प्रदूषण पर निबंध | Essay on Pollution in Hindi!

समय और स्थान के साथ मनुष्य के रहन-सहन व विचारधारा में निरंतर परिवर्तन होते रहे हैं । आज का मनुष्य अत्यंत प्रगतिवादी विचारधारा का है । वह कम समय में अधिक से अधिक प्राप्त करना चाहता है । अपनी कल्पनाओं की ऊँची उड़ान को वह सार्थक रूप देना चाहता है ।

विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में असीम सफलताओं ने तो उसकी इस उड़ान में और भी अधिक तेजी ला दी है । इंग्लैंड से आरंभ हुई औद्‌योगिक क्रांति धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैलन गई और विभिन्न देश स्वयं को विकसित कहलाने की होड़ में अपने यहाँ के प्राकृतिक पर्यावरण की अनदेखी कर बैठे।

मानव एक ओर जहाँ सफलता के नए-नए आयाम विकसित कर रहा है वहीं दूसरी ओर उसकी यह सफलता उसके लिए नई-नई मुसीबतें भी खड़ी कर रही हैं । हरित क्रांति, औद्‌योगिक विकास, यातायात के संसाधनोंका विकास तथा शहरों की बढ़ती हुई जनसंख्या सभी मिलकर वातावरण को प्रतिपल प्रदूषित कर रहे हैं । धरती का प्रत्येक कोना इस प्रदूषण से प्रभावित हो रहा है ।

बड़ी-बड़ी मिलों व कारखानों से निकले दूषित पदार्थ जल के साथ मिलकर नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं । ये पीने के पानी को प्रकृति करते हैं । कहीं-कहीं पर यह प्रदूषण इतना अधिक हो गया है कि वहाँ का जनजीवन ही खतरे में पड़ चुका है । इन कारखानों से निकलने वाला धुओं अनेक जहरीली गैसों व पदार्थो से युक्त होता है जिससे वायुमंडल की वायु निरंतर प्रदूषित हो रही है ।

शहरों तथा महानगरों में यातायात के साधनों में भी निरंतर वृद्‌धि हो रही है । इससे निकलने वाला धुआँ वायुमंडल की वायु से मिलकर प्रदूषण फैलाता है जिससे साँस लेना मुश्किल होता जा रहा है ।

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तनाव बैचेनी हृदय तथा फेफड़ों की बढ़ती हुई बीमारियाँ यह सब इसी बढ़ते हुए प्रदूषण का परिणाम हैं । महानगरों तथा शहरों में प्रदूषण का एक अन्य रूप ध्वनि-प्रदूषण भी तेजी से बढ़ता जा रहा है । यह प्रदूषण भी हमारे लिए अत्यंत खतरनाक है ।

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महानगरों व अन्य शहरों का निरंतर विस्तार व तेजी से बढ़ती जनसंख्या के चलते बड़ी तेजी से वृक्षों का कटाव होता जा रहा है जिससे वातावरण का संतुलन खतरे में पड़ गया है । ऋतुचक्र निरंतर प्रभावित हो रहा है । बाढ़ और सूखे की स्थिति भी वृक्षों के कटाव से प्रत्यक्ष रूप में प्रभावित होती है ।

पेड़ कटने के कारण वातावरण में आक्सीजन की मात्रा निरंतर कम हो रही है । इसके अतिरिक्त अधिक से अधिक अन्न उत्पादन हेतु रासायनिक खादों का बढ़ता प्रयोग पृथ्वी की उर्वरा शक्ति को प्रभावित कर रहा है । रासायनिक खादों तथा कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग के कारण पृथ्वी अपनी प्राकृतिक उर्वरा शक्ति निरंतर खोती जा रही है ।

अत: तेजी से फैलते प्रदूषण को रोकने के लिए उचित उपाय करना अति आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हमें साँस लेने के लिए भी सोचना पड़ेगा ।

प्रदूषण को रोकने के उपायों के साथ ही यह भी आवश्यक है कि हरे पेड़ों को नष्ट न किया जाए तथा अधिक से अधिक वृक्षारोपण कियां जाए जिससे कि आने वाली पीढ़ी को साँस लेने के लिए शुद्‌ध वायु मिल सके तथा हमारा जीवन भी भली- भाँति व्यतीत हो जाए । इसके अतिरिक्त जल और ध्वनि प्रदूषण से निबटने के भी त्वरित और सार्थक प्रयास करने होंगे ।

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