काला धन: कारण और निवारण पर निबन्ध | Essay on Black Money : Causes and Prevention in Hindi!

भारत एक लोकतांत्रिक देश है । अपने कल्याणकारी उद्‌देश्यों की पूर्ति अर्थात् औद्योगिक व्यापारिक तथा आर्थिक विकास, राष्ट्रीय आय में वृद्धि, व्यय तथा समानता पर आधारित वितरण तथा आय की असमानता की समाप्ति के लिए यह आवश्यक है कि सरकार की आय तथा वित्तीय साधनों में कभी किसी प्रकार की रुकावट नहीं आनी चाहिए ।

इसके लिए यह आवश्यक है कि हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी हो, जिससे देश के वित्तीय साधनों का विनियोजन आर्थिक विकास में सहायक क्षेत्रों में हो । विगत कुछ वर्षों से हमारा देश अनेक आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से गुजर रहा है, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था के समानांतर एक और अर्थव्यवस्था है, जो देश की वास्तविक अर्थों में अर्थव्यवस्था बन गई है । यह व्यवस्था काले धन की है, जो हमारी राजनीति का प्राण तथा हमारी नई पश्चिमी पंचतारा, संस्कृति, सप्ततारा होटलों की वैभव वाली संस्कृति का उन्नायक है ।

काला धन सरकार की आय में रुकावट पैदा करता है तथा देश के सीमित वित्तीय साधनों को अवांछित दिशाओं में मोड़ देता है । इसके अतिरिक्त काले धन या समानांतर अर्थव्यवस्था की समस्या सामान्य समस्याओं से अलग प्रकार की समस्या है क्योंकि जब हम सामान्य आर्थिक समस्याओं, यथा गरीबी, मुद्रास्फीति या बेरोजगारी के संबंध में विचार करते हैं तब हमारा ध्यान निर्धन तथा बेरोजगार आदि के समूह पर केंद्रित हो जाता है ।

परंतु जब हम काले धन या समानांतर अर्थव्यवस्था पर दृष्टिपात करते हैं तब एक विशेषता दृष्टिगत होती है, कि इसमें वह व्यक्ति या व्यक्ति समूह बिल्कूल ही प्रभावित नहीं होता, जो इस काले धन को रखता है बल्कि इससे वे व्यक्ति प्रभावित होते हैं, जो इससे वंचित रह गए हैं और साथ-ही-साथ इस देश की सरकार भी ।

काले धन की अवधारणा:

आजकल ‘काले धन’ का प्रयोग सामान्यत: बिना हिसाब-किताबवाले या छुपाई हुई आय अथवा अप्रकट धन या उस धन के लिए किया जाता है, जो पूर्णतया अथवा अंशतया प्रतिबंधित सौदों में लगा हुआ है । काला धन काली आय अथवा काली संपदा के रूप में भी हो सकता है । काली आय से तात्पर्य उन समस्त अवैध प्राप्तियों और लाभों से है जो करों की चोरी, गुप्त कोषों तथा अवैध कार्यो के करने से एक वर्ष में प्राप्त हुए हों ।

इसी प्रकार काली संपदा से तात्पर्य वह काली आय, जो वर्तमान में खर्च की जाती है और बचा ली जाती है या विनियोजित कर दी जाती है अर्थात् अपनी काली आय को व्यक्ति सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरातों, बहुमूल्य पत्थरों, भूमि, मकान, व्यापारिक परिसंपत्तियों आदि के रूप में रखता है । इस काले धन को आयकर-अधिकारियों या सरकार की करारोपण दृष्टि से बचाकर रखने में उपर्युक्त प्रक्रिया प्रयोग में लाई जाती है ।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि ‘काले धन’ शब्द से आशय केवल उस धन से नहीं होता, जो कानूनी धाराओं, यहाँ तक कि सामाजिक ईमानदारी का उल्लंघन करके कमाया गया हो अपितु काले धन में वह धन भी सम्मिलित किया जाता है, जो छुपाकर रखा गया हो और जिसका कोई हिसाब-किताब न हो ।

काले धन की उत्पत्ति:

