Here is a compilation of Essays on ‘India’ for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘India’ especially written for Kids, School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on India in Hindi Language


Essay Contents:

  1. Essay on India in Hindi Language
  2. Essay on My India for Kids in Hindi Language
  3. Essay on India for School Students in Hindi Language
  4. Essay on My Country: India for Kids in Hindi Language
  5. Essay on The India of My Imagination for College Students in Hindi Language
  6. Essay on Indian Culture for College Students in Hindi Language

1. भारत: एक परिचय । Essay on India in Hindi Language

हिन्दू नाम                                                                                     भारत

इन्डिया –                                                                                   यूनानी देन

भौतिक स्वरूप:  –                                                        विस्तार 80 4’N-3706 N

                                                                                                 6807E-97025E

पूर्व से पश्चिम तक दूरी –                                                 2933 किमी॰

उत्तर से दक्षिण तक दूरी –                                               3214 किमी॰

समुद्री सीमा –                                                                         6100 किमी॰

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स्थली सीमा –                                                                        15200 किमी॰

भारत का सम्पूर्ण क्षेत्रफल –                                      3287263 वर्ग किमी॰

पहाड़ियाँ –                                                                           18.6% 2135 मी॰

पठार –                                                                              27.7% 305 से 915 तक

मैदान –                                                                                             43%

भारत का भौतिक स्वरूप:

अध्ययन की सुविधा हेतु भारत को 4 प्रमुख प्राकृतिक भागों में बांटा जाता है:

I. उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र या हिमालय रेंज

II. उत्तर का विशाल मैदान या सतलज-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान

III. दक्षिण का पठार

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IV. तटीय क्षेत्र/प्रदेश

(i) पर्वतीय क्षेत्र:

उत्तरीय पर्वतीय क्षेत्र जिसे हिमालयन रेंज कहा जाता है को मध्य एशिया यूरोप तक फैली पर्वतीय शृंखलाओं का एक क्रम माना जाता है । इनके बीच पामीर की गांठ पायी जाती है । अध्ययन की सुविधा के लिये हिमालयन रेंज 4 (चार) श्रेणियों में विभक्त किया जाता है:

1. महान हिमालय:

महान हिमालय  पर्वत की सबसे ऊँची श्रेणी है जो समूचे हिमालय पर्वत का प्रतिनिधित्व करती है । इसकी लम्बाई पूर्व से पश्चिम दिशा में 2400 किमी. बलूचिस्तान से लेकर अरान कायोमा (बर्मा) तक है । यह उत्तल लैंस की तरह (दक्षिण से) आर्क जैसा है । इस श्रेणी (महान हिमालय) को हिमादरी, मध्य हिमालय, मुख्य हिमालय एवं बर्फीला हिमालय कहा जाता है । इसकी औसत ऊँचाई 6000 मी. है तथा औसत चौड़ाई 25 किमी. है ।

इसी श्रेणी में संसार की सबसे ऊँची पर्वत चोटियाँ पायी जाती हैं जिनमें प्रमुख माउण्ट एवरेस्ट है । इसके अन्य नाम सागर माथा, गौरी शंकर, छोमो लाग्मा आदि कहा जाता है । अन्य पर्वत शिखर में गाडविन आस्टिन (k2) है । अन्य पर्वत चोटियाँ हैं: नन्दा देवी, गोसाइथान, कंचनजंघा, मकालू, अन्नपूर्णा एवं धोला गिरी । गंगा एवं यमुना नदी महान हिमालय से ही निकलती है ।

2. लघु हिमालय:

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महान हिमालय के दक्षिणी में तथा उसी के समानान्तर हिमालय की दूसरी पर्वत श्रेणी पायी जाती है जिसे लघु हिमालय कहा जाता है । इसे हिमांचल श्रेणी भी कहा जाता है । इसकी लम्बाई 2400 किमी. मानी जाती है । इसकी औसत ऊँचाई 3000-4500 मी॰ तथा चौड़ाई 80-100 किमी. है । इसकी पर्वत चोटियाँ निम्न हैं: धौलाधर, पीर पंजाल, महाभारत लेख, चूरिया रेंज, मंसूरी रेंज ।

पीर पंजाल सबसे लम्बी पर्वत श्रेणी है । इस पर्वतमाला में कुछ महत्त्वपूर्ण घास के मैदान पाये जाते हैं जिन्हें कश्मीर मर्ग (गुलमर्ग, सोनमर्ग) तथा उत्तरांचल में वुग्याल एवं पयार कहते हैं । मध्यवर्गीय भागों में हरी-भरी घाटियां एवं दून के नाम से जानी जाती हैं । इस श्रेणी में कुछ महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्यवर्धक स्थान जैसे शिमला, मंसूरी, नैनीताल, डलहोजी, अलमोड़ा, दार्जिलिंग और रानीखेत हैं ।

3. उप हिमालय / शिवालिक हिमालय / बाह्य:

इसे बाह्य या हिमालय भी कहा जाता है । इसे उप हिमालय भी कहते हैं । इसकी लम्बाई 2000 किमी. के लगभग मानी जाती है । शिवालिक हिमालय लघु हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर में पाया जाता

है । इसकी ऊँचाई 600 मी. से 1500 मी॰ तक पायी जाती है तथा चौड़ाई 40 से 50 किमी. तक पायी जाती है । हिमालय का यह भाग सबसे नवीन भाग माना जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

लघु हिमालय से शिवालिक को अलग करने वाली घाटी पश्चिम में इन तथा पूर्व में द्वार कहलाती है । शिवालिक हिमालय को पूर्व में चूरिया एवं भूरिया तथा मध्य में गोरखपुर हुडंवा कहते हैं । पश्चिम में इसे हिमाचल या कश्मीर कहते हैं । सुदूर पूर्व में (अरूणाचल प्रदेश) में इसे डाकला, मिरी, अवोर तथा मिसमी कहा जाता है ।

4. ट्रांस हिमालय / तिब्बत:

हिमालय का ये चौथा भाग महान हिमालय के उत्तर में तथा तिब्बत के दक्षिण में स्थित है । इसकी लम्बाई 960 किमी. मानी जाती है तथा चौड़ाई मध्य में 250 किमी., किनारे पर 40 किमी. होती है । यह हिमालय 4100 से 5700 मी. ऊँचा है । खगोल विधा या वैज्ञानिक सिडनी बूरीड दूसरी तरह से 4 भागों में बांटा है ।

1. पंजाब हिमालय: यह हिमालय सिंध से सतलज तक फैला हुआ है । इसकी लम्बाई 562 किमी. है । इसकी प्रमुख चोटी टाटा एवं ब्रह्मस्थल ।

2. कुमायूँ हिमालय: सतलज से काली नदी तक विस्तृत है । प्रमुख श्रेणी बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल, माना गंगोतरी, यमुनोत्री स्थित है । इसकी लम्बाई 320 किमी. है ।

3. नेपाल हिमालय: काली नदी से तिस्ता नदी तक है । 800 किमी. इसकी लम्बाई है । एवरेस्ट, गोसाइथान, धोलागिरी, अन्नापूर्णा, कंचनजँघा, मकालू आदि इसकी चोटियाँ हैं ।

4. असम हिमालय: तिस्ता से ब्रह्मपुत्र तक इसका विस्तार है । लम्बाई 750 किमी. है । मुख्य चोटी कला कांगडी, चमलहारी, कावरू पोहनी है । हिमालय से 14 चोटियाँ 8000 मी. से अधिक ऊँचाई वाली हैं ।

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ:

