झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध | Essay on Laxmibai the Queen of Jhansi!

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (१८२८ – १७ जून १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी थी । वह सन् १८५७ के भारतीय स्वतन्त्रता सन्धाम की नायिका थी । इनका जन्म काशी (वाराणसी) तथा मृत्यु ग्वालियर में हुई । इनके बचपन का नाम मनिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था । इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था और वो एक महाराष्ट्रियन ब्राह्मण थे । इनकी माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं ।

मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की म्रत्यु हो गयी । इनका पालन पिता ने ही किया । मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली । इनका विवाह सन १८४२ में झांसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झांसी की रानी बनी । विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया । सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी । सन १८५३ में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी । पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु २१ नवंबर १८५३ में हो गयी । दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया ।

ब्रितानी राज्य:

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लहौजी की राज्य हडपने की नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो कि उस समय बालक थे, को झांसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया, तथा झांसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया । तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया । यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया । ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना जब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया । इसके साथ ही रानी को झांसी के किले को छोड कर झांसी के रानीमहल मे जाना पडा । पर -रानी लक्ष्मीबाई ने हर कीमत पर झांसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था ।

झांसी का युद्ध:

झांसी १८५७ के विद्रोह का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिन्सा भड़क उठी । रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया । इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया । साधारण जनता ने भी इस विद्रोह में सहयोग दिया । १८५७ में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण कर दिया ।

रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया । विशाल अंग्रेजी सेना को मारती-मारती रानी उनकी पकड़ से दूर निकलती गयी । अंग्रेज सैनिक भी रानी का निरंतर पीछा करते रहे । अंत में, ग्वालियर में दोनों के बीच घमासान लड़ाई हुई रानी का घोड़ा भी थक चुका था । फलत: एक नाला पार करने के क्रम में घोड़ा रूक गया । इतने में पीछे से एक अंग्रेज सैनिक ने रानी के शरीर का बायां भाग काट दिया । इस अवस्था में रानी ने उस सैनिक के टुकड़े-दुकड़े कर डाले एवं स्वयं सवर्ग सिधार गयी । महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता, त्याग और बलिदान पर हम भारतीयों को गर्व है ।