सिकन्दर महान पर निबन्ध | Essay on Sikandar – The Great Warrior in Hindi

1. प्रस्तावना:

इस विश्व में सिकन्दर ही एकमात्र ऐसा यूनानी सम्राट था, जिसे विश्व विजेता कहलाये जाने का गौरव हासिल है । सिकन्दर एक प्रकार से जीत का ही पर्याय माना जाता है । ”मुकद्दर का सिकन्दर”, ”जो जीता वही सिकन्दर” उसी के व्यक्तित्व से प्रेरित होकर कही गयी हैं । वह एक शक्तिशाली, अदम्य साहसी, महत्वाकांक्षी, परिश्रमी, दृढ़ संकल्पी, युद्ध वीर, कला-कौशल से युक्त, असाधारण व्यक्तित्व का धनी था ।

2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:

सिकन्दर मैसीडोनिया के राजा अलैक्जेंडर फिलिप द्वितीय का पुत्र था । उसकी माता का नाम ऑलंपियस था । उसके जन्म के समय ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि वह एक विश्व विख्यात व्यक्तित्व के रूप में जाना जायेगा । सिकन्दर के पिता ने अपने इस होनहार पुत्र के लिए अनेक योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की थी, जिनसे सिकन्दर ने धर्म, दर्शन, युद्ध कला, कौशल आदि की शिक्षा ली थी ।

उसके कुछ प्रमुख शिक्षकों में प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू भी थे, जिनसे सिकन्दर ने 13 से 16 वर्ष की अवस्था तक दर्शन, चिकित्सा-विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की थी । सिकन्दर के व्यक्तित्व के निर्माण में अरस्तू की भूमिका निःसन्देह महत्त्वपूर्ण थी ।

यह बात अलग है कि वैचारिक मतभेदों के बाद सिकन्दर ने उनके आदर्शों को नहीं अपनाया । सिकन्दर के पिता जब युद्ध में विजयी होकर लौटते थे, तो सिकन्दर सोचा करता था कि उसके लिए जीतने के अवसर काफी कम रहेंगे । बाल्यकाल से ही उसे घुड़सवारी का अच्छा शौक था ।

वह बिगड़ैल घोड़ों को तो पल-भर में ही अपने काबू में कर लिया करता था । सिकन्दर के पिता उसकी महत्त्वाकांक्षा को जानते थे । वह बोला करते थे कि- ”तुम अपने इस राज्य से बाहर साम्राज्य के विस्तार का स्वप्न देखो ।” 336 ई० पू० में अपने पिता और शासक राजा फिलिप द्वितीय की हत्या के बाद सिकन्दर को ही उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया ।

16 वर्ष की अवस्था में अपने पिता की अनुपस्थिति में उसने मीडियनो के विरुद्ध उनके प्रमुख नगरों पर आधिपत्य कर लिया था । इसके बाद जब उसके पिता ने थे बान और चेरेबिया के युद्ध में इन राज्यों पर विजय प्राप्त की थी, तब सिकन्दर ने ही घुड़सवार सेना का नेतृत्व किया था । 20 वर्ष की अल्पायु में वह फारस पर विजय प्राप्त करके अपने साम्राज्य के विस्तार में लग गया था ।

यद्यपि सिकन्दर के पिता वीर और साहसी प्रशासक थे, तथापि उन्होंने सिकन्दर की माता ऑलंपियस का अपमान कर मैसीडोनिया की सुन्दरी क्लिापेट्रा से विवाह कर लिया था । क्लिापेट्रा के नशेड़ी चाचा ने यह कहा था कि सिकन्दर के अलावा क्लिापेट्रा का पुत्र ही उत्तराधिकारी बने । यह सुनकर सिकन्दर ने नशेड़ी चाचा अटालो के मुंह पर शराब उडेल दी ।

पिता फिलिप ने क्रोधित होकर सिकन्दर पर तलवार उठा ली थी । इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उसके पिता की हत्या सन्देहास्पद परिस्थितियों में हो गयी थी, जिसका सन्देह सिकन्दर और उसकी माता पर ही जाता है; क्योंकि कहा जाता है कि सिकन्दर की माता ऑलंपियस ने क्लिापेट्रा को आत्महत्या करने पर न केवल विवश किया, अपितु उसके नवजात शिशु की भी बलि चढ़वा दी थी ।

