केशव चंद्र सेन पर निबंध | Essay on Keshab Chandra Sen in Hindi

1. प्रस्तावना:

श्री केशवचन्द्र सेन महान् हिन्दू दार्शनिक, समाजसुधारक तथा राष्ट्रवादी व्यक्तित्व थे । उन्होंने ईसाई धर्मशास्त्र को हिन्दू विचारधारा के सांचे में ढालने का प्रयास किया । ब्रह्म समाज के संस्थापक के रूप में उनके द्वारा किये गये कार्यों के लिए भारतवर्ष उन्हें हमेशा याद करता रहेगा । वे पाश्चात्य सभ्यता को भारतीय संस्कृति में समाहित करना चाहते थे ।

2. जन्म परिचय:

श्री केशवचन्द्र सेन का जन्म 19 नवम्बर सन् 1938 को एक बंगाली परिवार में हुआ था । 19 वर्ष की अवस्था में ब्रह्म समाज में प्रवेश कर अपने सामाजिक सुधारवादी आन्दोलन को सक्रिय रूप प्रदान किया । वे पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित थे । ईसाई धर्म के पाप और प्रायश्चित्त के विचारों को ब्रह्म समाज में सम्मिलित करना चाहते थे ।

ADVERTISEMENTS:

सन् 1970 में वे इंग्लैण्ड चले गये । 6 माह वहां रहकर रानी विक्टोरिया और ग्लैडस्टन के विचारों से प्रभावित हुए । उन्होंने इण्डियन रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना की । 8 जनवरी 1984 को इस समाजसुधारक का 46 वर्ष की आयु में निधन हो गया ।

3. उनके विचार और कार्य:

केशवचन्द्र सेन महान् समाजसुधारक थे । वे हिन्दू समाज के पुनर्निर्माण के समर्थक थे । हिन्दू समाज के अन्धविश्वास तथा कुरीतियों के जबरदस्त विरोधी थे । बाइबिल का अध्ययन करते हुए उन्होंने पाप एवं प्रायश्चित्त के स्वरूप को हिन्दू धर्म में शामिल करना चाहा । स्त्रियों की शिक्षा के प्रति उनके विचार काफी उदार थे । वे मूर्तिपूजा, बहुदेवपूजा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के कट्टर विरोधी थे ।

ब्रिटिश शासन के प्रति उनका विचार था कि हिन्दू समाज के पतन के कारण यह शासन फला-फूला है । वे ब्रिटिश शासन को दैवीय इच्छा तथा स्वाभाविक घटना मानते थे । इसके साथ ही वे स्वतन्त्रता के जन्मजात प्रेमी थे । गुलामी को पाप मानते थे । स्वतन्त्रता का अर्थ मनमानी नहीं मानते थे ।

सुलभ समाचार-पत्र के माध्यम से उन्होंने सार्वजनिक शिक्षा का समर्थन किया । जब तक जनता अज्ञानता व अशिक्षा के अन्धकार में खोई रहेगी, तब तक देश पराधीन रहेगा, ऐसा उनका विचार था । वे सरकार को विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व एवं शक्तिहीन तथा सर्वहारा वर्ग के प्रति न्याय की आवाज मानते थे । न्याय की आवाज न सुनने वाली सरकार के वे विरोधी थे ।

4. उपसंहार:

श्री केशवसेन उदार राष्ट्रवादी नेता ही नहीं, समाजसुधारक भी थे । अपने विचारों द्वारा बंगाल में उन्होंने एक ऐसे समाज की स्थापना का प्रयास किया था, जो जाति, वर्ग, अन्धविश्वास एवं रुढ़ियों से दूर हो । जहां मानवतावादी सोच प्रमुख हो । वे पाश्चात्य संस्कृति के कुछ मूलभूत आदर्शों के प्रति आस्थावान थे, किन्तु भारतीय संस्कृति के विरोधी नहीं थे ।

Home››Personalities››