भारत और प्रवासी भारतीय पर निबन्ध |Essay on India and Emigrant Indian in Hindi!

भारतीय सभ्यता, संस्कृति और संवृद्धि को विदेशों में रह रहे भरतीयों ने निरन्तर प्रचार-प्रसार किया है तथा अन्य देशों के लिए भी आकर्षण का विषय बनाया है । अंग्रेजों के शासन के समय में ही हजारों भारतीय मजदूर अथवा अन्य उत्पादन कार्यो के लिए विदेशों में भेजे जाते थे ।

उक्त भारतीय वहीं स्थायी रूप से रहने लगे । उनकी कई पीढ़ियाँ वहीं गुजर-बसर कर रही हैं तथा साथ ही अपनी अस्मिता को बनाए हुए हैं । ये भारतीय उन देशों की अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग बन चुके हैं । ये भारतीय वहाँ की राजनीति तथा सरकार में भी प्रभावी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं ।

इन भारतीय मूल के लोगों को अपने पूर्वजों की भूमि मिट्टी, गाँव, देश आदि से निरंतर लगाव बना हुआ है । उपर्युक्त भारतीयों के अतिरिक्त विदेशों में रहने वाले बहुत सारे ऐसे भारतीय हैं जो उच्च शिक्षा के लिए वहाँ गए तथा वहीं बस गए. वहीं के नागरिक बन गए । नौकरी अथवा व्यवसाय के लिए गए कई भारतीय उक्त क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए ।

इन प्रवासी भारतीयों में अधिकांश भारत वापस लौटने के इच्छुक हैं तथा वे यहाँ पुन: बसना चाहते हैं । कई पीढ़ियों से विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिक भारत के निरंतर सम्पर्क बनाए रखना चाहते हैं । वे अपनी आगे की पीढ़ी को भी भारत की अस्मिता से परिचित करवाना चाहते हैं ।

उनकी इच्छा है कि भारत में भी वे अपने देश की तरह रह सकें तथा जहाँ रह रहे हैं, वहाँ की भी उनकी नागरिकता बरकरार रहे । लगभग सौ से भी अधिक देशों में रह रहे लराभग 2 करोड़ लोगों को अपने पूर्वजों की धरती अपनी ओर आकर्षित करती रही है । वे अपने देश, गाँव के लिए कुछ ऐसा करना चाहते है कि वह यादगार बन जाए ।

वर्तमान भारतीय सरकार ने उनकी इसी भावना को खूबसूरती से भारत की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए एक योजना बनायी है । प्रवासी भारतीयों के भारत में हितों को सामने लाने एवं उन्हें यहाँ निवेश करने के लिए लुभाने के लिए सरकार द्वारा एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई जिसका अध्यक्ष डा.एल.एम. सिंघवी को बनाया गया ।

सिंघवी समिति ने अपने प्रतिवेदन में इस बात की आवश्यकता पर बल दिया कि यदि भारत भारतीय मूल के लोगों या प्रवासी भारतीयों की सुदृढ़ स्थिति का लाभ उठाना चाहता है, तो उसे इन लोगों के नेटवर्क को मजबूत करना होगा तथा भारत को भी इनको भारत में निवेश के लिए प्रलोभन देने के लिए चीन का सा माहौल तैयार करना होगा ।

सिंघवी समिति ने विदेशों में रह रहे प्रवासी एवं भारतीय मूल के लोगों को एक साथ एक मंच पर एकत्रित करने और भारत सरकार से बातचीत के लिए एक सम्मेलन आयोजित करने की अनुशंसा के साथ-साथ 9 जनवरी को प्रत्येक वर्ष प्रवासी भारतीय दिवस मनाने के लिए भी सिफारिश की ।

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9 जनवरी, 1915 को ही गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत आए थे । सिंघवी समिति की अनुशंसाओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 9 से 11 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस तथा सम्मेलन का आयोजन किया । यह आयोजन अपने तरह का पहला था ।

