बढ़ता कालाधन: विकट समस्या पर अनुच्छेद | Paragraph on Black Money: A Grave Problem in Hindi

प्रस्तावना:

आज बढ़ता कालाधन एक विकट समस्या का स्वरूप लेती जा रही है । कालाधन शब्द उस रुपये के लिए प्रयोग किया जाता है जो रुपया छिपाई गई आय हो और जिस पर कर नहीं दिया जाता हो ।

काला धन सोने, जेवरात हीरे-जवाहरात, जमीन, इमारतों तथा कारोबारी सम्पदाओं आदि किसी भी रूप में हो सकता है । धन की एक बडी मात्रा कहीं जमा रहे, प्रवाह में न आए, देश व समाज के सकारात्मक, विकासात्मक कार्यों में प्रयुक्त न हो तो यह देश के लिए कितना अहितकर है । सामाजिक समस्या होने के कारण यह समाज पर प्रतिकुल प्रभाव डालता है । अत: कालेधन की प्रवृत्ति को रोकना होगा ।

देश में कालेधन की वर्तमान स्थिति:

देश में भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है । नेता, अफसरशाह, व्यवसायी-व्यापारी की चौकडी देश की अर्थव्यवस्था, कानून-नियमों के साथ खुला खेल, खेल रहे हैं । पिछले एक दशक में लाचार व्यवस्था ने इसको जो खाद पानी मुहैया करायी है और यह जिस तेजी से पनपा है यह अदभूत है ।

यदि देश के सारे कालेधन का 60 प्रतिशत भी बाहर आ जाए तो न केवल हम कर्ज मुक्त होंगे बल्कि हमारे विकास की रफतार भी तेज होगी । लेकिन इसके विपरीत इसने हमें कर्जे में लाद रखा है और यह विनाशकारी गतिविधियों का कारण बन रहा है । आज अधिकांश व्यक्ति इस भ्रष्टाचार में प्रत्यक्ष या आंशिक रूप से भागीदार है ।

कर योग्य आमदनी पर आयकर न चुकाना, आज के व्यावसायिक आमदनी पर आयकर न चुकाना, आज के व्यावसायिक युग में व्यवसायियों की व्यापारिक नीति का मुख्य हिरनना बन गया है । ऐसे माहौल में किसी एक को भ्रष्ट बताने की अपेक्षा यह जानना बेहद आवश्यक है कि काली कमाई का काला साम्राज्य किरन खतरनाक मोड तक आ पहुँचा है ।

वर्ष 1994-95 में कालेधन का आंकड़ा 110 हजार करोड़ रुपये हो गया था । जबकि सकल घरेलू उत्पाद राशि 190 हजार करोड़ रुपये ही थी । एक तरफ कालेधन का शासन बढ़ता जा रहा है तो दूसरी ओर भारत सरकार को वित्तीय घाटा भी निरंतर बढ़ता जा रहा है । एवं ब्याज अदायगी भी ऋण लेने के कारण एक संकट बनती रजा रही है ।

कालेधन की समस्या के कारण:

प्रश्न उठता है कि कालाधन आता कहाँ से है एवं कैसे यह अपना पाँव पसारता जा रहा है । कालेधन की समस्या को उत्पन्न करने के अनेक कारक उत्तरदायी हैं । प्रथम, करों और शुल्कों मे वृद्धि लोगों को करो की चोरी करने के लिए बाध्य करती है । इसी कारण लोग अपनी आय छिपाते हैं ।

यदि बढ़ती महंगाई एवं मुद्रा के बाजार मूल्य के अनुरूप सरल कर व्यवस्था होती तो सभवत: सरकार को अधिक मात्रा में राजस्व प्राप्त होता । द्वितीय, एक ही प्रकार के उत्पादकों के लिए अनेक बार उत्पाद शुल्क के लिए विभिन्न दरें पाई जाती हैं ।

तृतीय, कालेधन का एक और कारण सरकार की मूला नियंत्रण नीति है । नियंत्रण के उपाय जितने अधिक कठोर होंगे तथा अर्थव्यवस्था जितनी अधिक नियंत्रित होगी उतना ही उसके अल्लघ्न का प्रयास किया जाएगा जिससे गुप्त संचय, जालसाजी, कृत्रिम दुर्लभता बढ़ेगी तथा कालाधन पैदा होगा ।