रहमालय पर्वत के निर्माण (उत्थान) से पूर्व (1) ब्रह्मपुत्र, (2) सतलज, (3) सिन्ध, (4) गन्धक, (5) कोसी वहती थी । एक नदी जो न उत्थान से पूर्व न उत्थान के बाद निकली बल्कि मध्य युग में निकली जिसे हम इंडोब्राम कहते थे । इसकी दिशा पूरब से पश्चिम थी । उत्थान के बाद महान हिमालय की नदियाँ गंगा, यमुना, काली, घाघरा, तिस्ता आदि ।

लधु हिमालय की नदियाँ:  (1) व्यास, (2) रावी, (3) चिनाब, (4) झेलम ।

शिवालिक हिमालय:  (1) हिण्डन, (2) सेलानी ।

हिमालय के दर्रे:

जोजिला दर्रा, इसके रास्ते श्रीनगर से लेह का मार्ग बन जाता है । वुर्जिल-मध्य एशिया तक, शिपकी-इसके मध्य से शिमला से तिब्बत तक, माना और नीति दर्रे-मानसरोवर एवं कैलाश तक, जेलेप्ला एवं नाथूला तिब्बत मार्ग, हिमालय के ऊँचे ढालों पर सिल्वर फर, देवदार, वर्च, लार्च आदि । मध्य क्षेत्र में-शाहबबूल, नैपल, एल्म, एल्डर आदि पौधे पाये जाते हैं । निचले या तलहटी के आस-पास पाये जाने वाले पौधे-चाय फल (सेब, बादाम, अंगूर, चेरी, खुबानी, आड़ू, अखरोट, नाशपाती आदि) ।

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(ii) सतलज-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान:

भारत का प्राकृतिक भूभाग उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र एवं दक्षिण के पठार के मध्य में स्थित है । यह संसार का सबसे उपजाऊ भू-भाग माना जाता है । क्योंकि इस मैदान का निर्माण हिमालय की प्रमुख नदियों द्वारा लाये गये अवसादों या काँप के द्वारा बना है । इसका क्षेत्रफल भारत में 700000 वर्ग किमी॰ (भारत में) है । पूर्व में इस मैदान की चौड़ाई 145 किमी. तथा पश्चिम में 480 किमी॰ है ।

भारत में इस मैदान की कुल लम्बाई 2400 किमी॰ है । इस मैदान की मोटाई 4000-5000 मी. (4 किमी॰ से 5 किमी॰) अनुमानित की गई है । इस मैदान की समुद्र तल से ऊँचाई मात्र 200 मी॰ तथा यह पश्चिम से पूर्व तक समतल है । इसकी ढाल पश्चिम के पूर्व की तरफ बनती है । यह मैदान अम्बाला एवं सहारनपुर के बीच में सबसे अधिक ऊँचा है (291 मीटर) समुद्र तल से ऊँचा है ।

उत्तर के मैदान को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है: 1. पश्चिम का मैदान, 2. पूर्व का मैदान-दोनों के बीच में अरावली पर्वतमाला विभाजक का काम करती है । पश्चिमी मैदानों में तापमान की अधकिता एवं वर्षा की कमी की वजह से मरूस्थलीय क्षेत्र अधिकता होती है (राजस्थान का थार मरूस्थल) ।

इन पश्चिमी मैदानों के कहीं-कहीं बालू के टीले पाये जाते हैं । इसे बालू/मिट्‌टी के टीले भी कहते हैं जिन्हें दड़ा कहते हैं । इन दड़ों के बीच में नीची भूमि पायी जाती हैं जिन्हें तल्ला कहा जाता है । जब तल्लियों में पानी भर जाता है तो इन्हें ढांढ कहते हैं । पूर्वी मैदानी क्षेत्र को चार भागों में बांटा जाता है: (1) भाबर, (2) तराई, (3) बांगड़, (4) खादर ।

बाह्य/शिवालिक हिमालय से सटा मैदानी भूभाग भाबर कहलाता है । यह भूभाग अत्यधिक पथरीला एवं कंकरीला होता है क्योंकि हिमालय से उतरने वाली नदियाँ यहाँ अपने बड़े-बड़े अवसाद (कंकर, पत्थर) छोड़ देती है । इन अवसादों की मोटाई इतनी अधिक हो जाती है कि छोटी-छोटी नदियाँ इनके अन्दर ही लुप्त हो जाती है ।

केवल बड़ी नदियाँ ही अपना मार्ग बनाने में सफल हो पाती है । इस भूभाग की मोटाई 8 से 16 किमी. अनुमानित की गयी है । इस भूभाग में जीव जन्तुओं का अभाव पाया जाता है । केवल लम्बी जड़ों वाले पेड़ ही इस भूभाग में यदा-कदा पाये जाते हैं । जैसे– टीकसाल, सीसम, यूकेलिप्टस, पासलर आदि ।

भाबर के आगे का भूभाग तराई कहलाता है । यह भूभाग प्राय: दलदली होता है क्योंकि भाबर में लुप्त हुई नदियाँ यहाँ पुन: प्रकट हो जाती है । इस भूभाग में नमी की पर्याप्तता की के कारण वनस्पतियों एवं जन्तुओं की बहुलता होती है । यह भूभाग पश्चिम की अपेक्षा माध्य एवं पूर्व की तरफ अधिक चौड़ा है । इसकी चौड़ाई 20 से 30 किमी. है ।

इस भूभाग पर सभी प्रकार की खेती होने लगी है । यहाँ नमी के कारण संक्रामक रोग बहुत फैलाते हैं । तराई के आगे का मैदान बांगड़ एवं खादर कहलाता है । ये दोनों प्रकार के मैदान आपस में मिले हुए प्रतीत होते हैं । मैदान का वह भूभाग जो अपेक्षाकृत ऊँचा होता है एवं पुरानी काँप का बना होता है बांगड़ कहलाता है ।

इस मैदानी भूभाग में नदियों के बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है । इसके ठीक विपरीत मैदान का वह भूभाग जो नीचा होता तथा जहाँ नदियों के बाढ़ का प्रकोप या संभावना बनी रहती खादर कहलाता है । बांगड़ के मैदान की उत्तर प्रदेश में बहुलता है जबकि खादर का विस्तार बिहार तक है तथा पं॰ बंगाल में है ।

पं॰ उत्तर प्रदेश के बांगड़ के मैदान में बालू के ढेर को भूड़ कहा जाता है । गंगा जमुना दोआब भूड़ कहलाते हैं । गंगा एवं ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र में ऊँची भूमि चर कहलाती है । वहाँ के स्थानीय निवासी इन ऊँची भूमि में मकान बनाकर रहते हैं । चर के बीच-बीच में निम्न भूमि बिल कहलाती है ।

भारत का ये उत्तरी मैदान क्षेत्र हिमालय पर्वत का उपहार कहा जाता है । यहाँ विश्व की सबसे घनी आबादी पायी जाती है तथा भारत की लगभग 45% जनसंख्या निवास करती है । काँप के बने होने के कारण यह मैदानी भूमि सबसे उत्तम मानी जाती है ।

(iii) दक्षिण का पठार:

प्राचीनतम कठोरतम चट्टानों के एवं अपक्षय से बना भूभाग पठार कहलाता है । भारत में इसका विस्तार दक्षिणी प्रदेशों में है । यही कारण है इसे दक्षिण का पठार कहते हैं । अन्नामलाई पर्वत शृंखला की दक्षिणी शाखा से दो महत्वपूर्ण पर्वत शृंखलाएँ निकलती हैं । एक दक्षिण की तरफ तथा दूसरी उत्तर पूर्व की तरफ । दक्षिणी शाखा इलायची की पहाड़ियाँ तथा उत्तर पूर्व शाखा पालनी की पहाड़ियाँ ।

