लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर अनुच्छेद | Paragraph on Jayaprakash Narayanan in Hindi

प्रस्तावना:

भारत भूमि में अनेक वीर योद्धा, साधु-मतों, राजनीतिज्ञों और समाज-सुधारकों ने जन्म लिया है । लेकिन भारत में जितने संत-महात्मा हुए, उतने संसार में अन्य कहीं नहीं हुए । लोकनायक जयप्रकाश नारायण उन्हीं में से एक थे । वे महात्मा गाँधी और संत विनोबा भावे की श्रेणी में आते हैं ।

उनका जन्म और शिक्षा:

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जयप्रकाश नायक का जन्म बिहार के छपरा जिले के एक गाव में 11 अक्टूबर, 1902 ई॰ को हुआ था । उनका जन्म विजय दशमी के दिन हुआ था । समूचे भारत में यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय की याद में हर्षोल्लास से मनाया जाता है । इसीलिए उन्हें जयप्रकाश (अन्धकार पर प्रकाश की विजय) नाम दिया गया ।

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई । 1919 ई॰ में पटना से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की । आगे पढ़ाई के लिए वे एक कॉलेज में भरती हो गए । लेकिन उसी बीच वे भारत कै स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े और उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही रोक देनी पड़ी । फिर से आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए 1922 ई॰ में सेनफ़्रांसिसको चले गए ।

वहीं रहकर वे पढ़ाई के साथ-साथ अपने गुजारे के लिए कड़ी मेहनत करते रहे । इस तरह उन्होंने वही से डिग्री परीक्षा पास की । वे बड़े कुशाग्र बुद्धि के युवा थे । उनके हृदय में देशभक्ति की ज्वाला धधकती रहती थी । यही रह कर उन्होंने विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त किये । 1929 में वे भारत माता की सेवा के लिए स्वदेश लौट आये ।

देश के प्रति उनकी सेवायें:

उनका मन देश-सेवा की भावना से ओत-प्रोत था । 1921 ई॰ में ही उन्होने देश पर सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर कर देने का फैसला कर लिया था । 1930 में देश की आजादी के लिए चल रहे संघर्ष के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया । 1934 में कांग्रेस के समाजवादी गुट के सचिव बन गए ।

सनाजवाद के संबंध में उनके बड़े स्पष्ट विचार थे । 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें कांग्रेस की कार्यकारिणी की सदस्यता प्रदान की लेकिन जयप्रकाश ने अस्वीकार कर दिया । कुछ समय बाद पण्डित नेहरू के पुन: अनुरोध करने पर उन्होंने डाँ॰ राममनोहर लोहिया के साथ कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्यता स्वीकार कर ली ।

यह सदरचता बहुत दिनो तक न चल सकी और दोनो ने ही काँग्रेस कार्यकारिणी त्याग दी । बाद में 1948 में समाजवादी दल काँग्रेस से अलग हो गया । श्री जयप्रकाश नारायण इस नई समाजवादी पार्टी के महामंत्री बने । दुर्भाग्यवश 1952 के चुनावो में इस पार्टी को काँग्रेस के हाथो करारी हार का सामना करना पड़ा ।

इन्दिरा सरकार से उनका विरोध:

देश में अराजकता की बढ़ती हुई घटनाओं के कारण वे इन्दिरा सरकार के विरोधी हो गए । वे जनजागरण के काम मे पुन: जुट गये । उनके प्रयत्नो ने देश में जागृति ला दी । देश का राजनीतिक वातावरण क्षुब्ध हो उठा । जगह-जगह सरकार के विरोध में विशाल रैलियाँ हुई ।

इन्दिरा सरकार घबडा उठी । उसने जयप्रकाश के आन्दोलन को सख्ती से दबाने का फैसला किया । 25 जून, 1975 को श्रीमती गाँधी ने आपात्‌काल की घोषणा कर दी । सरकार ने जयप्रकाश सहित सभी विरोधी नेताओं को जेल मे बन्द कर दिया ।

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विपक्ष के सभी बड़े नेता 18 महीने तक जेलों मे तरह-तरह की यातनाये सहते रहे । श्रीमती गांधी द्वारा देश में आम चुनाव कराने की घोषणा के बाद दिसम्बर, 1975 में एक-एक करके उन्हें जेल से रिहा किया गया । जयप्रकाश नारायण भी अब जेल से बाहर आये । जेल में उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया था ।

जनता पाटी की स्थापना:

जेल से छूटने के बाद जयप्रकाश नारायण ने विरोधी पार्टियों के बीच एकता स्थापित करने प्रयास किया । उनके सुझाव पर देश को पाच प्रमुख पार्टियों ने एक में विलय होना स्वीकार कर लिया और यह निर्णय किया कि आगामी चुनावों में सम्मिलित पार्टी के रूप में कांग्रेस का मुकाबला करेगे । इस पार्टी को जनता पार्टी नाम दिया गया ।

विरोधी दलों को एक मच पर लाने में जयप्रकाश ने सराहनीय भूमिका निभाई । इस पार्टी ने काग्रेस शासन के भ्रष्टाचार और कुशासन का व्यापक प्रचार किया और कोंग्रेस को करारी हार दी । अपने खराब स्वारथ्य के बावजूद जयप्रकाश ने अनेक चुनाव सभाओं को सबोधित किया । जनता पार्टी की विजय जयप्रकाश की विजय थी ।

उपसंहार:

जयप्रकाश बड़े निष्ठावान्, कर्मठ और त्यागी कार्यकर्ता थे । आजादी के बाद पंडित नेहरू ने उन्हें मंत्रिपद देना चाहा, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया । वे गाँधी जी के सिद्धान्तो के सच्चे अनुयायी थे । उन्हें पद और शक्ति का कोई लोभ नही था ।

वे जनता के दिलो मे बेताज के बादशाह थे । जनता पार्टी की विजय ने उन्हें सभी की आख का तारा बना दिया । उन्होंने देश के लिए हर तरह की कुर्बानिया दीं, लेकिन बदले मे कुछ नहीं चाहा । वे जनता पार्टी शासन के प्रकाश-स्तम्भ थे ।

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