Here is a compilation of essays on ‘Library’ for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Library’ especially written for School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on Library


Essay Contents:

  1. Essay on Library in Hindi Language
  2. Essay on Library and its Benefits for School Students in Hindi Language
  3. Essay on Library and its Importance for School Students in Hindi Language
  4. Essay on Library, Its Benefits and Importance for College Students in Hindi Language
  5. Essay on Library
  6. Essay on the Library Revolution for College Students

1. पुस्तकालय  | Essay on Library in Hindi Language

पुस्तकालय शब्द पर जब हम विचार करते हैं, तो हम इसे दो शब्दों के मेल से बना हुआ पाते हैं- पुस्तक+आलय; अर्थात् पुस्तक का घर । जहाँ विभिन्न प्रकार की पुस्तकें होती हैं और जिनका अध्ययन स्वतंत्र रूप से किया जाता है, उसे पुस्तकालय कहा जाता है । इसके विपरीत जहाँ पुस्तकें तो हों लेकिन उनका अध्ययन स्वतंत्र रूप से न हो और वे अलमारी में बन्द पड़ी रहती हों, उसे पुस्तकालय नहीं कहते हैं । इस दृष्टिकोण से पुस्तकालय ज्ञान और अध्ययन का एक बड़ा केन्द्र होता है ।

प्राचीनकाल में पुस्तकें आजकल के पुस्तकालयों की तरह एक जगह नहीं होती थीं; अपितु प्राचीनकाल में पुस्तकें हस्तलिखित हुआ करती थीं । इसलिए इन पुस्तकों का उपयोग केवल एक ही व्यक्ति कर पाता था । दूसरी बात यह कि प्राचीनकाल में पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करना एक बड़ा कठिन कार्य होता था; क्योंकि पुस्तकें आज जितनी प्रकार की एक ही जगह मिल जाती हैं; उतनी तब नहीं मिलती थीं ।

इसलिए विविध प्रकार की पुस्तकों से आनन्द, ज्ञान या मनोरंजन करने के लिए आज हमें जितनी सुविधा प्राप्त हो चुकी हैं, उतनी इससे पहले नहीं थीं । इस प्रकार से पुस्तकालय हमारी इस प्रकार की सुविधाओं को प्रदान करने में आज अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका को निभा रहे हैं ।

पुस्तकालय की कोटियाँ या प्रकार कई प्रकार के होते हैं । कुछ पुस्तकालय व्यक्तिगत होते हैं, कुछ सार्वजनिक होते हैं और कुछ सरकारी पुस्तकालय होते हैं । व्यक्तिगत पुस्तकालय, वे पुस्तकालय होते हैं, जो किसी व्यक्ति-विशेष से ही सम्बन्धित होते हैं ।

ऐसे पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या बहुत ही सीमित और थोड़े प्रकार को होती है । हम कह सकते हैं कि व्यक्तिगत पुस्तकालय एक प्रकार से स्वतंत्र और ऐच्छिक पुस्तकालय होते हैं । इन पुस्तकालयों का लाभ और उपयोग उठाने वाले भी सीमित और विशेष वर्ग के ही विद्यार्थी होते हैं । इन पुस्तकालयों की पुस्तक बहुत सामान्य या माध्यम श्रेणी की होती हैं ।

व्यक्तिगत पुस्तकालय को निजी पुस्तकालय की भी संज्ञा दी जाती है । इस प्रकार के पुस्तकालय मुख्य रूप से धनी और सम्पन्न वर्ग के लोगों से चलाए जाते हैं । ऐसे पुस्तकालयों की संख्या भी पाठकों के समान ही सीमित होती है; क्योंकि स्वतंत्र अधिकार के कारण इन पुस्तकालयों के नियम-सिद्धान्त का पालन करने में सभी पाठक समर्थ नहीं हो पाते हैं ।

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संस्थागत पुस्तकालय भी पुस्तकालयों के विभिन्न प्रकारों में एक विशेष प्रकार का पुस्तकालय है । संस्थागत पुस्तकालय का अर्थ है-किसी संस्था द्वारा चलने वाले पुस्तकालय । ऐसे पुस्तकालय स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों या किसी अन्य संस्था के द्वारा संचालित हुआ करते हैं । इस प्रकार के पुस्तकालय व्यक्तिगत या निजी पुस्तकालय के समान नहीं होते हैं, जो स्वतंत्रतापूर्वक चलाए जाते हैं ।

संस्थागत पुस्तकालय के पाठक न तो सीमित होते हैं और न इसके सीमित नियम ही होते हैं, अपितु इस प्रकार के पुस्तकालय तो विस्तृत नियमों के साथ अपने पाठकों की संख्या असीमित ही रखते हैं । इसलिए इन पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या भी बहुत बड़ी या असीमित होती है । इसी तरह इस प्रकार के पुस्तकालयों की पुस्तकें बहुमूल्य और अवक्षय अर्थात् सस्ती और महँगी दोनों ही होती हैं । हम यह कह सकते हैं कि इस प्रकार के पुस्तकालयों की पुस्तकें महँगी होती हुई भी मध्यम श्रेणी की होती हैं ।