नीलगिरी पर्वत की सबसे महत्वपूर्ण चोटी या शिखर दोदा बेटा है । पहले कुछ समय पूर्व तक दक्षिण की सबसे ऊँची शिखर माना जाता था । वर्तमान में अन्नामलाई पहाड़ी की अनाईमुड़ी चोटी (2695) सबसे ऊँची मानी जाती है । नीलगिरी पर्वतमाला पर एक अन्य महत्वपूर्ण शिखर है जिसे मुकर्वी कहा जाता है ।

(iv) तटीय मैदान: पूर्वी तटीय मैदान:

इसका विस्तार गंगा के मुहाने से कुमारी अंतरीप तक है । इसकी चौड़ाई 100 से 300 किमी॰ तक है तथा यह तट पश्चिमी तट से अधिक चौड़ा है । इस तट के अधिक चौड़ा होने का कारण दक्षिण की महत्वपूर्ण नदियों द्वारा लाए गये अवसादों का जाम होना है ।

इस तट पर पश्चिमी तट की अपेक्षा नदियों का वेग कम है । इस तट पर कांप की बहुलता है । इसलिये यह तट पश्चिमी तट की अपेक्षा बहुत उपजाऊ माना जाता है । यहाँ की प्रमुख फसल धान है । इस तटीय मैदान को तीन प्रमुख भागों में बांटते हैं: (1) उत्तरी भाग को उत्तर सरकार या गोलकुंडा कहलाता है, (2) मध्य भाग काकीनाड़ा या आन्ध्र का मैदान तथा (3) दक्षिणी भाग कर्नाटक तट या कीरोमण्डल तट या तमिलनाडु का तटीय मैदान कहलाता है ।

गोलकुंडा को उत्कल का मैदान भी कहते हैं । उत्कल के मैदान में महानदी का डेल्टा एवं चिल्का झील स्थित है । आन्ध्र के मैदान में गोदावरी और कृष्णा का डेल्टा एवं पुलीकट झील स्थित है । तमिलनाडु के मैदान में कावेरी का डेल्टा स्थित है । कावेरी के डेल्टा को ग्रेनरी आफ साउथ इंडिया कहलाती है ।

पश्चिमी तटीय मैदान:

इसका विस्तार कच्छ के रन से कन्याकुमारी अन्तरीप तक है । इसकी औसत चौड़ाई 65 किमी. है । इस मैदान को उत्तर में कोंकण तथा दक्षिणी भाग को मालाबार भी कहते हैं । इस मैदानी क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ अधिक वेग (तीव्रगामी) बहती हैं जिसके प्रभाव से इस तट पर पर्याप्त मिट्टी नहीं जमा हो पाती ।

इसलिये ये तटीय मैदान खेती के लिये बहुत नहीं रह जाता है । यहाँ नारियल, रबर, चाय आदि फसलें परम रूप से उगायी जाती है । इन्हें अध्ययन की सुविधा के लिये 4 भाग में विभक्त किया जाता है:

(1) काठियावाड़, (2) कोंकड़, (3) कर्नाटक, (4) केरल ।

गिरिनार की पहाड़ियां एवं गिरि के जंगल कन्यावाड़ में सिथत है । यही गिरि नेशनल पार्क है जिसमें गिर लाइन पाये जाते हैं । काठियावाड़ में ही कोरी, क्रीक, कच्छ, खम्भात की खाड़ी पायी जाती है । द्वीप समुद्र के अन्दर पाये जाने वाले छोटे-छोटे भूभाग द्वीप कहलाते हैं ।

भारत के पश्चिमी तट पर लक्षद्वीप, दमन, द्वीव, अन्जी दीव, सेन्ट मेरी है । पूर्वी तट की तरफ पाम्बन, हेयर, श्री हरिकोटा, पारी कुटा, अण्डमान एवं निकोबार है । पाम्बन द्वीप कई द्वीपों का समूह है जो भारत एवं श्रीलंका के मध्य स्थित है । ऐसा माना जाता है कि ये द्वीप श्रीलंका बहुत पहले सटे हुए थे । वर्तमान में इनके बीच आदम का पुल, मन्नार की खाड़ी स्थित है ।

हेयर द्वीप तुतीकोरन के निकट स्थित है । इस द्वीप की विशेषता इसमें असंख्य खरगोशों का पाया जाना है । श्रीहरिकोटा कुलिष्ठ झील के निकट स्थित है । यहाँ अंतरिक्ष अनुसंधान बनाया गया है । पारिकुट द्वीप चिलका झील के निकट है ।

अण्डमान एवं निकोबार कई द्वीपों का समूह है जो बंगाल की खाड़ी में 60N अक्षांश तथा 130N में सिथत है । अंडमान में कुल 305 द्वीप हैं जबकि निकोबार में 21 द्वीप हैं । निकोबार (भारत) सबसे दक्षिणी द्वीप इन्दिरा प्वांइट कहलाता है ।

भारत की नदियाँ या अपवाह प्रणाली:

भारत में नदियों को तीन भागों में विभक्त किया जाता है : बड़ी नदियाँ, मध्य नदियाँ, छोटी नदियाँ ।

सिन्ध नदी तन्त्र:

नदी का नाम                              उत्पत्ति स्थल                                         लम्बाई                                                        मिलन स्थल

1. सिन्धु                                       मानसरोवर के                                          2880 किमी.                                 करांची के पास अरब सागर

                                                         निकट से                                             (709 किमी. भारत में)

2. झेलम                                        बेरिनाग (कश्मीर                                         724                                             त्रिभुज के निकट चेनाब से

                                                           घाटी)    

3. चेनाब                                      बारा लाम्बा दर्रे के                               1180 किमी.                                    पंचनद के निकट सतलज से

                                         निकट से (लाहुलस्फीति)

4. रावी                                       रोहतांग दर्रों के निकट                          725 किमी.                                         रंगपुर के निकट चिनाब से

से (कुल्लू)

5. व्यास                                रोहतांग दर्रों के निकट   से (कुल्लू)         450 किमी. हरिके                                         निकट सतलज से

                                                       

6. सतलज                              मानसरोवर राका लेक                             1450 किमी.                                             मिठान कोट के निकट  सिन्धु से

 

सिन्धु नदी तन्त्र के मध्य पानी का बँटवारा भारत एवं पाकिस्तान 1960 (19 सितम्बर) में हुए एक समझौते के अनुरूप हुआ । समझौते के अनुसार सिन्धु नदी तन्त्र के सम्पूर्ण पानी का केवल 20% हिस्सा भारत उपयोग करेगा तथा शेष 80% पाकिस्तान के पास गया ।

गंगा नदी:

गंगा नदी तन्त्र के सबसे मुख्य नदी गंगा है । यह गंगोत्री हिमनदी से निकल कर भागीरथी बोली जाती है । देव प्रयाग के निकट एक दूसरी नदी अलकनंदा भागीरथी से आके मिलती है । देव प्रयाग से आगे दोनों नदियों संयुक्तं नाम गंगा हो जाता है । दो अन्य नदियाँ पिंडार एवं मंदाकनी अलकनन्दा से क्रमश: कर्ण प्रयाग एवं रूद्र प्रयाग में मिलती है । धौली एवं विष्णु गंगा भागीरथी की सहायक नदियाँ हैं ।

गंगा नदी उत्तर प्रदेश एवं बिहार के मैदानी भागों में बहती हुई पश्चिम बंगाल के फरक्का में दो भागों में बंट जाती है । वह भाग जो पश्चिम बंगाल में रह जाता है उसे भागीरथी हुगली कहते हैं । जो बंगलादेश में जाता है उसे पदमा कहते हैं । इसी गंगा के आधार पर बंगाल का बंटवारा हुआ था ।

