प्रकृति पर निबंध! Here is an essay on ‘Nature’ in Hindi language.

Essay on Nature


Essay Contents:

  1. प्रकृति की प्रस्तावना (Introduction to Nature)
  2. प्रकृति व सीखने वाला बच्चा (Nature and Learning Child)
  3. प्रकृति को निहारना (Sympathy Towards Nature)
  4. प्रकृति अन्वेषण (Exploration of Nature)
  5. प्रकृति कार्य (Function of Nature)


Essay # 1. प्रकृति की प्रस्तावना (Introduction to Nature):

प्रकृति को व्यापक अर्थ में लें तो उसमें सब कुछ शामिल होगा यानी वह सभी वस्तुएं जो हमारे आप-पास हैं और वह जो हमसे दूर हैं । हम स्वयं भी प्रकृति का एक हिस्सा है । साधारण रूप से प्रकृति में आशय उन वस्तुओं से है जो मानव निर्मित नहीं होतीं जैसे नक्षत्र, चट्टानें, पौधे एवं जानवर । इसमें हवाएं, मौसम, जीवित तथा मृत जीवों सहित सभी प्रक्रियाएं शामिल होंगी ।

यदि और सरल शब्दों में प्रकृति की व्याख्या करनी हो तो हम कहेंगे कि वे सभी वस्तुएं जो जीवित हैं व बढ़ती हैं अर्थात इस व्याख्या में हम हमारे परिवेश में पाई जाने वाली वह सभी वस्तुएं शामिल करते हैं जो जीवित रहने तथा बढ़ने की प्रक्रिया में मदद करती हैं । अत: प्रकृति का अर्थ है पेड़-पौधे व जानवर, जमीन, वायु, जल, वन, झरने तथा रेगिस्तान भी ।

यद्यपि प्रकृति के निर्माण में मानव का कोई योगदान नहीं होता फिर भी वह इसे कई प्रकार से प्रभावित करता है । वह अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए प्रकृति पर निर्भर रहता है और इस प्रकार वह प्रकृति को आकार देता है । मानव अपने भोजन, आश्रय व लगभग सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए प्रकृति की ओर ही देखता है ।

महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रकृति मानव को सीखने हेतु परिवेश प्रदान करती है । यह मानव की सभी सृजनात्मक अनुभूतियों के लिए मच प्रदान करती है । गहन विचारों को छोड़ दें तो बच्चों के लिए प्रकृति एक आनंद का स्रोत बन जाती है । यह उन्हें एक जाना-पहचाना परिवेश प्रदान करती है जिसके साथ वे सरलता से एक रूप हो जाते हैं । वे प्रकृति के अवयवों से विभिन्न प्रकार के संबंध स्थापित कर लेते हैं तथा इसी प्रक्रिया में वे प्रकृति का एक अभिन्न अंग बन जाते हैं ।


Essay # 2. प्रकृति व सीखने वाला बच्चा (Nature and Learning Child):

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जैसे कि बच्चे प्रत्येक वस्तु के साथ करते हैं, वे अपने आप को प्राकृतिक परिवेश का केन्द्र मानते हैं । इस प्रकार प्रकृति के बीच स्थान बना लेने पर वे प्रकृति को बहुत अच्छी तरह समझते हैं । यह दर्शाता है कि अपने प्रारंभिक जीवन में वे किस प्रकार प्रकृति से घनिष्ठ संबंध विकसित कर लेते हैं ।

बच्चों की प्रकृति के प्रति इस सुगम समझ को वयस्क तर्क व ज्ञान के आधार पर गलत समझते है । इसके परिणामस्वरूप बच्चों के संपर्क में आने वाले वयस्क-शिक्षक, पालक व मार्गदर्शक तथ्यों, सिद्धान्तों व धारणाओं से उनकी इस समझ को प्रभावित करना आरंभ कर देते हैं ।

इस प्रकार जीवन के प्रारंभ में ही इस संरचित अध्ययन का सामना होने पर बच्चे पुस्तक की पढ़ाई की प्रक्रिया को अपना लेते हैं । प्रारंभ से ही इस प्रकार आनंद व स्वतंत्रतारहित प्रस्तुति के परिणामस्वरूप बच्चों का प्रकृति प्रेम व उससे घनिष्ठता कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाती है । दुर्भाग्यवश इस प्रकार की शैली ही हमारे शिक्षा तंत्र में सर्वत्र व्याप्त है ।

