परिश्रम का सम्मान पर निबन्ध | Essay on Dignity of Labour in Hindi!

1. भूमिका:

हमारे देश में परिश्रम (Labour) को सदा अधिक महत्त्व (Importance) दिया गया है । ऐसा माना जाता है कि परिश्रम न करने वाला व्यक्ति इस पृथ्वी पर भार (Burden) समान होता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति से किसी का कोई भला (Welfare) नहीं हो सकता । यह तो सभी ने सुना है कि परिश्रम ही सफलता की कुंजी (Key to Success) है ।

2. स्वरूप:

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परिश्रम का अर्थ केवल शारीरिक परिश्रम (Physical Labour) नहीं है बल्कि मानसिक और वैचारिक परिश्रम (Mental Labour) भी परिश्रम का एक महत्त्वपूर्ण स्वरूप (Important Form) है । हमारा देश गुलाम (Slave) बना था तो केवल इसी कारण से कि लोग परिश्रम का भरोसा छोड़कर केवल स्वार्थ (Selfishness) तथा चापलूसी में विश्वास करने लगे थे । एक राजा दूसरे राजा के खिलाफ, एक कर्मचारी दूसरे कर्मचारी के खिलाफ और एक किसान दूसरे किसान के खिलाफ दुश्मनों (Enemies) के कान भरने लगे ।

देश आजाद हुआ तो केवल इसी कारण कि सभी स्तर के लोग चाहे वे गरीब हों या धनी पढ़े-लिखे हों या अनपढ़ व्यापारी हों या शिक्षक, कुली-मजदूर हों या नेता, सबने यह समझ लिया कि परिश्रम के बल पर ही हमें आजादी मिल सकती है । अत: परिश्रम का अर्थ है अपने-अपने कार्य में पूरी लगन (Concentration) से पूरा प्रयत्न करना ।

3. महत्त्व:

हमारे देश में आजादी के बाद परिश्रम करने वाले को नीची नजर से देखने का रिवाज (Tradition) चल पड़ा है । जो लोग रिका खींचते हैं कुली का काम या इसी प्रकार के अन्य काम करते हैं उन्हें छोटा आदमी समझा जाता है ।

ठीक इसके विपरीत, जो चालाकी से दूसरों के परिश्रम का लाभ स्वयं उठा लेते हैं, उन्हें बड़ा आदमी कहने का चलन है । इससे परिश्रम करने वाले लोगों के मन में कुंठा धासा पैदा होती है और अवसर पाते ही वे परिश्रम करना छोड़ देते हैं । हमारे देश के तेज प्रगति (Progress) छड़ न करने का कारण यही है । अत: काम चाहे कोई भी हो, उसमें परिश्रम करने वालों को अधिक सम्मान देना आवश्यक है ।

4. उपसंहार:

रामचरित मानस नामक ग्रंथ में कहा गया है कि “कर्म प्रधान विश्व करि राखा”, जो जस करहिं सो तस फल चाखा । अर्थात्-कर्म अर्थात् परिश्रम से ही अच्छे परिणाम मिलते हैं ।

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