अलाउद्दीन खिलजी पर निबंध | Essay on Alauddin Khilji in Hindi

1. प्रस्तावना:

अलाउद्दीन खिलजी एकमात्र ऐसा शासक था, जिसने अपने साम्राज्य के विस्तार, सुरक्षा के साथ-साथ राजस्व व आर्थिक सुधारों हेतु नीतियां संचालित कीं तथा देश को एक सुसंगठित राजनैतिक ढांचे का रूप प्रदान किया । एक स्थायी सेना का गठन करके धर्म व राजनीति को पृथक कर मुस्लिम साम्राज्यवाद को उन्नति की पराकाष्ठा तक पहुंचाया । उसके राज्य में इतनी अधिक शान्ति थी कि यात्री जंगलों में सुरक्षित सो सकते थे ।

साहित्य और कला को बढावा देने के साथ-साथ उसने एक ऐसी विदेश नीति तैयार की थी, जिसके कारण भारत मंगोल आक्रमण से सुरक्षित रहा । यद्यपि उसे निरंकुश, असहिष्णु, अनपढ़, किन्तु योग्य सेनानायक, महत्त्वाकांक्षी प्रशासक, लुटेरा, खूनी हत्यारा भी कहा जाता है, तथापि इसमें सन्देह नहीं कि वह दिल्ली के सुलतानों में एक महान् शासक था ।

2. जीबन वृत्त एवं उपलब्धियां:

अलाउद्दीन खिलजी, जिसे अली भी कहा जाता है, वह जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा व दामाद था । अलाउद्दीन का पिता शहाबुद्दीन खिलजी बलवन की सेना का एक सैनिक था । अलाउद्दीन का जन्म सन् 1266-67 में हुआ था । बचपन में पिता के देहावसान के बाद उसके सैनिक चाचा जलालुद्दीन ने उसका भरण-पोषण किया ।

अलाउद्दीन की शिक्षा समुचित नहीं हो पायी, किन्तु उसने युद्धकला और सैनिक शिक्षा प्राप्त की थी । सुलतान जलालुद्दीन ने अलाउद्दीन द्वारा मलिक छज्जू के विद्रोह का दमन करने से प्रसन्न होकर उसे अपना हाकिम नियुक्त किया । अलाउद्दीन दिल्ली का सुलतान होने की महत्त्वाकांक्षा लिये हुए था ।

1292 में उसने भेलसा {विदिशा} पर आक्रमण किया । वहां के मन्दिर, भवन व बाजारों तथा धनवानों को निर्ममतापूर्वक लूटकर अपार सम्पत्ति लेकर लौटा, तो सुलतान ने प्रसन्न होकर उसे अरज ए मुमालिक की उपाधि प्रदान की और अवध प्रदेश भी दे दिया ।

प्रशासनिक दृष्टि से सफल होकर वह पारिवारिक जीवन में परेशानियों से घिरा रहा । जलालुद्दीन की पुत्री, जो उसकी पत्नी थी, वह अपने पद एवं प्रभाव के कारण उस पर रौब जमाया करती थी । वह अलाउद्दीन द्वारा दूसरी पत्नी माहरू पर अधिक प्रेम प्रकट करने पर उससे ईर्ष्या करती थी । अलाउद्दीन की सास भी अपने दामाद से नाखुश थी और उस पर कड़ी नजर रखती थी । इधर जलालुद्दीन का प्रभाव कम हो रहा था और अलाउद्दीन का प्रभाव बढ़ रहा था ।

1296 में जब अलाउद्दीन ने देवगिरि पर असाधारण विजय प्राप्त कर 6 मन सोना, 100 मन मोती, 2 मन हीरे, लाल पन्ने, नीलम, चार सहस्त्र रेशमी वस्त्र के थान, सहस्त्र मन चांदी, अनेक घोड़े व एलिचपुर प्रदेश राजा रामचन्द्र राव से सन्धि में प्राप्त किये, तो उसकी महत्त्वाकांक्षा स्वयं सुलतान बनने की बलवती हो गयी । उसने अवसर पाकर जलालुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया था ।