इससे अलग शैली होगी कि हम यह स्वीकार करें कि बच्चे की प्रकृति की यह अनुभवहीन समझ वास्तव में उसकी तार्किक शक्ति के आधार पर उसके मन में बना हुआ एक अस्पष्ट चित्र है । हमें यह भी मानना चाहिए कि हमारे मस्तिष्क में जो धारणा है कि बच्चा बहुत कुछ जानता है, वह सही नहीं है ।

तभी हम बच्चे की पूर्वग्रही रूचि को सही शिक्षा का उत्कृष्ट प्रारंभ मानकर उसका उपयोग कर सकते है । इस संबंध में सबसे अच्छी विधि होगी कि हम विभिन्न प्रकार की आनंददायी व प्रायोगिक गतिविधियों द्वारा प्रकृति का अन्वेषण निर्देशित रूप से करें ।

इन गतिविधियों को जब बिना किसी पाठ्‌यक्रम के दबाव से सपन्न किया जाएगा तो वे आसपास की वस्तुओं के प्रति लगाव पैदा कर देंगी । यदि इन गतिविधियों को कक्षा की परिधि से बाहर अनौपचारिक रूप से संपन्न किया जाए तो वे अधिक प्रभावकारी होंगी ।

ये बच्चों को स्वयं अपने पर्यावरण की छानबीन करने हेतु प्रोत्साहित करेंगी व उनका मार्गदर्शन भी करेंगी कुछ समय बाद इन गतिविधियों के माध्यम से बच्चे प्रकृति के बारे में अधिक घनिष्ठ किन्तु सही समझ विकसित करेंगे । इस प्रकार का नियंत्रित उपगमन पूर्व के प्रकृति पर आधारित समवयस्क समूह में सीखने के अवसरों के अभाव की भी कुछ सीमा तक क्षतिपूर्ति कर देगा ।

हमारे भौतिक एवं सामाजिक परिवेश में आ रहे परिवर्तनों के कारण ऐसे अवसर लुप्त हो रहे हैं । इस प्रकार के समूह के खेल हमेशा ही बाहरी परिवेश में होते थे, चाहे वह घर के पीछे का आंगन हो अथवा छत हो ये सारी गतिविधियाँ बेर तोड़ने के लिए अथवा पक्षियों के अण्डे देखने के लिए पेड़ पर चढ़ना हो बच्चों को अत्यन्त चालाकी से प्रकृति की जटिलताओं को समझना सिखाती हैं ।

इस पुस्तक का मूल उद्देश्य है बच्चों के लिए कुछ चुनी हुई प्रायोगिक गतिविधियों को प्रस्तुत करना । इन गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से किसी भी क्रम के बिना, अपेक्षाकृत कम समय में संपन्न किया जा सकता है । यह बच्चों को इन गतिविधियों को रूचिकर कार्य के रूप में अथवा विज्ञान क्लब की परियोजना के रूप में अकेले अथवा अपने मित्रों के समूह में सपन्न करने हेतु प्रोत्साहित करेगी । विद्यालय के परिवेश में इन्हें समय-सारिणी में सरलता से शामिल किया जा सकता है ।

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पाठ्‌यक्रम को पढ़ाने के उद्देश्य से इन गतिविधियों में से कुछ को चुनकर, यदि आवश्यकता हो तो, पाठ्‌ययोजना में एकीकृत किया जा सकता है । समग्र रूप से देखें तो यह पुस्तक एक बच्चे के लिए मार्गदर्शक पुस्तिका के रूप में तथा एक शिक्षक अथवा बच्चों की विज्ञान संबंधी गतिविधियां सपन्न करने वाले के लिए यह स्रोत ग्रंथ का कार्य कर सकती है ।

इस पुस्तक में केवल वे ही गतिविधियां शामिल की गई हैं जिन्हें संपन्न करने हेतु विशेष कौशल, उपकरण अथवा वातावरण की आवश्यकता नहीं होती । अंत: इन्हें किसी भी स्थान पर तथा किसी भी मौसम में संपन्न किया जा सकता है । इस उपगमन के माध्यम से एक बार बच्चों में प्रकृति प्रेम जाग जाए तथा प्रकृति से जुड़े अनुभव प्राप्त हो जाए तो विशिष्ट क्षेत्र आधारित गतिविधियों का संचालन अधिक सार्थक हो जाएगा ।