बंगलादेश में पद्‌मानदी गोआलिन्दो के निकट पदमा से ब्रह्मपुत्र नदी मिलती है । ब्रह्मपुत्र को इस समय जमुना कहा जाता है । इन दोनों के सम्मिलित रूप को आगे पदमा नाम से ही जाना जाता है । इसके अन्त में एक अन्य नदी मेघना मिलती है जिनके मिलने से बहुत चौड़ा मुहाना बन जाता है ।

भागीरथी हुगली एवं पदमा मेघना के बीच बना डेल्टा संसार का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है । इसे गंगा का डेल्टा कहते हैं । इसका कुल क्षेत्रफल 51300 वर्ग किमी॰ है । यह सुन्दरी के पेड़ों की अधिकता है । इन पेड़ों की अधिकता के कारण ही गंगा के डेल्टा को सुन्दर वन का डेला कहा जाता है ।

गंगा की सहायक नदियाँ:

गंगा के बांयी ओर से तथा दार्यी ओर से कई नदियां आकर इस तन्त्र से मिल जाती हैं । बायीं ओर की नदियाँ: रामगंगा, घाघरा, कोसी, गन्डक, गोमती एवं दायीं ओर की नदियाँ: यमुना, सोन, दामोदर हैं ।

यमुना की सहायक नदियाँ:

यमुनोत्री निकलने के बाद लघु हिमालय में यमुना से पश्चिम की ओर शिरी एवं पूर्व की ओर आसन नदियाँ मिलती हैं । अन्य सहायक नदियों में यमुना, चकराता के निकट मैदान में प्रवेश करती हैं । मैदान में यमुना की निम्न सहायक नदियाँ हैं । चम्बल एवं काली सिन्ध ये दोनों नदियाँ इटावा के निकट यमुना से मिलती हैं ।

बेतवा: यह नदी हमीरपुर के निकट यमुना से मिलती है ।

केन: यह नदी प्रयाग (इलाहाबाद) के निकट यमुना से मिलती है ।

घाघरा की सहायक नदियाँ: शारदा, सरयू, रावती ।

ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र:

ब्रह्मपुत्र नदी को ब्रह्मा का पुत्री कहा जाता है जो मानसरोवर कैलाश के निकट से निकलती है तथा तिब्बत में सांगपो नाम से जानी जाती है तथा वहाँ से पूर्व की दिशा में बहती हुई सादियाँ के निकट आसाम की घाटी में नीचे उतरती है । इसे यहाँ पहले शियांग तथा बाद में दिहांग कहा जाता है । गारो पहाड़ियों से होती हुई यह नदी धुवरी के निकट बंगलादेश में प्रवेश करती है ।

बंगलादेश में कुछ दूरी तक बहने के बाद (170 किमी॰) यह खालुदों के निकट गंगा में मिल जाती है । बंगलादेश में यह जमुना नाम से जानी जाती है । इसकी भारत में कुल लम्बाई 1340 किमी॰ है तथा कुल लम्बाई 2900 किमी. है । इसे आसाम का शोक कहा जाता है ।

दक्षिण भारत की नदियाँ:

उत्तर भारत की नदियों की अपेक्षा दक्षिण भारत की नदियों की गति धीमी होती है । ये चौड़ी एवं छिछली घाटी में बहती हैं । इनमें से जो बंगाल की खाड़ी में गिरती है वह डेल्टा बनाती है । लेकिन अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ डेल्टा न बनकर एस्च्यूरी बनाती हैं ।

पठार का धरातल पथरीला होने के कारण वर्षा का पानी सोख नहीं पाता है जिससे वर्षा का अधिकांश पानी नदियों में आ जाता है तथा नदियों में बाढ़ आ जाती है । दक्षिण भारत की मुख्य नदियाँ पठार के ढाल के अनुरूप पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है लेकिन कई नदियाँ अपनी उत्पत्ति स्थल से पूर्व से पश्चिम या दक्षिण उत्तर पूर्व की दिशा में बहती हैं । अत: इन्हें तीन प्रमुख श्रेणियों में विभक्त किया जाता है:

(1) पश्चिम से पूर्व दिशा में बहने वाली नदियाँ या बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ-ब्राह्मणी, वैतरवी, सुवर्ण रेखा (उत्तर से दक्षिण), महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पिन्नार, कावेरी, बेगाई (पश्चिम से पूर्व) ।

(2) पूर्व से पश्चिम की दिशा में बहने वाली या अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ- नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, लूनी, साबरमती ।

गंगा नदी तन्त्र से मिलने वाली नदियाँ: इनमें चम्बल, बेतवा, केन, सोन, दामोदर, (दक्षिण उत्तर पूर्व)

सहमाद्रि की नदियाँ: मान्दोबी एवं जुआरी (गोवा में पायी जाने वाली छोटी नदियाँ काली नदी, गंगा वाली बेटी, सरस्वती नेत्रावती (कर्नाटक) वेपोर, भारत पूजा, पेरियार (केरल)

हिमालय की नदियों एवं पठार नदियों में प्रधान अन्तर:

हिमालय की नदियाँ:     

1. उत्पत्ति अधिक ऊँचाई से ।     

2. शहरी घाटी से बहती है

3. इनके बहाव को एन्टीसीडेन्ट ड्रेनेज    कहा जाता है ।   

4. हिमनद से निकलने के कारण सदैव  पानी रहता है ।

5. सिंचाई के लिये उपयुक्त होती है ।                                                                                                                                                                                                   

6. वैद्युत उत्पादन के लिये उपयुक्त ।

दक्षिण पठार वाली नदियाँ:

1. बहुत कम ऊँचाई से ।

2. छिछली ।

3. कत्सिक्वेन्ट ड्रेनेज कहा जाता है ।

4. इनमें वर्षा का पानी रहता है ।

5. सिंचाई के लिये अनुपयुक्त होती है ।

6. वैद्युत उत्पादन के लिए अनुपयुक्त ।

उत्तर भारत की अस्थाई/मानसूनी नदी- घघ्घर (पंजाब) में है ।

झील: भारत में कई प्रकार की झीलें पायी जाती हैं, जिनमें प्रमुख निम्न है । पहला भूपृष्ठ के फंसने के कारण वुलर झील (कश्मीर) दूसरा कारण है ज्वालामुखी उद्‌गार व इसका उदाहरण है लूनार झील (महाराष्ट्र), तीसरा कारण है हिमानी ग्लेशियर द्वार ।

कुमायूँ हिमालय में पायी जाने वाली झीलें: नैनीताल, भीमताल ।

अनूप झीलें: चिल्का, पुलीकुट आदि तथा कोलेरू

वायु द्वारा निर्मित झीलें: वायु द्वारा निर्मित झीलों को हम ढांढ कहते हैं । उदाहरण- राजस्थान की नमकीन झीलें । जैसे-पंचभद्रा, डीडवाना ।

नोट: भारत का सबसे बड़ा झील सांभर झील (राजस्थान) में है ।

भूस्खलन द्वारा निर्मित झीलें: ऐसी झीलें हिमालय पर्वत में पायी जाती है ।

नदियों के मार्ग में बनी झीलें: इन झीलों मियेन्डर/गोखुराकाट झीले कहते हैं । उदाहरण-प्रतापगढ़ जिले में गंगा नदी के तट पर बना झील, कीठम झील (यमुना के किनारे)

कश्मीर में पायी जाने वाली झील: वूलर-यह कश्मीर की सबसे बड़ी झील है जो पर्यटन की दृष्टि से राज्य का प्रमुख पर्यटन स्थल है ।

डल झील: यह दूसरी सबसे महत्वपूर्ण झील है । इसके किनारे-किनारे सुन्दर वृक्ष लगे गये हैं, इनके द्वारा बने दो बाग महत्वपूर्ण माने जाते हैं: शालीमार, विशाल बाग ।

