सर्कस पर निबंध | Essay on Circus in Hindi!

सर्कस मनोरंजन का एक बहुत अच्छा साधन है । इसे देखने से ज्ञान भी प्राप्त होता है । उन दिनों ‘द ग्रेट इंडिया सर्कस’ आया हुआ था । एक दिन मुझे अपने बड़े भाई साहब के साथ सर्कस देखने का अवसर मिला । मेरे भाई साहब गृहमंत्रालय में अधिकारी हैं ।

उन्होंने पहले से ही टिकिट बुक करवा ली थीं । रविवार का दिन था । हम समय से वहां पहुंच गये । कए विशाल तंबू में सर्कस लगा हुआ था । अनेक छोटे-बड़े तम्बू और थे । चारों ओर टीनों का बहुत बड़ा घेरा था । मुख्य द्वार पर बहुत चहल-पहल थी । बड़े-बड़े कट आऊट, पोस्टर और चित्र लग हुये थे, जिसमें सर्कस के विभिन्न दृश्य थे ।

रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों की अंतहीन मलायें जल रही थी । लाऊडस्पीकर पर फिल्मी गीत बज रहे थे । हम अंदर गये और देखा कि वहां दर्शकों की बड़ी भीड़ थी । चारों ओर सीढ़ीनुमा बैठने के स्थान थे । हमारा बैठने का स्थान सबसे आगे कुसियों पर था । शीघ्र ही सरकस का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया और दर्शक मंत्रमुग्ध हो देखने लगे । सबसे पहले दो जोकर आये ।

एक जोकर बड़ा लम्बा था, तो दूसरा बौना । दोनों ने अपनी मजाकिया हरकतों और बातों से सबको हंसाया । इसके बाद हाथी, भालू, घोड़े और दूसरे जानवरों के करतब दिखाये गये । हर आइटम के बाद दर्शक ताली बजाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते थे । झूलों पर कलाबाजियां भी बहुत रोचक थीं ।

लड़के और लड़कियां अपने प्राण खतरे में डालकर आश्चर्यजनक करतब दिखा रहे थे । एक आदमी ने चार बड़ी गेंदों को आकाश में उछालने का करतब दिखाया । वह उनको एक साथ उछाल रहा था, और किसी को भी गिरने नहीं देता था । इसी तरह के और भी कार्यक्रम थे ।

कई लड़कियों ने एक दूसरे पर खड़े होकर एक बहुत ऊंचा पिरामिड बनाया । फिर साइकिलों पर कई हैरतअंगेज कार्यक्रम दिखाये । एक पहियेवाली साइकिल पर किये गये करतब भी मनोरंजक थे । लेकिन शेरों वाला कार्यक्रम तो बिल्कुल ही अद्‌भुत था ।

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रिंग मास्टर ने सात शेरों के साथ अपने करतब दिखाये । उनकी परेड निकाली, स्टूलों पर खड़ा किया, फिर दो स्कूलों के बीच में एक पटरी पर चलवाया । जलते हुए रिंग (गोले) में से एक शेर को कुदवाना भी आश्चर्यजनक था । मैं तो उस समय भयभीत ही हो गया जब रिंग मास्टर ने एक शेर के साथ कुश्ती लड़ी ।

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देखकर बड़ा आनन्द भी आया । बीच में कभी कोई शेर धीरे से गुर्रा उठता तो रिंग मास्टर अपनी चाबुक फटकारकर उसे चेतावनी देता था और शेर शांत हो जाता था । बीच-बीच में वह आदमी शेरों को गुदगुदाता था या प्यार कर लेता था ।

सर्कस का सारा कार्यक्रम आनन्दायक रहा । इससे मेरे सामान्य ज्ञान में भी वृद्धि हुई । सरकस इन सब के अतिरिक्त लोगों को रोजगार दिलाती है । लेकिन कई बार मन में आता है कि जानवरों की ट्रेनिंग में क्या-क्या उपाय काम में लाये जाते होंगे । और इन में से कई बड़े कष्टमय और क्रूर भी होंगे ।

जंगल के इन जानवरों को उनकी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता से वंचित करना कहां का न्याय है । उनकों पिंजरों में बंद कर तरह-तरह की यातना देना, पूरा भोजन आदि न देना, बहुत बड़ा अत्याचार है । मानवता इसकी आज्ञा नहीं देती । एक शेर को जो मीलों लम्बे-चौडे जंगल का एक मात्र राजा होता है उसे एक छोटे-से पिंजड़े में बंद कर देना चाबुक के इशारे पर इस तरह नचाना कितना भद्‌दा और हृदयहीन है ।

टेलीविजन, सिनेमा आदि के प्रचार-प्रसार ने सर्कसों की लोकप्रियता बहुत कम कर दी है । सर्कस अब कभी-कभार ही नजर आते हैं । लोगों में वन के पशुओं के प्रति भी जागरूकता बढ़ रही है । वे उनका इस तरह शोषण बिल्कुल पसंद नहीं करते । अच्छा हो अगर बिना जानवरों के ही सर्कस हो । उसमें केवल मनुष्य के ही करतब हों । उनकों ही और आधिक आकर्षक और लोमहर्षक बनाया जाय ।

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