सुपर कंप्यूटर की मंजिल पर निबंध | Essay on Super Computer in Hindi!

भारत भी अब सुपर कंप्यूटर के क्षेत्र में एक हस्ती है । दुनिया के अबल 500 सुपर कप्यूटरों की नई टॉप टेन लिस्ट में उसका सुपर कप्यूटर चौथे स्थान पर आया है ।

टाटा कंपनी की पुणे स्थित इकाई-कंप्यूटेशनल रिसर्च लैबोरेटरीज के बनाए हुए सुपर कप्यूटर ‘एचपी-3000-बीएल-460सी’ को 117.9 टेराफ्लॉप की गति के कारण अमेरिका और जर्मनी के सुपर कंप्यूटरों के ठीक बाद स्थान दिया गया है ।

हालांकि हमारा यह पहला सुपर कंप्यूटर नहीं है । इससे काफी पहले 1998 में सी-डैक, पुणे के वैज्ञानिक ‘परम-10000’ सुपर कंप्यूटर बना चुके हैं और दावा था कि उस वक्त वह सुपर कंप्यूटर मौजूदा अमेरिकी सुपर कंप्यूटरों के मुकाबले 50 गुना तेज था ।

लेकिन उसके बाद सुपर कंप्यूटिंग को लेकर भारत में वैसी उत्सुकता नहीं दिखाई दी, जैसी अन्य विकसित मुल्कों में इस दौरान रही है । पर अब लगता है कि भारत इस दौड़ में पिछड़ा नहीं रहना चाहता, जिसका नतीजा है टाटा का यह सुपर कंप्यूटर ।

निश्चित रूप से यह काम आसान नहीं था । वह देश, जिसे पश्चिमी मुल्क लंबे समय तक सांप-सपेरों, जादू-टोने और अंधविश्वासों में लिपटे समाज का प्रतीक मानते थे, कुछ ही दशकों में इतनी तरक्की कर लेगा, इसका किसी को भरोसा नहीं था । किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि तमाम प्रतिबंधों और पश्चिम की साजिशों के बावजूद एक विकासशील देश भारत अंतरिक्ष में स्वदेशी उपग्रह छोड़ने लगेगा, बल्कि 21वीं सदी आते ही अगले दो दशकों में यानी 2020 तक विकसित देश बनने की कोशिश में लग जायेगा ।

अगर यह पूछा जाये कि ऐसी कौन-सी तरकीब या ऐसा कौन-सा तरीका था, जिसने हमें इतनी शक्ति दी कि हम एक ओर तो भूख और गरीबी जैसी समस्याओं से सतत् जूझने का संकल्प जुटा सके और दूसरी तरफ आईटी पेशेवरों की बदौलत अपनी विशेषता का दुनिया भर में डंका बजाने के काबिल हो सके, तो इसका एकमात्र जवाब है कंप्यूटर । यह मानने से किसी को भी इनकार नहीं है कि कप्यूटर ने हमें अपने देश की तस्वीर और तकदीर, दोनों बदलने में मदद दी है ।

आज अगर भारत को पूरा विश्व ज्ञान आधारित सेवाओं के सबसे विश्वसनीय स्रोत के रूप में देखता है, तो इसका श्रेय भी कंप्यूटर को ही जाता है । आज हमारे देश के नारायण मूर्ति और उनकी कंपनी इन्फोसिस का पूरी दुनिया में बोलबाला है, तो सिर्फ इसीलिए कि यह कंपनी कंप्यूटर और उससे जुड़े ज्ञान से संबंधित है ।

इस पर उपलब्धि के मायने क्या हैं? आज जब हम बाजार से आसानी से सुपर कंप्यूटर खरीद सकते हैं (क्योंकि अब वैसी बंदिशें नहीं है, जैसी बीती सदी के 80 के दशक में अमेरिका ने लगा रखी थीं और जिनके चलते उसने हमें सुपर कंप्यूटर देने से इनकार कर दिया था), तो आखिर इसकी क्या जरूरत है कि हम खुद वैसा ही कंप्यूटर बनाएं?