Essay # 3. प्रकृति को निहारना (Sympathy Towards Nature):

साधारणत: हम अवलोकन को अन्वेषण के समतुल्य नहीं मानते । प्रकृति के संबंध में यह बात बिल्कुल सत्य नहीं है । यदि हम अपनी आखें व अन्य इन्द्रियों को खोलकर प्रकृति को केवल निहारें तो हम उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं व उसे समझ सकते हैं । यह इसलिए कि प्रकृति बहुत परिवर्तनशील व गतिशील है ।

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वास्तव में प्रकृति के सजीव व निर्जीव घटकों के बीच की अंत: क्रियाओं को समग्र रूप से देखें तो हमारे समक्ष प्रकृति की व्यापक छवि प्रस्तुत हो जाएगी और प्रकृति के इसी लक्षण के कारण वह अनेक प्रकार से बदलती रहती है इसमें कुछ परिवर्तन बहुत तीव्र गति से तो कई बहुत धीमी गति से होते हैं ।

एक छोटा पक्षी हमारी आखों के सामने से तेजी से निकलता है जबकि गरूड़ ऊंचे आकाश में आराम से व मंदगति से उड़ान भरता है अथवा घोंघा मन्द गति से जमीन पर रेंगता है । मौसम व घास के मैदानों में परिवर्तन कुछ ही महीनों में दिखाई देते हैं जबकि एक पेड़ के बड़ा होने में अथवा उसमें परिवर्तन दिखने में कई वर्ष लग सकते हैं । कुछ घण्टे आराम से बैठकर हम निहारें तो हमें अनेक प्रकार के जानवर अनेकों प्रकार की गतिविधियां करते हुए नजर आएंगे ।

यह सब मिलाकर एक रूचिकर गतिविधि बन जाती है- ‘प्रकृति को निहारना’ एक अनियमित निहारक के लिए एक आरामदायक व प्रेरक अनुभव होगा किन्तु एक गंभीर एवं निरंतर निहारने वाले व्यक्ति के लिए यह निहारना प्रकृति के बारे में अनेक रहस्यों को जानना होगा ।

धैर्यपूर्वक लगातार निहारना एक कौशल के रूप में विकसित हो सकता है जिसका परिणाम लाभदायी हो सकता है । हम अनेक महत्वपूर्ण खोजों जैसे विकासवादी सिद्धान्त तथा महाद्वीपों के विस्थापन के सिद्धान्त को इस प्रकार के सूक्ष्म अवलोकन का परिणाम मान सकते हैं । यह अवलोकन अत्यधिक कौशल, अटूट धैर्य तथा वैज्ञानिक पृष्ठभूमि व अन्तर्दृष्टि से ही किए गए होंगे ।

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प्रकृति का अन्वेषण प्रकृति निहारने वालों के लिए एक प्रमुख व परिचित गतिविधि है- पक्षियों को निहारना । इसके अन्तर्गत किसी अच्छे स्थान पर बैठकर पक्षियों को पहचानना, उन्हें चिन्हित करना तथा उनके व्यवहार का अवलोकन करना शामिल है ।

एक आकस्मिक निहारक को उसके परिवेश के पक्षियों के विषय में कुछ ज्ञान हो सकता है अथवा उनके विषय में रूचिकर जानकारी हो सकती है किन्तु वह व्यक्ति जो इस कार्य को गम्भीरता से लेता है, वह दूरस्थ स्थानों पर जाता है तथा अत्यन्त दुर्लभ पक्षियों को अथवा उन पक्षियों को पहचानता है जिनका वर्णन अभी तक नहीं हुआ है ।

निहारने की एक और गतिविधि अत्यन्त प्रचलित है जो सजीव प्रकृति से संबंधित नहीं है, वह है आकाश को निहारना । प्रारंभ में यह गतिविधि सरल हो सकती है किन्तु आगे इसे बढ़ाकर और अधिक विकसित किया जा सकता है जिसमें तकनीकी ज्ञान भी शामिल होगा ।

प्रारंभ में रात में आकाश को नग्न आंखों से विभिन्न नक्षत्रों को देखना व उनके नियत स्थान, उनके उगने-डूबने के समय जानने की गतिविधि की जा सकती है । आकाश में नक्षत्रों के विभिन्न पैटर्न व उनके संबंध में प्रचलित लोक कथाएं व मिथक इस गतिविधि को और आकर्षक बना देती हैं ।

