रुपये को मिला नया प्रतीक चिन्ह पर निबंध | Essay on Rupees Got New Symbol in Hindi!

सम्राट शेरशाह सूरी द्वारा पहली बार रुपया जारी करने के तकरीबन 500 साल बाद और आधुनिक भारत द्वारा मौजूदा कई संकेतों और प्रतीकों को स्वीकार करने के करीब 50 साल बाद 15 जुलाई, 2010 को भारतीय मुद्रा को अपना प्रतीक चिन्ह मिला है ।

सभी वैश्विक मुद्राओं के प्रतीक चिन्हों को देखकर वर्ष 2009 में भारत सरकार ने भी यह घोषणा की थी कि वह रुपए को एक प्रतीक चिन्ह देना चाहती है । वैश्विक मुद्राओं में अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश स्टर्लिंग पौंड, यूरो और येन सबके अपने प्रतीक हैं । सरकार ने फैसला किया कि वैश्विक मुद्राओं के बीच भारतीय रुपए की भी अपनी एक अलग पहचान होनी चाहिए ।

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ऐसा इसलिए भी जरूरी था क्योंकि पड़ोसी देश मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में भी रुपया शब्द और (Rs) का इस्तेमाल होता है । हालांकि, नए प्रतीक चिन्ह से भारतीय रुपया इन सबसे अलग हो गया है । भारतीय मुद्रा का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह डिजाइन करने का श्रेय तमिलनाडु के 32 वर्षीय रिसर्चर डी. उदय कुमार को जाता है । वह पहले भारतीय स्कॉलर हैं, जिसे प्राचीन तमिल मुद्रण के काम के लिए इंडस्ट्रियल डिजाइन में पीएचडी मिली है । सरकार ने रुपए के प्रतीक के लिए एक प्रतियोगिता शुरू की थी ।

जब हम डॉलर, पाउंड या येन को प्रदर्शित करने वाले चिन्ह देखते थे तो यह सवाल मन में आता था कि भारतीय रुपए का कोई प्रतीक चिन्ह क्यों नहीं है । अक्सर रुपए का लघु रूप ‘रु.’ लिखा जाता था या अंग्रेजी में अक्सर ‘Rs’ को रुपए के लिए इस्तेमाल किया जाता था । चूंकि रुपया सिर्फ भारत का नहीं, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका आदि देशों की भी मुद्रा है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका कोड ‘आईएनआर’ यानी ‘इंडियन नेशनल रूपी’ इस्तेमाल किया जाता है ।

रुपए की यह नई डिजाइन देवनागरी के ‘र’ के बीच में शिरोरेखा के समान्तर एक रेखा है जो तिरंगे झंडे जैसा आकार व्यक्त करती है और इसे लिखना आसान होगा । वैसे यह दिलचस्प बात है कि दुनिया में मुद्रा के काफी लोकप्रिय चिन्ह किसी सरकारी योजना के तहत नहीं बनाए गए बल्कि वक्त के साथ बन गए हैं ।

हमने जो रुपए का प्रतीक चिन्ह लिया है वह कई अर्थों में भारत की संस्कृति और विश्वदृष्टि का प्रतीक है । यह पहली नजर में देवनागरी के ‘र’ अक्षर जैसा दिखता है और विदेशी इसे ‘आर’ से मिलता जुलता होने से पहचान सकें यानी यह बुनियादी तौर पर भारतीय लेकिन अंतर्राष्ट्रीय पहचान वाला चिन्ह है । इसकी ऊपरी दोनों रेखाएं जहां एक ओर राष्ट्रीय ध्वज का प्रतीक हैं वहीं बराबर के चिन्ह ‘=’ को भी व्यक्त करती हैं, यह बराबरी के मूल्य और संतुलन को व्यक्त करता है ।

यह बताता है कि भारतीय समाज और संस्कृति अतिवाद से हटकर संतुलन और समता की समर्थक है, जहा किसी का एकाधिकार नहीं सभी की भागीदारी चलनी है । यह प्रतीक चिन्ह बनवाने का एक मुख्य उद्देश्य यह भी है कि भारतीय मुद्रा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिले और विश्व अर्थव्यवस्था में भारत के बढते महत्व को रेखांकित किया जाए ।

सवाल यह उठता है कि आखिर इसकी जरूरत क्या है । एक समय ब्रिटेन का कारोबार विश्व में काफी फैला था । कारोबार ब्रिटिश मुद्रा में होता था । ब्रिटेन ने इस विशिष्टता को कायम करने के लिए उसका प्रतीक चिन्ह बनाया । अमेरिका ने भी यही रणनीति अपनाई ।

