धीरूभाई अम्बानी पर निबंध! Here is an essay on ‘Dhirubhai Ambani’ in Hindi language.

अपनी दूरदर्शिता, कृत संकल्प, मेहनत और लगन से काम करते हुए बीसवीं सदी में जिस प्रकार उन्होंने अपनी कम्पनी के शेयर होल्डरों को लाभांश का भुगतान किया तथा इस कार्य से बड़े-बड़े व्यापारियों, धनपतियों और कुबेरों को आश्चर्यचकित कर दिया, उस उद्योगपति धीरजलाल हीरालाल अम्बानी का नाम देश-विदेश के सफल उद्योगपतियों की फेहरिस्त में शुमार है ।

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मुम्बई की एक चाल से शुरू कर इतने बड़े अम्बानी साम्राज्य की स्थापना अलादीन के चिराग कीं करामात जैसी ही प्रतीत होती है । धीरूभाई अम्बानी का जन्म 28 दिसम्बर, 1933 को जूनागढ़ (वर्तमान गुजरात) के चोरवाड़ में हीरालाल गोर्धनभाई अम्बानी और जमनाबेन के पुत्र (मोध परिवार) के रूप में हुआ था ।

कहा जाता है कि धीरूभाई अम्बानी ने अपने व्यवसाय की शुरूआत गिरनार की पहाड़ियों पर तीर्थयात्रियों को पकौड़े बेचकर की थी । मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में धीरूभाई एडन (यमन) चले गए ।  वहाँ उन्होंने ए. बेस्सि एण्ड कम्पनी में रु 300 के वेतन पर काम शुरू किया तथा बाद में एडन बन्दरगाह पर फिल्लिंग स्टेशन के प्रबन्धक के रूप में उनकी प्रोन्नति हुई ।

उनका विवाह कोकिलाबेन के साथ हुआ और उनके दो बेटे मुकेश अम्बानी और अनिल अम्बानी तथा दो बेटियाँ नीना कोठारी और दीप्ति सल्गाओकर हैं । वर्ष 1952 में धीरूभाई भारत वापस लौट आए तथा 15,000 की पूँजी के साथ ‘रिलायंस वाणिज्यिक निगम’ की शुरूआत की ।

इस कम्पनी का काम पॉलिस्टर के सूत का आयात तथा मसालों का निर्यात करना था । अम्बानी के कार्य करने की शैली तथा तरीका बिलकुल अलग था । वे अपनी प्लानिंग और कठोर परिश्रम पर विश्वास रखते थे तथा प्रायः कहते थे कि- “बड़ा सोचो, जल्दी सोचो और आगे की सोचो, विचार पर किसी का एकाधिकार नहीं है ।” उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नया मोड़ दिया ।

उन्होंने शेयर बाजार में सस्ती दर पर धन एकत्र करने का नया तरीका निकाला, जबकि अन्य कम्पनियाँ भारी ब्याज पर बैंकों से पैसा उधार लेती थीं ।  उन्होंने नए ढंग से धन एकत्र कर साहसपूर्वक अपनी कम्पनी के कर्जे उतारे । यह सब परिवर्तनीय ऋण पत्रों के माध्यम से सम्भव हो सका । ऐसा प्रयोग कभी किसी ने नहीं किया था ।

इस अनूठे तरीके, अपनी बुद्धि चातुर्य तथा अर्थ प्रबन्धन कौशल से उनकी कम्पनियों ने आर्थिक समृद्धि अर्जित की तथा उन्होंने किसी को हानि पहुँचाए बिना उत्तरोत्तर प्रगति कर अपने को आधुनिक उद्योगपति सिद्ध कर दिया । वस्त्र व्यवसाय में अच्छे अवसर होने के कारण धीरुभाई ने वर्ष 1966 में अहमदाबाद के नैरोडा में कपड़ा मिल की शुरूआत की ।

पॉलिस्टर के रेशों का प्रयोग कर वस्त्र का निर्माण किया गया । उन्होंने ‘विमल’ ब्राण्ड की शुरूआत की, जो उनके बड़े भाई रमणिक लाल अम्बानी के पुत्र विमल अम्बानी के नाम पर रखा गया था । वर्ष 1975 में विश्व बैंक के एक तकनीकी मण्डल ने रिलायंस टेक्सटाइल निर्माण इकाई का दौरा किया तथा उसने उस समय में रिलायंस वस्त्र को विकसित देशों के मानकों से भी उत्कृष्ट माना ।

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भारत के विभिन्न भागों से 58,000 से अधिक निवेशकों ने वर्ष 1977 में रिलायंस के आईपीओ की सदस्यता ग्रहण की तथा धीरूभाई ने लोगों को आश्वस्त किया कि अम्बानी कम्पनी के शेयर धारक होने से उन्हें अपने निवेश पर केवल लाभ ही प्राप्त होगा ।

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उन्होंने वस्त्र निर्माण के लिए नैरोडा में कपड़ा मिलें खरीदीं, पॉलिस्टर के लिए पतालगंज में तथा पेट्रो-केमिकल के लिए हाजीरा और गुजरात के तट पर तेलशोधक रिफाइनरी की स्थापना की । अपने कार्यकाल में धीरूभाई ने अपने व्यवसाय को प्रमुख विशेषज्ञता के रूप में पेट्रो-रसायन के अतिरिक्त दूर संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, फुटकर कपड़ा टेक्सटाइल, मूलभूत सुविधाओं की सेवा, पूँजी बाजार और प्रचालन तन्त्र को विविधता प्रदान की ।

बीबीसी द्वारा रिलायंस को एक व्यावसायिक साम्राज्य, जिसका सालाना कारोबार 12 बिलियन डॉलर का है तथा 85,000 मजबूत कार्यबल है, के रूप में वर्णित किया गया । उद्योग जगत् में उनके उल्लेखनीय योगदान के कारण वर्ष 1966, 1989 तथा 2002 में उन्हें एशिया वीक पत्रिका द्वारा एशिया के 50 सबसे शक्तिशाली लोगों के रूप में प्रस्तुत किया गया ।

जून, 1998 में व्हार्टन स्कूल, पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय द्वारा उल्लेखनीय नेतृत्व क्षमता के लिए ‘डीन पदक’ दिया गया । नवम्बर, 2000 में भारत में उनके रसायन उद्योग में विकास के लिए केमटेक संस्था और विश्व रसायन अभियान्त्रिकी द्वारा उन्हें सदी के मानव पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

धीरूभाई अम्बानी को बीसवीं सदी के मानव नाम से भारतीय वाणिज्य और उद्योग सदन महासंघ द्वारा नवाजा गया ।  अगस्त, 2001 में दि इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा सामूहिक उत्कृष्टता के लिए ‘लाइफ टाइम अचीवमेण्ट’ से सम्मानित किया गया । ऐसे विख्यात अग्रद्रष्टा का 6 जुलाई, 2002 को मुम्बई में निधन हो गया ।

इस महान् उद्योगपति को उद्योग जगत् सदैव याद रखेगा । धीरूभाई अम्बानी की सोच केवल उद्योगपतियों को ही नहीं, बल्कि सभी क्षेत्र के प्रत्याशियों को प्रेरणा प्रदान करती रहेगी, क्योंकि उनका मूलमन्त्र था- ‘मुश्किलों में भी अपने लक्ष्यों को ढूंढिए और आपदाओं को अवसरों में परिवर्तित कर दीजिए ।’

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