काला धन मुख्यत: दो प्रकार की शक्तियाँ उत्पन्न करता है । प्रथमत: अवैध साधनों को प्रयोग करके काले धन की प्राप्ति, यथा-तस्करी, फ्लैटों और दुकानों के आवंटन में ली जानेवाली पगड़ी की राशि, माल के कोटों तथा लाइसेंसों को गैर-कानूनी रूप में बेचना, गुप्त कमीशन या घूसखोरी, विदेशी विनिमय की चोरी से प्राप्त धन तथा सरकारी नियंत्रण में बिक्री की कुछ वस्तुओं को काले बाजार में बेचने से अर्जित धन, आदि ।

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इसी प्रकार दूसरे, प्रकार का काला धन वह होता है, जिसके अर्जन का स्रोत उपर्युक्त के विपरीत अर्थात् न्यायपूर्ण तथा वैध साधन होते हैं, परंतु अर्जन करनेवालों के व्यक्तिगताव्यवहारों के कारण यह काले धन का रूप ले लेता है या अपनी आय को कर-अधिकारी से छुपाकर तथा उसपर कर अदा न करके अर्थात् ‘कर-वंचन’ के फलस्वरूप भी काले धन की उत्पत्ति होती है ।

जैसे-यदि किसी व्यक्ति की वार्षिक आय आयकर के अंतर्गत है तो वह आयकर की राशि को बचाने के लिए अपनी वास्तविक आय से कर आय को दरशाता है । इस प्रकार वह अंतर (वास्तविक आय घोषित आय) ‘काला धन’ कहलाएगा । वास्तव में कर-वंचन (Tax-evasion) तथा काला धन, दोनों परस्पर अत्यंत घनिष्ठ रूप में संबंधित हैं ।

कर-वंचन, जहाँ काले धन को जन्म देता है, वहाँ काले धन को जब अधिक आय कमाने के लिए गुप्त रूप से व्यवसाय में लगाया जाता है, तो उससे पुन: कर-वंचन को प्रोत्साहन मिलता है । हम कह सकते हैं कि वर्तमान कर-प्रणाली ही काले धन की उत्पत्ति का प्रमुख कारण है । कर-प्रणाली के जटिल होने के साथ-साथ करों की ऊँची दरों से भी कर-वंचन को बढ़ावा मिलता है ।

विगत कुछ वर्षो तक भारत में आयकर की सीमांत दर ९७.७५ प्रतिशत तक थी । वर्तमान में उसकी सीमांत दर ५० प्रतिशत है । प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष, दोनों प्रकार के करों के संबंध में चोरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिससे काला धन बढ़ता ही जा रहा है । इसी प्रकार नियंत्रण (राशनिंग) व्यवस्था भी पर्याप्त मात्रा में काले धन की जननी है । अपने देश में बहुत से उपभोक्ता और औद्योगिक पदार्थों के उत्पादन मूल्य, तथा वितरण सरकार के नियंत्रण में है ।

आयात, निर्यात तथा विदेशी विनिमय पर भी बहुत से प्रतिबंध लगाए गए हैं । कई वस्तुओं के लिए लाइसेंस तथा कोटा-प्रणाली प्रचलित है । सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य तथा बाजार मूल्य में अंतर के कारण अधिक लाभ प्राप्ति के लिए इन नियंत्रणों को भंग किया जाता है तथा नियंत्रित मूल्य की वस्तुएँ अधिक मूल्य पर काले बाजार में बेच दी जाती हैं ।

व्यापारी तथा साधारण जन भी लाइसेंस, कोटा-परमिट प्राप्त करने के लिए तथा अवैधपूर्ण रीति से कोई कार्य करवाने के लिए कर्मचारियों तथा अधिकारियों को रिश्वत देते हैं । इस प्रकार से नियंत्रण तथा निर्णयों में देर करने की प्रवृत्ति काले धन का प्रचुर मात्रा में उत्पादन करती है ।

अर्थव्यवस्था में मुद्रा-स्फीति तथा वस्तुओं की कमी भी काले धन को जन्म देती है । मूल्यों के बढ़ने से व्यापारी माल को छुपाते या संचित करते हैं तथा इस माल को बाद में अधिक मुनाफे पर काले बाजार में बेच देते हैं । फलस्वरूप काले धन में अभिवृद्धि होती है ।

इसी प्रकार भ्रष्ट व्यावसायिक कासवाइयाँ व्यावसायिक खर्चों की सीमाबंदी तथा उनकी अनुमति न मिलना, बिक्रीकर तथा अन्य करों की ऊँची दरें, कर-कानूनों को अप्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना आदि भी ऐसे महत्त्वपूर्ण कारण हैं, जो प्रचुर मात्रा में काला धन उत्पादित करते हैं ।