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आकाश के अवलोकन को प्रारंभ करने वालों के लिए आकाश की वस्तुएं जैसे सूर्य, चन्द्र, ग्रह, उल्काएं व धूमकेतु (पुच्छल तारा) विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों को देखने का अवसर प्रदान करते हैं । अग्रणी आकाश निहारकों के लिए मुश्किल से दिखने वाली वस्तुएं एवं घरों में पाये जाने वाले विभिन्न उपकरणों की सहायता से अवलोकन करने की चुनौती होती है और अग्रणी आकाश निहारकों के लिए नए नक्षत्र तथा नए-नए धूमकेतुओं को खोजने की चुनौती होती है । किसी भी प्रकृति प्रेमी के लिए रात्रि में आकाश को निहारना एक मनोरंजक गतिविधि हो सकती है |

इस प्रकार की विशिष्ट गतिविधियां जैसे पक्षी अवलोकन तथा आकाश अवलोकन जिसमें अधिक समय की आवश्यकता होती है, इस पुस्तक की परिधि से बाहर की है । इतने सीमित क्षेत्र में इन गतिविधियों के साथ न्याय नहीं हो सकता । फिर भी जो लोग इन गतिविधियों में रूचि रखते हैं, उनके लिए बहुत सारी सामग्री उपलब्ध हैं क्योंकि ये क्षेत्र पर्याप्त रूप से विकसित हो चुके हैं ।

वनों में जानवरों को निहारन:

हम अपने घरों के आस-पास अथवा शहरों के उद्यानों में अनेक प्रकार के जानवर देख सकते हैं । ग्रामीण क्षेत्र में किसी बड़े पार्क में अथवा खुले मैदान में हम और अधिक प्रकार के जानवर देख सकते हैं । एक प्रकृति निहारक धैर्य के साथ बैठकर इन जानवरों की गतिविधियों को निहार सकता है ।

जमीन से हम जमीन के जानवरों अथवा पक्षियों को हमारे आस-पास भोजन की खोज करते हुए, जमीन को खोदते हुए अथवा घोंसला बनाने हेतु सामग्री खोजते हुए निहार सकते है । पक्षियों का किसी टहनी पर बैठे हुए, पंख फडफडाते हुए अथवा अपने बच्चों को खिलाते हुए देखना उतना ही रूचिकर हो सकता है जितना कि बन्दरों के समूह देखना, विशेषकर छोटे बन्दरों के समूह की विचित्र हरकतों को देखना ।

यद्यपि अधिकांश जानवर प्रात: काल तथा सायंकाल में अधिक सक्रिय होते हैं किन्तु एक जिज्ञासु निहारक के लिए दिन या रात के किसी भी समय निहारने हेतु बहुत कुछ मिल सकता है । एक दो बार क्षेत्र का अन्वेषी भ्रमण करने से उस क्षेत्र के लिए विशिष्ट जानवरों के अवलोकन के लिए सबसे अच्छा समय चिहिन्त किया जा सकता है । इस प्रकार हम प्रारंभिक खोजबीन से हमारे पसंद के जानवर कहा आते हैं तथा उन्हें निहारने हेतु कौन सा स्थान उपयुक्त होगा यह जान सकते हैं ।

फिर अगला कदम होगा, किसी ऐसे ऊंचे स्थान की खोज करना जहां से विस्तृत क्षेत्र को आराम से निहारा जा सके किन्तु उस स्थान को कोई देख न सके । वह स्थान निहारे जाने वाले क्षेत्र को हवा के विपरीत दिशा में होना चाहिए जिससे निहारक की गंध उन जानवरों तक न पहुंच सके जो गंध के मामले में अति संवेदनशील होते हैं । यदि उन्हें निहारक की गंध मिल गई तो वे डरकर भाग सकते हैं ।

रात में अवलोकन करने के लिए एक टॉर्च जिसके मुंह पर लाल कांचाभ कागज चढ़ा हो आवश्यक होती है । अधिकांश जानवर लाल प्रकाश के प्रति संवेदनशील नहीं होते तथा लाल रोशनी अंधेरे से अभ्यस्त हमारी ऑखों को बाधा नहीं पहुंचाती । इसलिये टॉर्च के मुंह पर लाल रंग का कांचाभ कागज लगाना चाहिए ।

