खेलों का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Games in Hindi!

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खेलों का जीवन में बहुत महत्त्व है । खेल उतने ही आवश्यक है । जितनी पढ़ाई । पढ़ाई के लिए स्वस्थ मस्तिष्क चाहिए । स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही निवास करता है । शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खेल अनिवार्य हैं । खेल समय की बर्बादी नहीं है । खेल एक अच्छा व्यायाम है ।

खेलों से कसरत होती है । खाया-पीया हजम होता है । छोटी-मोटी बीमारियाँ दूर हो जाती हैं । खूब भूख लगती है और पाचन क्रिया में सुधार होता है । बढ़ने वाले लडुकों का शारीरिक विकास होता है । खेलों से चुस्ती-स्कूर्ति प्राप्त होती है । आलस्य दूर भागता है, चित्त प्रसन्न होता है । चित्त की इस अवस्था में पढ़ाई जैसा कोई भी कार्य भली भाँति किया जा सकता है ।

खेल एक अच्छा मनोरंजन है । खेल खेलने वाले को भी मनोरंजन मिलता है और खेल देखने वाले को भी । आज जब बड़े-बड़े स्टेडियम में हॉकी, क्रिकेट अथवा फुटबाल के मैच खेले जाते हैं, तो हजारों की संख्या में दर्शक उन्हें देखने पहुँचते हैं । यही नहीं, मैच देखने के लिए टिकटें खरीदी जाती हैं ।

जहाँ दर्शकों की इतनी बड़ी भीड़, मैच देखकर मनोरंजन प्राप्त करती है वहाँ इतने लोगों के सामने खेलते हुए खिलाड़ियों का भी उत्साहवर्धन होता है । वे अधिक शक्ति और कौशल से खेलते हैं । बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए पुरस्कार घोषित करके उनका उत्साहवर्धन करती हैं । ऐसा करके उन कम्पनियों को खूब प्रचार मिलता है और उनकी चीजों की बिक्री बढ़ती है ।

जीवन स्वयं में एक खेल है जिस प्रकार खेल में उतार-चढ़ाव आते हैं तथा हार-जीत होती है, ठीक उसी प्रकार जीवन में भी ऐसी परिस्थितियां आती हैं । खेल का खेलना हार-जीत से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । जीवन में परस्पर सहयोग और प्रेम का बहुत महत्त्व है । इनसे ही ससार रहने योग्य बनता है । खेलकूद से परस्पर सहयोग तथा प्रेम की भावना बढ़ती है । मैच तथा खेल टीम भावना से खेले जाते हैं ।

खेल का सबसे बड़ा उद्देश्य मतभेद तथा दूरियों को मिटाना है । यह खेल ही है जो सम्पूर्ण मानव जाति को एक सूत्र में पिरोने की क्षमता रखता है फिर चाहे वह क्रिकेट हो या हॉकी । इनसे परस्पर सहयोग की भावना जागृत होती है । सहयोग एकता का ही दूसरा नाम है ।

एकता से समाज अथवा राष्ट्र मजबूत तथा शक्तिशाली बनता है । अनुशासन का जीवन में बहुत महत्त्व है । खेलों से अनुशासन में रहने का प्रशिक्षण मिलता है । कोई भी खेल अनुशासन अथवा नियमों का पाबन्द रहकर ही खेला जाता है । अनुशासन का पाबन्द रहकर मनुष्य जीवन में उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है ।

मनुष्य को गतिशील होना चाहिए । उसे सदैव आगे ही बढ़ना चाहिए । खेलकूद से स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की भावना जाग्रत होती है । प्रतिस्पर्धा की भावना के साथ-साथ खेल की भावना को बनाये रखना बहुत जरूरी है । प्राय: टी.वी. पर देखा जाता है कि जीती हुई तथा हारी हुई टीम के सदस्य एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं ।

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जीत की खुशी के लिये ही खिलाड़ी परिश्रम करता है ताकि वह अपने खेल को सुधार सके और दूसरे खिलाड़ी तथा टीम को खेल के मैदान में हरा सके । इसी तरह वह जीवन में भी परिश्रम करता है, ताकि वह अपने प्रतिद्वन्द्वी से आगे बढ़ सके । वह किसी से पीछे रहना ही नहीं चाहता । अत: वह सदैव उन्नति ही करता जाता है ।

खेलकूद से मनुष्य में संघर्ष करने की आदत पड़ती है । जावन में उन्नति करने के लिए ही नहीं अपितु अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है । संघर्ष आदमी के अस्तित्व की गारन्टी है । जहाँ जीवन है वहाँ संघर्ष है और जहाँ संघर्ष नहीं है वहाँ मृत्यु है । जो संघर्ष नहीं कर सकता वह जीवन में सफल नहीं हो सकता ।

जिसे खेलकूद के माध्यम से संघर्ष करने का प्रशिक्षण मिला होता है वह कठिनाइयों से सरलता से जुड़ता है और उन्हें सुलझा लेता है । खेल को खेल की भावना से खेलने से खिलाड़ी में सहनशीलता की भावना उत्पन्न होती है । वह जीत को ही नहीं हार को भी स्वीकार करता है ।

इस तरह उसमें कर्म करने की भावना होती है । वह फल को अधिक महत्त्व नहीं देता । एक बार हार जाने पर वह खेलना छोड़ता नहीं । वह निरन्तर कर्म करता ही रहता है । अपने खेल को सुधारता है । परिश्रम करता है और अंतत: विजयश्री उसे प्राप्त होती है ।

यदि यह कहा जाए कि, खेलने से सफलता और जीवन जीने का प्रशिक्षण मिलता है तो यह गलत न होगा । खेलकूद प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है । खेलकूद को शिक्षा का एक अंग समझकर इसे अनिवार्य विषय के रूप में पाठ्‌यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए ।

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