सरकारी कर्मचारी भी मूल्यों में वृद्धि के अनुक्रम में वेतन-वृद्धि नहीं पाते, जिसके फलस्वरूप वे अपने अधिकारियों का दुरुपयोग करके भ्रष्ट तरीकों से आय प्राप्त करते हैं, जो काले धन का रूप ग्रहण कर लेती है । उधर ठेकेदारों, माल की आपूर्ति करनेवाले, एजेंटों तथा दलालों की संख्या में हुई वृद्धि भी काले धन की वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारण है ।

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अचल संपत्तियों यथा- भूमि, भवन आदि का हस्तांतरण भी काले धन का एक बड़ा स्रोत है । के.एन. वांचू समिति की जाँच से यह स्पष्ट हो गया है कि महानगरों में अचल संपत्ति के मूल्य ६०:४० के अनुपात में अदा किए जाते हैं, जिसमें ४० का अनुपात काले धन के रूप में होता है ।

कभी-कभी तो यह अनुपात ५०:५० या ४०:६० के अनुपात में भी देखने में आता है । तस्करी देश के उत्पादन तथा व्यापार को तो प्रभावित करती ही है, साथ-ही-साथ काले धन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन जाती है । तस्करी काले धन के सृजन में वृद्धि करने के साथ व्यापार-संतुलन को भी देश के हितों के विरुद्ध ले जाती है ।

विदेशी माल तथा भारतीय माल के मूल्यों में बड़ा अंतर है । उदाहरणार्थ, अनेक मूल्यवान् धातुओं के भारतीय तथा अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में ‘एक निश्चित इकाई’ का मूल्यों में अंतर काफी ज्यादा है । इसी प्रकार जाली नोटों के प्रचलन तथा यातायात के साधन भी काली आय का एक महत्त्वपूर्ण और बहुत बड़ा साधन बन रहे हैं ।

चुनाव और काला धन:

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चुनाव में धन के बढ़ते प्रभाव और चुनाव के खर्च में होनेवाली भारी वृद्धि भी काले धन की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । चुनाव में पैसे का प्रभाव किसी से छुपा नहीं है । चुनाव में उम्मीदवार सारा खर्च स्वयं तो वहन नहीं कर पाता, अत: वह कई दिशाओं-बड़े ठेकेदारों अथवा पूँजीपतियों-से सोंठ-गाँठ कर आर्थिक साधन ‘चंदे’ के रूप में जुटाता है ।

सरकार ने बड़ी कंपनियों पर चुनाव में राजनीतिक दलों को चंदा देने पर रोक लगा दी है । अत: वह चंदा राजनीतिक दल को व्यक्तिगत रूप में प्राप्त होता है, जो काला धन ही होता है । चुनावों में खर्च होनेवाला काला धन पूँजीपति कर लगवाकर तथा वस्तुओं के मूल्य बढ़ाकर जनता की जेब से ही निकलवाते हैं, जिससे महँगाई बढ़ती है ।

भारत सरकार द्वारा सन् १९७१ में नियुक्त ‘वांचू समिति’ ने प्रत्यक्ष कर के ढाँचे में सुधार हेतु कहा था कि राजनीतिक दलों की अपने खर्च के लिए पूँजीपतियों और व्यवसायियों पर निर्भरता ही काले धन का प्रमुख कारण है । अत: चुनाव में बेहिसाब खर्च की प्रवृत्ति पर रोक लगाना अत्यंत आवश्यक है ।

काले धन का प्रभाव:

‘के.एन. वांचू समिति’ ने अर्थव्यवस्था पर काले धन के प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था पर काले धन के बड़े खतरनाक और विनाशकारी प्रभाव पड़ते हैं । आज काला धन देश की प्रगति को गंभीर रूप से अवरुद्ध कर रहा है, क्योंकि काले धन के कारण सरकार को राजस्व-प्राप्ति की सीधे-सीधे हानि होती है ।

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ऐसी आय वर्तमान में खर्च कर दी जाती है, जिससे बचत कम हो जाती है । करों की चोरी से प्राप्त आय से धन की असमानता को बढ़ावा मिलता है; चूकि काले धन को न तो बैंकों में जमा किया जा सकता है और न ही प्रतिभूतियों में लगाया जा सकता है ।

