पेटेंट का दुष्प्रभाव पर निबंध | Essay on Side Effects of Patent in Hindi!

डब्ल्यूटीओ में पेटेंट व्यवस्था को शामिल करने का आधार था कि खोज के उपयोग पर एकाधिकार मिलने से नई खोज को प्रोत्साहन मिलेगा । दूसरा मत है कि पेटेंट से खोज सीमित होती है ।

पेटेंट की वजह से खोज पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का एक उदाहरण साँफ्टवेयर है । डब्ल्यूटीओ के ट्रिप्स समझौते मे ऐसे प्रोग्राम पर पेटेंट की व्यवस्था है, जैसे विन्डोज प्रोग्राम पर माइक्रोसॉपट का पेटेंट है । प्रश्न यह है कि साँफ्टवेयर प्रोग्राम पर पेटेंट देने से आगे खोज को प्रोत्साहन मिलेगा या अवरोध होगा ।

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माइक्रोसाफ्ट कंपनी ने पहले विन्डोज 93 प्रोग्राम बनाया था । इस पर माइक्रोसॉफ्ट ने पेटेंट लिया । कंपनी ने विन्डोज को महगा बेचकर लाभ कमाया । लाभ को पुन: अनुसंधान में निवेश किया और क्रमश: विन्डोज 95, विन्डोज 98, विन्डोज 2000, विन्डोज एक्सपी और विन्डोज विस्टा की खोज की । जाहिर है कि पेटेंट के कारण साँफ्टवेयर में खोज को गति मिली है ।

परंतु दूसरे उदाहरण भी उपलब्ध हैं । इस समय दो तरह के साँफ्टवेयर उपलब्ध है, जैसे-विन्डोज । दूसरा ओपनसोर्स साँफ्टवेयर है । अनेक प्रोग्रामर साँफ्टवेयर लिखकर मुफ्त में दूसरों को उपलब्ध करा देते हैं । जैसे गृहिणी विशेष डिश बनाने की रेसीपी किटी पार्टी में अपनी सहेलियों को सहज ही बता देती है । ओपनसोर्स साँफ्तवेयर पर पेटेंट नहीं लिया जाता है । कोई भी व्यक्ति उसे डाउनलोड करके उपयोग कर सकता है ।

ऐसे साँफ्तवेयर पर अनुसंधान करने की विभिन्न प्रेरणा हो सकती है । कुछ लोग उपलब्ध प्रोग्राम में कमी महसूस करते हैं और उसे सुधारने में रचय लग जाते हैं । दूसरे वैज्ञानिक आत्म अभिव्यक्ति के लिए साँफ्तवेयर लिखते हैं । अन्य बड़ी कंपनियों के विरोध में यह कार्य करते हैं । बहरहाल प्रेरणा जो हो अनेक ओपनसोर्स प्रोग्राम उपलव्य हैं । उदाहरणत: जो कार्य विन्डोज द्वारा किया जाता है उसी को करने का ओपनसोर्स प्रोग्राम लाइनक्स उपलब्ध है ।

सच है कि लाइनक्स का उपयोग कम हो रहा है । जानकार लोगों का अनुमान है कि केवल 5 फीसदी कम्प्यूटर लाइनक्स का उपयोग कर रहे हैं, जबकि 95 प्रतिशत विन्डोज का । कारण यह बताया जाता है कि लाइनक्स का उपयोग करने में कुछ समस्याएं आती हैं जिनका हल आसानी से उपलब्ध नहीं है, जैसे किसी कुकिंग-क्लास में सीखी गयी रेसीपी को बनाने में समस्या आये तो टीचर से पूछकर उसे ठीक किया जा सकता, परंतु किताब में पढ़कर बनाई जा रही रेसीपी को समस्या से दूर करना कठिन होता है ।

विन्डोज के इस उदाहरण से साँपटवेयर पर पेटेंट देने का समर्थन होता है । चूंकि विन्डोज लोकप्रिय है और लाइनक्स कम चलता है । परंतु दूसरे उदाहरण विपरीत दिशा में हैं । इंटरनेट सर्विस उपलब्ध कराने वाली अनेक कंपनियां लाइनक्स का उपयोग कर रही है । ईमेल के पते को सर्वर के नम्बर में परिवर्तित करने के लिए बाइन्ड प्रोग्राम का उपयोग हो रहा है । विश्व में लगभग 15 लाख वेब सर्वर हैं । इनमें लगभग आधे आपाचे प्रोग्राम का उपयोग करते हैं । ये सभी प्रोग्राम ओपनसोर्स यानी मुफ्त उपलब्ध हैं ।