कश्मीर की अन्य झीलें: मानस बेल, शेषनाग, अनन्त नाग, गन्धर बल ।

कुमायूँ की झीलें: कुमायूँ उत्तरांचल में भारत की महत्वपूर्ण झीलें पायी जाती हैं (कुमायूँ में सबसे अधिक झीलें पायी जाती हैं । कुमायूँ में 7 प्रमुख झीलें हैं: नैनीताल, भीमताल, नौकुछिया, सात ताल, पूना, खुरपाताल, मालवा ।

राजस्थान में प्राय: नमकीन झीलें पायी जाती हैं जिन्हें टेथिस सागर का अवशेष माना जाता है । इनके अलावा कुछ अन्य झीलें (मीठी) पायी जाती हैं । मीठी झील में (जयसमन्द व राजसमन्द) पायी जाती है । (उदयपुर के पास) ।

खारी झीलें: साँभर झील-यह भारत की सबसे बड़ी झील मानी जाती है । इसकी लम्बाई 129 किमी॰ है एवं चौड़ाई 8 से 10 किमी॰ है । यह झील 6 से 10 मी॰ तक गहरी है । दूसरी खारी झील डीडवाना, पंचभद्र, फलौदी, लूनकरण सर । भारत में पाये जाने वाले प्रमुख प्रपात-सरस्वती नदी (कर्नाटक) जोग/जरस्पा प्रपात (272 मी॰ ऊँचाई)

कावेरी नदी (तमिलनाडु)-शिवासमुन्दरम (100 मी॰) चंबल नदी (कोटा)-चूलिया (18 मी॰) नर्मदा नदी (जबलपुर) – कपिलधारा/धुआंधार (9 मीटर) मधार, पुनासा नीलगिरि की पहाड़ियों पर पायकारा प्रपात स्थित है इसकी ऊँचाई 7-8 मीटर है । गोकक नदी (कर्नाटक) – गोकक प्रपाल महाबलेश्वर के पास चेन्नाप्रपात है ।


2. मेरा भारत महान । Essay on My India for Kids in Hindi Language

हमारा प्यारा देश भारत अत्यंत प्राचीन संस्कृति वाला महान एवं सुंदर देश है । यह ऐसा पावन एवं गौरवमय देश है जहां देवता भी जन्म लेने को लालायित रहते हैं । हम अपने इस देश को स्वर्ग से भी बढ्‌कर मानते हैं ।

इस देश की प्रशंसा कविवर प्रसाद ने इन शब्दों में की है:  अरुण यह मधुमय देश हमारा जहां पहुंच अनजान शिक्षित को मिला एक सहारा ।” भारत देश संसार का शिरोमणि है जिसका इतिहास गौरवपूर्ण हैं । प्राकृतिक दृष्टि से सबसे अनूठा है । प्रकृति ने उसे अपने हाथों से संवारा है । छ: ऋतुएँ बारी-बारी से आकर इसका श्रुंगार करती हैं ।

तीन ओर समुद्र और हिमायल इसके मुकुट की भांति सुशोभित हैं । नदियां इसके प्रेम प्रवाह की भांति निरंतर बहकर इसे सिंचित करती हैं । इन्हें विशेषताओं के कारण जर्मन के विद्वान मैक्समूलर ने कहा है: यदि हम ऐसे देश की खोज करने के लिए संपूर्ण विश्व की खोज करें जिसे प्रकृति ने सर्वसंपन्न तथा सुंदर बनाया है, तो मैं भारत की ओर संकेत  करुंगा ।

मेरा देश भारत संस्कृति की क्रीड़ाभूमि है । इसी देश से ज्ञान की रश्मियाँ पूरे विश्व में फैली थी । यही वह देश है जिसने वेद, पुराण, उपनिषद और गीता का ज्ञान संसार को दिया । ज्ञान के कारण ही भारत को जगद्‌गुरू कहा जाता है । हमारा देश भारत भौगोलिक विभिन्नताओं वाला देश है ।

यहाँ एक ओर हरियाली है तो दूसरी तरफ जंगल, एक ओर हिमखंडित पर्वत शिखर हैं तो दूसरी ओर तपते मरुस्थल । इसी देश में प्राकृतिक बनावट, जलवायु, खान-पान, वेशभूषा तथा संस्कृति की दृष्टि से इतनी विभिन्नताएं हों । हमारा प्यारा देश भारत अनेकता में एकता का अपूर्व उदाहरण है ।

इसी देश में मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और गिरजाघरों के दर्शन होते हैं । अनेक भाषाएं और अनेक धर्म इसी धरती पर फल फूल रहे हैं । सभी संस्कृतियों को फलने फूलने का अवसर दिया जाता है । भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है अर्थात यहाँ की सरकार जनता के धार्मिक मामलों में कोई दखल नहीं देती यहाँ हिंदु-सिख, ईसाई और इस्लाम धर्म मानने वाले लोग रहते हैं ।

उन्हें अपनी उपासना पद्धति तथा सामाजिक व्यवस्था का अनुसरण करने की पूर्ण स्वतंत्रता है । भारत भूमि ने ही संसार को विश्व बंधुत्व तथा पंचशील का सिद्धांत दिया गया सत्य,अहिंसा, त्याग, दया आदि मानवीय मूल्यों की प्रेरणा दी ।

प्राकृतिक दृष्टि से यह देश सर्वाधिक सुंदर देश है तो कभी धन-वैभव की दृष्टि से सोने की चिड़िया भी कहा जाता है । इसकी विपुल धन संपदा के कारण ही अनेक आक्रमणकारियों ने बार-बार लूटा तथा इसकी संस्कृतियों को नष्ट करने का प्रयास किया परंतु इसकी संस्कृति नष्ट न हो पाई और अभी तक जीवित है जबकि संसार की अन्य प्राचीन संस्कृतियों का नामो-निशान तक नहीं है ।

हमारा देश अनेक महापुरूषों की भूमि है । इसी धरा पर गौतम महावीर, विवेकानंद जैसे महापुरुष हुए, इसी धरा पर महात्मा गांधी जैसे युग पुरुष का आगमन हुआ । इसी भूमि पर सूर तुलसी, कबीर, कालिदास, रवीन्द्रनाथ टैगोर सरीखे कवियों, प्रेमचंद सरीखे कहानी कार हुए ।

इसी भूमि पर महान रामानुजम, आर्यभट्‌ट जैसे गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक अवतीर्ण हुए । सभी देशवासी भारत देश को उन्नति के शिखर पर पहुँचाने के लिए कंधे से कधा मिलाकर कार्य कर रहे हैं । हमारा देश वर्तमान में अनेक समस्याओं से जूझ रहा है और अभी विकासशील देशों की श्रेणी में हैं ।

लेकिन वह समय दूर नहीं है जब हमारा भारत देश विज्ञान, तकनीक, औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से विश्व का सिरमौर बनेगा । प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है:  ”जिएँ तो सदा इसी के लिए कहीं अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व हमारा प्यारा भारत वर्ष ।”


3. भारत : हमारा देश महान | Essay on India for School Students in Hindi Language

इस पृथ्वी पर किसी विशेष भू-भाग को, जिसका अपना संविधान हो, जिसकी अपनी संस्कृति हो, देश कहा जाता है । प्रत्येक देश अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं का अनुसरण करते हुए उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता है । किसी भी देश की मूल संस्कृति उस देश के नागरिकों के आचरण, उनके पर्व, त्योहारों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है ।

हमारा देश भारत एक प्राचीन देश है और इसकी प्राचीनता यहाँ की संस्कृति, परम्पराओं और यहाँ स्थित प्राचीन मंदिरों मस्जिदों इत्यादि में स्पष्ट दिखाई देती है । हमारे विशाल देश भारत को प्राचीन होने के साथ-साथ मानव सभ्यता के उद्‌भव एवं विकास का स्रोत होने का भी गौरव प्राप्त है । हमारे प्राचीन देश भारत में ही मानव सभ्यता का आरम्भ हुआ था ।

