देश को चाहिए जैव सुरक्षा नीति पर निबंध!

भारत में एक बार फिर, खासकर पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में एवियन इन्फ्लुएंजा के एच5 एन1 विषाणु यानी बर्ड फ्लू के लक्षणों का पाया जाना जैव सुरक्षा के संदर्भ में देश की तैयारियों और क्षमता पर नए सिरे से विस्तृत बहस की आवश्यकता पर जोर देता है ।

जैविक युद्ध और जैविक आतंकवाद के क्रम में एक गंभीर मसला है । खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के लिए तो इसकी गंभीरता और भी बढ़ जाती है । भारत सरीखे देश में कृषि जैव सुरक्षा के तहत फसलें, पेड-पौधे, फार्म और जलीय जीव-जन्तु आते हैं । जिनकी सुरक्षा की महत्ता कई वजहों से और भी बढ़ जाती है । इसकी एक प्रमुख वजह तो यही है कि इन पर लगभग 58 फीसदी आबादी की आजीविका निर्भर है तो भोजन, स्वास्थ्य और सुरक्षित व्यापार के लिए पूरा देश निर्भर है ।

दूरसंचार और यातायात के साधनों के संदर्भ में कहें तो आज दुनिया वास्तव में एक वैश्विक गांव में तब्दील हो रही है । पशु पालन से जुडे व्यापार और हवाई जहाजों से बीमारियां कहीं अधिक तेजी से फैलती है । भारत यों भी कई प्रवासी पक्षियों का अस्थायी निवास है ।

ADVERTISEMENTS:

दुनिया की ही तर्ज पर दूरसंचार, यातायात और व्यापार के लिहाज से समग्र भारत एक राष्ट्रीय गांव में बदल रहा है । ऐसे में घरेलू संक्रमण के मामले अंतर्राष्ट्रीय संक्रमण की तरह ही महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं । जैव सुरक्षा के लिए कृषि उत्पादों और पशुओं का सीमा पार आवागमन भी महत्वपूर्ण है ।

यही वजह है कि राष्ट्रीय कृषक आयोग ने कृषि आधारित स्त्री-पुरुषों और उनकी पशु संपत्ति के क्रम में विदेशी सक्रमण से उनकी आजीविका पर पड़ने वाले प्रभाव को खासा महत्त्व दिया था । दिसंबर 2004 में प्रस्तुत पहली रिपोर्ट में एग्रीकल्चर बायो सिक्योरिटी के क्रम में विद्यमान ढांचागत और सस्थागत सुविधाओं की समीक्षा करने की जोरदार वकालत की गई थी ।

इसमें खासतौर पर कहा गया था कि इस बाबत विश्व व्यापार संगठन की संस्तुतियों का खास ध्यान रखा जाए । नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्स ने भी आयात कृषि उपभोक्ता वस्तुओं के साथ आने वाले आक्रमणकारी कीटों की रोकथाम में उचित कदम उठाए थे ।

उसमें भी इस बाबत सतर्कता बरतने की सलाह दी थी । इसे देखते हुए राष्ट्रीय कृषक आयोग एक राष्ट्रीय कृषि आधारित बायो सिक्योरिटी के तंत्र को विकसित करने के लिए राय-मशविरा कर रहा है ताकि एक पेशेवर तंत्र बनाया जा सके।

एक ऐसा तंत्र जिसकी आम जन में और राजनीतिक स्तर पर विश्वसनीयता हो । इस संबध में हुए सलाह मशविरे के बाद हमें एक ऐसे बायो सिक्योरिटी सिस्टम की जरूरत है, जो इन परिपाटियों पर खरा उतरता हो । कृषकों और मछुआरों के परिवारों की आजीविका और आय को सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ भोजन, स्वास्थ्य और व्यापार सुरक्षा के मानकों को पूरा करे ।

ADVERTISEMENTS:

इसके लिए वह परस्पर समन्वय के जरिये प्रभावी ढंग से सतर्कता बरत कर फसल, पशुधन व जलीय जीवों और वनों की रक्षा करने में सक्षम हो । वह स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर संक्रमण पर निगाह रख कर पूर्व चेतावनी जारी करने समेत लोगों को शिक्षित बनाकर शोध और अध्ययन के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को भी अंजाम दे सके । इसके अलावा वह आदर्श नियम, जागरूकता रूपी बायो सिक्योरिटी पैकेज बना उसके प्रति आमजन को जागरूक कर सके ।