इस धन का उपयोग मुख्यत: विलासिता तथा फिजूलखर्ची में किया जाता है । इस व्यय का देश के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सीमित साधनों को उत्पादन की बजाय उपभोग में लगा दिया जाता है, जिससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है ।

यही कारण है कि वर्तमान में देश को विकास के लिए जितने साधनों की आवश्यकता है, यथेष्ट रूप में इसीलिए सामने नहीं आ पा रहे हैं, क्योंकि वे संसाधन काले धन के रूप में गुप्त रूप से चलनेवाले व्यवसायों में लगे हैं ।

वास्तव में, काले धन की अपनी अलग अर्थव्यवस्था होती है, जो अदृश्य रूप में सफेद धन की अर्थव्यवस्था के समानांतर कार्य करती है । ये दोनों अर्थव्यवस्थाएँ ठीक उसी प्रकार एक-दूसरे के संपर्क में नहीं आती हैं जिस प्रकार दो समानांतर रेखाएँ एक-दूसरे को नहीं काटती हैं ।

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अत: काले धन को ‘समानांतर अर्थव्यवस्था’ से भी संबोधित किया जा सकता है । यहाँ यह द्रष्टव्य है कि दोनों अर्थव्यवस्था के स्रोत (काला और सफेद धन) दोनों एक-दूसरे में परिवर्तित हो सकते हैं क्योंकि काले धन की अर्थव्यवस्था इतनी सुदृढ़ और शक्तिशाली होती है कि वह निरंतर सफेद धन को अपनी ओर आकृष्ट करती रहती है और चक्रवृद्धि ब्याज की भांति निरंतर अपनी गति से बढ़ती जाती है ।

जब तस्करी की वस्तुएँ खरीदी जाती हैं या दुर्लभ वस्तु के लिए निर्धारित राशि से अधिक मात्रा में भुगतान किया जाता है, तब कहा जाता है कि सफेद धन काले धन में परिवर्तित हो गया, परंतु इसी प्रकार कोई धनी तस्कर या उद्योगपति विलासिता की वस्तुओं के उपभोग पर काले धन को व्यय करे और इसके बदले निर्धारित रसीद प्राप्त करे या सरकार काले धन को स्वत: आकर्षित करने के लिए कोई विशेष योजना लागू कर दे तो काला धन सफेद धन में बदल जाता है ।

अत: हम देखते हैं कि काला धन किसी देश की अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित रूपों में घातक प्रभाव डालता है:

१. इससे कालाबाजारी, सट्‌टेबाजी, मिलावट तथा तस्करी-जैसे गैर-कानूनी अपराधों को बल मिलता है ।

२. दुर्लभ संसाधनों को अनावश्यक और अनुत्पादक कार्यों की ओर मोड़ देता है ।

३. कर-वंचन से सरकार की सकल आय में कमी आती है और समाज में- संपत्ति और आय का वितरण धनी वर्ग के पक्ष में हो जाता है, जिससे धनी और अधिक धनी तथा निर्धन और भी निर्धन हो जाते हैं ।

४. विलासिता, विदेशी साज-सच्चा तथा उपभोग की वस्तुओं की माँग ज्यादा होती है । यह माँग तस्करी को प्रोत्साहित करती है ।

५. काले धन को सामान्यत: नकद, सोने तथा अन्य मूल्यवान् धातुओं, विदेशी बैंकों, इन्वेंटरी में विनियोजन, निवासीय तथा व्यापारिक भवनों के क्रय, व्यापारिक तथा औद्योगिक पूँजी के रूप में किया जाता है । इस आय को सोने तथा मूल्यवान् धातुओं में लगाना स्फीतिकारक होता है । उन वस्तुओं की माँग बढ़ने से इनका मूल्य बढ़ जाता है ।

६. काले धन को विदेशी बैंकों में जमा करने में घरेलू वित्तीय स्रोत विदेशों को पलायन करने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप देश का भुगतान-संतुलन बिगड़ने लगता है ।

७. काली कमाई से भूमि तथा भवन आदि अचल संपत्ति क्रय करने पर रजिस्ट्रेशन शुल्क की चोरी के साथ ही इनके मूल्य में वृद्धि होती है ।

