वर्षा ऋतु पर अनुच्छेद | Paragraph on Rainy Season in Hindi

प्रस्तावना:

भारत की ऋतुओं में वर्षा ऋतु सबसे सुन्दर और लुभावनी होती है । ग्रीष्म ऋतु की भीषण गरमी के दौरान लोग बड़ी उत्कंठा से इसकी प्रतीक्षा करते हैं ।

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यदि कभी वर्षा ऋतु के आने में कुछ विलम्ब हो जाये, तो लोग मन्दिरों, मरिजदों और गिरजाघ या गुरुद्वारों में जाकर ईश्वर से वर्षा की प्रार्थना करते हैं । कभी-कभी इस हेतु बड़े-बड़े यज्ञों की व्यवस्था की जाती है ताकि, इन्द्र देवता प्रसन्न होकर पृथ्वी पर पानी बरसा दे ।

भीषण गरमी से राहत:

भारत एक गरम देश है । यहाँ ग्रीष्म में भयंकर गरमी पड़ती है इसलिए स्वाभाविक है कि भीषण गरमी के दौरान लोग बेसब्री से बरसात की प्रतीक्षा करें । गरमियों मे पृथ्वी बुरी तरह तप जाती है । नदियाँ और तालाब सूख जाते हैं । कुओं में जलस्तर बहुत नीचे चला जाता है । हर जगह पानी की कमी हो जाती है ।

तेज लू और गर्म धूल भरी ऑधियाँ जीवन को और दुखदाई बना देती हैं । लोग परेशान होकर हाहाकार करने लगते हैं । गरमी के बाद वर्षा आती है । बरसात के आते ही गरमी से राहत मिल जाती है । आसमान मे काली-काली घटायें देखकर हमारा मन मयूर नाच उठता है ।

तपता हुआ सूरज बादलों के पीछे छिपकर बड़ी राहत पहूँचाता है । वर्षा की फुहार से सारा वातावरण खुशी से झूम उठता है । लोग हंसते-गाते और खुशियाँ मनाते दिखाई देते है । युवा, महिलाये और बच्चे नीम या पीपल के वृक्ष की मजबूत टहनी में झूला डालकर लम्बी-लम्बी पेंगे लेते हैं और लोकगीत गाकर वर्षा का स्वागत करते हैं और आनन्द मनाते हैं ।

उनके प्यार भरे गीत सुनने वालों का मन मोह लेते हैं । बच्चे वर्षा की फुहार मे नहाते हैं और किल्लोल करते हैं । तालाबो में पानी भरने लगता है और वहाँ भी पुरुष और बच्चे तैर कर आनन्द मनाते हैं ।

प्राकृतिक छटा:

वर्षा के दौरान प्राकृतिक छटा भी दर्शनीय होती है । वर्षा से नहा कर पृथ्वी एक बार पुन: युवा हो जाती है । चारो ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है । बहते पानी की कल-कल हमें बड़ी प्रिय लगती है । जगल में मोर नाचने लगते हैं और पपीहा मधुर रचर में संगीत सुनाता है ।

खेती के लिए महत्त्व:

वर्षा भारतीय खेती की जान है । हमारे देश के बहुत बड़े भू-भाग पर खेती होती है अर्थात् इस क्षेत्र में सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं होते और प्राकृतिक वर्षा पर ही खेती निर्भर करती है । जब कभी मानसून फेल हो जाता है, तो हमें बड़े संकट का सामना करना पड़ता है ।

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यदि समय से पर्याप्त मात्रा में वर्षा न हो, तो फसलें सुख जाती है । देश को भंयकर सूखे, अकाल और महामारियों का सामना करना पड़ता है । अत: हमारे लिए वर्षा का विशेष महत्त्व है । वर्षा के अभाव में कुओं और तालाबों मे भी पानी सूखने लगता है, क्योंकि इनमे अन्तत: वर्षा का पानी ही जमा होता है । जब पानी बरसेगा ही नहीं, तो कब तक यहाँ पानी जमा रह पायेगा ।

अत: वर्षा के अभाव में उस खेती पर भी बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है, जहाँ कुओं और तालाबो से सिचाई की व्यवस्था है । वर्षा की कमी से बड़े-बड़े जलाशयो में भी पानी की कमी होने लगती है और उसके कारण जल-विद्युत उत्पादन में कमी हो जाती है । इससे खेतों तथा उद्योंगों के लिए कम बिजली मिलने से संकट और भयावह हो जाता है ।

वर्षा की कठिनाइयाँ:

हर ऋतु की कुछ-न-कुछ कमियां होती हैं अर्थात् प्रत्येक ऋतु में कुछ कठिनाइयां भी होती हैं । वर्षा ऋतु इसका अपवाद नहीं है । इस में अनेक प्रकार के चर्म रोग हो जाते हैं । कभी-कभी शहरों और गाँवों में हैजा फैल जाता है । इस में मक्खी और मच्छर भी बहुतायत से हो जाते हैं ।

मच्छरों से मलेरिया को बढ़ावा मिलता है और हर वर्ष सैकडों लोग जान से हाथ खो बैठते हैं । इस ऋतु में जब वर्षा नहीं होती, तो मौसम बड़ा चिपचिपा हो जाता है । बदन से पसीना नहीं सूखता । हवा में नमी रहती है । ऐसे में सूरज की गर्मी बिल्कुल बरदाश्त नहीं होती, चाहे तापक्रम कम ही क्यो न हो । कभी-कभी तेज वर्षा त्हे कारण जगह-जगह भयंकर बाढ़ आ जाती है, जिससे जन-धन भारी की हानि होती है ।

उपसंहार:

इस तरह वर्षा ऋतु के अपने लाभ और हानियां है । लेकिन इसके लाभ हानियां की तुलना में कहीं अधिक हैं । अत: हमे वर्षा की थोडी-सी कठिनाइयों को आसानी से झेल कर इसका स्वागत करना चाहिए ।

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