प्राचीन काल से ही यहाँ जन्म लेने वाले ऋषि-मुनियों तपस्वी-महात्माओं ने इस पावन भूमि पर मानव का चरित्र एवं समाज के निर्माण हेतु उचित पथ-प्रदर्शन किया है । इसी पावन भूमि पर धर्म एवं संस्कृति का विकास हुआ है । समय के साथ हमारे देश भारत में अनेक संस्कृतियों का पदार्पण हुआ और हमारे महान देश भारत ने उन्हें भी यहाँ सहर्ष स्थान दिया ।

यहाँ हिन्दू मुस्तिम, सिख, ईसाई, सभी धर्मो को सम्मान प्राप्त है । इस सम्बन्ध में हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि सर्वधर्म समभाव हमारे महान भारत देश में ही सम्भव है । वास्तव में मानवता का समुचित संदेश हमारे देश भारत से ही उपज रहा है ।

प्रेम एवं मित्रता में विश्वास करने वाला हमारा देश हिंसा का पक्षधर नहीं है, बल्कि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अहिंसा के संदेश को ही सपूर्ण मानव जाति में फैलाने के प्रति प्रयत्नशील रहता है । प्राकृतिक दृष्टिकोण से हमारा विशाल भारत एक सम्पन्न देश है ।

यह उत्तर दिशा में विशाल पर्वत हिमालय से घिरा है और शेष तीनों दिशाओं में विशाल सागर अठखेलियाँ कर रहे हैं । हमारे विशाल देश भारत में एक ओर रेगिस्तान है, तो दूसरी ओर ऊंची पर्वत मालाएँ, घने वन, हरे-भरे खेत, फल-फूलों से सुसज्जित बाग-बगीचे हैं ।

प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर हमारे देश में ‘पृथ्वी का स्वर्ग’ कहा जाने वाला कश्मीर स्थित है । भरपूर प्राकृतिक सम्पदा के कारण आज हमारा देश आत्मनिर्भर है । वैज्ञानिक उन्नति में भी हमारा देश निरन्तर आगे बढ़ रहा है ।

आज हमारे में योग्य वैज्ञानिक, चिकित्सक, इंजीनियर हैं और हमारा देश अणु-परमाणु शक्तियों से सम्पन्न है । विश्व के अनेक विकसित, सम्पन्न देश आज हमारे देश के साथ मित्रता करना पसन्द कर रहे हैं । यह हमारी वैज्ञानिक उन्नति तथा सद्‌भावपूर्ण व्यवहार के कारण ही सम्भव हो रहा है ।स्पष्टत: विश्व के समस्त देश हमारे देश की महानता से प्रभावित हैं ।

हमारे देश भारत को महान गणतंत्र का भी गौरव प्राप्त है । यहाँ धनवान हो अथवा निर्धन, सवर्ण जाति का हो अथवा दलित, सभी नागरिकों के लिए समान कानून व्यवस्था है । यहाँ प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्राप्त हैं । प्रत्येक नागरिक यहाँ अपने अधिकारों के लिए कानून का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र है ।

यहाँ उच्च पदों पर किसी जाति अथवा धर्म विशेष का एकाधिकार नहीं है । यहाँ प्रत्येक जाति एवं धर्म का व्यक्ति योग्यता के अनुसार पद ग्रहण कर सकता है । वर्तमान में हमारे देश के राष्ट्रपति माननीय श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम दलित जाति के हैं । वास्तव में हमारा देश भारत महान है ।


4. हमारा देश भारत । Essay on My Country: India for Kids in Hindi Language

इतिहास के अनुसार भारत दस हजार वर्ष पुराना देश है । मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा संस्कृति यहां की प्राचीनतम संस्कृति थी । इसके बाद आर्य जाति का आगमन हुआ । आर्य सांस्कृतिक रूप से सभ्य जाति के लोग थे । आर्यों के कारण देश का नाम आर्यावर्त पड़ा । पुरातन युग में यहां प्रतापी राजा दुष्यंत हुए हैं । इनका विवाह कण्व ऋषि की बालिका सुता शकुन्तला के साथ सम्पन्न हुआ था ।

शकुन्तला ने सिंह के समान शक्तिशाली पुत्र भरत को जन्म दिया था बाद में इसी युवराज भरत के नाम से देश का नाम ‘भारतवर्ष’ रखा गया । तत्पश्चात् अनेक संस्कृतियों, सभ्यताओं के लोग यहाँ आकर निवास करते रहे । मध्यकाल में उत्तर-पश्चिम से इस्लाम धर्म के लोगों ने हमारे देश पर आक्रमण किए । वे लोग भी अंत में यहां के निवासी बने ।

आज से कई शताब्दियों पूर्व सम्पूर्ण विश्व भारतवर्ष का आधिपत्य मानता था । यहां का शासक चक्रवर्ती सम्राट कहलाता था । यहां की सभ्यता संस्कृति की गूंज सब दिशाओं में सुनाई देती थी । इसके उज्जवल मस्तक के रूप में पर्वतराज हिमालय शोभायमान है । इसके मैदान में गंगा, यमुना, सतलुज, कृष्णा आदि अनेक नदियां प्रवाहित होती है ।

इसकी पवित्र धरा में सोना, चांदी, तांबा और लोहा आदि अनेक प्रकार की धातुओं की खान है । नैनीताल और कश्मीर सरीखे प्राकृतिक रमणीय स्थलों ने इसको स्वर्ग से भी सुन्दर बना दिया है । हमारा देश भारतवर्ष लगभग तीन शताब्दियों तक पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा रहा । इसी बीच अंग्रेजों ने इसे बिल्कुल कंगाल कर दिया था ।

अंत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के प्रयास से इसकी पराधीनता की बेड़ियां कटी । 15 अगस्त, 1947 को इसका विभाजन करके अंग्रेजों ने अपना बिस्तर बांध लिया । इसके दूसरे टुकड़े का नाम पाकिस्तान रखा गया । इसके अलावा बंग्लादेश, बर्मा और श्रीलंका भी एक समय भारत के अंग थे । इस देश-विभाजन से हमें बहुत क्षति पहुंची । भयंकर नर संहार हुआ ।

लाखों बच्चे अनाथ और औरतें विधवा हुई । अनेक समस्याएं विकराल रूप लेकर खड़ी हो गईं, जिसमें से 50 वर्षों में अधिकांश समस्याओं का समाधान हो गया । शेष का भी शीघ्र ही समाधान हो जाएगा । इस समय हमारे देश की जनसंख्या एक अरब से अधिक हो चुकी है । इसका क्षेत्रफल 32 लाख 68 हजार 90 वर्ग किलोमीटर है ।

इस आकार के रूप में भारतवर्ष का विश्व में सातवां स्थान है । हमारे देश भारत में सभी धर्मों के लोग रहते हैं । 26 जनवरी, 1950 को हमारा देश संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बना । तब से लेकर अब तक हमारा देश निरन्तर विकास एवं समृद्धि की ओर अग्रसर है । भारत संघ में 28 राज्य और 7 केन्द्रशासित प्रदेश हैं ।

हमारा देश भारत विज्ञान में काफी उन्नति कर चुका है । यह अणुशक्ति में भी किसी बड़े राष्ट्र से पीछे नहीं है । ‘हिन्दी’ भारत संघ की राष्ट्रभाषा है । राष्ट्र चिह्न अशोक स्तम्भ के ‘सिंह’ है । चक्रांकित तिरंगा यहां का राष्ट्रीय ध्वज है । ‘जन मन गण’ हमारा राष्ट्रीय गान तथा ‘वन्देमातरम्’ राष्ट्रीय गीत है । और ‘मोर’ राष्ट्रीय पक्षी तथा ‘बाघ’ राष्ट्रीय पशु है । तुला राष्ट्रपति का चिह्‌न है ।

