वर्षा की एक भयानक रात पर निबन्ध | Essay on An Awful Rainy Night in Hindi!

भारत ऋतुओं का देश है । यहाँ पर हर ऋतु समयानुसार आती है और लोगों को अपना प्रभाव दिखाकर चली जाती है । गर्मी की प्यास बुझाने के लिए पावस का आगमन होता है । इसे पाकर प्रकृति रूपी नटिनी खिल उठती है ।

नदी-नाले फूले नहीं समाते हैं । किसान की बांछे खिल जाती हैं । कभी-कभी यह सुखदायिनी पावस ऋतु संहारक भी बन जाती है । गत वर्ष मैंने इसके विनाशकारी रूप को बहुत नजदीक से देखा था ।

8 अगस्त, 1989 की भयानक रात्रि को मैं चाहकर भी नहीं भूल सकता हूँ । दो दिन पूर्व ही मैं शहर से मामाजी के गाँव पचपेड़ा गया था । वर्षा की ऐसी भयंकरता न तो मेरे जीवन में कभी आई थी और शायद भविष्य में कभी आयेगी ये पता नहीं । उस दिन दोपहर से ही जोर का पानी पड़ रहा था । वर्षा के कारण सांय पाँच बजे ही गाँव में अन्धेरा छा गया था । बादल घुमड़-घुमड़ कर आतक फैला रहे थे ।

बिजली रह-रह कर दमक रही थी । कच्चे रास्ते पानी से भर गए थे । दामिनी की कड़क कच्चे घरों में बैठे लोगों के हृदयों को दहला रही थी । गलियों ने नदी का रूप धारण कर लिया था । ऐसी भयंकर वर्षा में बाहर निकलना किसी के बस की बात नहीं थी । छप्पर चू रहे थे । घरों की आवश्यक चीजें भीग गई थीं ।

कच्चे घरों की दीवारों के बैठने की आवाज कानों में पड़ रही थी । मामाजी जमींदार थे । सारे गाँव में उन्हीं की हवेली पक्की थी । हमारे पड़ोस में ही पंडित जी का कच्चा घर था । उसकी दशा देखी नहीं जा रही थी ।

अर्द्धरात्रि बीतने को आ गई थी, मगर वर्षा थमने का नाम नहीं ले रही थी । बेचारे गाँव वालों का क्या हाल होगा, इसी सोच में निंद आँखों से दूर भाग गई थी । अभी मेरे कानों में किसी के मकान गिरने का आवाज पड़ी । चीखने की आवाज पास से आ रही थी । मैंने मामाजी को जगाया ।

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बरसाती पहनकर और टार्च हाथ में लेकर हम बाहर निकले । देखा कि पंडित जी के मकान की छत बैठ गई थी । कमरे में एक लड़का और बछड़ा दब गए थे । आसपास के लोग भी सहायता के लिए आ गए थे ।

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बड़ी कठिनाई से लड़के और बछड़े को निकाला मगर दोनों ही दम तोड़ चुके थे । यह दृश्य देखकर सबकी आँखे भर आई थीं ।

पंडित-पंडिताइन अपने इकलौते बेटे के लिए विलाप कर रहे थे पर विधाता के आगे किसका बस चलता है ? थोड़ी देर बाद फिर दामिनी दमकी और साथ ही कुछ और घरों की दीवारें बैठ गई । इस मूसलाधार भयंकर रात में धन-जन की बहुत क्षति हुई थी ।

डर के मारे लोग घरों के बाहर थे । उनके ऊपर-नीचे पानी ही पानी था । गाँव के लिए यह प्रलय की रात थी । इससे पहले ऐसा सकट मैंने कभी नहीं देखा था । विहान बेला में जाकर कहीं पानी थमा ।वर्षा की इस भयकर रात में सारा गाँव बोल गया था । वहाँ का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था ।

अधिकांश गांव वाले बेघर हो गए थे । कितने ही पशु अपने प्राणों से हाथ धो बैठे थे । चार बच्चे भी मौत के विकराल पंजों में पहुँच गए थे । फसल नष्ट हो गई थी । अगले दिन मैं शहर लौट आया । यहाँ आकर भी मैं उस विनाशकारी रात्रि को भूल नहीं पाया हूँ ।

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