पारिस्थितिकी पर निबंध | Paaristhitikee Par Nibandh | Essay on Ecology in Hindi!

पारिस्थितिकी पर्यावरण अध्ययन का विज्ञान है । प्रकृति के दो प्रमुख तत्व जीव एवं पर्यावरण हैं जो पृथक होते हुए भी एक दूसरे पर निर्भर हैं तथा अनेक जटिल क्रिया-प्रतिक्रियाओं को संपन्न करते हैं । इनका अध्ययन प्राचीन काल से होता रहा है ।

ग्रीक विचारकों जैसे हिप्पोक्रेटीज, अरस्तु आदि ने इन पर विस्तार से विचार व्यक्त किये हैं, किंतु पारिस्थितिकी एक पृथक् व्यवस्थित अध्ययन के रूप में एक नवीन विज्ञान है, जिसको प्रारंभ में जीव विज्ञान वेत्ताओं ने अपनाया और वर्तमान में एक विशद् बहुआयामी शाखा के रूप में प्रतिष्ठित है ।

1859 में फ्रांस के जीव विज्ञानी ज्योफ्री सेंट हिलेरी ने जीवों के परिवार एवं समुदाय के समग्र संबंधों के अध्ययन को इथोलोजी का नाम दिया । जर्मन जीव विज्ञानी हीकल ने 1866 में ‘इकोलॉजी’ शब्द रचा । अंग्रेज प्रकृतिविद् जैकसन पिवार्ट ने 1894 में ‘हेक्सीकोलॉजी’ को जीव एवं पर्यावरण संबंधों का अध्ययन व्यक्त किया । अन्य विद्वानों ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किये हैं ।

‘इकोलॉजी’ शब्द के प्रयोग के संबंध में मतभेद हैं, कुछ इसे जर्मन विज्ञानी एच. रिटर (1868) की देन मानते हैं । जबकि अन्य जर्मनी के ही अरनेस्ट हीकल को श्रेय देते हैं । वास्तविकता यह है कि ‘इकोलॉजी’ को ही वर्तमान में सर्वमान्य शब्द स्वीकार किया गया है ।

यह शब्द दो ग्रीक शब्दों से बना है जिसमें ‘Oikos’ अर्थात् घर या रहने का स्थान और ‘Logos’ अर्थात् विज्ञान दूसरे शब्दों में आवास जहाँ जीवन बसता है उसकी परिस्थितियाँ या पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन और वैज्ञानिक विवेचन करना ही पारिस्थितिकी का उद्देश्य है अर्थात् यह एक व्यवस्थित पर्यावरण विज्ञान है । पारिस्थितिकी की प्रकृति एवं क्षेत्र को इसकी परिभाषा स्पष्ट करती है ।

पारिस्थितिकी की कतिपय परिभाषायें निम्नलिखित हैं:

I. ”पारिस्थितिकी जीव अथवा जीवों के समूहों का पर्यावरण के साथ संबंधों का अध्ययन है, या यह जीवों और पर्यावरण के अंतर्संबंधों का विज्ञान है ।” –(ओडम) अर्थात् पारिस्थितिकी जीवों (वनस्पति जीव-जंतु) का पर्यावरण के साथ अंतर्संबंधों को व्यक्त करती है तथा उसके फलस्वरूप उद्भूत जीव समूह का अध्ययन करती है ।

II. ”पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जो सभी जीवों का संपूर्ण पर्यावरण के साथ पूर्ण संबंधों का अध्ययन करता है ।” -(टेलर)

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III. ”पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जो जीवों के पर्यावरण के साथ संबंधों को प्रतिपादित करता है ।” -(डब्ल्यू. जी. मूर)

IV. ”पारिस्थतिकी वह विज्ञान है जो जीवों के एक दूसरे के संबंधों तथा उन तत्वों का अध्ययन करता है जो पर्यावरण के अंग है ।” -(एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका)

V. ”पारिस्थितिकी पादप एवं जीव-जंतुओं का पर्यावरण से संबंधों का अध्ययन है ।” -(पीटर हेगेट)

VI. ”पारिस्थितिकी जीवों और पर्यावरण के आपसी संबंधों का विज्ञान है ।” -(माकहॉउस एवं स्माल)

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पारिस्थितिकी जीव अर्थात् पशु, पक्षी एवं अन्य जीव तथा मानव पर पर्यावरण के समग्र प्रभाव का अध्ययन एवं विश्लेषण करती है । पर्यावरण एवं जीवों का संबंध एकांगी या एकतरफा नहीं होता अर्थात यह नहीं कि केवल पर्यावरण का ही प्रभाव जीवों पर पड़ता है अपितु जीव भी पर्यावरण को प्रभावित करते हैं ।

