संयुक्त राष्ट्र और शांति की संभावनाएँ पर निबन्ध | Essay on The U.N.O. & the Possibility of World Peace in Hindi!

पच्चीस वर्षों में दो विश्वयुद्धों के कड़वे अनुभवों के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की आवश्यकता को महसूस किया गया । अक्तूबर 1944 में डूबरटन ओक कांफ्रेस में पहली बार इसकी चर्चा की गई ।

26 जून, 1945 को सेन फ्रांसिस्कों में 51 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में इसको अंतिम रूप प्रदान किया । संयुक्त राष्ट्र संघ नाम का सुझाव राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने दिया । 24 अक्तूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ वास्तव में स्थापित हुआ ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद आज लगभग पांच दशक बीत गए हैं । इस दौरान विश्व में बड़ा भारी परिवर्तन आ गया है । परमाणु बम आदि जैसे विध्वंसकारी शस्त्रों का आविष्कार होने के कारण मानव जाति विनाश के कगार पर खड़ी हो गई है ।

प्रारंभ में संयुक्त राष्ट्र संघ में केवल 51 देश शामिल थे जो अब बढ़कर 188 हो गए हैं । पिछले पचास वर्षो में विश्व की जनसंख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है और विश्व अर्थव्यवस्था का क्षेत्र विस्तृत हो गया है । विज्ञान और तकनीकी में उन्नति के कारण मानव जीवन में भी सुधार आया है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि पिछले पांच दशकों में इसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध जैसी घटना पुन: घटित नही हुई है । द्वितीय विश्वयुद्ध ने विश्व के कई देशों को पूरी तरह नष्ट कर दिया था, जिसमें लगभग 3 करोड़ लोग मौत का शिकार हुए थे ।

इसने पूरी तरह विश्व में मैत्री-बंधुत्व का वातावरण तैयार किया और उनके मतभेदों को दूर कर तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति के उभरने में रोक लगाई है । भारत-चीन युद्ध, अरब-इस्राइल युद्ध, ईरान-इराक युद्ध और 1991 में ईराक-कुवैत युद्ध के विवाद में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

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विश्व के सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने और संबंधित समस्याओं को सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र की ‘यूनेस्को’ और ‘आई. एल. ओ.’ जैसी संस्थाओं का विशेष योगदान है । संयुक्त राष्ट्र संघ की ‘शांति सेनाएं’ और ‘संयुक्त राष्ट्र पुनर्वास संगठन’ युद्ध ओर क्षेत्रीय विवादों में उलझे देशों को राहत दिलाने के कार्यो में जुटे हुए हैं ।

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय विकास संस्थाएँ अविकसित राष्ट्रों को आत्मनिर्भर बनने के लिए सरल किश्तों पर ऋण उपलब्ध कराती है । भारत को इन ऋणों का लाभ प्राप्त हो रहा है । कई देशों की अर्थव्यवस्था इन्हीं ऋणों की सहायता से सुदृढ़ हो गई है ।

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इसकी कमियों के संबंध में चर्चा करते हुए यह कहा जाता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीका और रूस के मध्य का अंतर मिटाने में असफल रहा है । ऐसा माना जाता है कि इस पर अमरीका और उसके उपग्रहों का अधिक प्रभाव है । दूसरी ओर रूस इसकी सुरक्षा परिषद् द्वारा सर्वसम्मति से लिए निर्णयों पर अपने वीटों के अधिकार का प्रयोग कर लेता है ।

निशस्त्रीकरण के सभी उपाय निष्फल हो गए हैं । ‘नाटो’ और वार्सा संधि को स्वीकार कर कई महाशक्तियाँ इस संगठन से निकल गर्ड है । ईरान-इराक युद्ध, नामीबिया, अरब-इजराइल विवाद आदि जैसी मह्त्वपूर्ण समस्याओं पर अभी भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है ।

इस परमाण्विक युग में दो देशों के बीच के विवाद को युद्ध के माध्यम से सुलझाना संभव नहीं रह गया है, क्योंकि युद्ध से आक्रमणकारी और जिस पर आक्रमण हुआ है, सभी का विनाश हो जाता है । आज इतनी संख्या में परमाणु अस्त्रों का निर्माण हो चुका है, जो पृथ्वी को एक बार नहीं हजारों बार नष्ट कर सकते है । इस प्रकार आज के युग में युद्ध छेड़ना आत्महत्या के समान है ।