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चौथा कारण कोटा व्यवस्था भी है । आयात का कोटा, निर्यात का कोटा एवं विदेशी विनिमय का कोटा, आधिमूल्य पर बेचकर अधिकांश दुरुपयोग किया जाता है । पाँचवा, वस्तुओं की दुर्लभता एवं जन वितरण प्रणाली में व्याप्त दोषों के कारण भी कालाधन पैदा होता है । जब आवश्यक वस्तुएँ दुर्लभ हो जाती हैं तो लोगों को उनके लिए नियन्त्रित मूल्य से अधिक कीमत देनी पड़ती है जिससे कालाधन पैदा होता है । छठा, मुद्रास्फीति के कारण भी कालेधन का जन्म होता है ।

सातवां कारण देश में चुनावों मे होने वाले हजारों-करोडों रुपये का व्यय है । चूंकि कानून ने उम्मीदवार के निर्वाचन व्यय को सीमित किया हुआ है एवं कम्पनियों को राजनीतिक पार्टियों को चुनाव के लिए चन्दा देने की अनुमति नहीं दे रखी है अत: चुनाव का व्यय अधिकांश कालेधन से किया जाता है ।

जो लोग चुनाव में कालाधन लगाते हैं वे राजनैतिक संरक्षण व आर्थिक रियायतों की आशा रखते हैं जो उन्हें वस्तुओं के कृत्रिम नियन्त्रण तथा वितरण साधनों मे शिथिलता आदि द्वारा राजनैतिक अभिजनों को सहमति व मौन अनुमति से प्राप्त होती है ।

ये सारी विधियाँ कालापन पैदा करती है । आठवाँ कारण अचल सम्पत्ति का क्रय-विक्रय है । कृषि भूमि पर रची वस्तियों स्थापित करने वालों द्वारा जो पंजीकरण दस्तावेजा में क्रय विक्रय मूल्य दर्शाया जाता है, वह बाजार मूल्य व वास्तविक मूल्य से बहुत कम होता है । इससे भूमि बेचने वाला पूँजी लाभ पर कर देना अपवंचित करता है । अनुमानत: सम्पत्ति के अवैध क्रय-विक्रय से 2,000 करोड़ रुपया प्रति वर्ष कालाधन पैदा होता है ।

कालाधन को रोकने के उपाय:

सवाल यह है कि कालाधन की बढ़त को रोका कैसे जाये । कालेधन को नियन्त्रित करने के लिए सरकार ने सबसे पहले 1000 रुपये तथा 500 रुपये के नोटों का प्रचलन रोक दिया था, लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ ।

वर्तमान सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय आवास बैंक तथा भारतीय स्टेट बैंक की डालर ब्रांड योजना, भारतीय रिजर्व बैंक की स्वर्ण ब्रांड योजना और विदेशी मुद्रा के आवागमन के संबंध में भारत सरकार की उदारवादी नीतियों सहित जितने भी प्रयास किए गए थे वे सभी असफल ही साबित हुए हैं ।

यदि आयकर की दर को कम कर दिया जाए तो बहुत से व्यक्ति अपनी आय छिपाएंगे नहीं तथा राजस्व में भी वृद्धि होगी क्योंकि बढे हुए कर और शुल्क लोगों को करों की चोरी के लिए बाध्य करती है ।

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जिन सूत्रों से सरकार को यह मालूम हो जाता है कि देश में इस समय कितनी रकम कालेधन के रूप मे मौजूद है, उन्हीं सूत्रों का सहारा लेकर सरकार को इस रकम को निकालने के लिए एक जोरदार अभियान चलाना होगा जिससे ऐसे तत्वों को अपने कालेधन का और अधिक विस्तार करने का मौका नहीं मिले कालेधन का प्रमुख स्रोत व्यवसायियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिया जाने वाला चंदाभी है ।

अत: राजनीतिक दलों के जलसों और चुनावी खर्चों पर पाबंदी लगाकर इस तरह के चंदों पर रोक लगायी जा सकती है ।

उपसंहार:

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निषकर्षत: कालेधन और समानान्तर अर्थव्यवस्था संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए कुछ क्षेत्रों में कर कम करना होगा, आय के ऐच्छिक प्रकटीकरण के लिए प्रोत्साहन देना होगा । आर्थिक गुप्तचर विभाग की इकाई में पूर्णत: हेर-फेर करना होगा ।

विभिन्न स्तरों पर प्रशासनिक भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना, मकान निर्माण पर व्यय किए धन को कर मुक्त करना तथा नियंत्रण योजनाओं को समाप्त करना होगा । कुछ पारदर्शी, विश्वास प्रद, लचीले कानून कायदों को एवं कुशल नेतृत्व को आगे आना होगा एवं स्वयं को ईमानदार साबित करना होगा ।

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