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आदर्श विद्यार्थी पर निबंध | Essay on an Ideal Student in Hindi!

विद्यार्थी जीवन भावी जीवन की आधारशिला है । आधारशिला यदि दृढ़ है तो उस पर बना हुआ भवन भी टिकाऊ और स्थायी होता है । इसी प्रकार, यदि विद्यार्थी जीवन परिश्रम, अनुशासन, संयम और नियमन में व्यतीत हुआ है तो निश्चय ही उसका भावी जीवन सुखद, सुंदर और परिवार, समाज तथा देश के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा ।

वही अपने देश का आदर्श नागरिक बन सकेगा और अपने सबल कंधों पर अपने देश का शासन-भार उठा सकेगा । भारत-कोकिला श्रीमती सरोजिनी नायडू ने एक बार कहा था- “विद्यार्थी जीवन में बच्चों का हृदय कच्चे घड़े के समान होता है । उस पर इस जीवन में जो प्रभाव पड़ जाते हैं, वे जीवन-पर्यंत बने रहते हैं ।” यही वह समय है, जब विद्यार्थी अपने कोमल मन और मस्तिष्क को अंकुरित अवस्था में होने के कारण किसी भी दिशा में मोड़ सकता है ।

विद्यार्थी राष्ट्र के कर्णधार होते हैं । उन्हीं पर देश की उन्नति और अवनति आधारित रहती है । आज के विद्यार्थियों में से कल के गांधी, जवाहर और पटेल निकलते हैं; परंतु इस कथन की सत्यता उसी दशा में सिद्ध हो सकती है जब शिक्षा में जीवन और चरित्र की उन्नति पर बल दिया जाए ।

वर्तमान शिक्षा-पद्धति जीविका की शिक्षा देती है । विद्यार्थी पढ़-लिखकर कमाने-खाने योग्य हो जाए, यही शिक्षा का उद्‌देश्य रहता है और अभिभावक भी यही चाहते हैं । ऐसी स्थिति में जिस प्रकार के आदर्श नागरिकों को विद्यालयों से निकलना चाहिए, वैसे निकल नहीं पाते । इससे देश को आगे चलकर हानि उठानी पड़ती है ।

सामान्यत: आज के विद्यार्थी तीन श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं । पहली श्रेणी के विद्यार्थी तो वे हैं, जो केवल माता-पिता के भय के कारण विद्यालय में पढ़ने जाते हैं । उनके सामने न तो जीवन का प्रश्न रहता है और न जीविका का ।

उनका जीवन तालाब की तरंगों पर तैरते हुए तिनके के समान रहता है । तिनका यदि किसी तरह तरंग के साथ संघर्ष करता हुआ तट पर पहुँच गया तो ठीक, अन्यथा वह लहरों के थपेड़े खाता हुआ सड़-गलकर नष्ट हो जाता है । इस श्रेणी के विद्यार्थियों की भी यही दशा होती है ।

दूसरी श्रेणी के विद्यार्थी मात्र अपनी जीविका के लिए अध्ययन करते हैं । उनका उद्‌देश्य किसी-न-किसी तरह परीक्षाएँ पास कर कोई नौकरी पा लेना भर रहता है । जीवन में नैतिक मूल्यों की वे जरा भी परवाह नहीं करते । ऐसे विद्यार्थी आगे चलकर समाज और देश में भ्रष्टाचार फैलाते हैं ।

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तीसरी श्रेणी के विद्यार्थी इन दोनों से सर्वथा भिन्न होते हैं । वे अपना जीवन बनाने की चिंता में लगे रहते हैं । उनके सामने जीवन का एक आदर्श होता है और उस आदर्श तक पहुँचने के लिए वे बराबर प्रयत्नशील रहते हैं । वे दिन-रात कठिन परिश्रम करते हैं और परीक्षाओं में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण होते हैं । ऐसे विद्यार्थी ही ‘आदर्श विद्यार्थी’ कहलाते हैं ।

आदर्श विद्यार्थी अपने परिवार, समाज और देश के गौरव होते हैं । उनका जीवन संयमित और नियमित होता है । वे अपना एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देते । वे संतुलित भोजन करते हैं, सादे वस्त्र पहनते हैं, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं । वे विनयी, उदार, श्रद्धावान और व्यवहार-कुशल होते हैं ।

परिश्रम उनके जीवन का भूषण होता है । वे मानसिक श्रम तो करते ही हैं शारीरिक श्रम भी करते हैं । वे खेलने के समय खेलते और अध्ययन के समय अध्ययन करते हैं । उनकी अपनी समय-तालिका होती है । उसी के अनुसार वे प्रतिदिन कार्यरत रहते हैं । वे माता-पिता के भक्त और अपने से बड़ों के प्रति श्रद्धावान होते हैं ।

आदर्श विद्यार्थी अपने गुरुजनों की आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं करते, अपने पिता की आमदनी को मौज-मस्ती में नहीं उड़ाते, बल्कि कम-से-कम खर्च में अपने जीवन की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं । इससे उनके जीवन में मितव्ययिता आती है ।

समय पर शयन, समय पर उठना, समय पर अध्ययन करना, समय पर व्यायाम करना, समय पर भोजन करना, विद्वानों की संगति में बैठना, दूषित विचारों और कुसंगति से दूर रहना आदि ही आदर्श विद्यार्थी के प्रमुख लक्षण हैं ।

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