NRI निवेश: बाहर से आने दें अपनों की सौगातें पर निबंध | Essay on NRI Investment in Hindi!

जैसे-जैसे भारत विकास की सीढ़ियां चढ रहा है, प्रवासी भारतीयों के सहयोग और सहभागिता की जरूरत बढ़ती जा रही है । अच्छी बात यह है कि प्रवासी भारतीय सहयोग के इस काम में पीछे नहीं हैं ।

इसकी तस्वीर हाल में नैशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में भी की है । यकीनन, इस समय प्रवासी भारतीय अपने देश को धन भेजने के मामले में अन्य प्रवासियों के मुकाबले सबसे आगे हैं ।

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प्रवासियों द्वारा भारत में भेजा गया धन (रेमिटेंस) भारत के भुगतान सतुलन की स्थिति को मजबूत करने के अलावा बाह्य वित्त पोषण का महत्वपूर्ण स्रोत बनकर उभरा है । कुल मिलाकर भारत को 2010-11 में 56 अरब डॉलर का रेमिटेंस प्राप्त हुआ है, 1991-92 में यह आकड़ा 3.8 अरब डॉलर था । आकड़ों पर निगाह डालें, तो पिछले 15 वर्षो में भारत में आने वाले रेमिटेंस में औसतन 20 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है । प्रवासियों से धन प्राप्त करने की दृष्टि से भारत पहले नबर पर है, जबकि चीन दूसरे और मेक्सिको तीसरे स्थान पर है ।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में रेमिटेंस इसलिए बढ़ा है, क्योंकि भारत से ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका जाने वाले भारतीय प्रवासियों की संख्या तेजी से बड़ी है । इन प्रवासियों में कुशल पेशेवरों की सख्या काफी है, जिन्हें वहां ऊचा वेतन हासिल होता है । इससे भारतीय प्रवासियों की औसत आय बड़ी है, लिहाजा भारत में रेमिटेंस ज्यादा आने लगा है । इन दिनों दुनिया के विकसित देशों के आर्थिक विकास की जो रिपोर्टे प्रकाशित हो रही हैं, उनमें बताया जा रहा है कि प्रवासी भारतीय विकसित देशों के सबसे महत्त्वपूर्ण विकास सहभागी बन गये हैं ।

कारण यह है कि दुनिया के विकसित देश प्रवासी भारतीयों को अधिक सम्मान देते हुए उन्हें अपने देश में रोकने के लिए हरसभव प्रयास कर रहे हैं । आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के द्वारा जारी की गयी प्रवासी रिपोर्ट में भारतीयों को दुनिया का सबसे योग्य प्रवासी बताया गया है ।

रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित देशों मे जाने वाले विभिन्न देशों के प्रवासियों में सेवा भावना, परिश्रम और ईमानदारी के परिप्रेक्ष्य में सबसे ज्यादा योग्य समुदाय भारतीय समुदाय ही है । उच्च कौशल सम्पन्न लोगों में सबसे ज्यादा (40 प्रतिशत से भी ज्यादा) संख्या भारतीयों की है ।

सबसे ऊंची और श्रेष्ठ व्यावसायिक कौशल वाली नौकरियों में भारतीयों को प्राथमिकता देने की कोशिशें विकसित देशों में बढ रही है । ज्यादातर विकसित देश एक ऐसी रणनीति बना रहे हैं, जिससे उनके श्रम बाजार में प्रवासी भारतीयों की प्रतिभा पूंजी का बेहतर इस्तेमाल हो सके । इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय मूल के लोग पूरी दुनिया के आईटी, कम्प्यूटर, मैंनेजमेंट से लेकर बैकिंग, वित्त और सर्विस सेक्टर में चमक रहे हैं ।

उल्लेखनीय है कि दुनिया में चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा ऐसा देश है, जिसके 22 करोड़ लोग दुनिया के 110 देशों में बसे हुए हैं । हालांकि बाहर बसे भारतीयों का लगाव अपने मूल देश के प्रति हमेशा ही रहा है, पर अपनी पूंजी भारत भेजने के मामले में अब से बेहतर स्थितियां उन्हें कभी नहीं मिली । इधर, देश कई मोर्चो पर सफलताएं अर्जित कर रहा है । वह एक विकसित मुला बनने और आर्थिक शक्ति बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है । यह देखकर प्रवासी भारतीयों का झुकाव भी भारत की ओर बढ़ रहा है ।