यही नहीं प्रस्तावित नेशनल एग्रीकल्चरल बायो सिक्योरिटी काउंसिल से कुछ अन्य क्षेत्रों में भी ध्यान देने की अपेक्षा की जाती है । सबसे पहले आता है नियमन । इसके तहत परिषद विद्यमान बायो सिक्योरिटी से संबंधित कानूनों की समीक्षा कर खामियों की पहचान कर उन्हें दूर करे । इस समीक्षा के आधार पर एक राष्ट्रीय कृषि आधारित बायो सिक्योरिटी नीति बनाई जाए । फिर मसला आता है शिक्षा और जागरूकता का।

आक्रमणकारी कीटों के बारे में आम जन को अवगत कराने और उन्हें उसकी पहचान व रोकथाम के प्रति प्रेरित करने के लिए जागरूकता आंदोलन चलाने की आवश्यकता है । इस बाबत प्रत्येक कृषि विश्वविद्यालय, मत्स्य पालन से जुड़े विभागों में पाठ्‌यक्रम शुरू करने चाहिये ।

ADVERTISEMENTS:

बायो सिक्योरिटी कोई सरकारी या शैक्षिक स्तर से जुड़ा मामला नहीं है । यह तो सभी हर आम-ओ-खास को प्रभावित करने वाला हैं । अत: ग्राम पंचायत और नगर पालिका के स्तर पर कम-से-कम एक महिला और पुरूष को इसके बारे में बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । शहरों और करो को भी इस जागरण अभियान का हिस्सा बनाना होगा ।

ये सारे प्रयास घरेलू मोर्चे पर किए जाने की आवश्यकता है । इसके अलावा एक प्रभावी और मजबूत राष्ट्रीय जैव सुरक्षा तंत्र के लिए जरूरी है उसके पड़ोसी देशों से भी बेहतर समन्वय हो । खासकर उन पडोसी देशों से जिनके साथ सीमा साझा होती है । उदाहरण के लिए बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, नेपाल और पाकिस्तान । इसके अलावा प्रस्तावित परिषद् क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से कृषि महामारियों के खिलाफ एक अभियान भी छेड़ सके ।

दक्षेस और आसियान देशों से इस बाबत समन्वय खासा लाभकारी साबित होगा । यही नहीं, भारत नार्वे सरकार के आर्थिक सहयोग से कृषि आधारित जैव सुरक्षा पर एफएओ द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम में भी सक्रिय भूमिका निभा सकता है । इस क्रम में ऑस्ट्रेलिया के साथ गठबंधन फायदेमंद ही साबित होगा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने राष्ट्रीय स्तर पर एक विस्तृत जैव सुरक्षातंत्र स्थापित किया हुआ है । निजी, शैक्षिक, सामाजिक और सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ – साथ साझेदारी को भी प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है ।

इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय कृषक आयोग ने केन्द्र सरकार के आंशिक योगदान से एक हजार करोड़ रूपये वाले नेशनल एग्रीकल्चरल बायो सिक्योरिटी फंड की स्थापना की संस्तुति की थी । इस फंड से कम-से-कम शुरूआती स्तर पर कुछ उद्देश्यों को हासिल ही किया जा सकता है । मसलन साफ-सफाई से जुड़े तंत्र को मजबूत किया जा सकता है तो जानवरों, जलीय जीवों तथा पेड-पौधों के लिए सुविधाजनक देखभाल का ढांचा तैयार हो सकता है ।

ADVERTISEMENTS:

यही नही इस फंड से प्रभावित परिवारों को भी आर्थिक मदद मुहैया करायी जा सकती है । पं. बंगाल और उससे पहले महाराष्ट्र और गुजरात में फैले बर्डफ्लू को देखते हुए इस दिशा में त्वरित कदम उठाने बहुत जरूरी हो जाते हैं । इससे ऐसे संक्रमण से निपटने में न सिर्फ हमारी क्षमता बढ़ेगी बल्कि हम समय रहते इन पर रोकथाम लगा कर नुकसान की दर को भी कम कर सकेंगे ।

Home››India››