प्रशासनिक सुधार: सुधारों में मुश्किलों का रोड़ा पर निबंध |Essay on Administrative Reform : Reform Occlusion Problems in Hindi!

दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने वर्षों पुराने पुलिस अधिनियम में व्यापक संशोधन के सुझाव दिए थे । आयोग के अध्यक्ष विरप्पा मोझली ने रिपोर्ट में पुलिस मनमानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने तथा जिला और नगर स्तर पर ‘स्वतंत्र पुलिस शिकायत केंद्र’ गठित करने की सिफारिश की थी ।

सभी राज्यों में हाईकोर्ट के वर्तमान या सेवानिवृत जज की अध्यक्षता वाले ‘बोर्ड ऑफ इनवेस्टीगेशन’ गठित करने और इसके नियंत्रण में एक नया ‘अपराध अनुसंधान अधिकरण’ चलाने की सिफारिश भी की गयी । रिपोर्ट में सीबीआई को और ज्यादा ताकतवर बनाने, पूर्वोतर के राज्यों में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून समाप्त करने और फर्जी मुठभेड़ों की जांच 24 घंटे के भीतर करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय की सिफारिश की गयी थी । आयोग ने एसपी और थानाध्यक्ष को सुनिश्चित कार्यकाल देने की संस्कृति की थी ।

आयोग ने पुलिस के समक्ष दिये गये बयान को अदालती मान्यता देने की खतरनाक सिफारिश भी की थी । प्रशासनिक सुधारों पर यह पहली रिपोर्ट नहीं है । 1999 में के.पी. गीताकृष्णन व्यय सुधार समिति ने प्रमुख मंत्रालयों व विभागों में एक लाख बीस हजार पद घटाने की सिफारिश की थी ।

ADVERTISEMENTS:

इससे पूर्व 1998 में पी.सी. जैन आयोग 1400 कानून खारिज करने और 241 में संशोधन की सिफारिश कर चुका है । सरकारिया आयोग (1983) ने प्रशासनिक सुधारों व केंद्र राज्य संबंधों पर 1600 पृष्ठ की रिपोर्ट दी थी । एल.के. झा आर्थिक प्रशासनिक सुधार आयोग ने 20 रिपोर्ट दी थी ।

1953 व 1956 में लोक प्रशासन के अमेरिकी विशेषज्ञ पॉल. एच. एप्पलवाय ने 12 संस्कृतियां की थी । गोरेवाला समिति ने ‘लोक प्रशासन पर प्रतिवेदन’ प्रस्तुत किया । गोरेवाला ने लिखा, ‘ निकृष्ट सरकार और उत्कृष्ट प्रशासन अधिक-से-अधिक एक अस्थाई सम्मेलन होता है । ‘ यानी अच्छे प्रशासकों को बुरी सरकार से स्थायी तालमेल नहीं करना चाहिए । लेकिन हुआ ठीक उल्टा । निकृष्ट सरकारों ने अपने 60 बरस के शासन में ही उत्कृष्ट प्रशासन की सारी संभावनाएं समाप्त कर दी हैं ।

प्रशासनिक सुधार पर बने तमाम आयोगों 7 समितियों के अलावा पुलिस आयोग (1971), गोरे समिति (1972), राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1979 – 81), रिबेरो समिति (1998), वोरा समिति (1959) ने भी कमोबेश ऐसी ही बातें की । पुलिस आयोग (1979 – 81) ने भी मोइली आयोग की ताजा रिपोर्ट की ही तरह पुलिस कानून (1861) में तब्दीली की सिफारिश की थी । असल में पुलिस ही राज्य व्यवस्था का अंतिम उपकरण होती है ।

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में पुलिस का अर्थ है ‘कानून व्यवस्था को बनाए रखने, नियंत्रित करने वाला सगठन; राज्य की अंतरंग सरकार ‘ लेकिन भारत के लोक शब्दकोष में पुलिस का मतलब है, ‘बिना वजह मारपीट करने वाला, बेहद खौफनाक, फर्जी मुकदमों में फंसाने की शक्ति से लैस एनकाउंटर विशेषज्ञ सत्तादल का आज्ञाकारी, लेकिन बाकी सब पर भारी, आदर्श में कानून संरक्षक, लेकिन व्यवहार में कानून तोड़क वर्दीधारी बल । आयोग ने फर्जी मुठभेड़ों और मानवाधिकार हनन के भी सवाल उठाए है ।

ADVERTISEMENTS:

मानवाधिकार आयोग के पास 2004-05 में फर्जी मुठभेड़ की 84 व पुलिस हिरासत में मौतों की 136 शिकायतें आयी । हिरासत में मारपीट-अवैधानिक हिरासत सहित विभिन्न पुलिस अत्याचारों के सात हजार से ज्यादा मामले सामने आये । पुलिस हिरासत से लापता 24 लोगों का पता नहीं चला । देश के नक्सली क्षेत्रों में निर्दोष मजदूरों, बूढों व बच्चों को मार देने पर भी सवाल उठे है । उधर मुंबई में 1992 से 2006 के बीच 661 लोग पुलिसिया शूटआउट के शिकार हुए ।

उत्तरप्रदेश में उन्नाव जिले के एक थाने में पुलिस हिरासत में गोलू नाम के दलित को पुलिस ने तेजाब पिलाया । वह अस्पताल जाकर मर गया । मायावती सरकार होने के बावजूद जांच अधिकारी डिप्टी एसपी ने लीपापोती की । मोइली आयोग ने सीबीआई सशक्तिकरण के लिए नया कानून बनाने की सिफारिश की है । सीबीआई विश्वसनीयता खो रही है ।

इसके प्रथम निदेशक डी.पी. कोहली ने अधिकारियों से कहा था, ‘जनता आपसे क्षमता और निष्ठा के उच्चस्तरीय प्रतिमान चाहती है ।’ सीबीआई उच्च स्तरीय प्रतिमान दे कैसे? राजनीतिक नियंत्रण से मुक्ति के बगैर सीबीआई का जीर्णोद्धार नहीं हो सकता ।

आयोग ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून 1958 को निरस्त करने की सिफारिश की हैं जबकि उच्च पदस्थ अधिकारी इसे बनाए रखने के पक्षधर हैं । विदेशी घुसपैठ बहुल क्षेत्रों में हिंसक झडपों के बीच सामान्य प्रशासनिक तंत्र व सामान्य कानून नाकाफी होते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

भारत के संविधान में सैनिक शासन की व्यवस्था नहीं है । सशस्त्र बल कानून में सेना को गिरफ्तारी, तलाशी और जान से मारने के भी अधिकार (धारा 4ए) हैं । सशस्त्र बल कानून की समाप्ति का सुझाव अच्छा है, लेकिन जमीनी स्थितियों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए । मणिपुर में कई हथियार बंद संगठन हैं । घुसपैठ सहित अन्य वजहों से यहां मुस्लिम आबादी में 10 फीसदी इजाफा हुआ है ।

मुस्लिम लिबरेशन आर्मी, इस्लामिक लिबरेशन और इस्लामिक फ्रट जैसे आक्रामक संगठन सक्रिय हैं । शिलांग समझौते (15 अक्टूबर, 1949) के जरिए मणिपुर भारत का हिस्सा बना । अलगाववादी हिंसक संगठन 15 अक्टूबर को काला दिवस मानते हैं । वे लोग रचय को भारत का अविभाज्य हिस्सा ही नहीं मानते । उनसे निबटने के सामान्य नागरिक कानून पर्याप्त नहीं हो सकते ।

आयोग ने ध्वस्त कानून व्यवस्था की स्थिति में केंद्र को राज्यों में 3 माह तक सेना की तैनाती का अधिकार देने की सिफारिश की है, इसमें आपातकाल की झलक है । श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी राज्यों के बिगडे हालात को सुधारने के लिए आपातकाल (1975-77) में संविधान में एक नया अनुच्छेद 257 ए (संघ के सशस्त्र बलों अन्य बलों द्वारा राज्य की सहायता) जुड़वाया था । घोर अलोकतांत्रिक यह प्रावधान जनता सरकार ने 1978 में निरस्त कर दिया ।

ADVERTISEMENTS:

भारत में सरकार का मतलब पुलिस है । पुलिस राजनीतिक दबाव मे आती है, तो सत्तादल की निजी सेना बन जाती हैं । दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस के सामने दिये गये बयान के अभिलेख पर हस्ताक्षर करने का प्रावधान नहीं है । कोर्ट ऐसे बयानों का पुनर्विवेचन करता है । पुलिस के समक्ष दिये गये बयान को सच मानने की सिफारिश अव्यवहारिक है । पुलिस अधिकारियों का संविधान-निष्ठ होना अब सपना है ।

राजनेता उनका बेवजह तबादला कर उत्पीडन करते हैं । डीजीपी,एसपी और थानाध्यक्षों के सुनिश्चित कार्यकाल का सुझाव अच्छा है पर ऐसे कार्यकाल के चलते पुलिस आक्रामकता पर रोक की व्यवस्था क्या होगी? पुलिस परपरा का भारतीयकरण अभारतीय मिजाज की सरकारों से असभव है ।

Home››Essays››