जिस समय सिकन्दर सत्तारूढ़ हुआ, उसने अपने चारों तरफ विद्रोही परिस्थितियों में स्वयं को शत्रुओं के बीच पाया, किन्तु उसने विद्रोहियों का कुशलतापूर्वक दमन कर दिया । सिकन्दर ने फारस विजय अभियान पर निकलते समय अपनी व्यूह रचना को इस प्रकार आगे बढ़ाया कि फारस के बादशाह डेरियस को हराकर उस पर कब्जा जमा लिया ।

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फारस पर विजय प्राप्त करते समय उसने फारसी सेना पर तीरों की लगातार वर्षा करके नदी को पार किया । उस समय उसके पास 30 हजार सशस्त्र सैनिक और 5 हजार घुड़सवार सैनिक थे । इस युद्ध में सिकन्दर के प्राणों की रक्षा उसके प्रिय मित्र द्वारा हो पायी थी ।

अब वह एशिया माइनर पर विजय प्राप्त करने की लालसा से नगर तथा किलों को जीतता हुआ आगे बढ़ा, जहां उसने मान्यता के अनुसार-गौर्डियन नामक डोरी को काटकर एशिया विजेता होने की भविष्यवाणी को सत्य करने का मन बनाया ।

कड़कती धूप का सामना करते हुए सिकन्दर लम्बे समय बाद साइडनस नामक नदी तट पर पहुंचा । वहां के ठण्डे पानी में प्रवेश करने पर वह ज्वर से पीड़ित हो गया । तब अकारनेलिया के राजा फिलिप ने एक कुशल वैद्य की सहायता से उपचार कराकर उसे शीघ्र ही स्वस्थ करा दिया ।

इसी बीच सिकन्दर को अपनी हत्या के षड्‌यन्त्र का पता चला था । फिर साहसी सिकन्दर घबराया नहीं । फारस पर विजय प्राप्त करके सिकन्दर ने वहां के स्त्रियों एवं नागरिकों के साथ उदारतापूर्वक व्यवहार किया । हारे गये शत्रु की सुन्दर पत्नी को भी अपमानित नहीं किया ।

अब वह सीरिया की ओर बढ़ा था । यहां विजय प्राप्त करने के लिए उसे एक खतरनाक किले से होकर गुजरना था, किन्तु सिकन्दर ने समुद्र की भयंकर लहरों का सामना करते हुए भी सीरिया तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की । मिश्र और सीरिया ये दोनों राज्य सिकन्दर की विजय के लक्ष्यों में थे ।

यहां के शासक नये थे, जिनके पास विशाल सेना थी । किन्तु सिकन्दर के युद्ध कौशल के आगे उनकी एक न चली । उसने बेबीलोनिया और सुसा पर विजय प्राप्त की । फारस के शाह डरियस के मरने पर उसने उसके शव को भरपूर सम्मान दिया । सौगडियनरौक के विजयोत्सव में वह रौक्साना नामक सुन्दरी से मोहित होकर विवाह कर बैठा । इसी बीच उसने अपने प्रिय मित्र को किसी बात से खिन्न होकर मार डाला, जिसका पश्चाताप उसे जीवन-भर रहा ।

सिकन्दर के मन में भारत के अतुलनीय धन-वैभव की सम्पदा के प्रति आकर्षण एवं लालच का भाव था । अत: 327 ई० पू० में काबुल को जीतने के बाद उसने भारत पर आक्रमण की योजना बनायी । अपने दो प्रमुख सेनापतियों- पडिक्कस व हेफेस्तियन के नेतृत्व में पूर्व की ओर सिन्धु नदी पर विजय प्राप्त करने के लिए भेजा और स्वयं उत्तरी पहाड़ी राज्य काबुल की ओर चला गया । उसने अस्सप राज्य पर विजय प्राप्त करते हुए 40 हजार पुरुषों को बन्दी बनाकर उनके 2 लाख 30 हजार बैल अपने कब्जे में ले लिये । अन्य पहाड़ी राज्य नीसा तथा अश्वकायनों पर भी विजय प्राप्त की ।