सुलतान जलालुद्दीन की हत्या के बाद उसकी विधवा ने अपने छोटे पुत्र कद्र खां को रूकनुद्दीन इब्राहीम की पदवी देकर सुलतान बना दिया । उसकी संरक्षिका बनकर स्वयं राज्य करने लगी । इससे सुलतान के ज्येष्ठ पुत्र अरकलीखां ने मुलतान, सिन्ध को स्वतन्त्र राज्य घोषित कर दिया ।

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इस आन्तरिक अशान्ति ने अलाउद्दीन के हौंसलों को बुलन्द कर दिया । अब वह राजधानी दिल्ली पर कब्जा करने बढ़ चला । इस यात्रा में उसने रास्ते में सोने, चांदी की इतनी वर्षा कर दी कि उसके असन्तुष्ट विरोधी भी उसके समर्थक बन गये । 20 अक्तूबर 1296 को वह दिल्ली का सुलतान बन बैठा । धन के लोभ में सैनिक अलाउद्दीन से जा मिले । अब रूकनुद्दीन और उसकी विधवा को मुलतान भागने पर विवश होना पड़ा । 3 अक्तूबर 1296 में बलबन के लालकिले में उसका राज्याभिषेक हुआ ।

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सुलतान बनने के बाद अलाउद्दीन के सामने अव्यवस्थित प्रशासन, खोखरों और राजपूतों का विद्रोह, सेना में वृद्धि, मंगोलों का आक्रमण, उस पर खूनी और अपहरणकर्ता होने का आरोप था, किन्तु अलाउद्दीन अपने साम्राज्य का विस्तार कर हिन्दू राज्यों का अन्त करना चाहता था ।

अत: उसने सिन्ध और मुलतान पर विजय, गुजरात पर विजय, सोमनाथ को लूटकर खंभात पर आक्रमण कर जैसलमेर, चित्तौड़, मालवा, मांडू, उज्जैन, धार, चंदेरी, मारवाड़ पर विजय प्राप्त की । देवगिरि, वारंगल को जीतकर उसने दिल्ली का शासन अपने अधीनस्थ किया ।

अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमणों से पूर्णत: मुक्त कर आन्तरिक सुरक्षा और शान्ति कायम की । अपनी मंगोल नीति के तहत उसने सेना को शक्तिशाली बनाकर उसकी संख्या में वृद्धि की । युद्ध में बन्दी बनाये गये मंगोलों को निर्ममता के साथ मौत के घाट उतार दिया ।

अलाउद्दीन खिलजी ने प्रशासकीय व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सर्वप्रथम मदिरा का निषेध करवाया, मद्यपान किये हुए व्यक्ति को गड्‌ढे और अंधे कुओं में फिकवाया, शाही दरबार की सम्पूर्ण मदिरा को सड़कों पर फिकवा दिया । दान-धर्म, पुरस्कार और पेंशन में दी गयी भूमि को जब्त करके खालसा भूमि में परिवर्तित कर दिया, जिससे उसके भूमि कर में व्यापक वृद्धि हुई । जनसाधारण पर इतने आर्थिक कुठाराघात किये कि लोग रोजी-रोटी के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सके ।

उसने अमीरों के मेलजोल, सामाजिक दावतों पर प्रतिबन्ध लगाया । 144 धारा की तरह 5 आदमियों के एक जगह इकट्‌ठे होकर वार्तालाप करने को निषिद्ध कर दिया । करों में वृद्धि की । करों को निर्दयतापूर्वक वसूला । भूमि कर वसूली की जानकारी राजस्व विभाग की बहियों में लिपिबद्ध करवायी । जांच में दोष होने पर सम्बन्धित व्यक्ति को कठोर दण्ड दिया जाता था । अन्न संग्रह करने की किसी को भी अनुमति नहीं थी ।

राजस्व विभाग का पुनर्गठन किया, जिसमें विभिन्न कर्मचारी और अधिकारी थे । कर्मचारियों के घूस और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उसने दीवान ए मुस्तखराज विभाग खोला । यद्यपि अलाउद्दीन की यह राजस्व नीति जनकल्याणकारी नहीं थी, तथापि राज्य की आय में इससे बहुत बढ़ोतरी हुई ।