संस्थागत पुस्तकालयों की पुस्तकें साहित्य, संगीत, कला, दर्शन, धर्म, राजनीति, विज्ञान, समाज, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आदि सभी स्तरों की अवश्य होती हैं । संस्थागत पुस्तकालयों की संख्या सभी प्रकार के पुस्तकालयों से अधिक होती है । इस दृष्टिकोण से संस्थागत पुस्तकालयों का महत्त्व सभी प्रकार के पुस्तकालयों से बढ़कर है ।

पुस्तकालयों का तीसरा प्रकार सार्वजनिक पुस्तकालयों का है । सार्वजनिक पुस्तकालयों की संख्या संस्थागत पुस्तकालयों की संख्या से बहुत कम होती है; क्योंकि इस प्रकार के पुस्तकालयों का उपयोग या सम्बन्ध केवल बौद्धिक और पुस्तक-प्रेमियों से ही उाधिक होता है । कहीं-कहीं तो सरकार के द्वारा और कहीं-कहीं सामाजिक संस्थाओं के द्वारा भी सार्वजनिक पुस्तकालयों का संचालन होता है ।

चाहे जो कुछ हो सरकार द्वारा ये पुस्तकालय मान्यता प्राप्त होते हैं । सरकार इन पुस्तकालयों की सहायता समय-समय पर किया करती है । अत: सार्वजनिक पुस्तकालयों का भविष्य व्यक्तिगत पुस्तकालयों के समान अंधकारमय नहीं होता है ।

पुस्तकालय का एक छोटा-सा प्रकार चलता-फिरता पुस्तकालय है । इस प्रकार के पुस्तकालयों का महत्त्व अवश्य है; क्योंकि समय के अभाव के कारण लोग इस प्रकार के पुस्तकालयों का अवश्य लाभ उठाते हैं । सुविधाजनक अर्थात् घर बैठे ही इन पुस्तकालयों का लाभ उठा पाने के कारण इनका महत्त्व और लोकप्रिय होना निश्चय ही सत्य है । सीमित संख्या होने के कारण यद्यपि इन पुस्तकालयों का प्रसार कम है, लेकिन महिलाओं के लिए ये अवश्य अधिक उपयोगी है ।

पुस्तकालय ज्ञान-विज्ञान की रहस्यमय जानकारी को प्रदान करने में अवश्य महत्त्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं । ये हमें सत्संगति प्रदान करते हैं । हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं । इसलिए हमें पुस्तकालयों का अवश्य अधिक-से-अधिक उपयोग करना चाहिए ।


2. पुस्तकालय की उपयोगिता । Essay on Library and its Benefits for School Students in Hindi Language

शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जिस प्रकार मनुष्य को संयमित और संतुलित भोजन कोई आवश्यकता है उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञानार्जन परमावश्यक है । मस्तिष्क को क्रियाशील और गतिशील रखने के लिए शुद्ध ज्ञान एवं नवीन विचारों की आवश्यकता होती है । यह ज्ञान और शुद्ध विचार हमें अज्ञानांधकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण लोक में ले जाते हैं ।

सरस्वती की उपासना के लिए दो आराधना मंदिर है: एक विद्यालय और दूसरा पुस्तकालय । पुस्तकालय में विद्यार्थी विस्तृत व्यापक ज्ञान प्राप्त करता है । जहाँ सरस्वती के अनंत पुत्रों अर्थात् गनी किताबों का संग्रह होता है, जिनके अध्ययन से मानव अपने जीवन के अशांत संर्धामय क्षणों में शांति प्राप्त करता है ।

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पुस्तकालयों की दृष्टि से इंग्लैंड अमेरिका और रूस सबसे आगे हैं । अमेरिका में ‘वाशिंगटन कांग्रेस पुस्तकालय’ विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय माना जाता है । रूस का सबसे बड़ा पुस्तकालय ‘लेनिन पुस्तकालय है । भारत वर्ष में कोलकाता के राष्ट्रीय पुस्तकालय में दस लाख पुस्तकें हैं ।

भारत का दूसरा महत्वपूर्ण पुस्तकालय बड़ौदा का केंन्द्रीय पुस्तकालय है इसमें 1 लाख 31 हजार पुस्तकें हैं । पुस्तकालयों से अनेक लाभ है । ज्ञान की वृद्धि में पुस्तकालय से जो सहायता मिलती है वह किसी अन्य साधन द्वारा नहीं मिल सकती । किसी विषय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए उस विषय से संबंधित पुस्तकों को पढ़ना आवश्यक होता है ।

ज्ञान-वृद्धि के अतिरिक्त पुस्तकालयों से ज्ञान का प्रसार भी सरलता से होता है । पुस्तकालय के संपर्क में रहने से मनुष्य कुवासनाओं और प्रलोभनों से बच जाता है । पुस्तकालय मनुष्य को सत्संग की सुविधा प्रदान करता है । पुस्तक पढ़ते-पढ़ते कभी मनुष्य मन ही मन प्रसन्न हो उठता है और कभी खिलखिलाकर हँस पड़ता है ।

