बिखरती शासन व्यवस्था पर निबंध | Essay on Scattered Governance in Hindi!

देश में पिछले कुछ समय की घटनाए लार्ड वावेल के इस निष्कर्ष की पुष्टि करती है कि भारतीयों को सख्ती से शासित किया जा सकता है, अन्यथा बिल्कुल नहीं ।

हैदराबाद एव मुंबई में आतंकी हमला, आगरा और हरियाणा के कुछ इलाकों में लोक व्यवस्था भंग होना और भागलपुर में एक छुटभैये अपराधी के साथ पुलिस और जनता द्वारा किया गया बर्ताव इस बात का द्योतक है कि भारत अराजकता की नयी परिभाषा लिखने के कगार पर है ।

आतरिक सुरक्षा की स्थिति श्रम है । कश्मीर में आतंकवाद और असम (असोम) और नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में अराजकता कम होने का नाम नहीं ले रही है । दंगे-फसाद बढ़ते जा रहे है और कानून एवं व्यवस्था को कायम रखना मुश्किल होता जा रहा है ।

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वर्तमान हालात की विस्तृत रूपरेखा खींचने से पहले यह जरूरी होगा कि तीन शब्दों-आतरिक सुरक्षा, लोक व्यवस्था तथा सामान्य कानून एवं व्यवस्था के मापदंडों की बारीकी से पडताल की जाये । आमतौर पर इन तीनों को एक साथ मेल कर दिया जाता है । आतंकवाद और तोड़फोड़ की तमाम घटनाएं, जिन्हें देश की संप्रभुता और स्थायित्व के दुश्मनों द्वारा अंजाम दिया जाता है, आतरिक सुरक्षा की समस्या पैदा करती है ।

व्यापक पैमाने पर हिंसा, जैसे मजहबी या जातीय दंगे, लोक व्यवस्था की परिधि में एक व्यक्ति या व्यक्तियों के एक समूह द्वारा किये जा रहे अपराध आते हैं । इन दोनों वर्गो के अपराधों की जांच-पड़ताल अलग-अलग तरीके से की जाती है । सबसे पहले कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे को लेते हैं ।

यह निराशाजनक है कि आपराधिक मामलों की सख्या और उनके घटित होने की आशका बढ़ती जा रही है, लेकिन न तो जांच-पड़ताल और कानूनी कार्रवाई के तौर-तरीके में बदलाव आ पा रहा है और न ही पुलिस बल का आचार-व्यवहार बेहतर हुआ है ।

देश में बहुत बडी संख्या में मामले दर्ज नहीं कराए जाते या फिर पुलिस दर्ज नहीं करती । भारत में हर मिनट भारतीय दंड संहिता से संबद्ध औसतन तीन अपराध और विशेष व स्थानीय कानूनों से संबंधित छह अपराध होते हैं । महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की स्थिति तो विचलित कर देने वाली है ।

हर 15 मिनट में एक महिला के साथ छेड़छाड़ हर 29 मिनट में एक दुष्कर्म की घटना और हर 77 मिनट में दहेज हत्या होती है । इनमें भी केवल 30 फीसदी दर्ज मामलों पर ही अदालती कार्रवाई होती है । 1961 में दोष सिद्ध होने की दर 64 फीसदी थी, जो 2005 में घटकर 42 फीसदी रह गयी है । इसके साथ-साथ पुलिस अभिरक्षा में मरने वालों की सख्या भी बढ रही है ।

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आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधारों पर बनी समिति ने सही ही कहा था-हिंसक और संगठित अपराध अब रोज की बात हो गये हैं । चूंकि सजा मिलने की सभावना कम है इसलिए अपराध फायदेमंद धंधा बन गया है । जहाँ तक लोक व्यवस्था की बात है, लोगों में कानून अपने हाथ में लेकर बड़ी परेशानियां पैदा करने की प्रवृत्ति विकसित हो रही है ।

अगर कहीं सडक हादसा होता है तो भीड़ इकट्ठा होकर पुलिस पर धावा बोल देती है, वाहनों में आग लगा देती है । वहाँ से गुजरने वाले निर्दोष लोग भी नहीं बख्यो जाते । व्यस्त हाइवे पर यातायात जाम कर दिया जाता है । इसी प्रकार व्यक्तिगत अपराध की प्रतिक्रिया में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठती है, जैसे कि पिछले दिनों गोहाना में एक दलित युवक की हत्या के बाद हरियाणा के कई शहरों में जमकर हिंसा व तोड़फोड़ हुई । ऐसे मामलों में किसी व्यक्ति के बजाय पूरी जाति या पंथ को ही दोषी मान लिया जाता है ।

पुलिस को इतना भी मौका नहीं दिया जाता है कि वह ठीक से जांच – पड़ताल कर सके । यह सब भारतीय समाज की वर्तमान मनोदशा को सामने ला देता है कि इसमें विखंडन की प्रक्रिया कितनी तेजी से बढ़ रही है? ये कानून एवं व्यवस्था के प्रति समर्पण के भी मौके को भुनाने के लिए हरदम तैयार रहते हैं ।

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जहाँ तक आंतरिक सुरक्षा का प्रश्न है तो दिन प्रतिदिन हालात बेकाबू होते जा रहे हैं । हैदराबाद एवं मुंबई में हुए भीषण बम विस्फोट यह सच्चाई पेश करते हैं कि आतंकियों ने किस तरह हमारे तंत्र में अपनी पैठ बना ली है । पिछले कुछ भयानक हादसों को याद करें तो 26 नवम्बर, 2008 को मुंबई पर भीषण हमला हुआ था, 28 दिसंबर, 2005 को बैंगलुरू में विज्ञान संस्थान पर हमला किया गया । 7 मार्च, 2006 को वाराणसी में संकट मोचन मंदिर में दो शक्तिशाली बम विस्फोट किये गए ।

11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों के खचाखच भरे डिब्बों में धमाके कर 1025 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया । असम (असोम) में भारत की अखंडता पर सबसे गंभीर खतरा मंडरा रहा है । पिछले कुछ माह के दौरान सौ से भी अधिक बाहरी लोगों, जिनमें अधिकांश हिंदीभाषी थे, की नृशंस हत्या से पता चलता है कि स्थिति कितनी विस्फोटक हो चुकी है ।

नक्सलियों की सक्रियता पर भी कहीं, कोई लगाम नहीं लग पा रही है । उनके पास अत्याधुनिक संचार उपकरण और हथियार हैं जिनमें एके-47, ग्रेनेड, रॉकेट लांचर और लैडमाइन शामिल हैं । 6 अप्रैल, 2010 को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर उनके हथियार लूट लिए । नक्सलियों का उद्देश्य भारत में क्रांतिकारी आधार क्षेत्रों की स्थापना करना है और बंदूक के बल पर सत्ता हथियाना है ।

प्रशासन के इन तीनों क्षेत्रों-आतंरिक सुरक्षा, लोक व्यवस्था और कानून-व्यवस्था की निराशाजनक स्थिति आजादी के बाद की सरकारी मशीनरी के तौर-तरीकों का सच सामने लाती है । भारत को अभी भी दृढ़ता, तेजी और ढंग से काम करने की कला सीखनी है ।

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व्यवस्था का नरम और अनुग्रहपूर्ण रवैया शासकीय पुस्तकों में वर्णित टूटी खिड़की की ग्रंथि को प्रतिबिंबित करता है । एक टूटी खिड़की अन्य खिड़कियों को तोड़ने का निमंत्रण देती है और फिर पूरे समाज में अव्यवस्था फैल जाती है ।

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