भारत में वन-संपदा की उपयोगिता | Essay on Utilization of Forest Resources in India in Hindi!

भारत में वनों का बड़ा महत्त्व है । कृषि के लिए सर्वाधिक आवश्यक साधन सिंचाई है । भारत में सिंचाई का एकमात्र साधन वर्षा है, चाहे वह पहाड़ों पर वर्फ के रूप में अथवा मैदानों में पानी के रूप में बरसे- बर्फ पिघलकर अथवा वर्षा का पानि बहकर-हमारी नदियों में जाएगा ।

जिस प्रकार भूमि के ऊपर नदियाँ बहती हैं उसी प्रकार भूमि के गर्भ में जल स्रोत (सोता) बहते हैं । उनसे कुएँ और नलकूपों द्वारा खेतों की सिंचाई होती है । बिजली ऊर्जा का स्रोत है । इससे नलकूप ही नहीं, हमारे उद्योग भी चलते हैं । हमारे देश में बिजली का मुख्य स्रोत भी पानी ही है । देश की सभी छोटी-बड़ी नदियों पर बाँध बनाकर बिजली पैदा की जाती है ।

यह हमारे घरों, खेतों, कारखानो और दफ्तरों में काम आती है । देखना यह है कि देश की जलवायु तथा वर्षा को किस साधन से नियंत्रण में किया जा सकता है । कुछ वर्षों पहले भारत के प्राय: सभी भागों में भयंकर बाढ़ आई थी । फिर उसके कुछ वर्षों बाद भयंकर सूखा पड़ा था । दरअसल वृक्ष ही हैं, जो हवा को अधिक गरम और अधिक ठंडा होने से बचाते हैं ।

गरमी में पेड़ के नीचे ताप कम रहता है । शुद्ध हवा वृक्ष में से बाहर निकलती है । अब तो यह भी सिद्ध हो चुका है कि वृक्ष वायु प्रदूषण के साथ ही, उसके शोर और कोलाहल को भी अपने अंदर अवशोषित कर लेते हैं । इस तरह पर्यावरण की शुद्धि के लिए वृक्षों का होना अति आवश्यक है ।

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भारत की जनता वृक्षों की महत्ता और उपयोगिता फल एवं लकड़ी तक ही समझती है । भारतीय विचारधारा में जो वस्तु अधिक उपयोगी मानी गई है, उसे पूज्य माना गया है । पीपल, बरगद, नीम, आँवला आदि को पूज्य मानकर उनका आदर किया गया है । उन्हें काटना पाप माना गया है । आज आवश्यकता इस बात की है कि आबालवृद्ध नारी-नर सबको वृक्षों का महत्त्व समझाया जाए ।

भारतीयों को इजराइल जैसे छोटे देश से सबक लेना चाहिए । इजराइल एक रेगिस्तानी देश है । वहाँ के लोगों ने रेगिस्तान में वृक्ष लगाकर उसे हरा-भरा कर दिखाया । वहाँ के रीति-रिवाज भी काफी अच्छे हैं । वहाँ के लोग अपने बच्चों के जन्म पर उनके नाम पर वृक्ष लगाते हैं । यही नहीं, किसी के मरने पर भी उसकी स्मृति-स्वरूप मृतक के नाम पर वृक्ष लगाया जाता है ।

हमारे वन विभाग को भी अपना समयबद्ध कार्यक्रम बनाना चाहिए । कर्मचारियों का, पेड़ लगाने से पाँच वर्ष उनकी देखभाल करने तक, एक ही स्थान पर रहना जरूरी कर दिया जाए । उनके कार्यों का मूल्यांकन उनके द्वारा लगाए गए वृक्षों के आधार पर किया जाए । इसके बाद ही उनका स्थानांतरण किया जाना चाहिए ।

गाँव के लोगों को अपने घर में वृक्ष लगाने की परंपरा शुरू करनी चाहिए । सड़क के किनारों पर पास के खेतवाले को पेड़ लगाने का छूट दी जाए । उन्हें अपने पेड़ों की देखभाल के लिए भरपूर सुविधा दी जाए । वृक्ष की पैदावारी में उनका अच्छा-खासा हिस्सा रखा जाए । इससे उनका मनोबल वढ़ेगा ।

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जो व्यक्ति वृक्ष काटे अथवा नुकसान पहूँचाए, उसे कड़ी-से-कड़ी सजा दी जाए । नदियों और नालों के किनारे कुछ दूरी तक खेती न करके वृक्षारोपण ही किया जाए । नदी के किनारे खेती करने से भूमि पीली होकर, कटकर नदी को छिछला कर देती है । इस तरह भू-क्षरण होता रेहता है ।

पहाडों में वृक्षों के अंधाधुंध कटान से वर्षा में पहाड़ खिसक जाते हैं, वर्षा का जल भी तेजी से नीचे आता है । यही कारण है कि नदियों में वर्षा का पानी समा नहीं पाता । इस तरह से बाढ़ का रूप भयंकर हो जाता है ।

वाढ़ और सूखे से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

1. . योजनावद्ध तरीके से वृक्ष काटे जाएँ । जितने वृक्ष काटे जाएँ उतने पहले रोपे जाएँ ।

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2. . बरसात आने पर सभी बेकार जमीन में क्ष लगाए जाएँ ।

3. . प्रत्येक ग्रामसभा क्षेत्र, ब्लाक क्षेत्र, जिला और राज्य की वृक्षारोपण की अपनी योजनाएँ हों ।

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4. . सभी योजनाओं को युद्ध-स्तर पर पूरा किया जाए ।

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