होली पर निबंध | A New Essay on Holi in Hindi!

होली खुशहाली और मस्ती का प्रतीक पर्व है । यह रंग और गुलाल का पर्व है । यह पर्व प्रकृति के साथ सामंजस्य और सहभागिता प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करता है । यह जीवन के दुखों को भुलाकर अंतरतम् में नया उत्साह भरने का पर्व है । यह समाज में सौहार्द और आपसी सहयोग बढ़ाने का संदेश देने वाला पर्व भी है ।

होली का पर्व असत्य पर सत्य की, अधर्म पर धर्म की तथा नास्तिकता पर आस्तिकता की विजय की घोषणा करता है । हिरण्यकशिपु नामक दैत्य नास्तिकता और अहंकार का प्रतीक था । उसका पुत्र प्रह्‌लाद आस्तिकता और विनम्रता का प्रतीक था । हिरण्यकशिपु ने पुत्र प्रह्‌लाद को ईश्वर की उपासना छोड़कर, अधर्म पर चलने की सलाह दी । पुत्र ने पिता की बात नहीं मानी तो उसे मौत की नींद सुलाने का विचार बनाया । हाथी से कुचलवाया, पहाड़ की चोटी से ढकेला पर ईश्वर-पुत्र प्रह्‌लाद का बाल भी बाँका न हुआ । अंत में बहन होलिका को प्रह्‌लाद को जलाकर मार डालने का आदेश दिया । परंतु होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया । इस घटना की याद में आज भी होली के अवसर पर होलिका दहन का कार्यक्रम संपन्न किया जाता है । फिर अगले दिन होली धूमधाम से मनाई जाती है ।

होली फाल्गुन मास की समाप्ति का उत्सव है । अर्थात् यह उत्सव फालुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । फाल्गुन का पूरा महीना ही मौज-मस्ती का होता है । यह ठंड की समाप्ति तथा गुनगुनी धूप खिलने का समय होता है । न अधिक सर्दी और न ही अधिक गर्मी । हर कोई स्वस्थ एवं प्रसन्न दिखाई देता है । बसंत पंचमी आरंभ होते ही गाँवों में होली के गीत बजने लगते हैं । खेतों में गेहूँ, जौ, चना आदि की फसल लहलहा उठती है । होलिका दहन के समय इनकी बालियों को पकाया जाता है । किसान गेहूँ के आटे से पकवान बनाते हैं ।

ज्यों-ज्यों होली निकट आती है, इसकी मस्ती छाने लगती है । बाजारों और मंडियों में चहल-पहल आरंभ हो जाती है । रंग, अबीर और पिचकारियों की दुकानें सजने लगती हैं । मंडियों में फलों का अंबार लग जाता है । लोग उत्साह से खरीदारी करने जाते हैं । वे फल सब्जियाँ मिठाइयाँ और नए वस्त्र खरीदते हैं । लकड़ी, उपले आदि इकट्‌ठा कर होलिका दहन के कार्यक्रम की तैयारी की जाती है ।

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रंगों के प्रयोग के बिना होली का कोई अर्थ नहीं । कोई टेसू, केसर के हर्बल और जैविक रंगों का प्रयोग करता है तो कोई कृत्रिम रंगों का । गुब्बारों में पानी भरकर बच्चे राहगीरों पर दे मारते हैं । वे बाल्टियों में रंग घोलकर उससे पिचकारी भरते हैं और हमउम्र बच्चों के साथ होली खेलते हैं । बड़े एक-दूसरे के चेहरे पर अबीर-गुलाल लगाते हैं और रंग मलते हैं । सब जगह होली का हुड़दंग देखने को मिलता है । रंग से लिपे-पुते चेहरों में अमीर-गरीब और ऊँच-नीच का भेदभाव मिट जाता है । लोग एक-दूसरे के गले मिलते हैं और होली की शुभकामनाएँ देते हैं । परंतु जब कभी किसी पर कीचड़ फेंका जाता है या बलात् रंग पोता जाता है तो रंग में भंग होने की स्थिति भी आ जाती है ।

होली के अवसर पर घर में नए-नए पकवान बनते हैं । नहा- धोकर लोग पकवान खाते हैं । पड़ोसी और रिश्तेदार एक-दूसरे से मिलने जाते हैं । खाने-खिलाने और रंग डालने का क्रम दिन भर चलता रहता है । लोग नाच-गाकर आनंदित होते हैं ।

पूरे संसार में ब्रज की होली का विशेष महत्त्व है । ब्रज की होली देखने देश-विवेक के लोग आते हैं । यहाँ लट्‌ठमार होली खेली जाती है । जिस तरह गोपियों अपना राय प्रकट करने के लिए कृष्ण को लाठियाँ लेकर मारने दौड़ी थीं, उसी प्रकार आज भी स्त्रियों पुरुषों पर लाठी मारती हैं । पूरी ब्रजभूमि में राधा-कृष्ण की होली जीवंत हो उठती है । होली के लोकगीतों से अद्‌भुत समाँ बँध जाता है ।

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होली के अवसर पर मदिरा, भाँग जैसे नशीले पदाथों का जमकर प्रयोग होता है । इससे कभी-कभी अशोभनीय दृश्य उपस्थित हो जाता है । साथ ही कुछ लोग होली में ऐसी कृत्रिम वस्तुओं और रंगों का प्रयोग करते हैं जिससे त्वचा तथा आँखों को हानि पहुँचती है । हमें इन कार्यो से सावधान रहना चाहिए ।

होली उमंग और उल्लास का पर्व है । यह खुशियाँ बाँटने का पर्व है । यह वैर भाव भुलाकर सबसे गले मिलने का पर्व है । यह पर्व हमें सदा आनंदित जीवन जीने का पावन संदेश देता है ।

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