भारतीय कृषक की जीवनी पर निबन्ध | Essay on Autobiography of an Indian Peasant in Hindi!

भारतीय कृषक के बारे में सभी की धारणा है कि वह निर्धन, फटेहाल होता है । उसे कृषि के लिए प्राचीन ढंगों का प्रयोग करना पड़ता है । यह सदा मौसम और साहूकार की दया पर आश्रित रहता है ।

उसी की मेहनत के बल पर सभी को रोटी प्राप्त होती है, चाहे उसके अपने घर में चूल्हा न चले । अपने परिवार के जीवन निर्वाह के लिए उसे कठिन श्रम करना पड़ता है और प्राय: वह कर्ज में डूबा रहता है । उसकी स्थिति बंधुआ मजदूर से ज्यादा अच्छी नहीं होती है ।

परन्तु, स्वतंत्रता के बाद उसकी हालत में पर्याप्त सुधार आया है । आज भारतीय कृषक को पूर्णत: समृद्ध तो नही लेकिन खुशहाल अवश्य कहा जा सकता है । अब कृषि में नवीन उपकरणों, प्रणालियों का प्रयोग किया जा रहा है । ये उसके लिए वरदान सिद्ध हो रहे है । वह कर्ज के बोझ से दबा हुआ नहीं है । वह अपने परिवार और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति सुविधाजनक रूप से कर सकता है ।

मैं साधारण भारतीय कृषक हूँ । मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जन्म लिया है । इन वर्षो के दौरान हुए परिवर्तनों को मैंने स्वयं भोग है । जीवन के प्रारंभिक वर्ष मैंने बहुत गरीबी और कष्ट में झेले हैं । हमारे गाँव में नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था के कारण मेरे दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया ।

बहुत छोटी अवस्था से ही मैनें खेती-बाड़ी में अपने पिता का हाथ बँटाना शुरु कर दिया था । खेत में अधिक काम होने के कारण मेरे पिताजी मुझे पढ़ाना नहीं चाहते थे । लेकिन मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं पढ़ने के साथ-साथ उनके साथ खेत में भी काम करूँगा । इस पर वे राजी हो गए । अपने कठिन परिश्रम और दृढ़ विश्वास के बल पर मैंने अपनी विद्यालयी शिक्षा समाप्त की । इस समय तक मेरे छोटे भाई ने खेत में मेरे काम को संभाल लिया था ।

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कृषि की आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों के बारे में ज्ञान अर्जित करने के लिए मैंने महाविद्यालय में प्रवेश का निर्णय लिया । मेरे इस निर्णय का मुझे बहुत लाभ हुआ । जब पढ़ाई समाप्त कर मैं बाहर निकला, मैंने महसूस किया कि मैं प्रणालियों की सहायता से अपने पिता और अन्य गाँववालों की अपेक्षा अधिक उत्पादन कर सकता हूँ ।

अध्ययन के दौरान जानी विधियों के अनुरूप मैंने कृषि आरंभ की और एक-दो वर्षो में ही हमारी जमीन सोना उगलने लगी । मेरे घर और परिवार की स्थिति काफी सुधर गई । मैंने अपने गांव के लड़कों को नवीन उपकरणों के प्रयोग और प्रणालियों को सिखाया । अब हमारे ऊपर कोई कर्ज नहीं है और हम सुख-सुविधा से सम्पन्न जिन्दगी जी रहे हैं ।

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परिवार में मेरे विवाह पर विचार किया जाने लगा । लेकिन मैं उस समय स्वयं को नए परिवार का बोझ उठाने के लायक नहीं समझता था । कुछ समय बीतने पर मैंने पड़ोस के गाँव की सुन्दर, शिक्षित लड़की का चयन अपने जीवन साथी के रूप में किया । उसके विचार मुझसे मिलते थे । विवाह में मैंने दहेज स्वीकार नहीं किया ।

मेरा परिवार सीमित है, मेरे दो बच्चे हैं । मैं दोनों को ही पढ़ा-लिखा कर, आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूँ । अपने बच्चों के साथ मैं मित्रवत व्यवहार करता हूँ; वे भी अपने विचारों को हमारे सामने रखते हैं । हम दोनों उनको उचित मार्ग दिखाने का प्रयास करते हैं ।

अत: स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और बाद की स्थिति का अंदाजा कोई भी लगा सकता है । यदि मेरी जीवनी से किसी को प्रेरणा मिलती है, तो मैं अपने जीवन को कृतार्थ समझूँगा । दृढ़ संकल्प, जिज्ञासा और जीवन में कुछ कर दिखाने की इच्छा शक्ति ने ही मुझे प्रेरित किया और मैं एक सफल जीवन जी रहा हूँ ।