इसलिए मानव जाति को युद्ध के विरूद्ध लड़ाई लड़नी चाहिए, अन्यथा मानव जाति का विनाश हो जाएगा । कुछ वरिष्ठ विचारकों का मत है कि यदि विश्व में युद्ध हुआ तो सम्पूर्ण मानवजाति नष्ट हो जाएगी । इससे बचने का एकमात्र उपाय विश्व एकता की विचारधारा को प्राणिमात्र तक पहुँचाना है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार की भांति मानने पर बल देता है । इस संगठन के प्रयासों की सहायता से हम धीरे-धीरे इस लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं । विज्ञान और तकनीक के चमत्कारों के कारण आज विश्व के सभी देश एक-दूसरे के करीब आ गए है । आर्थिक दृष्टि से विश्व के अधिकांशत: सभी देश स्वतंत्र हैं । लेकिन एक देश की आर्थिक स्थिति का प्रभाव दूसरे देश पर अवश्य पड़ता है ।

द्ध में होने वाले विनाश को देखकर लोगों में अपने भविष्य की सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो रही है, जोकि युद्ध प्रतिबंध और विश्व एकता की स्वीकृति के द्वारा ही संभव है । विश्व के विभिन्न देशों में अंतरराष्ट्रीय नियमों, राजनयिक संबंधों तथा विवादों को सुलझाने वाली संस्थाओं के निर्माण द्वारा अंतरराष्ट्रीय की भावना को बढ़ावा मिल रहा है ।

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विश्व में एकता और सामंजस्य स्थापित करने का सबसे अच्छा तरीका संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व सरकार के रूप में मान्यता देना है । विश्व सरकार के कानूनों का निर्माण अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय पर आधारित होगा । वर्तमान आम सभा विश्व-संसद मे परिवर्तित हो जाएगा, जिसके सदस्यों की संख्या देश की जनसंख्या के हिसाब से तय होगी । सुरक्षा परिषद् को विश्व सरकार के उच्च सैन्य संगठन में परिवर्तित कर दिया जाएगा जिसे परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में निर्णय लेने का अधिकार होगा ।

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पिछले पाँच दशकों से संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व-मंच पर सराहनीय भूमिका रही है । इसके प्रभाव को और अधिक बढ़ाने के लिए इसकी कमियों की ओर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है । विश्व की पांच प्रमुख शक्तियों को वीटो का अधिकार है । रूस तथा पश्चिमी शक्तियाँ वीटो शक्ति का मनमाना प्रयोग करती हैं । इन पर नियंत्रण लगाना आवश्यक है । संयुक्त राष्ट्र संघ के संधि पत्र में परिवर्तन अथवा सुधार के बिना संयुक्त राष्ट्र संघ सफलता की ओर बढ़ने में अक्षम है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ के संधि पत्र की छठी धारा के अनुसार किसी भी सदस्य राष्ट्र द्वारा संधिपत्र में वर्णित नियमों के उल्लंघन की स्थिति में वह राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से निष्कासित हो जाएगा । इन नियमों का प्रयोग मानव अधिकारों और स्वतंत्रता के जन्म सिद्ध अधिकार की रक्षा के लिए करना चाहिए, इससे दक्षिणी अफ्रीका, नामीबिया आदि के विवाद सुलझ सकते है ।

इसी प्रकार इस संधिपत्र की चतुर्थ धारा में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए ताकि इसमें शामिल होने की इच्छा रखने वाले राष्ट्र बिना किसी औपचारिकता के इसमें शामिल हो सके । दूसरा सुझाव अंतरराष्ट्रीय न्यायलय को विशेष अधिकार प्रदान करना है ।

इन परिवर्तनों और सुधारों को लागू करना सुगम नहीं है । फिर भी युद्ध का भय बढ़ने पर लोग शांति के महत्व को समझ सकेंगे । धीरे-धीरे छोटे देश शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के मूल्य को समझेंगे और अपनी राष्ट्रीय द्वेष भावना, डर और महत्वाकांक्षा को त्याग देंगे । इस प्रकार मानवजाति के एक अध्याय का शुभारंभ होगा और संयुक्त राष्ट्र के स्वप्न वास्तविकता में परिवर्तित हो जाएँगें ।

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