मूल्य-वृदधि की समस्या अथवा महँगाई पर निबंध | Essay on The Problem of Inflation in Hindi!

भारत में महँगाई अथवा मूल्य-वृदधि की समस्या प्राचीन समय से ही थी परंतु वर्तमान में इसकी वृद्‌धि दर इतनी तीव्रता से बढ़ रही है कि यह सभी के लिए चिंतनीय विषय बन गई है । लोगों का जीवन सहज नहीं रह गया है ।

सर्वसाधारण को अपनी प्रमुख आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए भी घोर संघर्ष करना पड़ रहा है । वस्तुओं, खाद्‌य सामग्रियों आदि की कीमतों में निरंतर वृदधि एक भयावह मोड़ पर आ गई है । इसे यदि समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो देश में संतुलन बनाए रखना अत्यंत कठिन हो जाएगा ।

अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे क्या कारण हैं जिनसे वस्तुओं की कीमतों में निरंतर वृदधि हो रही है ? क्या कारण है जिनसे मूल्य नियंत्रण की दिशा में उठाए गए हमारे कदम सार्थक नहीं हो पा रहे हैं ? इसके अतिरिक्त हमें यह जानना भी आवश्यक हो जाता है कि मूल्य-वृदधि के नियंत्रण की दिशा में और भी कौन से प्रभावी कदम हो सकते हैं ।

देश में बढ़ती महँगाई के कारणों का यदि हम गहन अवलोकन करें तो हम पाएँगे कि इसका सबसे प्रमुख कारण तीव्र गति से बढ़ती हमारी जनसंख्या है । देश में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में जनसंख्या वृद्‌धि की दर कहीं अधिक है जिसके फलस्वरूप महँगाई का बढ़ना अवश्यंभावी हो जाता है ।

विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियों ने मनुष्य की आकांक्षाओं की उड़ान को और भी अधिक तीव्र कर दिया है । फलत: वस्तुओं की माँग में तीव्रता आई है जो उत्पादन की तुलना में कहीं अधिक है । इसके अतिरिक्त शहरीकरण, धन व संसाधनों का दुरुपयोग, कालाधन, भ्रष्ट व्यवसायी तथा हमारी दोषपूर्ण वितरण व्यवस्था भी मूल्य-वृद्‌धि के लिए उत्तरदायी हैं ।

देश के सभी कोनों में महँगाई की चर्चा है । सभी बढ़ती महँगाई से त्रस्त हैं । हमारी सरकार भी इस समस्या से भली- भाँति परिचित है । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विभिन्न सरकारों ने मूल्य-वृदधि को रोकने के लिए अनेक कारगार उपाय किए हैं । जनसंख्या वृद्‌धि को नियंत्रित करने के लिए ‘परिवार नियोजन’ के उपायों पर विशेष बल दिया जा रहा है ।

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अनेक वस्तुओं में उत्पादन के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया है । बाजार को पूरी तरह खुला किया जा रहा है जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ रही हैं । इस प्रतिस्पर्धा के युग में वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ रही है तथा मूल्यों में भी नियंत्रण हो रहा है । कई वस्तुओं के मूल्य पहले से बहुत कम हो चुके हैं ।

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इसके अतिरिक्त यह अत्यंत आवश्यक है कि हम संसाधनों के दुरुपयोग को रोकें । उचित भंडारण के अभाव में हर वर्ष हजारों टन अनाज बेकार हो जाता है । दूसरी ओर हमारे संसाधनों की वितरण प्रणाली में भी सुधार लाना पड़ेगा । यह व्यवस्था तभी सही हो सकती है जब भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सके ।

इसके अतिरिक्त कालाधन रोकना भी अत्यंत आवश्यक है । हमारी वर्तमान सरकार ने इस छुपे हुए धन को बाहर लाने के लिए कुछ कारगर घोषणाएँ अवश्य की थीं परंतु ये पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रही हैं । अत: आजकल खुली अर्थव्यवस्था एवं निरंतर आर्थिक सुधारों की वकालत की जा रही है ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि देश में मूल्य-वृद्‌धि हमारी एक महत्वपूर्ण समस्या है जिसका हल ढूँढ़ना आवश्यक है । इस दिशा में सरकार द्‌वारा उठाए गए कदम सराहनीय हैं । परंतु इन उपायों को तभी सार्थक रूप दिया जा सकता है जब हम अपनी योजनाओं अथवा नीतियों का दृढ़ता से पालन करें । सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक विस्तृत एवं सुदृढ़ रूप दे सकें ।

किसी महान अर्थशास्त्री ने सत्य ही कहा है – ”देश में मूल्य वृद्‌धि में नियंत्रण के लिए कुशल नीतियाँ, जनसंख्या नियंत्रण, उत्पादन की कीमतों में प्रतिबंधन तो आवश्यक हैं ही, परंतु उससे भी अधिक आवश्यक है दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति । अत: पारस्परिक सहयोग से ही मूल्य वृद्‌धि पर नियंत्रण किया जा सकता है ।”

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