श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन से हमें मानसिक शांति प्राप्त होती है उस समय संसार की समस्त चिंताओं से पाठक मुका हो जाता है । अत: पुस्तकालय हमारे लिए नित्य जीवन साथियों की योजना करता है । जिसके साथ आप बैठकर बातों का आनंद ले सकते हैं, चाहे वह शेक्सपीयर हो या कालीदास, न्यूटन हो या प्लेटो अरस्तु हो या शंकराचार्य ।

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आधुनिक युग में यद्यपि मनोरंजन के अनेक साधन हैं परंतु ये सब मनोरंजन के साधन पुस्तकालय के सामने नगण्य हैं क्योंकि पुस्तकालय से मनोरंजन के साथ-साथ पाठक का आत्म-परिष्कार एवं ज्ञान वृद्धि होती है । पुस्तकालयों में भिन्न-भिन्न रसों की पुस्तकों के अध्ययन से हम समय का सदुपयोग भी कर लेते है ।

अपने रिक्त समय को पुस्तकालय में व्यतीत करना समय की सबसे बड़ी उपयोगिता है । व्यक्तिगत हित के अतिरिक्त पुस्तकालयों से समाज का भी हित होता है ।  भिन्न-भिन्न देशों की नवीन एवं प्राचीन पुस्तकों के अध्ययन से विभिन्न देशों की सामाजिक परंपराओं-मान्यताओं और व्यवसायों का परिचय होता है ।

पुस्तकालय वास्तव में ज्ञान का असीम भंडार है । देश की शिक्षित जनता के लिए यह उन्नति का सर्वोत्तम साधन है । भारत वर्ष में भी अच्छे पुस्तकालयों की संख्या पर्याप्त नहीं है । भारत सरकार इस दिशा में प्रयत्नशील हैं । वास्तव में पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र सदगुरु और जीवन पथ की संरक्षिका है ।

देश की अशिक्षित जनता को सुशिक्षित बनाने के लिए सार्वजनिक पुस्तकालयों की बड़ी आवश्यकता है । भारत सरकार ने ग्राम-पंचायतों की देख-रेख में गाँव-गाँव में ऐसे पुस्तकालयों की व्यवस्था की है । गाँव की निर्धन जनता अपने ज्ञान प्रसार के लिए पुस्तकें नहीं खरीद सकती ।

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उस अज्ञानांधकार को दूर करने के लिए सरकार का यह प्रयास प्रशंसनीय है । जिन लोगों पर लक्ष्मी की अटूट कृपा है, उन्हें इस प्रकार के पुस्तकालय जनहित के लिए खुलवाने चाहिए । पुस्तकालय का महत्व देवताओं से अधिक है क्योंकि पुस्तकालय ही हमें देवालय में जाने योग्य बनाते हैं ।


3. पुस्तकालय का महत्व । Essay on Library and its Importance for School Students in Hindi Language

सृष्टि के समस्त चराचरों में मनुष्य ही सर्वोत्कृष्ट कहलाने का गौरव प्राप्त करता है । मनुष्य ही चिंतन-मनन कर सकता है । अच्छे-बुरे का निर्णय कर सकता है तथा अपने छोटे से जीवन में बहुत कुछ सीखना चाहता है ।

उसी जिज्ञासावृत पुस्तकें शांत करती हैं अर्थात ज्ञान का भंडार पुस्तकों में समाहित है । ऐसा स्थान जहाँ अनेक पुस्तकों को संगृहीत करके उनका एक विशाल भंडार बनाया जाता है: पुस्तकालय कहलाता है पुस्तकालय ज्ञान के वे मंदिर हैं जो मानव इच्छा को शांत करते हैं, उसे विभिन्न विषयों पर नई जानकारियाँ उपलब्ध करते हैं, ज्ञान के संचिर कोश से उसे निश्चित करते है, अतीत झरोखों की झलक दिखाते हैं तथा उसके बौद्धिक स्तर को उन्नत करते हैं ।

दुनियाँ में विषय अनंत हैं उन विषयों से संबंधित पुस्तकें भी अनंत हैं । उन सभी पुस्तकों को खरीद कर पड़ पाना किसी के बस की बात नहीं । इस आवश्यकता की पूर्ति पुस्तकालय अत्यंत सुगमता से कर सकता है । बड़े बड़े पुस्तकालयों में लाखों पुस्तके संगृहीत होती हैं ।

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इनमें वे दुलर्भ पुस्तकें भी होती हैं जो अब अप्राप्य हैं जिन्हें किसी भी कीमत पर खरीदा नहीं जा सकता । पुस्तकालय में बैठकर कोई भी व्यक्ति एक ही विषय पर अनेक व्यक्तियों के विचारों से परिचित हो सकता है । अन्य विषयों के साथ अपने विषय का तुलनात्मक अध्ययन भी कर सकता है ।