जलवायु की दृष्टि से भी हमारा देश विश्व में श्रेष्ठ है । यहां प्रकृति ने छ: ऋतुएं दी हैं । वसंत से प्रारम्भ होने वाला ऋतुओं का यह चक्र ग्रीष्म, वर्षा, शरद तथा हेमंत से होता हुआ शिशिर पर समाप्त होता है । इसीलिए राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है कि: ”षट् ऋतुओं का विविध दृश्य युत अद्‌भुत क्रम है, हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है । शुचि सुधा सींचता रात में, तुझ पर चंद प्रकाश है, हे मातृभूमि, दिन में तरणि, करता तम का नाश है ।”

विश्व का कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां हमारे देश की तरह संतुलित जलवायु हो । भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहां ज्यादा गर्मी भी पड़ती है तो शरद ऋतु में ठंड भी अधिक पड़ती है । वर्षा ऋतु में बारिश भी जमकर होती है । वर्षभर का वातावरण छ: ऋतुओं में विभक्त है । ज्ञान के भण्डार में भी हमारा देश विश्व में अग्रणी है ।

विश्व के आदि पुस्तक वे जो कि ज्ञान के भण्डार हैं ऐसे धार्मिक ग्रन्थ विश्व में कहीं नहीं पाये गये । भारत की प्राचीन वास्तुकला अपने आप में एक बेजोड़ नमूना है । भारत का अतीत कितना उन्नत था इस बात का अंदाजा आयुर्वेद, धनुर्वेद, ज्योतिष, गणित, राजनीति, चित्रकला, वस्त्र निर्माण से लगाया जा सकता है । आज भी विश्व के लोग भारत के अध्यात्म और जीवन मूल्यों के प्रति आकर्षित हैं ।

यही कारण है कि भौतिक सुखों को त्याग आत्म ज्ञान प्राप्ति के लिए आज भी विदेशियों का भारत आना जारी है । संस्कृति, सभ्यता, जीवन मूल्य, जीवन शैली तथा आत्म विकास का ज्ञान भारत की भूमि के कण-कण में व्याप्त है । हमारे देश की भूमि उपजाऊ है । यहां पर 75 प्रतिशत भारतीय कृषि करते हैं । यहां कुटीर उद्योग उन्नति पर हैं । औद्योगिक उत्पादन प्रगति पर है ।

इस समय यहां से कपास, सन, चावल, मसाले, तिलहन, चमड़ा, ऊन, सिलाई की मशीनें और साइकिलें, सूती कपड़ा, सोना, चांदी, तांबा, कांच की वस्तुएं, रेशमी वस्त्र, दवाइयां और मशीनें निर्यात की जाती हैं । हमारे देश भारत की सात पंचवर्षीय योजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं और आठवीं पंचवर्षीय योजना चालू है । ‘पंचशील’ और ‘सह-अस्तित्व’ में हम भारतीयों की पूर्ण आस्था है ।

हमारे राष्ट्र ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, विज्ञान एवं परमाणु शक्ति आदि क्षेत्रों में आशातीत प्रगति की है । आज हमारे देश की गणना परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों में होती है । हमारा देश परमाणु शक्ति का प्रयोग मानव जाति के संहार के लिए नहीं बल्कि मानव जाति की भलाई के लिए कर रहा है । भारत हमेशा विश्व में सुख और शांति बनाए रखने का पक्षधर रहा है ।

वह विश्व के सभी राष्ट्रों को स्वतंत्र देखना चाहता है । अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत गुटनिरपेक्षता की नीति का सूत्रधार एवं पक्षधर रहा है । हमारे देश की सर्वजन सुखाय व सर्वजन हिताय की भावना में दृढ़ विश्वास है और मानव-मानव में सद्‌भाव व प्रेम संचार करने में प्राचीन काल से ही कार्यरत है । परोपकार, त्याग के जितने सुन्दर उदाहरण हमारे महापुरुषों के मिलते हैं शायद ही किसी अन्य राष्ट्र के मिलें ।

भगवान श्री राम, भगवान श्री कृष्ण, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, महर्षि दधीचि आज संपूर्ण मानव जाति के लिए आदरणीय व पूजनीय हैं । इनके अतिरिक्त प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, अकबर तथा शिवाजी जैसे सम्राट तथा रानी लक्ष्मी बाई, तात्यांटोपे, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रशेखर आजाद जैसे महान स्वाधीनता स्वतंत्रता सेनानी भी हमारे ही देश में पैदा हुए हैं ।


5. भारत: मेरी कल्पनाओं में | Essay on The India of My Imagination for College Students in Hindi Language

मनुष्य के प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार मैं भी प्राय: कल्पनाओं में विचरण करता हूँ । अपने भविष्य के प्रति मैं अनेक कल्पनाएँ करता हूँ । मुझे शिक्षित बनना है, योग्यता अर्जित करनी है समाज और देश के हित के कार्य करने हैं और देश का एक प्रतिष्ठित नागरिक बनना है ।

भारत का सच्चा नागरिक होने के नाते मैं अपनी कल्पनाओं में प्राय: भारत को एक परिवर्तित रूप में देखता हूँ । मेरी कल्पनाओं का भारत अत्यन्त सुंदर है । मेरी कल्पनाओं के भारत में चारों ओर सुख-शांढ़ि है । पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, प्रत्येक स्थान का भारतवासी सुखी एवं समृद्ध है ।

अनेकता में एकता का नारा लगाने वाले भारत की तस्वीर मेरी कल्पनाओं में अत्यन्त मनमोहक है : यहाँ प्रत्येक जाति एवं धर्म के लोग, प्रत्येक प्रान्त, प्रदेश के लोग प्रेमपूर्वक परस्पर मेल-मिलाप करते हैं और स्वयं को हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई नहीं कहते कल्पनाओं के भारत में जाति-धर्म का बैर नहीं है ।

मेरी कल्पनाओं के भारत में जाति-धर्म का दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं है, केवल भारतीयता विद्यमान है । मेरी कल्पनाओं के भारत में जाति-धर्म पर कभी कोई विवाद नहीं होता, समस्त नागरिक दिन-रात केवल राष्ट्र की उन्नति के प्रति प्रयत्नशील रहते हैं ।

मेरी कल्पनाओं के भारत में कोई अभावग्रस्त नहीं है, कोई भूखा-नंगा नहीं है । यहाँ भ्रष्टाचार नहीं है, सभी परिश्रमी हैं । सभी एक-दूसरे को सहयोग करते हैं और गरीबी को किसी के भी पास नहीं आने देते । इस सबका कारण यह है कि मेरी कल्पनाओं के भारत में कोई सम्प्रदाय नहीं है, कोई निर्धन को धनवान नहीं है, कोई शहरी कोई देहाती नहीं है, चारों दिशाउ में कहीं कोई भेद नहीं है, समस्त नागरिक केवल भारतीय और भारत की उन्नति ही सबके लिए सर्वोपरि है ।

राष्ट्र उन्नति के लिए प्रत्येक व्यक्ति ईमानदार है और इस का यहाँ अपराध न के बराबर हैं । भूलवश कभी किसी से अपराध हो भी जाता है, तो उसे तुरन्त सजा दी जाती है । मेरी कल्पनाओं के भारत में प्रत्येक नागरिक का न्याय पालिका पर पूर्ण विश्वास है ।

