List of essays on the ‘Seasons’ of India (written in Hindi Language).

Contents:

  1. ग्रीष्म ऋतु |
  2. वर्षा ऋतु |
  3. शरद ऋतु |
  4. शिशिर ऋतु |
  5. हेमन्त ऋतु |

List of Five Essays on Indian Season’s

Hindi Essay 1 #  ग्रीष्म ऋतु | Summer Season

1. प्रस्तावना ।

2. ग्रीष्म का आगमन ।

3. ग्रीष्म का प्रभाव ।

4. प्रकृति पर प्रभाव ।

5. महत्त्व ।

6. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारत की भौगोलिक संरचना काफी विविधताओं से भरी हुई है । कहीं पर्वत हैं, कहीं नदियां हैं, कहीं नाले हैं, तो कहीं बर्फीली चोटियां, तो कहीं मैदानी भागों की हरियाली है, तो कहीं मरुस्थलीय रेतीली भूमि । वर्ष के विभिन्न अवसरों पर यहां प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूप मिलते हैं । इन रूपों के आधार पर वर्ष-भर में भारत में छह प्रकार की ऋतुएं होती हैं-वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त, वसंत तथा ग्रीष्म ऋतु ।

2. ग्रीष्म ऋतु का आगमन:

भारत में सभी ऋतुएं अपने-अपने क्रम पर आती-जाती हैं और प्रकृति में अपने प्रभाव व महत्त्व को दर्शाकर चली जाती हैं । यहां ग्रीष्म ऋतु का आगमन वसंत ऋतु के बाद होता है । भारतीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने में ग्रीष्म का आगमन होता है ।

ADVERTISEMENTS:

अंग्रेजी कलेण्डर के हिसाब से इसका आगमन 15 मार्च से 16 जून तक होता है । सामान्यत: मार्च के महीने से बढ़ता हुआ इसका तापमान मई तथा जून माह में चरमसीमा पर होता है । सूर्य जब भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ता है, तब इसका तापमान बढ़ने लगता है ।

भारतीय पर्व होली के बाद सूर्य की गरमी बढ़ने लगती है । सूर्य का जब मकर संक्रान्ति के बाद उत्तरायण होने लगता है, तब ग्रीष्म प्रारम्भ हो जाती है ।

3. ग्रीष्म का प्रभाव:

ग्रीष्म में प्रकृति का तापमान बढ़ जाता है । धरती तवे के समान तपने लगती है । लू के थपेड़ों से समस्त प्राणियों का शरीर मानो झुलसने लगता है । नदियों, तालाबों, कुओं का जल सूखने लगता है । जलस्तर कम होने लगता है ।

गरमी के कारण पशु-पक्षी, मानव सभी आकुल-व्याकुल होने लगते हैं । प्यास के मारे गला सूखने लगता है । सूर्य की गरमी से व्याकुल होकर प्राणी छाया ढूंढने लगते हैं । रीतिकालीन कवि सेनापति ने ग्रीष्म की प्रचण्डता का वर्णन करते हुए लिखा है कि ”वृष को तरनि तेज सहसौ किरन करि, ज्वालन के ज्वाल विकराल बरखत है ।

तचति धरनि, जग जरत झरनि सीरी छांव को पकरि पंथी बिरमत हैं । सेनापति धमका विषम होत जो पात न खरकत है । मेरी जान पौनो सीरी ठण्डी छांह को पकरि बैठि कहूं घामै बितवत है ।”  अर्थात् वृष राशि का सूर्य अपने प्रचण्ड ताप को भयंकर ज्वालाओं के जाल के रूप में धरती पर बिखेर रहा है । धरती तप गयी है । संसार जलने लगा है । ऐसा लगता है कि आग का कोई झरना बह रहा है ।

गरमी से आकुल-व्याकुल होकर धरती के प्राणी किसी ठण्डी छाव को पकड़कर विश्राम करने लगे हैं । सेनापति के अनुसार दोपहर के होते हुए वातावरण में इतना भीषण सन्नाटा छा जाता है कि पत्ता तक नहीं खड़कता है । ऐसा प्रतीत होता है कि हवा भी किसी ठण्डे कोने में विश्राम कर रही है । तभी तो हवा भी नहीं चल रही है ।

