केआर नारायणन पर निबंध | Essay on KR Narayanan in Hindi

1. प्रस्तावना:

राष्ट्रपति के०आर० नारायणन भारतीय गणराज्य के एक ऐसे राष्ट्रपति थे, जिनकी पृष्ठभूमि किसी प्रकार की राजनैतिक प्रभावशीलता से बिलकुल अछूती रही है ।

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सरकारी नौकरी में रहते हुए इन्होंने अपने व्यक्तिगत गुणों के कारण राष्ट्रपति का गौरवशाली पद प्राप्त किया । अभी तक जितने भी राष्ट्रपति रहे, वे उच्च पारिवारिक पृष्ठभूमि व राजनैतिक वातावरण में रहकर इस पद पर पहुंचे हैं । श्री नारायणन दलित वर्ग से इस पद से भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में सुशोभित हुए हैं ।

2. जन्म परिचय:

श्री कोच्चिएरिल रामन नारायणन {के०आर० नारायणन} का जन्म त्रावणकोर के कोट्टायम जिले से दूर पूवांथुकुल ग्राम में अत्यन्त निर्धन तथा दलित, उपेक्षित परिवार में 27 अक्टूबर 1920 को हुआ था । इनके पिता केचेरिवीट्टिल रमन वैद्यन और माता पाप्पि अम्मा की 7 सन्तानों में नारायणन चौथे नम्बर पर थे ।

पिता आयुर्वेदिक चिकित्सा करके थोड़ी-बहुत कमाई कर लेते थे । आरम्भिक शिक्षा आर्थिक बदहाली के बीच पूर्ण की । कई बार फीस न जमा करने की स्थिति में इन्हें दण्डित भी होना पड़ा था । पांचवीं से आठवीं तक आवर लेडी ऑफ लौर्ड स्कूल से तथा उच्च शिक्षा सेंट मेरीज ब्यायज हाई स्कूल कोराविलंगद से प्राप्त की । इन्टरमीडियट में स्कॉलरशिप से प्राप्त आमदनी काम आयी । इन्होंने त्रावणकोर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त कर अंग्रेजी साहित्य में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की ।

दिल्ली में सरकारी नौकरी करने के साथ-साथ ये पत्रकारिता के कार्यों से जुड़ गये । ”द हिन्दू” द टाइम्स ऑफ इण्डिया, इकोनॉमिक वीकली फॉर कामर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज में कार्य किया । श्री जे०आर०डी० टाटा से छात्रवृत्ति प्राप्त कर लंदन चले गये । वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइन्स में दाखिला लिया । 1949 में बी०एस०सी० की डिग्री प्राप्त कर स्वदेश लौटे ।

इनके गुरु तथा प्रख्यात अर्थशास्त्री हेराल्ड लॉस्की के कहने पर नेहरू ने इन्हें भारतीय विदेश सेवा में शामिल कर लिया । जहां इन्होंने बर्मा {म्यानमार}, जापान, ब्रिटेन, वियतमान, आस्ट्रेलिया आदि देशों में स्थित भारतीय मिशन एवं मन्त्रालय में कार्य किया ।

रंगून में इनकी मुलाकात बर्मी युवती कुमारी टिन्न टिन्न से हुई । एक-दूसरे के प्रति आकर्षण ने इन्हें 8 जून 1951 को विवाह सूत्र में बांध दिया । टिन्न टिन्न ने अपना नाम बदलकर उषा नारायणन रख लिया, जिससे इनकी दो सन्तानें-चित्रा और अमृता हैं ।

उषा एक निष्ठावान पत्नी के साथ-साथ बर्मी कथा साहित्य की अच्छी लेखिका हैं । कई कहानियों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया गया है । 1976 में भारत और चीन के मध्य राजनैतिक सम्बन्धों की पुनःस्थापना के बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इन्हें 1976 में चीन में भारत का राजदूत बनाया । ये थाईलैण्ड में 1967 से 69 तक तथा टर्की में 1973 से 73 तक भारत के राजदूत भी रहे थे ।

3. इनकी कार्यशैली:

श्री नारायणन की गिनती इनकी कार्यशैली के कारण ऐसे राष्ट्रपतियों में की जाती रही है, जो ईमानदार, अनुशासनप्रिय, कर्तव्यनिष्ठ, साहसी, निष्पक्ष, विनम्र तथा दृढविश्वासी रहे हैं । 1978 में विदेश सेवा से निवृत्त होने के पश्चात् मोरारजी देसाई ने इन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया ।

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1980 से 84 तक संयुक्त राज अमेरिका के राजदूत बनाकर इन्दिरा गांधी ने इन्हें वाशिंगटन में पदस्थापित किया । उत्तरी केरल से तीन बार आठवीं, नवमी, दसवीं संसदीय लोकसभा का चुनाव जीता । 1985 में विदेश विभाग के मन्त्री के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अणुशक्ति, इलेक्ट्रॉनिक्स स्पेस तथा सामुद्रिक विकास के मन्त्रालयों को संभाला ।

21 अगस्त 1992 को भारत के उपराष्ट्रपति नियुक्त हुए, साथ ही राज्यसभा के अध्यक्ष का पद भी संभाला । इस रूप में ये सभी सांसदों की बातों, बहसों को ध्यान से सुनते । इन्होंने हमेशा समर्थ, योग्य, सदाचारी लोगों के पक्ष में निर्णय देने का कार्य किया ।

राजनीति में रहते हुए भी इन्होंने पत्रकारिता व साहित्य में अपनी रुचि बनाये रखी । साहित्य, राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर इन्होंने कई निबन्ध लिखे । इनकी 3 पुस्तकें प्रमुख हैं- 1. इमेजेज एण्ड इनसाइड्‌स, 2. इण्डिया एण्ड अमेरिका : एसेज इन अण्डरस्टेण्डिंग और 3. नॉन एलायमेंट इन कन्टेपोररी इंटरनेशनल रिलेशन्स । इन्होंने उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पदों को सुशोभित किया । 25 जुलाई 1997 को इन्हें राष्ट्रपति के पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई गयी । ये प्रथम मलयाली दलित व्यक्ति थे ।

राष्ट्रपति बनते ही इन्हें कई संवैधानिक संकटों का सामना करना पड़ा, जैसे-उत्तरप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने के प्रस्ताव को इन्होंने पुनर्विचार के लिए भेजकर अपनी मौलिक कार्यशैली का परिचय दिया । इन्द्रकुमार गुजराल की अल्पमत में आ जाने वाली सरकार को इन्होंने काफी विचार-विमर्श के बाद 11वीं लोकसभा में भंग कर दिया । 29 अप्रैल 1998 को इन्हें न्यूयार्क में वर्ल्ड स्टेट्‌समैन पुरस्कार दिया गया ।

4. उपसंहार:

श्री केन्द्र-भरण नारायणन श्रेष्ठ राजनेता, कुशल राजनयिक, पत्रकार, साहित्यकार, भाबुक कवि-हृदय रखने वाले व्यक्ति रहे हैं । विनम्रता, निष्पक्षता एवं ईमानदारी इनके व्यक्तित्व के विशेष गुण हैं । 25 जुलाई 2002 को इन्होंने अपना कार्यकाल पूर्ण किया । डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम इनके बाद भारत के राष्ट्रपति बने ।

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