Tag Archives | Literature

हिंदी साहित्य में हालावाद की प्राश्रंगिकता पर निबन्ध

हिंदी साहित्य में हालावाद की प्राश्रंगिकता पर निबन्ध! हिंदी साहित्य में 'हालावाद' की शुरुआत 'छायावाद' के बाद हुई । हालावाद की कविताओं में वैयक्तिकता की प्रधानता रही । इसके कवि दुनिया को भूलकर स्वयं अपने प्रेम-संसार की प्रेमपूर्ण मस्ती में डूब गए । संसार के सारे दुःख, सारी निराशा और सारी कठिनाइयाँ इसी 'हालावाद' की मस्ती में डूब गईं । [...]

By |2015-12-17T13:28:55+05:30December 17, 2015|Essays|Comments Off on हिंदी साहित्य में हालावाद की प्राश्रंगिकता पर निबन्ध

सभ्यता के विकास के साथ कविता का पतन अवश्यंभावी है (निबन्ध)

सभ्यता के विकास के साथ कविता का पतन अवश्यंभावी है (निबन्ध) | Essay on As Civilization Advances Poetry Necessarily Declines in Hindi! यह सर्वविदित है कि कविता किसी देश की सभ्यता का सूचक होती है । उत्कृष्ट साहित्य देश की महानता की कसौटी होता है । इसी कारण ग्रीक और रोमन सभ्यता को सम्मान दिया जाता है । प्राचीन भारत [...]

By |2015-10-26T18:03:04+05:30October 26, 2015|Essays|Comments Off on सभ्यता के विकास के साथ कविता का पतन अवश्यंभावी है (निबन्ध)

साहित्य की शक्ति पर निबंध | Essay on The Power of Literature in Hindi

साहित्य की शक्ति पर निबंध | Essay on The Power of Literature in Hindi! संस्कृत की एक सूक्ति के अनुसार - 'साहित्य, संगीत, कला विहीन:, साक्षात् पशु पुच्छ विषाणहीन: '' अर्थात् साहित्य, संगीत, कला से विहीन मनुष्य पशु के समान है । नि:संदेह शेष क्रियाएँ जैसे खाना-पीना, सोना आदि कार्य पशु भी संपन्न करते हैं परंतु साहित्य व संगीत आदि [...]

By |2015-10-15T07:16:55+05:30October 15, 2015|Literature|Comments Off on साहित्य की शक्ति पर निबंध | Essay on The Power of Literature in Hindi
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