अलाउद्दीन ने विद्रोह और षड्यन्त्र पर काबू पाने के लिए गुप्तचरों का जाल बिछा रखा था । अलाउद्दीन ने हिन्दुओं के प्रति बहुत ही कठोर नीति का पालन किया । हिन्दू न तो घोड़ा, न सोना, न रेशमी वस्त्र उपयोग में ला सकते थे । उनकी दशा अत्यन्त दयनीय थी । हिन्दुओं को कंगाली की दशा में मुस्लिमों के घरों में काम करके अपना गुजारा चलाना पड़ता था ।

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वह कहता था- ”हिन्दुओं के मुंह में निकृष्ट पदार्थ डालने पर खुदा खुश हो जाता है ।” अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़गढ़ की रानी अद्वितीय, अपूर्व सुन्दरी पदमिनी को पाना चाहता था, जिसके कारण उसने राजा रत्नसेन को छल से बन्दी बना लिया, किन्तु पदमावती ने अलाउद्दीन के हाथों में पड़ने की बजाय जौहर कर लिया ।

अलाउद्दीन ने अपने राज्य में सैनिक संगठन की मजबूत व्यवस्था कायम की थी । सैनिक टुकड़ियां बनाकर उनके लिए अनाज, वेतन आदि की व्यवस्था की । पैदल और अश्वारोही स्थायी सेना बनवायी । श्रेष्ठ अश्वों को सेना में रखकर उनका हुलिया पहचानने के लिए उसे दागने की प्रथा और निरीक्षण प्रणाली की । पायगाह नामक एक विभाग भी गठित किया ।

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अनुभवी, योग्य, विश्वासपात्र सैनिकों की नियुक्ति कर उनको प्रशिक्षित करवाया । दुर्ग और छावनियों की मरम्मत की । विशाल सेना का निरीक्षण वह स्वयं करता था । सैनिक कार्यों का केन्द्रीयकरण कर उसने सैन्य विभाग भी गठित किया । विजय अभियान से लौटे हुए सैनिकों को वह पुरस्कार देता था ।

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अपनी बाजार नीति के कारण अलाउद्दीन राजनीतिक अर्थशास्त्री कहा गया । विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों को निर्धारित कर उसने बाजार पर नियन्त्रण स्थापित किया, जिसके कारण प्रशासन पर बढ़ते हुए व्यय पर नियन्त्रण कर उसे निर्धारित किया । मूल्य-निर्धारण के द्वारा वह अपनी प्रशासकीय और राजकीय आवश्यकता पूर्ण करना चाहता था । इसमें जनहित की भावना कम थी ।

उसने दैनिक आवश्यकताओं की अनेक वस्तुओं, जैसे-गेहूं, चना, दाल, घी, तेल, साबुन, रेशम, गाय, मांस, कपड़े, पशु, दास-दासी, सुई, गुड़, साग-सब्जी के मूल्य निर्धारित किये । ग्रामीण क्षेत्रों का खाद्यान्न खलिहानों में ही व्यापारी को बेचे जाने हेतु किसानों को बाध्य किया । खाद्यान्न के कालाबाजरी का अन्त किया । बाजार नियन्त्रण हेतु कठोर दण्ड व्यवस्था थी । सामाजिक सुधार की दृष्टि से उसने मांस, मदिरा तथा दुर्व्यसनों, जलसों, नाच, रंग, समारोह, व्यभिचार, जादू-टोने, तन्त्र-मन्त्र पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगवा दिया ।

3. उपसंहार:

अलाउद्दीन अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी प्रशासक एवं सेनानायक था । उसने अपने प्रशासन को सुदृढ़; सुरक्षित बनाये रखने के लिए राज्य व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन एवं मौलिक सुधार किये । स्थायी सेना, मूल्य निर्धारण, बाजार एवं भ्रष्टाचार नियन्त्रण, सैनिक एवं राजस्व सुधार, गुप्तचर व्यवस्था तथा कठोर दण्ड विधान के द्वारा अपनी प्रशासनिक प्रतिभा व मौलिक सोच का परिचय दिया, किन्तु वह एक निरंकुश, क्रूर, सैनिक तानाशाह था ।

उसने अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए बेरहमी से लोगों का कत्ल करवाया । वह निर्दयी, हत्यारा तथा कठोर शासक था । धार्मिक दृष्टि से वह असहिष्णु था । अलाउद्दीन एक कट्टर मुस्लिम शासक था ।

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