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देश की इकोनॉमी एक खरब डॉलर का आकड़ा छू रही है और 200 से ज्यादा भारतीय कंपनियां विश्व स्तर की मानी जा रही है । देश की अर्थव्यवस्था में आया उछाल भारत में प्रवासी भारतीयों और अन्य विदेशी निवेशकों को मोह रहा है और इसी के चलते बाहर से ताबड़तोड़ डॉलर आ रहे हैं ।

देश के शेयर बाजारों में विदेशी निवेशकों का संस्थागत निवेश ऊंचाइयां छू रहा है, साथ ही विदेशी मुद्रा कोष भी 300 अरब डॉलर से ऊपर हो गया है । इस आधार पर कहा जा सकता है कि आने वाले समय में निश्चय ही भारत को विकसित देश बनाने में प्रवासी भारतीयों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी ।

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हम यह न भूलें कि कई देशों के आर्थिक उत्थान में इसी तरह उनके प्रवासी नागरिकों ने योगदान किया है । करीब ढाई दशक पहले चीन में एक चमत्कार की शुरूआत हुई थी, जब उसने अपनी अर्थव्यवस्था खोली थी । तब सबसे पहले प्रवासी चीनियों ने सारी दुनिया से दौलत बटोर कर अपने देश के हवाले की, जिसने चीन की तकदीर हमेशा के लिए बदल डाली । इसी तरह आज जो इजराइल हम देखते हैं, वह प्रवासी यहूदियों की ही देन है ।

हालांकि हमारे देश में अब प्रवासी भारतीय पैसा भेज रह हैं पर सच तो यह है कि भारत को उसके प्रवासियों का वैसा सहयोग नहीं मिला, जैसा चीन और इजराइल को मिला है । लेकिन हमें प्रवासियों के निवेश की ही चिंता क्यों करनी चाहिए । जरूरी तो यह होगा कि प्रवासी भारतीय सिर्फ निवेश न करें, बल्कि अपने ज्ञान और अनुभव को साझा भी करें । विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय पेशेवरों के साथ साझेदारी की कोशिश भी की जानी चाहिए ताकि उनकी क्षमता का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा सके ।

अर्थव्यवस्था के विकास और स्टॉक मार्केट के लाभ के कारण जिस भारत में करोड़पतियों की संख्या एक लाख के पार हो गयी है, वह भारत अपने प्रवासियों के सहयोग से शिक्षा, स्वास्थ्य और आईटी के क्षेत्र में बेहतर परिणाम दे सकता है । यदि हम प्रवासियों से भारत को चमकाए जाने की अपेक्षाएं रखते हैं, तो हमें भी उनके दुःखदर्द का ख्याल रखना होगा । विदेशों में उनके साथ होने वाली अनहोनियों के वक्त भारत सरकार के साथ देश के नागरिकों को भी खड़ा होना होगा ।

संतोष की बात है कि प्रवासियों से संपर्क बढ़ाने की जरूरत को सरकार के स्तर पर समझा जा रहा है । कुछ समय पहले सरकार ने भारतीय मूल के लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए प्रवासी ज्ञान तंत्र की स्थापना की घोषणा की है । इस तंत्र की स्थापना शीघ्र ही होनी चाहिए ।

प्रवासी भारतीयों का भारत के आर्थिक विकास में तेजी से सहयोग बड़े, इसके लिए यह भी जरूरी होगा कि देश में भ्रष्टाचार के माहौल, पूंजी निवेश में प्रक्रिया संबंधी अड़चनों और देश में प्रचलित नियम-कायदों की कठोरता पर काबू पाया जाये व पूंजी में तरलता लाने के उपाय किये जायें । यह कोशिश करनी होगी कि प्रवासी भारतीय एक ओर अपने मूल देश भारत से जुड़े रहें तथा दूसरी ओर भारत में अपनी पूंजी व सम्पत्ति बढ़ाने की कोशिश करते रहें ।

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