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अगर बनाना ही है, तो क्यों न सस्ते कंप्यूटर बनाएं ताकि शिक्षा और स्वास्थ्य सहित अनेक क्षेत्रों में आम जन उसका लाभ उठा सकें? कहीं हमारे मन में यह मलाल तो नहीं है कि जो मुल्क आईटी क्रांति के शीर्ष पर होने का रुतबा रखता है वह सुपर कंप्यूटरों के निर्माण में क्यों पिछड़ा हुआ है? इन सवालों के जवाब पाने से पहले हमें थोडा अतीत में झांकना होगा ।

बीती शताब्दी में जब कंप्यूटर का स्वप्न बुना जा रहा था, तो साधारण पीसी (पर्सनल कंप्यूटर) ही सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता था । 1973 में अमेरिका के उत्तरी कैलिफोर्निया में डिरॉक्स कॉरपोरेशन के पालो आंल्टो रिसर्च सेंटर में पहले-पहल बने साधारण पीसी ने जिस क्रांति की शुराआत की थी, वह दस साल के अंदर आईबीएम के माइक्रो कंप्यूटर बाजार में आने के बाद अपने उत्कर्ष पर मानी जाने लगी । इस उपलब्धि की बदौलत 1982 में अमेरिकी साप्ताहिक पत्रिका ‘टाईम’ ने कंप्यूटर को ‘मशीन ऑफ द इयर’ की उपाधि दी थी ।

यह माइक्रो कंप्यूटर शुराआती पीसी से औसतन 300 गुना ज्यादा शक्तिशाली, मेमोरी के मामले में 2000 गुना तेज और आकडो के भंडारण के लिए एक लाख गुना ज्यादा स्पेस रखने वाला था । कोई शक नहीं कि इस कंप्यूटर ने दुनिया भर में अपनी जगह बनाई और उपयोगिता साबित की ।

लेकिन कुछ जरूरतें ऐसी थीं, जिन्हे इन कंप्यूटरों की बदौलत पूरा कर पाना संभव नहीं हो रहा था । मसलन, मौसम की जानकारियां, अंतरिक्ष के रहस्यों और धरती की विभिन्न गतिविधियों से जुड़े आकड़ों का तेजी से संसाधन (प्रोसेसिंग) और उनका संग्रहण इस छोटे कंप्यूटर के बस की बात नहीं थी ।

छोटे कंप्यूटरों में सामान्यत: एक प्रोसेसर होता है, जो उनकी सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट सीपीयू में निहित होता है । ये कंप्यूटर एक सीमा से ज्यादा आकड़ों को न तो संग्रह कर सकते हैं और न ही इन पर तेजी से गणनाएं की जा सकती हैं । विशेष रूप से आप, मौसम, मॉलीक्यूलर रिसर्च (कृषि और दवाओं से जुड़े शोध), बायोटेक्नोलॉजी, डीएनए मैपिंग आदि की जानकारियों का संसाधन (प्रोसेस) करके तीव्रता से परिणाम निकालना भी इनके बस में नहीं होता । इसी जरूरत के चलते सुपर कंप्यूटरों के आविष्कार का रास्ता खुला ।

बहरहाल, आश्वस्ति की बात अब यह है कि भारत के पास भी सुपर कंप्यूटर हैं । इस संदर्भ में अतीत की जिस गौरवगाथा का बखान करते हम नहीं थकते, उससे सी-डेक, पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा 1998 में ‘परम-10000’ सुपर कंप्यूटर बना लिया जाना सबसे प्रमुख है । दावा है कि उस समय भारत विश्व का तीसरा और एशिया का दूसरा ऐसा देश था, जिसने सुपर कंप्यूटर बनाने में सफलता हासिल की थी ।