अनगिनत पुस्तकों वाले अधिकांश पुस्तकालय पूरी तरह व्यवस्थित होते हैं । विद्यार्थी कुछ देर में ही अपनी जरूरत की पुस्तक पा सकता है । पुस्तकालय में जाते समय उसके नियमों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए । वहाँ जाकर वहीं पुस्तके पढ़नी चाहिए जिनकी आपको जरूरत हो । पुस्तकालय में ऐसी अनेक पुस्तकें होती हैं ।

यदि विद्यार्थी पुस्तकालय में केवल किस्से कहानियों की किताबे पढ़कर अपना समय बरबाद करने के लिए जाते हो तो सदुपयोग करना चाहिए तथा पुस्तकालय में बैठकर शांत वातावरण में एकाग्रचित्त होकर अध्ययन करना चाहिए ।

पुस्तकालय में बैठकर पुस्तकें पढ़ते समय बिल्कुल शांत रहना चाहिए । पुस्तकालय की पुस्तकों पर पेंसिल या पेन से निशान लगाना, उनके चित्रों आदि को फाड़ना या गदा करना ठीक नहीं है । वहाँ बैठकर हमें औरों का भी ध्यान रखना चाहिए । हमें कोई ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को असुविधा हो ।

पुस्तकालय किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं इसलिए वहाँ सगृहीत पुस्तकें सामाजिक संपति होती हैं अत: हमें पुस्तकालय की पुस्तकों को उसी दृष्टि से देखना चाहिए । पुस्तकालयों में संकलित पुस्तकों के माध्यम से व्यक्ति भाव-विचार, भाषा, ज्ञान-विज्ञान आदि सभी विषयों के क्रमिक विकास का इतिहास जानकर उनका किसी भी विशिष्ट दृष्टि से अध्ययन कर सकता है ।

अपने प्रिय महापुरुष, राजनेता, कवि, साहित्यकार आदि के जीवन और विचारों से कोई व्यक्ति सहज ही साक्षात्कार संभव हो जाता है । जातियों, राष्ट्रों, धर्मों आदि के उत्थान-पतन का इतिहास भी पुस्तकों से जानकर उत्थान और पतन के कारणों को अपनाया या उनसे बचा जा सकता है ।

पुस्तकालय ज्ञान-विज्ञान के अनंत भंडार होते हैं । उन्हें अपने भीतर समाए रहने वाला अनंत नदी-धारों, विचार-रत्नों, भाव-विचार-प्राणियों का अनंत सागर एवं निधि कहा जा सकता है । जैसे ज्ञान-विज्ञान के कई तरह के साधन पाकर भी सागर की अथाह गहराई एवं अछोर स्वरूपाकार को सही रूप से नाप-तोल संभव नहीं हुआ करता, उसी प्रकार पुस्तकालयों में संचित अथाह ज्ञान-विज्ञान, विचारों-भावों, आदि को खंगाल पाना भी नितांत असंभव हुआ करता है ।

जैसे अनंत नदियों का प्रवाह नित्य प्रति सागर में मिलते रहकर उसे भरित बनाए रखता है वैसे ही नित्य नई-नई पुस्तकें भी प्रकाशित होकर पुस्तकालयों को भरा-पूरा किए रहती हैं । यही उनका महत्व एवं गौरव    है ।


4. पुस्तकालय की उपयोगिता एवं महत्त्व । Essay on Library, Its Benefits and Importance for College Students in Hindi Language

1. प्रस्तावना ।

2. पुस्तकालय की उपयोगिता एवं आवश्यकता ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

व्यक्ति के चरित्र निर्माण में पुस्तकों का अभिन्न स्थान है । पुस्तकें जहां एकान्त में किसी शुभचिन्तक मित्र एवं मार्गदर्शक की भूमिका निभाती है, वहीं हमारे व्यक्तित्व को भी सन्तुलित करती हैं । बाल्यकाल के साथ ही व्यक्ति पुस्तकों के महत्त्व को समझने लगता है । मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान-प्राप्ति की लालसा उसे पुस्तकों तक खींच लाती है ।

व्यक्ति यह समझने लगता है कि अच्छे भोजन के साथ-साथ अच्छी पुस्तकें भी उसके लिए जरूरी हैं । पुस्तकों की सहज प्राप्ति हेतु वह पुस्तकालय तक जाता है । ज्ञानराशि का अक्षय भण्डार पुस्तकें उसे ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं एवं विधाओं से परिचित कराती हैं ।

वह कभी व्यक्तिगत पुस्तकालयों के माध्यम से, तो कभी सार्वजनिक पुस्तकालयों के माध्यम से अपनी आवश्यकता की पूर्ति करता है । शिक्षा संस्थानों से सुलभ होने वाली पुस्तकों को भी वह पढ़कर अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है ।

2. पुस्तकालय की उपयोगिता एवं आवश्यकता:

पुस्तकालय चाहे शैक्षिक संस्थानों का हो या फिर सार्वजनिक स्थानों का, उसका महत्त्व एवं उपयोगिता तो शाश्वत है । हमारा देश भारत प्राचीनकाल से ही पुस्तकालयों का भण्डार रहा है । पुस्तकालय विषयक उसकी समृद्धि नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशिला, ओदन्त पुरी आदि विद्यालयों के माध्यम से भी मिलती है ।

हमारे देश में वर्तमान में राष्ट्रीय पुस्तकालय भी है, जहां प्राचीन अन्यों की ऐतिहासिक दस्तावेजों सहित पाण्डुलिपियां संग्रहित हैं । कलकत्ता, दिल्ली, मुम्बई, बड़ौदा के राष्ट्रीय एवं राजकीय पुस्तकालयों में पुस्तकों का अक्षय भण्डार है, जिसका अध्ययन कर धनी, दरिद्र, बाल, वृद्ध, युवा सभी लाभान्वित होते हैं ।

ज्ञान वृद्धि एवं ज्ञान प्रकाश के स्थायी केन्द्रों के रूप में पुस्तकालयों की महत्ता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण है । पुस्तकालय न केवल हमारी ज्ञान-पिपासा को शान्त करते हैं, वरन् हमारे व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं । पुस्तकालय में जाकर जब हम महान पुरुषों, मनीषियों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, राष्ट्रमक्तों के आदर्श एवं प्रेरणापरक चरित्र को पढ़ते हैं, तो हम उनसे प्रेरणा लेते हैं ।

हमारा बौद्धिक, मानसिक, चारित्रिक, नैतिक विकास भी होता है । समय के सदुपयोग एवं मनोरंजन के साधनों के रूप में पुस्तकालय की हमारे जीवन में काफी उपयोगिता है । पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हमें देश-विदेश के समाचार मिलते हैं, वहीं हमारी आन्तरिक वृत्तियों का शोधन, परिष्करण भी होता है ।

पुस्तकें विश्वबसुत्च, मैत्री, सदभाव की भावना जगाने के साथ-साथ विश्व की सभ्यता, संस्कृति, साहित्य से भी परिचित कराती है । पुस्तकालयों की महत्ता एवं उपयोगिता को जानकर ही हमारे देश के नगर, महानगर, गांव-गांव में भी पुस्तकालय की व्यवस्था का प्रयास सरकार द्वारा किया जाता रहा है ।

3. उपसंहार:

पुस्तकालयों की महत्ता, उपयोगिता एवं उसकी आवश्यकता अक्षुण्ण है. । मानव के व्यक्तित्व के निर्माण में पुस्तकालयों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है । इसमें शैक्षिक संस्थान का पुस्तकालय हो या सार्वजनिक स्थान का हो या कि व्यक्तिगत हो ।

व्यक्तित्व निर्माण, ज्ञान-पिपासा की शान्ति, मनोरंजन, चित्तवृत्तियों का परिष्कार पुस्तकों द्वारा ही होता है । पुस्तकों के बिना तो मानव जीवन अधूरा ही होगा । पुस्तकें व्यक्तित्व निर्माण के साथ-साथ परिवार, समाज, देश की उन्नति में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । जिस देश का नागरिक सुशिक्षित, ज्ञान सम्पन्न होगा, वह देश निश्चित ही उन्नति की चरम सीमा को प्राप्त करेगा ।


5. पुस्तकालय । Essay on Library in Hindi Language

मानव शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए जिस प्रकार हमें पौष्टिक तथा संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है । उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है । मस्तिष्क को बिना गतिशील बनाये ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता । ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यालय जाकर गुरु की शरण लेनी पड़ती है ।

इसी तरह ज्ञान अर्जित करने के लिए पुस्तकालय की सहायता लेनी पड़ती है । लोगों को शिक्षित करने तथा ज्ञान देने के लिए एक बड़ी राशि व्यय करनी पड़ती है । इसलिए स्कूल, कॉलेज खोले जाते हैं और उनमें पुस्तकालय स्थापित किये जाते हैं । जिससे कि ज्ञान चाहने वाला व्यक्ति सरलता से ज्ञान प्राप्त कर सके ।

पुस्तकालय के दो भाग होते हैं । वाचनालय तथा पुस्तकालय । वाचनालय में देशभर से प्रकाशित दैनिक अखबार के अलावा साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक पत्र-पत्रिकाओं का पठन केन्द्र है । यहां से हमें दिन प्रतिदिन की घटनाओं की जानकारी मिलती है । पुस्तकालय विविध विषयों और इनकी विविध पुस्तकों का भण्डार ग्रह होता है । पुस्तकालय में दुर्लभ से दुर्लभ पुस्तक भी मिल जाती है ।

भारत में पुस्तकालयों की परम्परा प्राचीनकाल से ही रही है । नालन्दा, तक्षशिला के पुस्तकालय विश्वभर में प्रसिद्ध थे । मुद्रणकला के साथ ही भारत में पुस्तकालयों की लोकप्रियता बढ़ती चली गई । दिल्ली में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की सैकड़ों शाखाएं हैं । इसके अलावा दिल्ली में एक नेशनल लाइब्रेरी भी है ।

