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भारत में कुटीर उद्योगों का भविष्य पर निबंध | Essay on The Future of Cottage Industries in India in Hindi!

यदि कहा जाए कि भारत आज भी गाँवों का देश है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी मगर साथ-साथ यह भी सत्य है कि भारतीय समाज धीरे-धीरे नगरीकरण की ओर अग्रसर है । प्रति दस वर्षों में होने वाली जनगणना से हमें इसकी जानकारी मिलती है ।

दूसरी ओर हमारे गाँवों की संरचना में भी काफी परिवर्तन आ गए हैं और अनेक गाँवों में शहरों जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं । इन परिस्थितियों में गाँवों एवं कस्बों के छोटे-छोटे धंधों जिन्हें कुटीर उद्‌योग कहा जाता है, उनमें भारी बदलाव आते दिखाई पड़ रहे हैं । बहुत से कुटीर उद्‌योग बड़े उद्‌योगों से मुकाबला न कर पाने के कारण संकटग्रस्त स्थिति में हैं अथवा समाप्त हो गए हैं ।

भारत में कुटीर उद्‌योगों में ह्रास अंग्रेजी शासनकाल की नीतियों के कारण पहली बार आना आरंभ हुआ था जबकि उस समय भारत में उद्‌योगों के नाम पर केवल कुटीर उद्‌योग ही व्याप्त थे । गाँव-गाँव में हथकरघा, हस्तशिल्प, तेल पेरने का कोल्हू जैसे विभिन्न उद्‌योग निजी स्तर पर स्थापित थे और ग्रामीण रोजगार के प्रमुख साधन थे ।

इंग्लैंड में औद्‌योगिक क्रांति के फलस्वरूप वहाँ बड़ी-बड़ी मिलों की स्थापना की गयी उसके लिए कच्चा माल मुख्यतया भारत से सस्ते दामों पर मँगाया जाता था । फिर तैयार माल भारत की मंडियों में ऊँची कीमतों पर बेचा जाता था । इस प्रक्रिया के लंबे समय तक चलते रहने के कारण भारतीय कुटीर उद्‌योग नष्टप्राय हो गया । बाद में गाँधीजी ने चरखे से घर-घर सूत कातने के लिए लोगों को प्रेरित किया जिससे स्थिति थोड़ी सँभली ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारी केंद्रीय सरकार ने क्रमश: कृषि और भारी उद्‌योगों की स्थापना पर विशेष बल दिया जिसके कारण लघु एवं कुटीर उद्‌योग शनै: – शनै: उपेक्षित होते चले गए । हालाँकि कुटीर उद्‌योगों को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका क्योंकि इसके संचालन में निजी स्तर पर लोगों के प्रयास जुड़े थे और आज भी कुटीर उद्‌योग अन्य उद्‌योगों के समानांतर खड़े होकर अपनी उपयोगी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं ।

गाँवों, कस्बों तथा शहरों में आटा चक्की, तेल मिल, कथकरघा, रेशमी व खादी कपड़े, फसलों की कटाई-बिनाई आदि विभिन्न कार्य कुटीर उद्‌योग के स्तर पर हो रहे हैं । दरजी, बढ़ई, लोहार आदि के परंपरागत पेशे इसी श्रेणी में आते हैं । कुछ लोग छोटे स्तर पर धातुकर्म, चमड़े का काम, विभिन्न मशीनों के पुर्जें बनाने का काम, ईंट बनाने का काम, कागज की थैली बनाने का काम आदि कर रहे हैं जो आधुनिक कुटीर उद्‌योगों के सर्वात्तम उदाहरण हैं ।

विज्ञान और प्रौद्‌योगिकी के विकास के कारण पूरी दुनिया में कुटीर उद्‌योगों का स्वरूप भले ही परिवर्तित हुआ हो, इस प्रकार के उद्‌योगों का भविष्य अधर में नहीं कहा जा सकता । कुटीर उद्‌योगों में मशीनीकरण भी एक सुखद घटना है क्योंकि इससे उत्पादन क्षमता में तीव्र वृद्धि हुई है । फलों एवं सब्जियों का प्रसंस्करण, इन पर आधारित कुटीर उद्‌योगों के माध्यम से सरलता से किया जाता है ।

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अचार, जैम, जेली, पापड़, बिस्कुट, तैयार मसाले आदि विभिन्न खाद्‌य वस्तुएँ एक तरफ जहाँ बड़े पैमाने पर तैयार हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर छोटे स्तर पर भी इनके निर्माण की प्रक्रिया जारी है । इस तरह लाखों लोगों को व्यक्तिगत स्तर पर रोजगार प्राप्त हो रहा है । अभी भारत में इस क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं क्योंकि जनसंख्या वृद्‌धि के साथ-साथ हमारी दैनिक आवश्यकताओं में भी निरंतर वृद्‌धि हो रही है ।

शहरों में साइबर कैफे, चाय-पान के दुकानों, नाश्ता आदि के दुकानों को भी आधुनिक कुटीर उद्‌योग की संज्ञा दी जाए तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी । छोटे-छोटे शहरों में सिलाई-कढ़ाई के प्रशिक्षण केंद्र, टाइपिंग केंद्र, कप्यूटर शिक्षा के केंद्र खुले हैं जिन्हें इसी प्रकार के उद्‌योगों की श्रेणी में रखा जा सकता है । इनमें अधिसंख्य लोगों को रोजगार उपलब्ध है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत में आधुनिक कुटीर उद्‌योगों ने पहले से अधिक संख्या में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है ।

अत: भारत में कुटीर उद्‌योगों का भविष्य अंधकारमय नहीं है यदि इसे थोड़ा सा सरकारी प्रोत्साहन भी प्राप्त हो जाए । अल्प अवधि के छोटे-छोटे ऋणों की सुविधा होने पर अनेकों बेरोजगारों को स्वरोजगार की प्राप्ति हो सकती है । इस दिशा में विभिन्न सरकारी योजनाओं का संचालन भी किया जा रहा है जो निकट भविष्य में बहुत कारगर सिद्‌ध हो सकता है । इस तरह ग्रामीण युवकों का शहरों की ओर पलायन भी रुक सकता है ।

कुटीर उद्‌योग- धंधे हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्‌डी हैं । इनमें एक ओर तो ऐसे साधनों का उपयोग होता है जो घरेलू तथा स्थानीय स्तर के हैं दूसरी ओर इनके माध्यम से प्रदूषण भी कम फैलता है । अत: लघु एवं बृहत् उद्‌योगों की तुलना में इन्हें महत्व देना हर प्रकार से बुद्‌धिमत्तापूर्ण कहा जा सकता है ।

अब यह धारणा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है कि केवल बड़े स्तर के उद्‌योग ही रोजगार सृजन कर सकते हैं । भारत में सूचना क्रांति की सफलता के पीछे व्यक्तिगत रूप से कार्य करने वालें तकनीशियनों का श्रम समाहित है ।

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