जानवरों को बिना डराए उन्हें पास से देखने के लिए यदि हमारे पास एक दूरबीन होती सोने में सुहागा । एक शक्तिशाली दुरबीन से सूक्ष्म अवलोकन तो किया जा सकता है लेकिन वह भारी होती है तथा उससे विस्तृत क्षेत्र का अवलोकन नहीं किया जा सकता । वहीं दूसरी ओर कम शक्तिशाली दूरबीन से अवलोकन में तो आसानी होती है किन्तु इससे जानवरों की पहचान करने में कठिनाई हो सकती ।

दूरबीन का चुनाव व्यक्ति के अवलोकन के उद्देश्य के अनुसार करना चाहिए । शीतऋतु में लंबे समय तक यदि अवलोकन करना है तो एक ढका हुआ आश्रय स्थान बनाना होगा । इसे हलके लकड़ी के खम्बों अथवा बासों को गाड़कर तथा उसे हरे-भूरे पग के नवसा अथवा टाट के टुकड़े से ढककर बनाया जा सकता है । इसमें छोटी-छोटी खिड़कियां काटकर उन्हें पारदर्शी आवरण से ढका जा सकता है जिससे बाहर का दृश्य तो दिखे किन्तु उड़ी हवा अंदर प्रवेश न कर सके ।

जानवरों को निहारने हेतु झाडियां अथवा घास के मैदान भी उपयुक्त हो सकते हैं । किन्तु कम गहरे झरने की ओर जानवर अधिक आकृष्ट होते हैं विशेषत: सूर्योदय व सूर्यास्त के समय । ऐसे स्थान अवलोकन हेतु अधिक उपयुक्त होंगे क्योंकि यहां आने वाले जानवर अनेक प्रकार के होते हैं । तथा यहां जलचर तथा उभयचर जीवों का भी नजारा देखने को मिलेगा ।

जानवरों को भोजन द्वारा भी आकृष्ट किया जा सकता है । सुरक्षित स्थानों पर खाद्य सामग्री कुछ जानवरों को आकृष्ट कर सकती हैं । खाद्य प्रलोभन किस प्रकार का हो यह उन जानवरों पर निर्भर करेगा जिन्हें हम देखना चाहते हैं । अनाज, गिरीदार फल, तथा ब्रेड के टुकड़े प्राय: पक्षियों, चूहों समान दीक्ष दांत वाले जानवर तथा कुछ छोटे जानवरों को प्रलोभित करते हैं । इल्लियां, मांस व मछली आदि को भी प्रलोभन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जो विशिष्ट प्रकार के जानवरों को आकृष्ट करेंगे ।

आदर्श प्रलोभन, उसके रखने का स्थान तथा समय कुछ दिन परीक्षण करने के बाद तय किए जा सकते हैं । एक बार यह सब तय हो गया व वांछित जानवर की हरकतें देखने में और अगर वह उन वस्तुओं का आदी हो गया तो और आनंद आता है ।

जानवरों अथवा पक्षियों के बारे में समग्र चित्र तभी सामने आएगा जब हम अपने अवलोकनों को लिखकर उन्हें संकलित करें । इसके लिए हमें एक नोटबुक व पेंसिल हमेशा पास रखनी होगी । यदि हम नोट के साथ रेखाचित्र भी बनाते जाएं तो अधिक उपयोगी होगा । यदि हम कुछ फोटो ले सकें तो और बेहतर होगा । क्षेत्र में हमारे द्वारा लिखे गए नोटों व बनाए गए रेखाचित्रों को घर आकर स्थाई अभिलेख के रूप में स्थानांतरित करना होगा ।


Essay # 4. प्रकृति अन्वेषण (Exploration of Nature):

जानवरों व पौधों को उनके प्राकृतिक परिवेश में निहारने से हमें प्रकृति की गतिशीलता का अनुभव होता है किन्तु इसके लिए हमें लंबे समय तक धैर्य व लगन के साथ अवलोकन करना होता है । तभी अंत में इसका परिणाम लाभकारी होता है । अवलोकित वस्तुओं व घटनाओं के बारे में हम और अच्छी तरह जान जाते हैं ।