इसकी विशेष उपलब्धि यह रही कि भारत सरकार ने प्रवासी भरतीयों को भारत में धन निवेश करने के लिए कुछ सुविधाएं एवं सहयोग प्रदान करने की घोषणा की । उसी अवसर पर प्रवासी भारतीयों ने भारत की राजनीतिक व्यवस्था तथा नौकरशाही के घटिया स्तर और भ्रष्टाचार को खुले मंच से उजागर कर सरकार की साख पर सन्देह व्यक्त किया ।

दोहरी नागरिकता:

इस सम्मेलन में भारत सरकार ने अनेक विषयों पर बातचीत की तथा घोषणा की इनमें उनके बच्चों की शिक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति, सुरक्षा, स्वास्थ्य आदि के मामले के साथ-साथ सर्वाधिक महत्युपर्ण घोषणा उन्हें दोहरी नागरिकता प्रदान करना था ।

दोहरी नागरिकता का अभिप्राय जिस देश में वह रह रहे हैं वहाँ की नागरिकता छोड़े बिना भारत की पुन: नागरिकता प्रदान करना । इस दोहरी नागरिकता के प्रश्न पर देश में बुद्धिजीवियों में कुछ प्रतिक्रियाएं भी हुई । कुछ ने इसे सराहा तो कुछ ने आलोचना की । इसका कारण यह रहा कि भारत सरकार ने इस दोहरी नागरिकता के विषय में कुछ बातों को स्पष्ट नहीं किया जैसे-क्या सभी विदेश में बसे भारतीय इस नागरिकता के पात्र होंगे या केवल कुछ विशिष्ट लोग ?

भारत सरकार के पूर्व विदेश सचिव जे.एन. दीक्षित का मानना है कि सरकार को इस दोहरी नागरिकता के प्रश्न को टालना चाहिए था । उनके अनुसार दो करोड़ प्रवासी भारतीयों में से पश्चिम यूरोप, अमरीका, कनाडा तथा अन्य विकसित देशों; जैसे-जापान, आस्ट्रेलिया में रह रहे शायद 45 से 50 लाख लोगों को ही इसका लाभ मिल पाएगा ।

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आखिरी बात यह कि दोहरी नागरिकता भारतीय मूल के लोगों को बिना किसी उत्तरदायित्व की भावना के विशेष अधिकार प्रदान कर देगी । यदि हम थोड़े से आर्थिक और सामाजिक लाभों को छोड दें, तो यह लोगों के बीच समस्याएं पैदा कर सकता है ।

जे.एन. दीक्षित यह भी मानते हैं कि इससे हमारी विदेश नीति प्रभावित होगी और साथ ही आधुनिक वातावरण मे सुरक्षा के लिए खतरा भी पैदा होगा । इससे सामाजिक और आर्थिक तनाव फैलने का खतरा भी है । इसके विपरीत दोहरी नागरिकता के पक्ष में अनेक तर्क दिए गए हैं । इसके पीछे अवधारणा यह है कि विदेशों में बसने वाले भारतीय भारत से अपने आपको कानूनी रूप से जोड़े रख सकेंगे तथा वे भारत को अपना देश मानकर यहाँ रह सकेंगे ।

सम्पत्ति का क्रय-विक्रय कर सकेंगे, अपना धन यहाँ ला सकेगे तथा यही से ले जा सकेंगे, अपने बच्चों को यहाँ समुचित शिक्षा प्रदान कर सकेंगे और धीरे-धीरे भारत के समाज में स्वयं को प्रतिष्ठित कर सकेंगे उनके द्वारा किए गए धन निवेश से भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ भारत का विकास होगा ।

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भारतीय जनता पार्टी के विदेश मामलों के प्रमुख का मानना है कि “दोहरी नगारिकता प्रदान किए जाने से इन प्रवासी भारतियों की भारत के हित में भागीदारी बढ़ेगी । भारतीय मूल के लोग भी भारत में निवेश करके या यहाँ के बैंकों में बचत करके भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं ।”

विख्यात लेखक खुशवंत सिंह का मत है कि यह सच है कि दोहरी नागरिकता से को दोहरा लाभ मिलेगा, एक तो भारत से और दूसरा वहाँ से जहाँ वे बस गए हैं, लेकिन खुशवंत सिंह यह भी कहते हैं कि उन लोगों को भारतीय नागरिकता देकर अपनी सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी ।