८. काली आय से हुई बचत को अवैध कार्यों के लिए वित्त के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा यह वित्त का वैकल्पिक स्रोत बन जाती है, जिससे सरकार की मुद्रा संबंधी नीतियाँ असफल हो जाती हैं ।

काले धन की मात्रा:

भारत में वर्तमान समय में कितना काला धन है, यह निश्चित रूप से बता पाना संभव नहीं है, परंतु अनुमानों के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष लगभग १,५० ० से २,००० करोड़ रुपया काले धन का रूप ले लेता है । ‘राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान’ ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि भारत में अरबों रुपए का काला धन है । अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में कुल राष्ट्रीय उत्पादन का ५० प्रतिशत काला धन है ।

काला धन निकालने के उपाय:

काले धन को बाहर निकालने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाय अभी तक प्रयोग में लाए गए हैं या लाए जा रहे हैं अथवा शीघ्र ही प्रवर्तित किए जाएँगे-

१. काले धनधारियों से यह अपेक्षा करना कि वे स्वत: तथा स्वेच्छापूर्वक अपने काले धन को प्रकट कर दें, वास्तव में, सिद्धांतत: यह बड़ी उचित तथा श्रेष्ठ व्यवस्था हो सकती है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह समर्थन-योग्य नहीं है, क्योंकि यह उपाय केवल युद्ध अथवा राष्ट्रीय संकट के समय ही कारगर हो सकता है ।

वांचू समिति ने भी इसका जोरदार विरोध किया है । इसके अनुसार, यदि इस उपाय का सामान्य परिस्थितियों में और वह भी बार-बार प्रयोग किया जाता है तो ईमानदार करदाता तो कर जमा कर देंगे, परंतु बेईमान करदाता इस विषय में तनिक भी नहीं सोचेंगे ।

ऐसी परिस्थितियों में ईमानदार करदाताओं का सरकार पर से विश्वास उठ जाएगा और वे समझेंगे कि कानून तोड़नेवालों से निबटने में सरकार अक्षम है । साथ-ही-साथ सरकार का कर विभाग भी अपमान का पात्र होगा ।

२. दूसरा उपाय यह है कि सरकार करदाताओं के साथ समझौता कर ले, परंतु करदाताओं को इस विषय में आश्वस्त करने के लिए ये समझौते न्यायपूर्ण, शीघ्र तथा स्वतंत्र रूप में होने चाहिए ।

इन्हें कर विभाग के अंतर्गत ही किसी पृथक् निकाय को सौंपना चाहिए क्योंकि यदि राजकोषीय कानूनों के प्रशासन में अत्यंत कठोर रुख अपनाया जाता है तो उससे किसी समय के कर-वंचक अथवा अनिच्छा से कभी कर-वंचन करनेवाले व्यक्ति को ईमानदार बनने का अवसर नहीं मिलेगा तथा व्यर्थ के मतभेद बढ़ेंगे ।

अत: कर-कानून में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि काररवाई के किसी भी स्तर पर करदाता के साथ समझौता हो सके ।

३. तृतीय उपाय के अंतर्गत सरकार ऐसे दीर्घकालीन धारक बॉण्ड जारी करे, जिन पर निम्न दर से ब्याज दिया जाए तथा धन विशेष निवेश करनेवालों को भी यह आश्वस्त करे कि निवेश किए गए धन के स्रोत के बारे में बॉण्डधारियों से कुछ नहीं पूछा जाएगा । इस उपाय से दबा हुआ काला धन प्रचलन में आकर सरकार के योजना-कार्यो में व्यय होगा तथा उत्पादन-वृद्धि हो सकेगी ।

इस योजना के कई लाभ भी सरकार ने बताए परंतु व्यवहार में यह योजना असफल ही रही, क्योंकि लगभग पिछले कई वर्षों से इस योजना का कोई विशेष लाभ सरकार को नहीं मिल सका है । वास्तव में, सरकार करवंचकों तथा काली आय प्राप्त करनेवालों को इस योजना के प्रति पूर्ण आश्वस्त नहीं कर पाई है, इसलिए इन धारकबौंण्डों के प्रति काले धनधारकों ने विशेष रुचि नहीं दिखाई है ।