न्यायाधीश को यहाँ भगवान के समान माना जाता है । यहाँ विद्वान न्यायाधीशों का निर्णय सम्पूर्ण समाज एवं राष्ट्र के हित में होता है । मेरी कल्पनाओं के भारत में चूँकि सभी ईमानदार और रश्रमी हैं अत: मेरा देश भारत निरन्तर उन्नति के पथ पर ग्रसर हो रहा है ।

सपूर्ण राष्ट्र में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के तरण यहाँ विद्वान वैज्ञानिकों में निरन्तर दृष्टि हो रही है और गान-विज्ञान के क्षेत्र में भी मेरा देश भारत अग्रणी है ।

मेरी कल्पनाओं के भारत में परिश्रमी छात्रों को विज्ञान, कला, खेल आदि क्षेत्रों में सरकारी स्तर पर उत्साहित किया जाता है, इसलिए चिकित्सा, इंजीनियरिंग, शिक्षा आदि क्षेत्रों में उन्हें सहज ही रोजगार के अवसर प्राप्त होते है । मेरी कल्पनाओं में भारत के राजनैतिक नेता देश के सच्चे सपूत हैं ।

यहाँ जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय के आधार पर राजनैतिक दलों का जमावड़ा नहीं है । यहाँ राजनैतिक दलों की आपसी लड़ाई नहीं है बल्कि भारत के देशभक्त स्वत्रंता सेनानियों की भाँति प्रत्येक नेता देश एवं समाज की उन्नति में अवरोध उत्पन्न करने वाले विरोधियों से युद्ध कर रहा है ।

मेरी कल्पनाओं के भारत में यहाँ के नेता भाई-भतीजावाद से मुक्त हैं अत: योग्य उम्मीदवार को ही यहाँ बढ़ावा दिया जाता है । कर्तव्यनिष्ठ नेताओं के कड़े आदेश के कारण यहाँ के सरकारी विभागों में समस्त अधिकारी एवं कर्मचारी निष्ठापूर्वक कार्य करते हैं और कोई भी विभाग सरकार को घाटा नहीं पहुँचाता ।

मेरी कल्पनाओं का भारत हरा-भरा और खुशहाल है । मेरी कल्पनाओं के भारत में प्रत्येक विदेशी नागरिक पर्यटक के रूप में आना पसन्द करता है । विदेशी उद्योगपति यहाँ निवेश के लिए तत्पर रहते हैं । मेरी कल्पनाओं के भारत से विश्व के विकसित देश ईर्ष्या करते हैं ।


6. भारतीय संस्कृति (विविधता में एकता) । Essay on Indian Culture for College Students in Hindi Language

भारतीय संस्कृति विविधता में एकता की जीवंत मिसाल है । भारतीय संस्कृति से अभिप्राय एक प्राचीन महान् संस्कृति से है जो हजारों साल से समय के थपेड़ों से टकराती हुई, बिना रुके कभी धीरे कभी चपल गति से अब तक चली आ रही है ।

कुछ इतिहासकारों का मत है कि भारतीय संस्कृति एक प्रकार की मिश्रित संस्कृति (Composite Culture) है जो हमलावरों, यायावरों, यात्रियों आदि के सम्पर्क में आने के कारण विभिन्न विचारधाराओं, धर्मों, रीति-रिवाजों से प्रभावित होती रही एवं इस प्रकार कुछ ग्रहण करके, कुछ त्याग करके अपनी परम्पराओं को बचाते, सुधारते तथा कुछ-न-कुछ छोड़ते हुए कायम रही और सदैव आगे बढ़ने के लिए संधर्षरत् रही ।

ADVERTISEMENTS:

डॉ॰ राधा कमल मुखर्जी का विचार है कि भारतीय संस्कृति में जो लचक और उदारता मिलती है इसी की वजह से वह आने वाली नस्लों और जातियों को अपने आप में पचा सकी है । भारतीय संस्कृति की मूलभूत विशेषता उसका चिन्तन प्रधान दृष्टिकोण है ।

भारतीय हर विषय में पहले कई तरह से सोचते हैं फिर उसको कार्यान्वित करने के लिए तैयार होते हैं । वैदिक चिन्तनधारा भारतीय संस्कृति की धरोहर है । इस धारा में वेद, ब्राह्मण, आरण्यक उपनिषद्, शास्त्र, पुराण आदि न जाने कितने विचारों का उद्‌भव हुआ और आज भी हम इस चिन्तन की परम्परा पर गर्व करते हैं ।

आध्यात्मिक चिन्तन के साथ-साथ मूर्ति निर्माण कला, गृह निर्माण कला जिसे वास्तुकला कहा जाता है, शिल्प शास्त्र, संगीत, अभिनय आदि न जाने कितने क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति की प्रचुरता और समृद्धि देखी जाती है ।

भारतीय संस्कृति की छाप चिकित्साशास्त्र में भी अद्वितीय रही है । इस देश के चिकित्सक यूनान गए और यूनानियों ने अरब के निवासियों को इलाज की प्रक्रिया समझाई । अत: मुस्लिम चिकित्सा विधि जो वस्तुत: भारतीय चिकित्सा विधि ही है, आजकल भी उसे यूनानी चिकित्सा विधि के नाम से ही जाना जाता है ।

गणितशास्त्र का उद्‌भव सर्वप्रथम इस देश में ही हुआ था । अंग्रेजी अंकों को अरेबिक न्यूमेरिकल्स अर्थात् अरबी अंक कहा जाता है जो वस्तुत: भारतीय अंक ही हैं । शून्य का आविष्कार सर्वप्रथम भारत में हुआ जिससे अरबों खरबों की संख्या दर्शाना अति आसान हो गया ।

कानून तथा समाज विज्ञान एवं नीतिशास्त्र के क्षेत्र में मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, कौटिल्य का अर्थशास्त्र ऐसे ग्रंथ हैं जिनमें लिखे विचारों को पढ़कर विदेशी भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं । नाट्‌यशास्त्र का अदभुत ग्रंथ भरतनाट्‌यम माना जाता है जो अपने विषय में बेजोड़ है ।

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता अनेकता में एकता है । हमारे सहस्रों धर्म ग्रंथ, सैकड़ों आचार ग्रंथ, तेंतीस करोड़ देवता, 18 पुराण, चार वेद, चार उपवेद, षड्‌दर्शन और अनेक सम्प्रदाय हैं । अनेक गुरु, महन्त, अखाड़े उनकी विभिन्न मान्यताएं भी हैं । इन सबके होने पर भी हम एक परमेश्वर को मानते हैं और यह भी मान कर चलते हैं कि परमात्मा एक है किन्तु आवश्यकता पड़ने पर अनेक हो जाता है ।

इसके अतिरिक्त हमारे देश में मुसलमान, ईसाई आदि हैं । इन धर्मों के धर्मगुरु अरब तथा इजराइल में पैदा हुए थे । मुसलमान तथा ईसाई हमलावर जब इस देश में आए तो वे अपने साथ अपने धर्मों को भी

लाए । भारतीय संस्कृति अपना जादुई असर तो दिखाती ही रहती है जिसकी वजह से हम आज भी सहअस्तित्व की भावना से रह रहे हैं ।

ADVERTISEMENTS:

भारतीय संस्कृति गंगा की-सी पवित्र धारा है । हजारों वर्षों से अनवरत रूप से प्रवाहमान है । इस संस्कृति के उपासकों ने न तो कभी किसी को सताया और न यह चाहा कि हम दूसरे के देशों में जाकर लूटपाट करें ।

भारतीय संस्कृति के संदर्भ में मोहम्मद इकबाल की यह पंक्तियां आज भी कितनी सार्थक लगती हैं:

ईरान मिस्र रोमां सब मिट गए जहां से ।

लेकिन अभी है बाकी नामोनिशां हमारा ।।

निस्संदेह भारतीय संस्कृति शाश्वत है । यह संस्कृति महान् है ।


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