एक दोहे में कवि बिहारी यह कहते हैं कि कहलाने एकत बसत. अहि मयूर मृग-बाघ । जगत तपोवन सों कियों, दीरघ दाघ निदाघ ।। अर्थात् ग्रीष्म से व्याकुल होकर सर्प, मृग, मोर तथा बाघ जैसे हिंसक, अहिंसक प्राणी आपसी वैर-भाव भूलकर एक ही स्थान पर विश्राम कर रहे है ।

इस गरमी ने तो इस संसार को तपोभूमि बना दिया है । ग्रीष्म के प्रभाव से दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं । खाना खाने की इच्छा नहीं होती । सिर्फ ठण्डा पानी पीने का मन करता है । कूलर की ठण्डी हवा में पड़े रहने का मन करता है ।

4. प्रकृति पर प्रभाव:

प्रकृति पर ग्रीष्म का प्रभाव इतना होता है कि वायु इतनी गरम हो जाती है कि पेड़ों से लेकर प्राणियों तक को झुलसाने लगती है । नदी, तालाब सुख जाते हैं । रेतीले स्थानों पर अधिया चलने लगती हैं । मैदानी भागों में तो लू चलने लगती है ।

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लोगों का घर से निकलना दुश्वार हो जाता है । सभी प्राणी बेचैन हो उठते हैं । इस भयंकर गरमी से बचने के लिए लोग पहाड़ी और ठण्डे स्थानों पर जाते हैं । जहां पर बिजली नहीं होती, वहां पर इनके अभाव में बड़ी तकलीफ होने लगती है ।

5. महत्त्व:

सभी ऋतुओं की तरह ग्रीष्म ऋतु का अपना ही विशेष महत्त्व है । यद्यपि इस ऋतु का प्रभाव प्राणियों पर बड़ा ही कष्टप्रद होता है, किन्तु फसलें तो गरमी में ही पकती हैं । हम रसीले फल, खरबूजे, तरबूज, आम, ककड़ी, लीची, बेल आदि का आनन्द लेते हैं ।

लस्सी, शरबत, आइसक्रीम, कुल्फी, बर्फ के गोलों को खाने का आनन्द ही कुछ ओर होता है । मई और जून की गरमी में हमारे स्कूलों में छुट्टियां होने लगती हैं । गरमी में तो घूमने, सैर-सपाटों का लोग आनन्द लेते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

गरमी के कारण ही वर्षा ऋतु का आगमन होता है । गरमी में नदियों, समुद्रों आदि का पानी सूखकर वाष्प के रूप में आकाश में जाता है और उससे बादल बनते हैं । फिर इन्हीं बादलों से वर्षा होती है । ग्रीष्म तु एक प्रकार से हमें धैर्य और सहनशक्ति सिखाती है ।

जिस प्रकार प्रचण्ड गरमी के बाद रिमझिम वर्षा का आगमन होता है, उसी प्रकार दुःख के बाद सुख आता है । गरमी के कारण पंखे, कूलर, वातानुकूलित यन्त्रों एवं शीतल पेयों का हम भरपूर लुत्फ उठा सकते हैं । बागों में तो आमों की नयी-नयी किस्में बहार लेने लगती हैं ।

6. उपसंहार:

इस प्रकार हम पाते हैं कि ग्रीष्म का अपना विशेष महत्त्व है । यदि हम ग्रीष्म के दुष्प्रभावों से बचने की पहले से ही व्यवस्था कर लेंगे, तो इस के भयंकर प्रभाव से हम बच सकते हैं तथा इससे प्राप्त आनन्द का पूर्णत: लाभ उठा सकते हैं ।

ग्रीष्मावकाश के समय का सदुपयोग हम कई हितकर कार्यो में भी कर सकते हैं; क्योंकि इस समय दिन बड़ा होता है । इस तरह हम मनोरंजक साधनों से भी अपने जीवन की नीरसता को कम कर सकते हैं ।