४. विमुद्रीकरण भी एक कारगर उपाय हो सकता है । इसका अर्थ होता है, अर्थव्यवस्था में अधिक मूल्य के करेंसी नोटों को रद्‌द कर देना, क्योंकि काला धन आमतौर पर इन्हीं नोटों के माध्यम से संचालित होता है । यद्यपि यह एक आसान और अच्छा उपाय है, तथापि भारत में यह सफल नहीं रहा है ।

५. कर की अधिकतम सीमांत दर में कमी करने पर काला धन निकालने में सहायता मिल सकती है । करों की ऊँची दरें अनेक कठिनाइयों तथा जोखिमों के बावजूद कर-वंचन को लाभप्रद तथा आकर्षक बनाती हैं; करों की ऊँची दरें उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं तथा अधिक प्रयत्न करने के मार्ग में मनोवैज्ञानिक बाधा उत्पन्न करती हैं, साथ ही लोगों की बचत और निवेश की इच्छा और क्षमता को भी कम करती हैं ।

६. यदि सरकार तस्करी की रोकथाम में सफल हो जाए तो काले धन का एक बहुत बड़ा भाग समाप्त किया जा सकता है । वास्तव में, तस्करी के प्रति सरकार पूरी तरह से जागरूक है तथा इसमें कमी लाने के पूरे प्रयत्न भी किए जा रहे हैं । तस्करी का मुकाबला करने के लिए एक चौमुखी नीति अपनाई गई थी ।

इसके अंतर्गत रोकथाम और गुप्तचर शाखा को सुदृढ़ बनाना, विदेशी विनिमय अधिनियम के प्रविधानों को कड़ाई से लागू करना, आर्थिक और कानूनी उपाय तथा पड़ोसी राष्ट्रों से द्विपक्षीय समझौते इस राजनीति के मुख्य उद्‌देश्य हैं । यह उपाय यदि सतर्कता, ईमानदारी तथा वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग में लाया जाए तो परिणाम उत्साहवर्धक होंगे ।

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७. कर-विभाग द्वारा डाले गए छापों से भी काले धन का परदाफाश होता है । काले धन को निकालने के लिए ऐसे व्यक्तियों, जिन पर संदेह होता है, के घरों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर समय-समय पर छापे डाले जाते हैं । यदि छापों की संख्या बढ़ा दी जाए तथा कर-विभाग इन छापों का क्रियान्वयन अधिक ईमानदारी और सतर्कतापूर्वक बड़े-बड़े तस्करों, सट्‌टेबाजों तथा जमाखोरों पर केंद्रित करे तो परिणाम उत्साहवर्धक रहेंगे ।

८. सरकारी नियंत्रण तथा लाइसेंसों की न्यूनतम संख्या रखने पर भी काला धन अंशत: सामने आ सकता है । ये बातें काले धन तथा कर-वंचन को पैदा करती हैं ।

९. देश में काले धन के निर्माण तथा संग्रह के लिए राजनेता काफी हद तक उत्तरदायी रहे हैं । अत: वांचू समिति के अनुसार रुजनीतिक दलों को चंदा देने के कारण जो राशि कुल आय में से घटाई जाए वह सकल आय की १० प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए ।

१०. व्यय-कर को पुन: लागू किए जाने से भी काले धन पर नियंत्रण किया जा सकता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि आज भारत की अर्थव्यवस्था में काला धन इस प्रकार शामिल हो गया है कि वास्तविक प्रचलित धन के समानांतर काले धन की अर्थव्यवस्था चल रही है, जो कि हमारी अर्थव्यवस्था को घुन की तरह खोखला करती जा रही है ।

११. सभी आयकर-अधिकारियों के तबादले साल भर के अंदर एक स्थान से दूसरे स्थान पर कर दिए जाएँ तथा जिन स्थानों पर उनकी नियुक्ति की जाए वे उनके स्थायी निवास-स्थान से दूर हों । जो नए अधिकारी हैं उनके संबंध में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जहाँ उन्होंने अंतिम शिक्षा प्राप्त की है, वहाँ भी उनकी नियुक्ति न की जाए ।