इसी प्रकार स्प्रेडशीट के प्रथम प्रोग्राम को बनाने वाले बिकलिन कहते हैं कि जब उन्होंने यह प्रोग्राम बनाया था तब साँफ्तवेयर पर पेंटेंट उपलब्ध नहीं था । स्पेडशीट मुपत में उपलब्ध होने से उस पर अनेक लोगों ने अनुसंधान की और 1992 में 250 से अधिक स्प्रेडशीट प्रोग्राम उपलब्ध थे । तात्पर्य यह है कि पेटेंट के लागू न होने पर अनेक लोग किसी एक विषय पर अनुसंधान करते हैं और खोज अनेक दिशाओं में होती है । अत: पेटेंट के कारण खोज कम करने की संभावना बनती है ।

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पेटेंट का एक और दुअभाव पड़ता है । सामान्य रूप से उपलब्ध जानकारी पर पेटेंट लेकर अनुसंधान को सीमित कर दिया जाता है । कई वर्ष पहले एप्पल कंप्यूटर में सब पिक्सल एड्रेसिंग तकनीक का प्रयोग हुआ था, जिसमें एलसीडी स्क्रीन पर प्रदर्शित दृश्य को साफ पढ़ा जा सकता था । इस खुली तकनीक को किसी ने पेंटेंट करा लिया ।

कानून कहता है कि पेंटेंट किसी नई खोज पर ही दिया जायेगा । परंतु पेटेंट अधिकारियों को ज्ञान नहीं होता है कि क्या जानकारी पूर्व में उपलब्ध है? जिस प्रकार नीम एवं हल्दी के गुणों को पेंटेंट करा लिया गया था । उसी प्रकार सब पिक्सल एड्रेसिंग तकनीक का पेटेंट करा लिया गया । इसके कारण दूसरों के लिए इस तकनीक पर रिसर्च करने के दरवाजे बंद हो गये ।

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इस तकनीक पर अनुसंधान करने वाले को पहले दिये गये पेटेंट को खारिज कराना होगा । दिखाना होगा कि सब – पिक्सल एड्रेसिंग तकनीक पूर्व में उपलव्य थी । इससे रिसर्चर का ध्यान कानूनी दांवपेच में लग जाता है । वह अपने मूल कार्य से भटक जाता है ।

इस प्रकार के उदाहरण उपलब्ध हैं कि फर्जी पेटेंट धारक शोध करने वालों को कानूनी धमकी देते हैं । इससे अनुसंधान बाधित होती है । मेरा मत है कि पेटेंट व्यवस्था, विशेष कर साँफ्टवेयर के क्षेत्र में मूलरूप से नाकाम है । इसे समाप्त कराना चाहिए । जब तक इसे समाप्त करने का महायुद्ध जीता नहीं जाता है तब तक दूसरे अंतरिम उपाय करने चाहिए ।

एक रणनीति यह हो सकती है कि ओपन सोर्स साँफ्टवेयर पर खोज करने वाले पेटेंट लें और उसे बिना रॉयल्टी वसूल किये सभी के उपयोग के लिए मुफ्त उपलब्ध करा दें । ऐसा करने से दूसरे पेटेंट धारकों द्वारा कानूनी आक्रमण का खतरा कम हो जायेगा । दूसरा कदम यह उठाया जा सकता है कि वर्तमान में उपलब्ध ओपन सोर्स साँफ्टवेयर का एक डाटाबेस बना दिया जाये जैसे शब्दकोष बनाया जाता है ।

आईपी कॉम ने ऐसा डाटाबेस बनाने का कार्य शुरू किया है । यह डाटाबेस पेटेंट अधिकारियों को उपलब्ध कराया जाये तब अधिकारियों के लिए यह जानना आसान हो जायेगा कि प्रस्तुत खोज वास्तव में नई है अथवा नहीं । तब नीम अथवा सब पिक्सल एड्रेसिंग जैसी जानकारी पर फर्जी पेटेंट लेना कठिन हो जायेगा ।

भारत सरकार को चाहिए कि ओपन सोर्स साँफ्टवेयर को समर्थन दें । पेटेंट की दीवार के पीछे अमीर देशों द्वारा कमाई जा रही भारी रकम को चुनौती दें । इसके लिए सरकार को ओपन सोर्स साँफ्टवेयर को पेंटेंट कराने एवं उसका डाटाबेस बनाने का कार्य हाथ में लेना चाहिए ।

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