Hindi Essay 2 #  वर्षा ऋतु | Rainy Season

1. प्रस्तावना ।

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2. वर्षा का आगमन ।

3. प्रकृति पर वर्षा का प्रभाव ।

4. महत्त्व ।

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5. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

जब सूर्य की प्रचण्ड किरणें धरती को जलाने लगती हैं, ऐसे में धरती के सभी प्राणी आकुल-व्याकुल हो उठते हैं, नदियां, ताल-तलैया सब सुख जाते हैं, तब प्यासी धरती पानी के लिए तड़प उठती है ।

ऐसे समय में ऋतुओं की रानी बरखा अपनी रिमझिम फुहारों के साथ धरती को शीतलता देने और उसकी प्यास बुझाने आ पहुंचती है । सारी प्रकृति प्रसन्नता से झूम उठती है । सारा जन-जीवन प्यास से तृप्त होकर खुशी से गाने लगता है और शुरू हो जाता है कृषिप्रधान देश भारत का जन-जीवन ।

2. वर्षा का आगमन:

उमड़-घुमड़कर छाये हुए आकाश में काले-काले बादल जब टप-टप कर बरस पड़ते हैं, तो समझ लो कि वर्षा रानी आ गयी । ऋतुओं की रानी वर्षा का आगमन वस्तुत: मानसून के साथ जुड़ा हुआ है । सामान्यतया इसका समय 15 जून से 17 सितम्बर तक होता है, किन्तु मानसून के आगमन में देर-सवेर की वजह से समय थोड़ा परिवर्तित हो जाता है ।

वर्षाकाल में धरती मानो हरियाली की चादर ओढ़े इतराने लगती है । जल में नहाये हुए पेरू-पौधे ठण्डी वायु के झोकों के साथ लहराने लगते हैं । पक्षी वनों, कुंजों में मधुर ध्वनि गाने लगते हैं । नदियों और तालाबों का कल-कल करता हुआ बड़ी तेजी से बहता हुआ पानी, वर्षा की महिमा को बिखेरने लगता है ।

काले-काले मेघ गर्जन-तर्जन करते हुए बिजली की चमक के साथ धरती पर बरस पड़ते हैं । बगुलों की सफेद पंक्तियां आकाश में उड़ती हुई अत्यन्त सुन्दर लगती हैं । वर्षा के आगमन का चित्र खींचते हुए कवि सेनापतिजी लिखते हैं:

दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्यामघटा की धमक अति घोर-घनघोर तें । कोकिला-कलापी कल कूजत है, जित-तित शीतल है, हीतल समीर झकझोर तें । सेनापति, आवन कइयो है मन भावन तै सु लाग्यों तरसावन विरह जुर जीर तें ।।

आयो सखि, मदन सरसावन । लायों है, बरसावन सलिल चहुं ओर तें । अर्थात वर्षा ऋतु का आगमन होते ही कोयल, मोर सुन्दर आवाजें करते हुए यहां-वहां दिखाई पड़ते हैं । ठण्डी वायु के झोंकों से धरती का हृदय शीतल हो उठता है । सेनापति कवि कहते हैं कि विरही जनों को यह ऋतु प्रियतम की याद दिलाती है ।

3. प्रकृति पर प्रभाव:

वर्षा का आगमन होते ही समस्त प्रकृति पर उसका प्रभाव व्यापक रूप से दिखाई देने लगता है । जहां वर्षा के आते ही वातावरण एकदम सुहावना हो उठता है, वहीं नदी-नालों, तालाबों में लबालब जल भर जाता है । पेड़-पौधे नये-नये पत्तों से ढक जाते हैं । वनों-उपवनों में तो हरियाली के दर्शन होने लगते हैं ।

धरती पर नये-नये अंकुर फूट पड़ते हैं । किसान हल लेकर खेतों की ओर निकल पड़ते हैं । सावन-भादो की इस हरियाली में तीज, नागपंचमी, रक्षाबन्धन, कजली, हलषष्ठी, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों का आनन्द दूना हो जाता है । बच्चे, बूढ़े, जवान छतरी, रेनकोट के साथ वर्षा की फुहारों का आनन्द लेते दिखाई पड़ते हैं ।