पुस्तकें मनुष्य की मित्र होती हैं । एक ओर जहां वे हमारा मनोरंजन करती हैं वहीं वह हमारा ज्ञान भी बढ़ाती हैं । हमें सभ्यता की जानकारी भी पुस्तकों से ही प्राप्त होती है । पुस्तकें ही हमें प्राचीनकाल से लेकर वर्तमानकाल के विचारों से अवगत कराती हैं । इसके अलावा पुस्तकें संसार के कई रहस्यों से परिचित कराती हैं । कोई भी व्यक्ति एक सीमा तक ही पुस्तक खरीद सकता है ।

सभी प्रकाशित पुस्तकें खरीदना सबके बस की बात नहीं है । इसलिए पुस्तकालयों की स्थापना की गई । पुस्तकालय का अर्थ है पुस्तकों का घर । यहाँ हर विषय की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं । इनमें विदेशी पुस्तकें भी शामिल होती हैं । विद्यालय की तरह पुस्तकालय भी ज्ञान का मंदिर है ।

पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं । इनमें पहले पुस्तकालय वे हैं जो स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय के होते हैं । दूसरी प्रकार के पुस्तकालय निजी होते हैं । ज्ञान प्राप्ति के शौकीन व्यक्ति अपने-अपने कार्यालयों या घरों में पुस्तकालय बनाकर अपना तथा अपने परिचितों का ज्ञान अर्जन करते हैं ।

तीसरे प्रकार के पुस्तकालय राजकीय पुस्तकालय होते हैं । इनका संचालन सरकार द्वारा किया जाता है । इन पुस्तकों का लाभ सभी लोग उठा सकते हैं । चौथी प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक होते हैं । इनसे भी सरकारी पुस्तकालयों की तरह लाभ उठा सकते हैं ।

इनके अतिरिक्त स्वयं सेवी संगठनों व सरकार द्वारा चल पुस्तकालय चलाये जा रहे हैं । यह पुस्तकालय एक वाहन पर होते हैं । हमारा युग ज्ञान का युग है । वर्तमान में ज्ञान ही ईश्वर है ज्ञान ही शक्ति है ।

पुस्तकालय से ज्ञान वृद्धि में जो सहायता मिलती है वह और कहीं से सम्भव नहीं है । विद्यालय में विद्यार्थी केवल विषय से संबंधित ज्ञान प्राप्त कर सकता है लेकिन पुस्तकालय ज्ञान का खजाना है ।


6. पुस्तकालय-क्रान्ति । Essay on the Library Revolution for College Students

अधिकांश विद्यालयों के पुस्तकालय में पुस्तकों में दीमक लग रही है । पुस्तकों पर मनों (दुनिया भर की) पक्की धूल जमी है । ढेर की ढेर पुस्तकें प्रतिवर्ष विद्यालयों में जमा होती जा रही हैं और खासे पुस्तकालय पुस्तकों की संख्या को दृष्टि में रखकर तैयार हो चुके हैं । अच्छे पुस्तकालय देश की प्रगति के प्रतीक हैं ।

जिस देश में जितने अधिक अच्छे पुस्तकालय हैं, वह देश उतना ही अधिक सम्पन्न और विकासशील है । इस दृष्टि से समृद्धिशाली पुस्तकालयों का विस्तार होना निश्चित ही बौद्धिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक क्रान्ति का द्योतक है, परन्तु राजकीय राशि तथा लोकल फण्ड से विकसित होने वाले पुस्तकालय तब तक अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते जब तक कि उनमें संगृहीत पुस्तकें अधिक-से-अधिक जनों के द्वारा पड़ी-समझी नही जाती ।

तथ्य यह है कि पुस्तकालयों में तेजी से पुस्तकों का आना शुरू हुआ है उसकी रफ्तार को मद्देनजर रखते हुए पुस्तकों के अध्ययन करने वालों की संख्या निरंतर न्यून से न्यूनतम होती जा रही है । रीक्षण होने के कारण से, उसी समय हाँ होती है और दीमक लगी पुस्तकों को निरीक्षक महोदय के सामने पेश कर उनको नष्ट करने की कार्रवाई की आवश्यकता पर ध्यान दिलाया जाता है और यूं कितनी ही हतभाग्या पुस्तकें बिना किसी की आंखों से गुजरे काल के गाल में समा जाती है ।

इसका परिणाम यह होता है कि सरकार की पूर्व-निर्धारित योजना में इजाफा होने के स्थान पर घाटा होता है । और साध्यतिक सांस्कृतिक तथा बौद्धिक क्रान्ति बाल-बाल होने से बच जाती है । विद्यालयों में जितनी दिलचस्पी पुस्तकें खरीदने में प्राय: रखने को मिलती है ।

