विवाह की उम्र: युवा पीढ़ी ही करे फैसला पर निबंध | Essay on Marriage Age : the Younger Generation to Judge in Hindi!

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बदलते वक्त के बीच लडकों के विवाह की उम्र 21 से घटा कर 18 वर्ष कर दी गयी है, तो इसका मतलब है कि युवा पीढ़ी जिम्मेदार बना दी गयी है ।

विधि आयोग की इस नयी व्यवस्था का प्रभाव भी शीघ्र ही दिखाई देगा । समय परिवर्तनशील है और सही नब्ज को पहचानना समय की जरूरत होती है । आज का बच्चा मिट्टी और लकड़ी के खिलौनों से नहीं खेलता, मध्यम वर्ग की कालोनियों की गलियों में भी बच्चे कंचे खेलते दिखाई देते हैं ।

आज का बच्चा टेलीविजन, मोबाइल, कम्प्यूटर और इंटरनेट की दुनिया में पैदा होता है, उसका संसार सीमित नहीं रहा । वह आज माउस हाथ में लिए कंप्यूटर गेम खेलता है, इंटरनेट पर चैटिंग करता है । इन सभी ने उसका संसार बदल डाला है । उसे मालूम है कामुक होकर किसी के नितम्ब पर चुटकी काटने का अर्थ और उसे पता है कि हर चीज की क्या है अहमियत और वह कच्ची उम्र में जान लेता है दूसरों से सहज संबंध बनाने वाले विशेषण । वास्तव में बचपन कहां रह गया है ।

विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बहुत सारे सवालों से धुंध को हटाया है और युवकों के लिए विवाह योग्य उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने की सिफारिश की है । प्यार में डूबे युवा इस फैसले पर खुश जरूर होंगे । पहले मताधिकार की आयु 21 वर्ष थी, जिसे घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था । यदि 18 वर्ष के वयस्क को आप देश की सरकार बनाने में भागीदार बना चुके है और यह स्वीकार कर चुके हैं कि उसे इस बात की समझ है कि वोट किसे देना है या किसे नहीं देना है तो उसे 18 वर्ष की उम्र में विवाह की अनुमति देने में परहेज क्यों किया जाये ।

वास्तव में समाज और अभिभावक प्यार और शादी के मामले में बच्चों को स्वतंत्र फैसला करने की छूट नहीं देते और उन पर परम्पराओं और रूढ़िवादी संस्कारों का बोझ लाद दिया जाता है । अभिभावक हमेशा यही सोचते हैं कि उनके बच्चे अभी भी खुद फैसला लेने में सक्षम नहीं हैं । इस दृष्टि से देखा जाये तो हर सिक्के के दो पहलुओं की तरह इस सिफारिश के भी दो पहलू हैं ।

18 वर्ष की आयु में विवाह का अधिकार देने को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है लेकिन अभिभावकों की नजर में कॉलेज में प्रवेश करते ही यदि उनका बच्चा ‘लव मेंकिंग’ में पड़ जाये तो उसका भविष्य क्या होगा । अभिभावकों का मानना है कि जब तक उनके बेटे को रोजगार या व्यापार स्थापित न हो, जब तक वह अपनी जीवन संगिनी को दो वक्त की रोटी उपलब्ध कराने के काबिल न हो उसे शादी नहीं करनी चाहिए । हम करोड़ों के व्यापार वाले परिवारों की बात नहीं करते, देश के सामान्य परिवारों की धारणा तो यही है ।

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड मैरिज के संबंध में कोई कानून न होने पर विधि आयोग से सलाह मांगी थी । दिल्ली हाईकोर्ट और देश के कई दूसरे हाईकोर्ट ने 16 वर्ष से कम उम्र में की गयी शादियों को जायज ठहराया था ।

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दिल्ली और आंध्र प्रदेश हाईकोटों ने अपने फैसले में कहा था:

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i. 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की अगर अपनी मर्जी से शादी करती है तो वह न अमान्य होगा और न ही अवैध ।

ii. लड़की चाहे नाबालिग ही हो अगर वह अपने प्रेमी के साथ अपनी मर्जी से घर छोड्‌कर जाती है तो लड़के पर अपहरण और बलात्कार के आरोप नहीं लगाए जा सकते ।

iii. एक नाबालिग को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार उपलब्ध हैं । अगर माँ-बाप या समाज नाबालिग की भावनाओं को नहीं समझते और उनसे मारपीट करते हैं या पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं तो उसे अपनी भावनाओं की रक्षा का अधिकार है । भावनाओं और इच्छाओं के चलते यदि लडका-लडकी भाग जाये तो यह अपराध नहीं होगा ।

इन सब परिस्थितियों के दृष्टिगत विधि आयोग ने स्वेच्छा से यौन संबंध बनाने के लिए लड़की की उम्र सीमा को 15 साल से बढ़ाकर 16 साल करने की सिफारिश की है, भले ही वह शादीशुदा हो या न हो । सिफारिश मान लिए जाने से ऐसे मामले में जिनमें 16 वर्ष से कम आयु की लड़की भागकर प्रेमी से शादी करती है या अपने पति के साथ यौन संबंध बनाती है तो पति यह दावा कर सजा से नहीं बच सकता कि उसने अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाया है ।

विधि आयोग ने यह भी टिप्पणी की है कि नाबालिग लड़की और नाबालिग दुल्हन के लिए रचेच्छा से यौन संबंध बनाने की न्यूनतम आयु अलग-अलग रखना तर्कसंगत नहीं । इन सिफारिशों पर आम प्रतिक्रिया यही है कि सिफारिशों से कानूनी धुंध जरूर छटेंगी लेकिन देश की बढ़ती जनसंख्या का ध्यान भी रखना होगा । शादी की उम्र घटाने पर जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो सकती है । फैसला अभिभावकों और वयस्कों के हाथ में है ।

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