326 ई० पू० में वह तक्षशिला में सिन्धु नदी को पार करके पहुंचा, तो राजा आंभिक ने उसका शानदार स्वागत करते हुए उसकी अधीनता स्वीकार कर ली । जब सिकन्दर ने राजा पोरस के राज्य पर आक्रमण किया, तो पोरस ने उसका वीरतापूर्वक सामना किया । अधिक वर्षा की वजह से दुर्भाग्यवश पोरस का रथ कीचड़ में फंस गया । उसकी धनुर्धारी सेना सिकन्दर की सेना के सामने टिक न सकी ।

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पोरस से मित्रता-सन्धि करके सिकन्दर ने ग्लोगनिकाई गणराज्य के 37 नगरों पर विजय प्राप्त की । इसी बीच उसे हिन्दुकुश पर्वत के पूर्व में जीते हुए भारतीय प्रदेशों के विद्रोह का सामना करना पड़ा, जिसे उसने दबा दिया । चिनाव नदी को पार करके सिकन्दर ने गंदरीस पर भी अधिकार किया । फिर उसने पोरस की सहायता से रावी नदी पार करके कठों को भी पराजित किया ।

सिकन्दर भारत के सीमावर्ती राज्यों पर अधिकार जमाना चाहता था, किन्तु व्यास नदी को पार करने से पूर्व उसे सैनिकों के विद्रोह का सामना करना पड़ा । उसके सैनिक निरन्तर युद्ध करते-करते बुरी तरह से थक चुके थे । सैनिकों ने उसे अपने देश वापस लौटने पर मजबूर कर दिया । इस तरह सिकन्दर ने उत्तर-पश्चिमी भारत पर विजय प्राप्त की थी; क्योंकि उस समय राजनैतिक एकता का अभाव था, राजाओं में पारस्परिक वैमनस्यता थी ।

पूर्वी भारत के विशाल नन्द साम्राज्य के शासक घननन्द की उत्तर-पश्चिम के राजाओं ने कोई मदद नहीं की । भारतीय सेना सिकन्दर की सेना के आगे दुर्बल साबित हुई । वर्षा की वजह से झोलम के तटवर्ती शासक राजा पोरस की रथसेना तथा घुड़सेना के रथ कीचड़ में ऐसे जा फंसे कि फिसलन की वजह से उनके घोड़े रथों को खींच पाने में असमर्थ थे । सिकन्दर भारत में 19 महीने रहा । वह आंधी की तरह आया और तूफान की भांति चला गया । उसने भारत पर राजनैतिक, ऐतिहासिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक प्रभाव डाला था ।

3. उपसंहार:

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सिकन्दर एक पराक्रमी, शौर्यशाली सैनिक ही नहीं, वरन् महत्त्वाकांक्षी शासक था । उसका व्यवहार मानवीयता तथा अमानवीयता का सम्मिश्रण था । अपने पराजित शत्रुओं से कहीं पर तो सम्मानजनक व्यवहार किया, तो थेबिस नगर के प्रति उसने अमानवीयता का परिचय देते हुए न केवल उस नगर को पूर्णत: नष्ट कर दिया, वरन् वहां की स्त्रियों तथा बच्चों को गुलामों की तरह बिकवा दिया । उसकी जीवन की रक्षा करने वाले मित्र क्लिटस की हत्या भी उसने एक छोटे से कारण से कर दी थी । हालांकि उसे इस बात का अफसोस अपनी मृत्यु तक रहा ।

सिकन्दर का शासनकाल मात्र 13 वर्षों का रहा, तथापि उसने विश्व विजेता होने का सम्मान पाया था । विजय अभियान से लौटे हुए सैनिकों की प्रत्येक सुख-सुविधाओं का उसने पूरा ध्यान रखा । बेबीलोनिया के महल में रहते हुए वह ऐसा बीमार पड़ा कि ई० पू० 323 में मृत्यु के आगे हार गया । यद्यपि कुछ तथ्य उसे आत्महत्या के दायरे में देखते हैं, तथापि सिकन्दर जैसे साहसी से इस बात की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

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