4. वर्षा का महत्त्व:

भारत एक कृषिप्रधान देश है । यहां की 80 प्रतिशत से भी ज्यादा की आबादी गांवों में ही निवास करती है । गांवों की अधिकांश जनता खेती पर ही निर्भर है । सिंचाई सुविधाओं का पूरी तरह से विस्तार न होने के कारण जनता वर्षा पर ही निर्भर है । कृषि का आधार भी वर्षा ही है ।

कृषि हमारे जीवनयापन का साधन है, अर्थव्यवस्था का आधार है । वर्षा के बिना किसी प्रकार का उत्पादन सम्भव ही नहीं है । यह सत्य है कि जिस वर्ष वर्षा अच्छी होती है, तो फसल उत्पादन भी अच्छा होता है । हरी-भरी घास उगने के कारण पशुओं को चारा भी अच्छा प्राप्त होता है । पशुओं को चारा अच्छा मिलने के कारण उनसे अच्छा दूध प्राप्त होता है ।

5. उपसंहार:

वर्षा ऋतु मानव जीवन का आधार है । वर्षा के बिना प्रकृति में जीवन सम्भव नहीं है; क्योंकि इसके बिना अन्न उत्पादन असम्भव है । इस प्रकार वर्षा हमारे जीवन की सुख-समृद्धि का आधार है । वहीं अधिक वर्षा से बाढ़ की विनाशकारी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो खेतों की फसलों को नष्ट कर देती है । जन-धन को अपार हानि पहुंचाती है । इस में

कीड़े-मकोड़े, सर्प, बिच्छू आदि कई प्रकार के जहरीले कीड़े निकलते हैं, जिनसे मनुष्य के जीवन को जान का खतरा हो सकता है । वर्षा में मक्खियों के फैलने से हैजा का प्रकोप बढ़ जाता है । रास्ते में अधिक पानी की वजह से कीचड़ बढ़ जाता है ।

वर्षा ऋतु में होने वाली इन हानियों से बचा जा सकता है, किन्तु इतना सत्य है कि वर्षा के बिना जीवन सम्भव नहीं है ।  अत: इस का होना हमारे लिए बहुत जरूरी है । वर्षा की प्रत्येक बूंद हमारे लिए प्राणदायिनी है । इसकी महत्ता हमें कम वर्षा, अर्थात् अनावृष्टि से ज्ञात हो जाती है । जो भी हो, वर्षा हमारे जीवन का प्राणाधार है ।


Hindi Essay 3 #  शरद ऋतु | Autumn Season

1. प्रस्तावना ।

2. शरद का प्रभाव ।

3. शरद ऋतु का महत्त्व ।

4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

जब गरमी के प्रभाव से सारा संसार जलने लगता है, तो उसकी तपन को शान्त कर देती है-वर्षा रानी । जब वर्षा रानी अपने प्रभाव से समस्त संसार को नया जीवन देती है, हरियाली और सम्पन्नता का नया वरदान देकर विदा लेती है, तब शरद ऋतु का आगमन होता है । सभी छह ऋतुओं में शरद ऋतु का प्रभाव प्रकृति में अनुपम रूप से दिखाई पड़ता है ।

2. शरद का प्रभाव:

शरद का आगमन होते ही प्रकृति का रूप अत्यन्त ही निर्मल एवं मनोहारी हो जाता है । निर्मल चन्द्रमा की चांदनी का प्रकाश सारी पृथ्वी में व्याप्त हो जाता है । फिर धरती क्या, आकाश क्या, सभी जगह निर्मल व शीतल चांदनी की आभा दिखाई देने लगती है ।

आकाश से बादलों की कालिमा हट जाती है । स्वच्छ आकाश से निर्मल चन्द्रमा झांकता-सा दिखाई देता है । आकाश में नजर आते असंख्य तारे आकाश में खिले पुष्प की तरह नजर उघते हैं । या फिर ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश में अनगिनत मोती बिखरे पड़े हों ।

