उपभोक्ताओं की मूल्य नियंत्रण में भूमिका पर निबन्ध!

आधुनिक समाज में अनिवार्य वस्तुओं की मांग पूर्ति से कहीं अधिक है, तथापि यह भी सच है कि उपभोक्ता मूल्यों के नियन्त्रण में सफल हो सकते हैं । आवश्यकता इस बात की है कि पश्चिमी देशों के समान भारत में ऐसे संगठनों की स्थापना की जाए जो वस्तु की मांग और पूर्ति में सन्तुलन और मूल्यों में नियंत्रण का ध्यान रखें ।

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आधुनिक युग में मूल्य वृद्धि की बढ़ती समस्या को देखते हुए उसको नियंत्रित रखना बहुत आवश्यक हो गया, ताकि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी वस्तुओं को प्राप्त करने में सफल हो सके । सरकार समय-समय पर नीतियों को घोषित करके, विभिन्न तरीकों से मूल्यवृद्धि की समस्या को हल करने के प्रयासों में लगी है ।

लेकिन इनके साथ-साथ उपभोक्ताओं के भी जागरूक होने की आवश्यकता है, उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि वह किसी वस्तु को अनुचित रूप से बढ़े हुए मूल्यों पर ना खरीदें । क्योंकि इसी से वस्तुओं के दाम बढ़ते है । इसके लिए हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि अपने और अपने परिवार निर्वाह के लिए हमें कितनी मात्रा में वस्तुओं की आवश्यकता है ।

अनिवार्यताओं के साथ-साथ उच्च वर्ग की नकल करके हम क्यों ऐश्वर्य प्रधान वस्तुओं की ओर आकर्षित होते हैं, जबकि उनके बिना हमारा काम चल सकता है । उच्च वर्ग के लोग टेलीविजन, वीडियों, कार आदि खरीदने के लिए काले धन का उपयोग करते हैं और इन वस्तुओं को खरीदने के लिए अधिक से अधिक दाम चुकाने को तैयार रहते हैं ।

हमारी राष्ट्रीय आय में इस राशि की गणना नहीं होती है, लेकिन यह हमारे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है । हमें इस प्रवृत्ति पर रोक लगानी होगी । वह दिन दूर नहीं जब जनता द्वारा निर्मित उपभोक्ता संगठन इस क्षेत्र का कार्यभार संभालेंगे । इसके लिए उपभोक्ता जागरूकता अभियान की आवश्यकता है ।

इस विषय में सरकार को कम से कम प्राथमिक आवश्यकता की वस्तुओं के मूल्यों को नियंत्रित करने के लिए समुचित कदम उठाने चाहिए । इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे साधारण जनता तक पर्याप्त मात्रा में पहुंच सकें । उपभोक्ताओं की सक्रिय साझेदारी से मूल्यों को नियंत्रित किया जा सकता है । इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने में भी उपभोक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है ।

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