देश में सुपर इनफारमेशन हाइवे बनाने के मकसद से निर्मित परम-10000 की उपयोगिता से कतई इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन पिछले कुछ समय से देश में इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही थी कि भारत सुपर कंप्यूटरों के निर्माण में पिछड़ रहा है ।

खास तौर से यह देखते हुए कि ब्रिटेन और जापान आदि देश सुपर कंप्यूटिंग में गति बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, हमारे वैज्ञानिक चिंतित थे कि कहीं भावी जरूरतों के लिए हमें एक बार फिर पश्चिमी देशों का मोहताज न बनना पडे । अंतरिक्ष अनुसंधान के भावी कार्यक्रमों (मसलन चंद्र मिशन), ड्रग्स रिसर्च और जलवायु परिवर्तन से लेकर एटॉमिक स्ट्रक्चर संबंधी जानकारियों के विश्लेषण और संबंधित आकड़ों के आधार पर सिम्यूलेशन की जरूरत के मद्देनजर बहुत अधिक गति वाले सुपर कंप्यूटरों की जरूरत है ।

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इसमें संदेह नहीं कि खुली बाजार व्यवस्था में हम अपनी जरूरत के मुताबिक अधिक क्षमता वाला सुपर कंप्यूटर कहीं से भी हासिल कर सकते है, पर सुपर कंप्यूटिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का एक अर्थ यह है कि हमारे देश में तस्वीर बदलने और रुख को अपने पक्ष में मोड़ने की कूबत है, और इसे सिर्फ एक बार साबित करने भर से काम नहीं चलता, बल्कि बार-बार इसके प्रमाण देने होते हैं ।

दूसरी, अहम बात यह है कि ऐसे सुपर कंप्यूटर बनाकर हम इसके बाजार में जगह बना सकते हैं और देश के विकास के लिए जरूरी विदेशी मुद्रा कमा सकते हैं । पर इस पूरे नजारे में एक अहम सवाल सस्ते कंप्यूटरों की जरूरत से जुड़ा है ।

हम ऐसे अच्छा मॉडर्न देश नहीं है, जहा महंगे लैपटॉप और सुपर कंप्यूटर की बात करना सभी को लुभाता हो बल्कि हमें तो सस्ते कंप्यूटर चाहिए, क्योंकि इस देश की एक बड़ी आबादी महंगे कंप्यूटर खरीदने से लाचार है और एक बेसिक कंप्यूटर भी उसकी जिंदगी बदल सकता है । हमारी पहली जरूरत आईटी के नक्शे पर खुदी हुई डिजिटल खाई को पाटने की है । एक अनुमान है कि देश में सौ लोगों पर एक साधारण पीसी है, जबकि चीन में यह संख्या चार गुना है ।

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जिस तरह सस्ते मोबाइल और सस्ती कार ने उपभोक्ताओं की विशाल फौज खड़ी की है, वैसा ही काम सस्ते कंप्यूटर भी कर सकते हैं । खास तौर से सेवाओं, जन संपर्क, शिक्षा और ई-गवर्नेस में सस्ते कंप्यूटर का लैपटॉप क्रांति ला सकते हैं । सस्ते कंप्यूटर उन ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी पलट सकते हैं, जो डाटा एंट्री जैसे काम करना चाहती हैं । ये कंप्यूटर गांव को शहर में तो नहीं बदलेंगे, लेकिन शहरों का रौब जरूर खत्म कर देंगे ।

जाहिर है, सस्ता कंप्यूटर एक बात है और सुपर कंप्यूटर का बनना दूसरी बात । अगर पूरा माहौल एक-दूसरे के सहयोग या निर्भरता वाला बन सका, तो हम यह कह ही सकते हैं कि सस्ते और सुपर, दोनों तरह के कप्यूटर आने वाले दिनों में भारत की तकदीर बदल सकते हैं ।

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