रीतिकालीन कवि सेनापतिजी ने शरद ऋतु के प्राकृतिक वैभव एवं सौन्दर्य का वर्णन करते हुए लिखा है कि:  फूले है कुमुद, फूली मालती सघन वन । फूलि रहे तारे, मानो मोती अनगन है ।। उदित विमल चंद चांदनी छिटकी रही ।

तिमिर हरण भयो सेत है वरन सब ।। मानहुं जगत क्षीर सागर में डूबा हुआ है । गोस्वामी तुलसीदासजी ने शरद के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए रामचरितमानस में लिखा है कि:  वरषा विगत सरद रितु आई । लछिमन देखहुं परम सुहाई । फूले कास सकल महि छाई । बिनु घन निर्मला सोह आकाशा । हरिजन इव परिहरि सब आसा । कहुं कहुं दृष्टि सारदी थोरी ।

अर्थात् वर्षा ऋतु व्यतीत होते ही शरद ऋतु का आगमन होता है । लक्ष्मणजी इस के सौन्दर्य को देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे हैं । कांस के खिले हुए फूल अत्यन्त सुन्दर लग रहे हैं तथा बादलों से विहीन आकाश उसी प्रकार शोभायमान हो रहा है, जिस प्रकार हरिजन सब प्रकार की आशाओं को त्यागकर सुशोभित होते हैं ।

शरद ऋतु में कहीं-कहीं थोड़ी-थोड़ी वर्षा होती है । मैथिलीशरण गुप्ताजी ने चन्द्रमा की शोभा के रात्रिकालीन सौन्दर्य का वर्णन करते हुए लिखा है कि:  चारु चन्द्र की चंचल कि२णें, खेल रही थीं जल-थल में । स्वच्छ चांदनी बिखरी हुई है, अवनि और अम्बर तल में ।

3. शरद का महत्त्व:

शरद ऋतु में समस्त नदियों और तालाबों का जल स्वच्छ हो जाता है । धरती पर धूल और कीचड नहीं रहती है । बादलों से विहीन आकाश अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता  है । शरद ऋतु में खंजन पक्षी भी दिखाई देने लगते हैं । साथ ही हंस भी क्रीड़ा करते हुए हर्षित होते हैं ।

शरद के प्रारम्भ होते ही सभी जन अपने-अपने कार्य-व्यापार में लग जाते हैं; क्योंकि वर्षा ऋतु में सबके कार्य बन्द-से पड़ जाते है । शरद ऋतु का आगमन होते ही समस्त कीट-पतंग नष्ट हो जाते हैं । इरम में नवरात्र, दीपावली जैसे त्योहारों की उमंग और उत्साह देखते ही बनती है ।

4. उपसंहार:

इस तरह प्रकृति की सभी छह ओं में शरद अपनी प्राकृतिक शोभा के कारण महत्त्व रखती है । लोगों को अपने-अपने कर्तव्यकर्म में गतिशील होने की प्रेरणा होती है । शरद ऋतु में अमृत बरसाता चन्द्रमा अपनी किरणों की शीतलता से सभी की थकान हर लेता है । भारतीय जन-जीवन में शरद ऋतु विशेष महत्त्व रखती है ।


Hindi Essay # 4 शिशिर ऋतु |  Winter Season

1. प्रस्तावना ।

2. शिशिर ऋतु का आगमन ।

3. महत्त्व ।

4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

शरद ऋतु जब अपने शीतल, रचच्छ, मोहक सौन्दर्य से प्रकृति पर अपना प्रभाव छोड़ जाती है, तो उसकी खुमारी को तोड़ती हुई हौले-हौले दबे पांव आ जाती हैं: शिशिर ऋतु । शरद की हल्की-हल्की गुलाबी ठण्ड अपने पूर्ण यौवन पर आ पहुंचती है ।

शिशिर के समय धरती का तापमान तो कहीं-कहीं पर शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है । ठण्ड अपने पूरे शबाब पर आ जाती है, जिसका प्रभाव समस्त प्रकृति पर प्राणिमात्र पर ऐसा पड़ता है कि उन्हें कंपकंपी-सी छूटने लगती है ।

2. शिशिर का आगमन:

भारत में शिशिर ऋतु का प्रारम्भ नवम्बर के मध्य से होता है । जनवरी तथा फरवरी इस ऋतु के सबसे ठण्डे महीने होते हैं । यह मौसम वायुदाब से प्रभावित होता है । सूर्य के दक्षिणायन होने से हिमालय के उत्तर क्षेत्र में उच्च वायुदाब का केन्द्र विकसित हो जाता है तथा यहां से पवनें भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बहने लगती हैं ।

ये पवन ही शुष्क महाद्वीपीय वायु संहति के रूप में पहुंचती है । इस समय उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्र का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, किन्तु दक्षिण की ओर बढ़ते जाने से सागरीय समीपता एवं उष्णकटिबन्धीय स्थिति होने के कारण तापमान बढ़ता जाता है ।

इस समय उत्तरी भारत के मैदानी भागों का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है । रात के समय तो इसका तापमान 0 से भी नीचे चला जाता है । इस सामान्य ठण्ड के मौसम को सामान्यत: शीत लहर की संज्ञा दी जाती है ।

3. शिशिर ऋतु का महत्त्व:

इस में खरीफ की फसलें खलिहानों में पककर तैयार हो जाती हैं । खरीफ की फसलों के उगते ही खेतों में रबी की फसलें, गेहूं चना तथा दालों की फसलों का उत्पादन अच्छा होता है । यह रबी की फसलों के लिए बहुत फायदेमन्द है ।

इस ऋतु में विभिन्न प्रकार के फल-फूल तथा सब्जियां बहुतायत में उपलव्य होती हैं । खेतों में लहलहाती रबी की फसलों के साथ-साथ हरी-हरी सब्जियां मटमट करती हुई धनियां लोगों के जीभ का स्वाद बढ़ा देती है । गाजर, मूली, टमाटर, सेमफली, मटर, गोभी जैसी फसलें अपना अनूठा स्वाद चखाती हैं ।

ठण्ड में फलों में भी मिठास आ जाती है । यह ऋतु स्वास्थ्य के लिए भी बड़ी लाभदायक होती है । कहा जाता है कि इस में बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है; क्योंकि ताजी सब्जियां और विटामिनयुक्त फल शरीर को शक्तिवर्द्धक बनाते हैं ।

इस में रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं । गरमी तथा वर्षा में हमारी कार्यक्षमता प्रभावित होती है, किन्तु इस ऋतु में हमारी कार्यक्षमता बढ़ जाती है । इस ऋतु में हम दीपावली, क्रिसमस, ईद जैसे त्योहारों का आनन्द उठाते हैं ।

रंग-बिरंगे ऊनी कपड़ों में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी स्वेटर, ऊनी शॉल, कोट, मफलर डाले ठण्ड को दूर भगाते नजर आते हैं । गरमागरम चाय के साथ गुनगुनी धूप का आनन्द लेते हैं । इस ऋतु में विशेषत: विभिन्न प्रकार के खेलों का आयोजन होता है ।

क्रिकेट, हॉकी, कबडी, खो-खो, फुटबॉल, एथेलिटिक्स आदि प्रतियोगिता ठण्ड के आनन्द को और अधिक बढ़ा देती हैं । खेलों से जहां शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है, वहीं हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है । शीतकालीन विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं गे स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं होती हैं ।

इस में जहां बहुत से लाभ हैं, वहीं कुछ हानियां हैं । अत्यधिक ठण्ड की वजह से लोग ठिठुरकर काल के गाल में समा जाते हैं । इस ऋतु में सर्दी, खांसी, दमा जैसी बीमारियां आपने पांव पसारने लगती हैं । ठण्ड की अधिकता से लोगों की कार्य की गति धीमी पड़ जाती है ।

अत्यधिक ठण्ड की वजह से लोग रजाई और बि२तर में ही दुबके रहना चाहते हैं ।  ठण्ड के दिनों में ईधन की खपत कुछ ज्यादा ही होती है । इस ऋतु में कभी-कभी वर्षा हो जाती है, जिसकी वजह से फसलें खराब हो जाती हैं । पाला और कोहरे की वजह से फसलें तथा सब्जियां सड़ जाती हैं । सूर्य, चन्द्रमा की तरह मन्द पड़ जाता है । नदियों, तालाबों का पानी बर्फ बन जाता है ।