उससे बहुत कम अभिरूचि पुस्तकालय व्यवस्था में नजर आती है । पुस्तकालय कम से कम विद्यालय-समय के अलावा सुबह-शाम अलग से खुलना चाहिए । कारण ‘स्कूल के समय’ में छात्र पुस्तकालय व वाचनालय का आवश्यकतानुरूप प्रयोग नहीं कर पाते हैं क्योंकि वे कक्षाओं में अध्ययनरत रहते हैं ।

आज आवश्यकता इस प्रयास की है कि पुस्तकों को दीमकों से बचाकर अधिक-से-अधिक दिमागों के लिए खुराक के रूप में इस्तेमाल किया जाए । इस दृष्टि से पुस्तकालय आकर्षक हो, साज-सज्जा से पूर्ण हो । छात्रों को वहीं बैठकर मनपसद पुस्तक पढ़ने की इजाजत हो । पुस्तकालय में प्रवेश करने और वहाँ से जाने के समय छात्र हस्ताक्षर करे ।

साथ ही एक पंजिका ऐसी भी रखी होनी चाहिए जिसमें छात्र यदि किसी पुस्तक पर अपनी राय लिखना चाहे तो लिख सके । उस पंजिका के प्रारम्भ में ”इंडैक्स ” रहना चाहिए जिसमें निबन्ध, कहानी, उपन्यास, राजनीति-शास्त्र, इतिहास आदि पुस्तकों के संबंध में राय लिखने के लिए पृष्ठ संख्या अंकित हो, यथा 1 से 15 तक उपन्यास, 16 से 30 तक इतिहास । छात्र जिस विषय पर पुस्तक पढ़ेगा, यदि वह चाहेगा तो तत्सम्बन्धी पुस्तक पर अपनी राय ”इंडैक्स” में दर्शाए पृष्ठ पर लिख सकेगा ।

इस प्रकार विभिन्न विषयों पर न केवल छात्रों की राय आसानी से जानी जा सकेगी बल्कि छात्रों की रूचि, उनके स्तर पर बोध का भी पता चल सकेगा और अन्त में जाकर उनकी रायों के अध्ययन से बहुत कुछ सार्थक निर्णय लिए जाने में सहायता मिल सकेगी ।

पुस्तकालय के बाहर बोर्ड हो, जिस पर जाली रहे और उसके अन्दर ‘रैपर’ लगाए जाएं: कम-से-कम सत्र में आने वाली पुस्तकों के । उसके साथ ही एक बोर्ड ऐसा होना चाहिए जिस पर गत सत्र अथवा सत्रों में विभिन्न विषयों की पढ़ी-जाने वाली पुस्तकों के ‘रैपर’ लगाए गए हों तथा साथ में उन पर अंकित की गई राय के आवश्यक वाक्यों को मय छात्र के नाम अथवा कक्षा के माध्यम से लिखा गया हो ।

यों यदि व्यवस्था जम जाए तो यह काम मासिक/ द्विमासिक/त्रैमासिक आधारों पर चालू सत्र में भी किया जा सकता है । छात्रों में आत्म-प्रदर्शन की भावना बलवती होती है इससे उसे पर्याप्त अवसर मिल 

सकेगा । इसी आधार पर देश भर के पुस्तकालयों में विभिन्न विषयों में सबसे अधिक पढ़ी गई ।

ADVERTISEMENTS:

पुस्तकों के नाम आ सकेंगे और जिन्हें पत्रिका के माध्यम से प्रकाशित कर लेखक तथा पाठक के मध्य खासा विचार-मंच तैयार किया जा सकेगा । पुस्तकों को मानसिक आयु के आधार पर समान्यतया वर्गीकृत करने का यत्न होना चाहिए ।

यह जरूरी नही है कि कक्षा स्तर अथवा आयु के अनुसार वर्गीकृत की गई पुस्तकों में से ही छात्र अपनी मनपसन्द पुस्तक छांटने-पढ़ने के लिए विवश हो बल्कि वह वर्गीकरण तो पुस्तकों को पढ़ने के लिए छाँटने में सिर्फ मार्गदर्शन करने की सुविधा प्रदान करेगा ।

अक्सर ऐसा होता है कि छात्र कोई भारी-भरकम पुस्तक उठा ले जाता है और फिर उसे पढ़ते समय सिरदर्द महसूस करता है । इस प्रकार उसमें पुस्तकों के प्रति अरूचि पैदा होने लगती है । पुस्तकालय में पुस्तक-गोष्ठी का आयोजन प्रति माह किया जा सकता है, जिसमें चर्चित होने वाली पुस्तकों की घोषणा पूर्व में की जाएगी ।

छात्र तथा अध्यापक दोनों का ही उन पुस्तकों पर ”पेपर रीडिंग” और प्रश्नोतरात्मक ढंग का प्रयत्न रह सकता है । पेपर रीडिंग ओर प्रश्नोतरात्मक ढंग के लिए प्रयास का संक्षिप्त विवरण रखा जाता है । गोष्ठी का समय पुस्तकालय के अतिरिक्त समय में खुलने के वक्त रखा जाए तो इससे यह लाभ होगा क्योंकि उसमें रूचि रखने वाले छात्र अवश्य हिस्सा लेगे ।