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कई अन्य देशों में डॉलर मुद्रा का प्रचलन है, उनसे अलग अपनी मुद्रा डॉलर की पहचान और अपनी मुद्रा का वर्चस्व अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थापित करने के लिए अमेरिका ने अपनी मुद्रा का प्रतीक चिन्ह बनाया । जापान के बाद 1999 में यूरोपीय देशों ने अपनी नई मुद्रा यूरो का प्रचलन शुरू किया, अपने खास प्रतीक चिन्ह के साथ।

यह कारोबार के वर्चस्व की लड़ाई है । जिन-जिन देशों की मुद्रा के प्रतीक चिन्ह है, उनके साथ कारोबार की पहली शर्त यह है कि कारोबार उनकी मुद्रा में होगा । एक्सपोर्ट से लेकर इंपोर्ट सब कुछ उनकी मुद्रा में होगा । अमेरिकी डॉलर ने विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अपनी धुरी इस कदर बना ली है कि अन्य देशों की मुद्राओं की कीमत डॉलर के मुकाबले ही तय होती है । हालांकि यूरोपीय देश यूरो के द्‌वारा इस मिथ को तोड़ने की कोशिश में है, मगर अन्य देशों के साथ अमेरिका का कारोबार यूरोपीय देशों की तुलना में इतना अधिक है कि डॉलर का वर्चस्व बना हुआ है ।

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भारत की इकोनॉमी तेजी के साथ बढ़ रही है । चीन के बाद ग्रोथ रेट सबसे ज्यादा है । मगर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार अमेरिकी डॉलर में करना पड़ता है । भारत के कम्प्यूटर के की-बोर्ड तक में अमेरिकी डॉलर का प्रतीक उपलब्ध है । यह बात दर्शाता है कि अमेरिका की इकोनॉमी और मुद्रा भारत की अर्थव्यवस्था पर कितनी हावी है ।

भारत अब चाहता है कि उसकी मुद्रा की ताकत को दुनिया माने । इसके लिए उसने उदार अर्थव्यवस्था की नीतियों का ईमानदारी से पालन किया ।चीन की तरह अपनी मुद्रा पर नियंत्रण नहीं रखा । अपनी मुद्रा मे उतार-चढ़ाव को सहा । इसके बावजूद ऐसा कभी मौका नहीं किया कि उसे अपनी मुद्रा की कीमत घटानी या बढ़ानी पड़ी हो । इससे यह साबित होता है कि भारत के बाजार और उसकी मुद्रा हर मायने में मजबूत है । बस इस मजबूती को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की जरूरत है ।

भारत पिछले 10 सालों से अपनी मुद्रा का प्रतीक चिन्ह बनाने की कोशिश में था । जब भारत ने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार संधि (साफ्टा) को लागू किया तो उस वक्त ही उसने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी । भारत ने साफ तौर पर कहा था कि वह चाहता है कि दक्षिण एशियाई देशों में एक मुद्रा का चलन हो । वह मुद्रा हो भारतीय रुपया । दक्षिण एशियाई अधिकांश देशों में रुपया ही मुद्रा के रूप में चलता है । इसमें प्रमुख देश है पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और इंडोनेशिया ।

बेशक भूटान और बांग्लादेश में अलग मुद्रा का प्रचलन है । अगर सभी देश सहमत हो गए तो इसमें बदलाव किया जा सकता है । भारत एकल मुद्रा प्रचलन में सफलता के करीब था, मगर पाकिस्तान ने इसमें अड़ंगा डाल दिया । अब भारत ने अपनी मुद्रा का प्रतीक चिन्ह बनाकर अपने इस सपने को साकार करने की तरफ कदम बढ़ा दिया है । अगर दक्षिण एशिया में भारतीय रुपये का सिक्का चल गया तो वैश्विक बाजार में इसको स्थापित करने में आसानी होगी ।

भारत का रुपया अपने प्रतीक चिन्ह के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी विशिष्टता बनाएगा । आने वाले समय में भारत भी अपने साथ होने वाले कारोबार को रुपये में करने की बात कर सकता है । कारोबार का गणित रुपये के मूल्य पर तय हो सकता है । इस वक्त भारत की इकोनॉमी और मार्केट की रेटिंग डॉलर के आधार पर तय होगी । इस मानदंड में बदलाव आ सकता है ।

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