4. उपसंहार:

यह सत्य है कि प्रकृति की प्रत्येक का अपना विशेष महत्त्व होता है । इस रूप में शिशिर ऋतु प्रकृति की अत्यन्त सुन्दर एवं उपयोगी है ।


Hindi Essay 5 # हेमन्त ऋतु | Spring Season

1. प्रस्तावना ।

2. महत्त्व ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

समस्त प्राणी समाज को अपने ठण्डे-ठण्डे झोंकों से ठिठुराती-कंपकपाती शिशिर ऋतु जब प्रकृति से विदा लेती है, तो आ जाती है-हेमन्त । इसे पतझड़ की भी कहते हैं । हेमन्त का आगमन समस्त प्रकृति एवं मानव-समाज के लिए एक अनूठा सन्देश होता है ।

2. महत्त्व:

हेमन्त का आगमन होते ही पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं । पके हुए पीले-पीले पत्ते पेड़ों से गिरते हैं, ताकि नये पत्ते उसकी जगह ले सकें । नवीनता का नया सन्देश देने वाली यह ऋतु प्राकृतिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है ।

पेड़ों से पत्ते झड़ने का प्राकृतिक कारण है कि वृक्षों की वाष्पोत्सर्जन की क्रिया को सीमित किया जाये, ताकि वृक्ष पानी की कमी की क्षति को पूरा कर सकें । प्रकृति की इस क्रिया के पीछे यह उद्देश्य है कि पेड़ों द्वारा त्यागे गये पत्ते वृक्ष को पानी से होने वाली कमी से अनुकूलन करा सकें ।

पुराने, जर्जर, पके हुए पत्ते जब अपना स्थान छोड़ते हैं, तब उनका स्थान नये-नये पत्ते ले लेते हैं । वृक्षों से फूटी हुई नयी कोंपलें वृक्ष को पूर्ण यौवन प्रदान करती हैं, साथ ही उसकी जीवनी तथा प्राणशक्ति को बढ़ा देती हैं ।

ADVERTISEMENTS:

वृक्षों से गिरे हुए ये पत्ते वर्षा ऋतु में भूमि की नयी परत बनाने में मदद करते हैं । नवीन पौधों का अंकुरण भूमि की इस नयी परत में ही बड़ी सरलता से होता है । इस में सूर्य का ताप क्रमश: बढ़ने लगता है, जिससे सभी जीवधारियों को ठण्ड से काफी-कुछ राहत मिल जाती है ।

हेमन्त का सम्बन्ध मानव-जीवन दर्शन से है, जो इस सांसारिक दर्शन से हमारा साक्षात्कार कराती है कि मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है, नाशवान है । जिस तरह से पेड़ों के पत्ते अपना सम्पूर्ण जीवन जीने के उपरान्त मिट्टी में मिल जाते हैं, उसी तरह मानव-जीवन भी नश्वर है ।

कबीरदासजी ने तो मानव-जीवन की इसी नश्वरता पर प्रकाश डालते हुए वृक्ष के पके पत्ते से इसकी तुलना करते हुए यह दोहा लिखा है:

मानुष देह दुर्लभ है, देह न बारम्बार । तरूवर से पत्ता झरया लागे न बहुरि डार ।। पुराने चीजों की जगह ही नवीन चीजों को स्थान मिलेगा । विकास की यही गति है, यही प्रक्रिया है । मनुष्य का जीवन पके हुए पत्ते की तरह है, यही हमारे जीवन का सत्य है । हेमन्त ऋतु एक प्रकार से प्रकृति की नवीनता की सूचक है । उसके लिए अपनी जमीन वह तैयार भी करती है ।

3. उपसंहार:

प्रकृति की अन्य ऋतुओं ल तरह हेमन्त ऋतु का अपना अलग ही महत्त्व है । यह ऋतु जहां प्राचीनता के मोह को छोड़ने तथा नवीनता के आग्रह का सन्देश देती है, वहीं यह सन्देश देती है कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है ।


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