यद्यपि सभी जीवों का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है किंतु मानव अपने बौद्धिक विकास, तकनीकी एवं वैज्ञानिक ज्ञान से पर्यावरण को सर्वाधिक प्रभावित करता है । इस क्रम में वह न केवल इसका उपयोग करता है अपितु पर्यावरण को प्रभावित कर पारिस्थितिक असंतुलन का कारण भी बनता है ।

पारिस्थितिकी की मौलिक संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं:

i. सभी जीव एवं पर्यावरण आपसी सामंजस्य एवं क्रियाशील संबंधों से अंतर संबंधित हैं ।

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ii. पर्यावरण जो विभिन्न घटकों का समूह है वह अत्यधिक क्रियाशील है । इसकी क्रियाशीलता समय और स्थान के साथ परिवर्तित होती रहती है ।

iii. जीवों की प्रजातियाँ परिवर्तित पर्यावरण की दशाओं के साथ स्वत: सामंजस्य करने की स्थिति में विकसित होती है, किंतु पर्यावरण का अवकर्षण अनेक प्रजातियों के लुप्त होने का कारण बन जाता है ।

iv. केवल पर्यावरण ही जीवों को प्रभावित नहीं करता अपितु जीव भी अपने विकास, वृद्धि, विस्तार से तथा परिवर्तित वैज्ञानिक ज्ञान से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं ।

v. समान प्रकार के पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ विकसित हो जाती हैं जिसे ‘बायोम’ की विचारधारा कहा जाता है ।

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पारिस्थितिकी का अध्ययन मात्र संरचनात्मक रूप में ही नहीं अपितु क्रियात्मक रूप में भी किया जाता है । पारिस्थितिकी का प्रारंभिक स्वरूप मात्र वनस्पति एवं जीव-जंतुओं तक ही सीमित था किंतु वर्तमान में इसकी बहुमुखी शाखाओं का विकास हुआ है क्योंकि अब यह एक व्यावहारिक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित है ।

प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों के मध्य एक समन्वयक का स्वरूप तथा मानव की क्रियाओं का पर्यावरण द्वारा नियंत्रण एवं पर्यावरण पर उनका प्रभाव इसके अध्ययन का मूल है । यही कारण है कि इसकी नित नवीन शाखाओं एवं उपशाखाओं का विकास हो रहा है ।

इसकी प्रमुख विशिष्ट शाखायें निम्नांकित हैं:

i. पादप पारिस्थितिकी,

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ii. प्राणी पारिस्थितिकी या प्राणी भूगोल,

iii. पर्यावरण या आवासीय पारिस्थितिकी,

iv. पारिस्थितिक-तंत्रीय पारिस्थितिकी,

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v. जनसंख्या पारिस्थितिकी,

vi. स्वपारिस्थितिकी,

vii. समुदाय पारिस्थितिकी,

viii. उत्पादन पारिस्थितिकी,

ix. आकाशीय पारिस्थितिकी,

x. प्रदूषण पारिस्थितिकी,

xi. विकिरण पारिस्थितिकी,

xii. संरक्षण पारिस्थितिकी,

xiii. मानव पारिस्थितिकी,

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xiv. व्यावहारिक पारिस्थितिकी,

xv. भौगोलिक पारिस्थितिकी,

xvi. सांख्यिकी पारिस्थितिकी आदि ।

उपर्युक्त शाखाओं के अतिरिक्त इसकी अनेक सूक्ष्म शाखाओं और उनकी उप शाखाओं का विकास हो गया है अर्थात् यह एक अत्यधिक विशद विज्ञान के रूप में विकसित विषय बन गया है । उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि पर्यावरण विभिन्न तत्वों का समूह है जिसमें प्राकृतिक अथवा भौतिक तत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं ।

ये प्राकृतिक तत्व एक क्षेत्र विशेष के आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप को निर्धारित एवं नियंत्रित करते हैं जबकि पारिस्थितिकी पर्यावरण का विज्ञान है जो पर्यावरण के मानव पर प्रभाव को तो व्यक्त करता ही है साथ ही स्वयं भी प्रभावित होता है । यह एक तंत्र के रूप में कार्यरत रहता है जिसे पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं ।

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