१२. चुनाव में धन के बढ़ते प्रभाव और चुनाव खर्च में हुई भारी वृद्धि को देखते हुए एक महत्त्वपूर्ण सुझाव यह दिया जा सकता है कि सरकार की ओर से उम्मीदवारों को आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए; जैसे-जर्मनी और अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनावों में काले धन के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए कुछ अन्य सुझाव भी दिए जा सकते हैं; जैसे-कंपनियों से धन लेने पर लगाई गई रोक हठ दी जाए किंतु इसके साथ यह शर्त रखी जाए कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण हो, वे पूरा हिसाब रखें, हिसाब की जाँच हो और वह साफ-साफ बताए कि वह पूरा धन उन्हें कहाँ से मिला और वे अपने चुनाव-प्रचार में उसका उपयोग किस प्रकार करेंगे ।

राजनीतिक दल जो रकम अपने उम्मीदवारों को दे, उसकी सीमा भी निश्चित हो । यह भी सुझाव दिया गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान किसी को चंदा नहीं दे सकते और निजी क्षेत्र की वही इकाइयाँ चंदा दे सकती हैं जो लाभ कमा रही हों ।

काला धन मुख्यत: विलासिता तथा फिजूलखर्ची में व्यय होता है, जो कि अनुत्पादक कार्य है । यह व्यय प्रथम तो देश की बचत को कम करता है; दूसरे, देश के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, क्योंकि सीमित साधनों (आर्थिक) को उत्पादन के आधार पर उपभोग में लगाने पर स्वाभाविक है कि देश का आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाएगा ।

अत: भारत सरकार इस विकट समस्या से भली-भांति परिचित है तथा उसके निवारणार्थ प्रयासों में लगी हुई है । आयकर उपबंधों के अंतर्गत केंद्रीय सरकार को ऐसी अचल संपत्ति को अधिग्रहण करने का अधिकार है, जिसका उचित बाजार मूल्य एक लाख रुपए से अधिक हो ।

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संपत्ति के बेनामी धारण की पद्धति पर अंकुश लगाने के उद्‌देश्य से यह आवश्यक कर दिया गया है कि संपत्ति के वास्तविक स्वामी को संपत्ति के अर्जन के एक वर्ष के अंदर आयकर आयुक्त को सूचित करना अनिवार्य होगा । किसी भी मामले में, जहाँ एक वर्ष में कुल कारोबार ४० लाख रुपए से अधिक का होगा, लेखा पुस्तकों का लेखा परीक्षक द्वारा परीक्षण भी अनिवार्य कर दिया गया है ।

अत: सरकार यदि कर-चोरी को घटाना चाहती है तो आयकर, प्रत्यक्ष-करों आदि की सीमांत दर, जोकि देश की तीव्र मुद्रा-स्फीति संदर्भ में काफी ऊँचे हैं, को कम कर, दे, कर-चोरों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की जाए कर-प्रशासन को अधिक चुस्त तथा निपुण बनाकर आर्थिक नियंत्रण, परमिट, कोटा, लाइसेंस आदि को सीमित तथा जरूरी होने पर ही लागू किया जाए अधिक संख्या में तथा सार्थकतापूर्वक छापे मारकर, उपभोक्ता पदार्थो का उत्पादन बढ़ाकर, चुनाव-काल में राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त किए जानेवाले चंदे पर रोक लगाकर ही काले धन की समस्या से उचित तथा प्रभावशाली ढंग से निबटा जा सकता है ।

इसके अतिरिक्त प्रशासनिक कार्यक्षमता में वृद्धि करके देरी की प्रवृत्ति से मुक्ति पाना भी जरूरी होगा । विदेशी विनिमय की चोरी तथा तस्करी रोकने के लिए कोफेपोसा आसल्ख की व्यवस्थाओं को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ।

संदिग्धों की जाँच तथा सभी कर-विभागों में उचित समन्वय होना अत्यावश्यक है । इस प्रकार उन समस्त स्रोतों को समाप्त करने में सफलता मिलेगी, जो काले धन को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान करते हैं । इसके फलस्वरूप ‘काला धन’ हमारी अर्थव्यवस्था के लिए एक नगण्य समस्या होगी और फिर आसानी से कुचली जा सकेगी ।

वास्तव में, भारत में काला धन खूब फल-फूल रहा है । बड़े लोगों के विरुद्ध जैसी काररवाई होनी चाहिए नहीं हो पाती । इसका मूल कारण हमारे नैतिक स्तर और सामाजिक मूल्यों में आई गिरावट है । अत: नैतिकता का प्रशिक्षण और व्यवहार प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित है ।