मदर टेरेसा पर निबन्ध | A New Essay on Mother Teresa in Hindi!

दया की देवी, दीन हीनों की माँ तथा मानवता की मूर्ति मदर टेरेसा एक ऐसी सन्त महिला थीं जिनके माध्यम से हम ईश्वरीय प्रकाश को देख सकते थे । उन्होंने अपना जीवन तिरस्कृत, असहाय, पीड़ित, निर्धन तथा कमजोर लोगों की सेवा में बिता दिया था ।

वह संगठन जो उन्होंने अब से तीस वर्ष पहले अपने सहयोगी भाई बहनों की सहायता से गरीबों की भलाई के लिए नि: शुल्क शुरू किया था आज एक विश्वव्यापी संगठन बन चुका है । नोबल प्राइज फाउन्डेशन ने 1979 में मदर टेरेसा को विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार नोबल पुरस्कार से पुरस्कृत किया था । यह पुरस्कार शान्ति के लिए उनकी प्रवीणता के लिए दिया गया था ।

मदर टेरेसा का जन्म 1910 में युगोस्लाविया में हुआ था । 12 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘ नन ‘ बनने का फैसला किया और 18 वर्ष की आयु में कलकत्ता में ‘ आइरेश नौरेटो नन ‘ मिशनरी में शामिल होने का निर्णय लिया । प्रतिज्ञा लेने के बाद वह सेंट मैरी हाईस्कूल कलकत्ता में अध्यापिका बन गयीं ।

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बीस साल तक अध्यापक के पद पर तथा प्रधान अध्यापक पद पर तथा प्रधान अध्यापक पद पर उन्होंने ईमानदारीपूर्वक कार्य किया । लेकिन उनका मन कहीं और था । कलकत्ता के झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों की पीड़ा और दर्द ने उन्हें बैचेन सा कर दिया । 10, सितम्बर 1946 की अपनी अर्न्तआत्मा की आवाज को सुनने के बाद उन्होंने कॉन्वेंट को छोड़ दिया और अति निर्धन लोगों के लिए सेवा कार्य करने का निर्णय किया ।

उन्होंने पटना के अन्दर नर्सिग का प्रशिक्षण लिया और कलकत्ता की गलियों में घूम-घूम कर दया और प्रेम का मिशन प्रारम्भ किया । वह कमजोर त्यागे हुए और मरते हुए लोगों को सहारा देती थीं । उन्होंने कलकत्ता निगम से एक जमीन का टुकड़ा माँगा और उस पर एक धर्मशाला स्थापित की । इस छोटी सी शुरूआत के बाद उन्होंने जो प्रगति की वह अपने आप में महत्त्वपूर्ण थी । उन्होंने 98 स्कूटर, 425 मोबाइल डिस्पेंसरीज, 102 कुष्ठ रोगी, दवाखाना और 48 अनाथालय और 62 ऐसे गृह बनाये जिसमें दरिद्र लोग रह सकें ।

मदर टेरेसा एक त्याग की मूर्ति थीं । वह जिस घर में रहती थीं वहाँ वह नंगे पैर चलती थीं और वहाँ भी वह एक छोटे से कमरे में रहती थीं और अतिथियों से मिला करती थीं । उस कमरे में केवल एक मेज और कुछ कुर्सियाँ होती थीं । मदर टेरेसा प्रत्येक व्यक्ति से मिला करती थीं और सभी से प्रेम भाव के साथ मिलती थीं और उनकी बात को सुनती थीं । उनके तौर तरीके बड़े ही विनम्र हुआ करते थे । उनकी आवाज में

सज्जनता और विनम्रता झलकती थी और उनकी मुस्कुराहट हृदय की गहराइयों से निकला करती थी । सुबह से लेकर शाम तक वह अपनी मिशनरी बहनों के साथ व्यस्त रहा करती थीं । काम समाप्ती के बाद वह पत्र आदि पढ़ा करती थीं जो उनके पास आया करते थे । मदर टेरेसा वास्तव में प्रेम और शांति की दूत थीं । उनका विश्वास था की दुनिया में सारी बुराईयाँ घरसे पैदा होती हैं ।

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अगर घर में प्रेम होगा तो यह स्वाभाविक रूप से विश्व के सभी लोगों में शान्ति बने । उनका संदेश था हमें एक – दूसरे से इस तरह से प्रेम करना चाहिए जैसे ईश्वर हम सबसे करता है । तभी हम विश्व में, अपने देश में, अपने घर में तथा अपने हृदय में शान्ति ल सकते हैं ।