रों के विकास की ओर विशेष ध्यान देना होगा, नैतिक शिक्षा की व्यवस्था कर सामाजिक जीवन में नेतिक मूल्यों को प्रतिष्ठित करना होगा, भ्रष्टाचार को नियन्त्रित करना होगा एवं ‘दुर्भावना’ की भावना को जड से मिटाना होगा ।

अत: आतंकवाद के कारणों का अध्ययन कर जो समाधान प्रस्तुत किये गये हैं, उन्हें केवल कागजी कार्यवाही बनाकर ही रखना नहीं है अपितु आतंकवाद को दूर करने हेतु सार्थक प्रयास करने जरूरी हैं, तभी इस समस्या का हल हो सकता है और देश के स्वर्णिम भविष्य की कल्पना की जा सकती है ।

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