अगर दुनिया में कहीं भी उनके खिलाफ नस्ली है, तो सरकार को उनका साथ देना पड़ेगा । यह भेदभाव चाहे अमरीका में या कनाडा, आस्ट्रेलिया या न्यूजीलैण्ड में जब भी भारतीय मूल का कोई भी पेरशान किया जाता है, तो अपनी सरकार को आवाज उठानी होगी । हमें दिलाना होगा कि वे अपने थे और अब भी अपने हैं ।

विदेशों में रह रहे भारतीयों में कुछ तो बहुत सम्पन्न हो गए हैं तथा कुस्ट्र आज भी मजदूरों के स्तर पर ही कार्य कर रहे हैं । भारत सरकार की रुचि उन प्रवासी भर्तियों में है, जो सम्पन्न हैं और व्यवसाय में रचय को प्रतिष्ठित कर चुके हैं ।

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फिक्की जो प्रवाशी सम्मेलन का सहसंयोजक था वह यह आस लगाए बैठा है कि प्रवासी भारतीय अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा अपने मूल देश में निवेश करेंगे । वर्तमान में प्रवासी भारतीयों आय एक अनुमान के अनुसार लगभग 160 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक है ।

उनकी इस पूँजी को भारत में निवेश कराने के लिए पूर्व में भी पी.वी.नरसिंह राव, लालू प्रसाद यादव, ओम प्रकाश चौटाला, गुजरात के केशुभाई पटेल प्रयासरत् रहे हैं । इस वछ सफलताएं मिली भी थीं, लेकिन वांछित सफलता प्राप्त न हो सकी । अटल बिहारी वाजपेयी ने इन प्रवासी भारतीयों को लुभाने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किए ।

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सरकार ने धनाढ्‌य प्रवासियों को लुभाने का भरसक प्रयास किया । लेकिन की ओर से भारत की राजनीतिक व्यवस्था और भ्रष्ट नौकरशाही की की गई । अनेक प्रवासी भारतीयों ने इसमें अपने कटु अनुभवों को सुनाया ।

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नौकरशाही के भ्रष्ट आचरण से पेरंशान होकर किस प्रकार वे पुन: यहाँ से भाग खड़े हुए इससे अनेक प्रसंग सम्मेलन में चर्चा का विषय बने रहे । ये वह भारतीय हैं जिनमें की क्षमता एवं योग्यता तो थी, लेकिन समुचित वातावरण न मिलने के कारण वे देश छोड़कर विदेश चले गए ।

वहाँ उनकी क्षमता एवं काम की पहचान हुई जिससे उनकी स्वयं की प्रगति भी हुई और उस देश की भी वे उन कटु अनुभवों को अभी भूले यहाँ की राजनीतिक और नौकरशाही की उपेक्षापूर्ण नीतियों की देन थे । नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक वी.एस. नयपाल ने खुलकर कहा कि वह देश महान् देश हो ही नहीं सकता जहाँ भ्रष्टाचार हो, अत: भारत कैसे महान हो सकता है ?

प्रवासी भारतीयों ने भारत सरकार की आँखें खेलने का प्रयास किया हे । उनका कहना है कि पहले अपने अन्दर की नीयत साफ करो तब प्रवासियों से आशा करो । भारत का उद्देश्य मात्र धनाढ्‌य प्रवासियों को लुभाने तक सीमित है, लेकिन अनेक देशों में भारतीय मूल के लोगों को अत्यधिक कष्ट, गरीबी में जीवनयापन करना पड़ रहा है ।

अनेक देशों में विशेषकर छोटे देशों में भारतीयों को वहाँ के मूल निवासियों का विरोध सहन करना पड़ रहा हे । इस विंरोध के कारण उन्हें जानमाल का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है । क्या भारत सरकार का यह परम कर्तव्य नहीं है कि वह उन देशों में जहाँ भारत मूल का एक भी व्यक्ति रह रहा है, तो उसे कूटनीतिक स्तर पर संरक्षण प्रदान करे, ताकि हह उन देशों में सुरक्षित रह सके ? भारत को अपनी संरक्षणात्मक कूटनीति का इस दिशा में प्रवासी उपयोग करना चाहिए ।

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