विद्यार्थी और राजनीति पर निबन्ध | Students and Politics in Hindi!

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विद्यार्थियों का राजनीति में भाग लेने का प्रश्न हमेशा ही विवाद का विषय रहा है । यह बहुत ही विवादास्पद समस्या है । समाज के दो वर्गो द्वारा दो परस्पर विरोधी मत व्यक्त किए जाते रहे हैं ।

दोनो वर्ग अपने तर्कों के श्रेष्ठ होने के बारे में समान रूप से आश्वस्त हैं । विद्यार्थियों, अध्यापकों, राजनीतिज्ञों और विद्यार्थी समुदाय के अन्य शुभचिन्तकों के बीच वाद-विवाद होता रहता है । उनके भरपूर प्रयासों के बावजूद भी इस सम्बन्ध में अभी तक कोई सन्तोषजनक और विश्वास योग्य हल नहीं निकल पाया है ।

जो लोग राजनीति में विद्यार्थियों के भाग लेने का विरोध करते है वे अपना पक्ष जोरदार रूप से प्रस्तुत करते हैं । उनका तर्क यह है कि राजनीति एक गन्दा खेल है । इससे दल और पार्टियाँ बन जाती है, जिससे स्थायी शत्रुता पैदा हो जाती है ।

इससे विद्यार्थियों के मन की शांति समाप्त हो जाती है । विद्यार्थियों का मुख्य कार्य यह है कि वे एकाग्रचित होकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें । एक विद्यार्थी से आशा की जाती है कि वह तपस्या का जीवन व्यतीत करे, वह न तो राजनीति जैसी ऐय्याशी में भाग ले सकता है न ही उसे भाग लेना चाहिए ।

राजनीति विद्यार्थी के अध्ययन में अत्यधिक हस्तक्षेप करती है । राजनीति में रूचि रखने से विद्यार्थी को हड़तालों, प्रदर्शनों और जुलूसों में सक्रिय रूप से भाग लेना पड़ता है । कई बार उसे कॉलेज के अधिकारियों अथवा पुलिस के साथ गंभीर झगड़ा करना पड़ सकता है । हो सकता है वह बन्दी भी बना लिया जाए ।

इन सब बातों से उसके अध्ययन में व्यवधान पड़ सकता है और परिणामस्वरूप उसका जीवन अंधकारमय हो सकता है । वह जीवन के वास्तविक प्रयोजन को खो बैठता है और बिगड़ जाता है । इस प्रकार राजनीति में भाग लेने से विद्यार्थी का भविष्य अन्धकारमय हो सकता है और बाद में वह हड़तालों, प्रदर्शनों और नारेबाजी के सिवा किसी भी प्रयोजन के लिए अनुपयोगी बन जाता है ।

जो लोग विद्यार्थियों के राजनीति में भाग लेने का समर्थन करते है, उनका तर्क भी उतना ही जोरदार है । उनका तर्क यह है कि शिक्षा का तात्पर्य केवल साक्षर बनाना ही नही है । इससे विद्यार्थी के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास होना चाहिए । राजनीति में भाग लेने से विद्यार्थी के व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास होता है ।

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राजनीति उसको इस बात से अवगत कराती है कि उसके देश में और उसके आस-पास के विश्व में क्या कुछ हो रहा है । नेतृत्व के गुण उत्पन्न करने में भी राजनीति विद्यार्थी की सहायता करती है । भीरू, शर्मीला, किताबी कीड़ा बनने की बजाय वह अग्रगामी, प्रभावशाली और जागरूक तरूण बन जाता है जो यह समझता है कि जीवन की लड़ाई किस तरह से लड़ी जाती है ।

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राजनीति में विद्यार्थी के भाग लेने से उसे अच्छा नागरिक बनने का प्रशिक्षण मिलता है । इससे उसे जीवन के प्रजातांत्रिक रूप का ज्ञान होता है । वह एक उत्तरदायी और सुसंस्कृत नागरिक के रूप में बढ़ता है जो राष्ट्र की एक सम्पत्ति है । इससे उसमें देशभक्ति की भावना उत्पन्न होती है । वह अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझ लेता है । उसे विश्व भर का काफी ज्ञान हो जाता है ।

उसमें वाद-विवाद की योग्यता विकसित होती है । उसमें हृदय और मस्तिष्क के सभी गुणों का विकास होता है । उसे नेतृत्व का प्रशिक्षण मिलता है । निर्माणाधीन नेता के रूप में उसमें साहस, उद्‌देश्य के प्रति निष्ठा, सेवा भावना, साथियों के प्रति हमदर्दी, आत्म-अनुशासन और कर्तव्य के प्रति निष्ठा जैसे गुणों का विकास होता है ।

विद्यार्थी काल जीवन की रचनात्मक अवधि होती है । इस अवधि में विद्यार्थी को अपने ऐसे सभी गुणों को विकसित करना चाहिए जो उसे सफल जीवन बिताने के योग्य बना सकें । यदि उसे राजनीति से बिल्कुल अलग रखा गया तो उसके व्यक्तित्व का एकतरफा विकास ही हो पाएगा । यदि हम अपने महान नेताओं के जीवन का अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि उनमें से अधिकांश ने विद्यार्थी जीवन में भी राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया था ।

अब यह बहुत कठिन है कि किसी एक अथवा दूसरे दृष्टिकोण के पक्ष में निर्णय दिया जाए । हमें कोई मध्य मार्ग ही ढूंढना पड़ेगा । विद्यार्थी को राजनीति में भाग तो लेना चाहिए पर उसे अपने आप को सक्रिय रूप से इसके साथ नहीं जोड़ लेना चाहिए । सभी गतिविधियाँ अच्छी है, बशर्ते व्यक्ति यथोचित सीमाओं के अन्दर रह सके ।

अत: विद्यार्थियों को मुख्य रूप से अपने अध्ययन पर ही ध्यान देना चाहिए । साथ ही साथ उन्हें इस बात से अवगत रहना चाहिए कि उनके आस-पास क्या हो रहा है । उन्हें ऐसी स्थिति में राजनीति की ज्वाला में तब तक नही कूदना चाहिए, जब तक इससे देश की एकता अथवा स्वतंत्रता के लिए खतरा न पैदा हो जाए ।

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