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खुदरा बाजार में विदेशी निवेश पर निबंध | Essay on Foreign Investment in Retail Market in Hindi!

भारत के खुदरा बाजार में सीधे विदेशी निवेश की बहस पिछले कुछ सालों से लगातार चल रही है । यह उम्मीद की जा रही थी कि खुदरा व्यापार के क्षेत्र में ऐसी सुनिश्चित नीति बनेगी जिससे भारतीय व अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर खुदरा व्यापार को बढ़ावा मिलेगा ।

लेकिन दुर्भाग्य से सिंगल ब्रांड की रिटेलिंग में 51 प्रतिशत की भागीदारी देने की अनुमति के अलावा इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई । हां, यह जरूर हुआ है कि खुदरा बाजार में निवेश के मुद्दे को लेकर ऐसे स्वयंभू समाजसेवी सक्रिय हो गये हैं, जिन्हें खुदरा बाजार की पेचीदगियों और उसकी लोकव्यापी अर्थव्यवस्था की जरा भी समझ नहीं है । देश की अर्थव्यवस्था पर सक्षम और आधुनिक खुदरा व्यापार का असर सकारात्मक है, तो इस क्षेत्र में स्थानीय और विदेशी निवेश के बीच में विभेद करने के पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ कारण भी हैं ।

खुदरा बाजार में सीधे विदेशी निवेश (एफडीआई) के आडे आने वाले कुछ प्रचारित मिथक हैं जिन्हें स्पष्ट करना आवश्यक है, मसलन-सीधे विदेशी निवेश के जरिए ऐसी वैश्विक कंपनियां आयेंगी जो स्थानीय खुदरा उद्योग को हजम कर जायेंगी । ये कंपनियां भारतीय बाजार को विदेशी माल से पाट देंगी ।

बाजार में इनके आ जाने से भारतीयों के रोजगार के अवसर छिन जायेंगे । जबकि इन मिथकों का सही विश्लेषण कुछ अलग ही हकीकत बयान करता है । तथ्य यह है कि व्यावहारिक रूप से आज दुनिया का ऐसा कोई देश नहीं है जिसने एफडीआई रिटेलिंग पर प्रतिबंध लगाकर रखा हो, कुछ देश ऐसे हैं जहां रिटेल स्टोर की स्थापना, उनकी संख्या और स्वामित्व को लेकर कुछ शर्ते जरूर लगाई गयी हैं ।

यह बात आवश्यक है कि इनके प्रवेश से सड़क के किनारे की किराना दुकानों की संख्या अवश्य प्रभावित हुई है । लेकिन स्थानीय किराना दुकानों के सामने जो चुनौती बिग बाजार, रिलांयस मार्ट या स्टार इंडिया बाजार को लेकर है, वही जोखिम टेस्को और वाल-मार्ट को लेकर भी है ।

रिटेलर चाहे भारतीय हो या विदेशी, व्यापार के लिए माल का आयात भारत सरकार के कस्टम के नियम-कानूनों के अंतर्गत ही कर सकते हैं । आयात को लेकर सभी के लिए एक जैसी व्यवस्था और एक जैसा जोखिम है । इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कंपनी भारतीय है या अंतर्राष्ट्रीय ।

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यह धारणा भी गलत है कि खुदरा बाजार में वैश्विक कंपनियों के आ जाने से रोजगार के अवसर कम होंगे । तथ्य यह है कि अब तक रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की धृंखला ही सबसे आगे है । जिसने भी चीन, सिंगापुर मलेशिया, थाइलैंड और ब्राजील जैसे देशों के रोजगार के आकड़ों का परीक्षण किया लोग, वह इस बात को जानता होगा ।

भारत में खुदरा बाजार में सीधे विदेशी निवेश का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इससे कृषि तथा लघु और मध्यम निर्माण क्षेत्र को वैश्विक बाजार में उभरने का मौका मिलेगा । वाल-मार्ट, केअरफोर टेस्को, मैट्रो और आईकिया जैसे वैश्विक रिटेलर बाजार में बहुत ही सफल हैं, क्योंकि ये उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकता के अनुरूप उच्च गुणवत्ता का माल त्वरित उपलव्य कराने में समर्थ है ।

यदि ऐसे संगठनों का भारत के बाजार में प्रवेश होता है तो इनके जरिये व्यापक निवेश तो आयेगा ही, उपभोक्ताओं तक वस्तुओं की आपूर्ति की एक सक्षम धृंखला उपलब्ध हो जायेगी । वे उपभोक्ताओं की सेवा में उच्च गुणवत्ता के उत्पाद उपलब्ध कराने लगेंगे और निश्चित ही इस श्रुंखला के साथ जुड़कर यहां का कृषि व कुटीर उद्योग तेजी से विकसित होने वाला लाभदायी उपक्रम बन जायेगा । भारत में विश्वव्यापी रिटेल संगठनों की उपस्थिति का एक बड़ा फायदा यह होगा कि यहां के उत्पादों के निर्यात के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी सुलभ हो जायेगी ।

भारत उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के मामले में वैश्विक स्पर्धा मे शामिल होने को तैयार खड़ा है, ऐसी स्थिति में ये अंतर्राष्ट्रीय रिटेलर भारत को अपने विश्वव्यापी व्यापार का आधार केंद्र बनाकर -यहा से दूसरे देशों के बाजार में वस्तुओं की आपूर्ति कर सकते हैं । चीन में वाल-मार्ट के अनुभव यही बताते हैं । इस अमेरिकी उपभोक्ता कंपनी ने वर्ष 2006 में चीन से 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर की खरीदारी की, जबकि उसी वर्ष वहां उसकी बिक्री महज 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर रही ।

भारत को रिटेल बाजार में सीधे विदेशी या बड़े कॉरपोरेट घरानों के निवेश के आड़े आने वाली राजनीति व स्वयंभू समाजसेवियों के अव्यावहारिक तर्कों को महत्त्व नहीं देना चाहिए । सरकार देश के व्यापक हित में आधुनिक रिटेल के विस्तार के क्षेत्र में सकारात्मक कदम उठाए, यही वक्त का तकाजा है ।

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