इसी प्रकार का अनुभव प्राप्त करने का एक और रास्ता हो सकता है और वह है प्रकृति भ्रमण । किसी क्षेत्र का पैदल भ्रमण करने से हमें प्रकृति के लक्षणों की विभिन्नता का ज्ञान होगा तथा हमें हमारे रूचि के लक्षणों को चिन्हित करने में मदद मिलेगी ।

हम इन विशिष्ट अवयवों के पास रूककर उनका सूक्ष्म अवलोकन कर सकते हैं तथा उनका आगे भी अन्वेषण कर सकते हैं । प्रकृति भ्रमण में हमें उस परिवेश के विभिन्न नमूनों को एकत्र करने का अवसर भी मिलता है । इन नमूनों को छांटकर, उनका विश्लेषण करने पर हमें उस क्षेत्र के बारे में तथा उन नमूनों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हो सकेगी ।

भ्रमण की तैयारी:

प्रकृति भ्रमण के लिए उपयुक्त समय में आराम से पैदल चलकर जितना ज्यादा क्षेत्र घूम सकें, उसे चुनना चाहिए । यह आवश्यक नहीं कि वह क्षेत्र गाव से बहुत दूरी पर हो । वास्तव में यह क्षेत्र हमारे निवास के अथवा हमारे कार्य करने के स्थान के आस-पास ही होना चाहिए जिससे हम हमारे परिवेश को पहचान सकें ।

किसी शहर के मध्य में भी किसी पार्क अथवा शाला परिसर में प्रकृति भ्रमण किया जा सकता है । प्रकृति भ्रमण में हमें किस प्रकार की वस्तुएं देखने को मिलेंगी, वह स्थान तथा उस समय के मौसम पर निर्भर करेगा ।

प्रकृति अवलोकन के समय व अन्य किसी भी प्रकार की प्रकृति संबंधी गतिविधियों के समय हमें नोटबुक व पेंसिल हमेशा पास रखनी चाहिए । प्रकृति भ्रमण के समय हम उस क्षेत्र का मानचित्र बनाकर उसके विशिष्ट लक्षण जो दिखें उसमें अंकित कर सकते हैं ।

हमें प्रकृति भ्रमण के समय कुछ और वस्तुओं को साथ ले जाने की आवश्यकता होती है जैसे कांच अथवा प्लास्टिक की शीशियां, पारदर्शी प्लास्टिक की विभिन्न आकार की थैलियां जो एकत्र किए गए नमूनों को रखने के काम आएगी, थैलियों के मुंह बन्द करने हेतु रबर बैण्ड, तरल नमूनों को एकत्र करने के लिए ड्रापर, मिट्टी अथवा अर्द्ध ठोस वस्तुओं को निकालने के लिए चम्मच और सभी वस्तुओं को सावधानीपूर्वक लाने के लिए एक बड़ा झोला ।

यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि भ्रमण उस क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं की व्यापक जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाना है । इसलिए विभिन्न प्रकार की वनस्पति, जीव तथा भूमि के लक्षणों की और, चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा मानव-निर्मित हों- उनमें हो रहे परिवर्तन, चाहें वे लघुकालीन हों या दीर्घकालीन, उनकी ओर विशेष ध्यान देना चाहिए न कि किसी विशिष्ट वस्तु जैसे एक विशिष्ट पेड़ की विस्तृत जानकारी की ओर ।

ADVERTISEMENTS:

प्रथम भ्रमण के समय यदि उस क्षेत्र का एक वृहद ढांचा हमारे मन में बन जाता है तो कुछ विशिष्ट बिन्दुओं का और आगे अध्ययन करने में हमें मदद मिलेगी ।

नमूने एकत्र करते समय व्यक्तिगत सुरक्षा की ओर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है-जैसे काटने अथवा डंक मारने से अथवा विषैली वस्तुओं के संपर्क से बचना । नदी, तालाबों, झीलों, आदि पानी के संचयित स्थानों, दलदल वाले स्थानों, तीव्र ढलान वाले अथवा ऊंचे स्थानों से नमूने एकत्र करते समय सामान्य सावधानियां बरतनी चाहिए । पौधों व उनके अवयवों को थोड़ी मात्रा में एकत्र करना चाहिए जिससे उनकी वृद्धि प्रभावित न हो ।

नमूनों का विश्लेषण व प्रतिरक्षण:

भ्रमण के समय लाए गए नमूनों को एक बड़े कागज पर फैलाकर उन्हें विभिन्न वर्गों में विभाजित करना चाहिए । मोटे तौर पर निम्न वर्ग हो सकते हैं- जीवित-मृत, पौधे-जानवर, प्राकृतिक-मानव निर्मित आदि । ये वर्गीकरण प्रथमत: नमूनों को छांटने के लिए उपयुक्त हैं ।

आगे चलकर हम इन वृहद वर्गों को जितना संभव हो सके उतने विभिन्न वर्गों में बांट सकते हैं । वर्गीकरण करते समय अन्य भ्रमणकर्ताओं से अंत: क्रिया करने का एक अच्छा अवसर प्राप्त होता है । विभिन्न प्रकार के वर्गीकरण संबंधी चर्चा के द्वारा हम वर्गीकरण के शास्त्र को जान सकते हैं ।

सजीव नमूनों को और अधिक अध्ययन हेतु तथा नश्वर भागों को संग्रह के रूप में आगे के उपयुक्त अध्याय में बताई गई विधि द्वारा सुरक्षित रखा जा सकता है । जहां तक संभव हो सजीव नमूने जिनकी आवश्यकता न हो उन्हें उन्हीं स्थानों पर लौटाना चाहिए जहां से उन्हें संग्रहित किया गया था ।


Essay # 5. प्रकृति के कार्य (Function of Nature):

प्रकृति को अच्छी तरह जानने का एक और तरीका है प्रायोगिक कार्य अथवा प्रकृति कार्य । इनके द्वारा हम प्रकृति का उसके अधिक सान्निध्य में रहकर अन्वेषण कर सकते हैं । इस हेतु हमें प्रकृति की किसी वस्तु के पास जाकर उसका विस्तृत अध्ययन करना होता है ।

ADVERTISEMENTS:

इस कार्य के अन्तर्गत प्रतिदर्शों की रचना के माध्यम से किसी प्राकृतिक घटना का अवलोकन मॉनिटरिंग व यदि आवश्यकता हो तो उसे नियंत्रित करना भी शामिल है । अगले अध्यायों में जो इस पुस्तक के अधिकांश भाग को व्यापित करेंगे इन प्रयोगात्मक गतिविधियों का विस्तार से वर्णन किया जाएगा ।

यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि ये गतिविधियां मात्र उदाहरण व प्रतीकात्मक हैं । इन पर आधारित अन्य अनेक गतिविधियों को संपन्न किया जा सकता है जो प्रकृति के और भी अधिक व्यापक पहलू को स्पर्श करें । एक प्रकृति प्रेमी को इस पुस्तक का प्रयोग इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु करना चाहिए ।

ये चुनी गई गतिविधियां प्रकृति के प्रमुख भागों पर ही केन्द्रित हैं जैसे पौधे, छोटे प्राणी, कीट, मिट्टी आदि । यह सामान्य पाठ्‌यक्रम व जीवशास्त्र की विषयवस्तु के साथ सरल संबंध स्थापित करने हेतु किया गया है । इस उपगमन में पूरक वाचन के माध्यम से विषय के संबंध में पृष्ठभूमि विकसित करने में मदद मिलेगी जबकि गतिविधियों द्वारा छात्रों की रुचि को बनायें रखा जा सकेगा ।

इनमें से कुछ गतिविधियां एक विषय की सीमाओं को पार करती हैं क्योंकि वे एक से अधिक क्षेत्र में से सम्बधित हैं । टेरेरियम अथवा ईको-पोंड में आदर्श वातावरण का निर्माण कर उसमें जीवित नमूनों को संग्रहित करना इसका एक उदाहरण है । सूक्ष्म वातावरण जैसे एक गोबर के डले अथवा सड़ते हुए लकड़ी के टुकड़े का दीर्घकाल तक अवलोकन करना इसका एक अन्य उदाहरण हो सकता है जिसमें बढ़ने व सड़ने की दोनों प्रक्रियाओं का एक साथ अवलोकन किया जा सकता है ।

अन्त में इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है कि इस भाग में प्रस्तुत विचारों का समुचित रसास्वादन करने हेतु कार्य को करना होगा । प्रकृति कार्य के इस प्रकार के रसास्वादन के द्वारा इन विचारों को और आगे विकसित करने हेतु नई विधियां मिलेंगी ।


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