इस गोष्ठी के लिए बाहर से व्यक्तियों को आमंत्रित किया जा सकता है और विद्यालय निरीक्षण के लिए आए हुए महानुभावों से भी निवेदन किया जा सकता है, जिससे अधिकारी वर्ग तथा छात्रों में आत्मीयता पैदा हो सके और वे परस्पर समझने की सहज दृष्टि पा सकें ।

यों छात्रों की महान व्यक्तियों से साक्षात्कार करने की दृष्टि से विस्तार होगा, गम्भीरता आएगी और साक्षात्कार लिखने की विद्या में निपुणता प्राप्त होगी । विद्यालयों में समय-समय पर प्रकाश अपनी विषय-सूची तथा नई पुस्तकों की सूचना भेजते रहते हैं, जिसे रही की टोकरी में डाल दिया जाता है ।

पता नहीं कि ऐसा क्यों किया जाता है ? प्रकाशक कागज छपाई तथा डाक-खर्च वहन करता है, सो क्यों ? उसके द्वारा प्रेषित की गई सामग्री का प्रयोग होना चाहिए । वह इस रूप में हो सकता है कि प्रकाशक से प्राप्त सूची पत्रों तथा अन्य सूचनाओं की पुस्तकालय के नोटिस बोर्ड पर लगाया जाए और छात्रों को उसमें से पुस्तक छाँटने और छाँटकर पुस्तक का नाम लेखक का नाम, मूल्य तथा प्रकाशक का नाम लिखकर पुस्तक अध्यक्ष को देने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।

पुस्तकें माँगते समय उनका विशेष ध्यान रखा जाए तथा जिन छात्रों की माँग पर जो-जो पुस्तकें मँगाई गई हो, उन छात्रों का नाम प्रार्थना-सभा में अवश्य सुनाया जाए ताकि वे छात्र अपनी मँगाई पुस्तकों का न केवल स्वयं अध्ययन कर सकें बल्कि दूसरे छात्रों को भी पढ़ने हेतु प्रोत्साहित कर सके ।

प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक शालाए जिनके पास पुस्तकालय का अभाव रहता है, जहाँ अध्यापक चाहते हुए भी विभिन्न पुस्तकों के अध्ययन से वंचित रह जाते हैं, उनको सेकण्डरी तथा हायर सेकण्डरी के पुस्तकालय से संबंध किया जाना चाहिए ।  वे माह में एक या दो बार अपने तथा अपने छात्रों के लिए वहाँ से पुस्तकें ले जा सके और समय पर उनको लौटा दें ।

ADVERTISEMENTS:

जिला स्तर पर वर्ष में एक बार अवश्य पुस्तक मेला लगना चाहिए जिसके द्वारा देश-विदेश में होने वाली प्रगति को समझाया जा सके और अध्यनशील अध्यापक तथा छात्रों की विभिन्न पुस्तकों पर दी गई राय का प्रकाशन हो सके, विषयानुसार श्रेष्ठ पड़ी गई पुस्तकों के नाम सामने लाए जा सकें ।

देश भर में होने वाली पुस्तक-प्रगति के आकड़े अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक-प्रगति के  सन्दर्भ   में चार्ट द्वारा प्रस्तुत किए जाए । इस कार्य में प्रकाशक संघ से  (आँकड़े इकट्‌ठे करने के सम्बन्ध में) सहायता ली जा सकती

है । पुस्तकों के प्रति गम्भीर रूचि रखने वाले योग्यतम छात्रों को इस अवसर पर पुरस्कृत भी किया जा सकता है । पुस्तक मेले के समय पर ही पत्रिका-प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाए ।

जो पत्र-पत्रिकाएं विद्यालय में न ही आती है, प्रयत्न करने पर उनकी एक-एक प्रति प्राप्त हो सकती है और उनका प्रदर्शन किया जा सकता है । उपर्युक्त बिन्दुओं पर प्रत्येक विद्यालय अपनी परिस्थितियों तथा सुविधाओं को ध्यान में रखकर इस प्रकार से छोटे अथवा बड़े रूप में कार्य प्रारम्भ कर सकता है ।

इसके अलावा और नए तरीकों की ईजाद कर सकता है । अपने विद्यालयों में अभी तक इस दिशा में कार्य करने की सुविधाएं बहुत न्यून है । परन्तु विभाग द्वारा आवश्यक सुविधाएं मुहैया करने पर सहज ही प्रत्येक विद्यालय ‘पुस्तकालय-क्रान्ति’ में सक्रिय सहायोग प्रदान कर, अध्यापक तथा छात्रों को चिन्तन के लिए नए क्षितिज दे सकता है । निश्चित ही इस प्रकार से कॉफी के प्याले में उठने वाला तनाब और दिशा भ्रमित हो जाएगा । और युवा शक्ति एक नई तथा सशक्त दिशा में कार्यरत हो सकेगी ।


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