भारत में सहकारिता आंदोलन | Essay on Co-operative Movement in India in Hindi!

मिल-जुलकर काम करने की प्रणाली को सहकारिता कहते हैं । जो कार्य एक व्यक्ति अकेले नहीं कर सकता है, उसे सामूहिक रूप से करना अधिक लाभदायक होता है । स्वराज के प्रारंभिक काल में देश का आथिक विकास बहुत मंद गति से हो रहा था ।

उसे पूरा करने के लिए राष्ट्र के कर्णधारों ने आर्थिक नीति को समाजवादी रूप दिया । सभी पंचवर्षीय योजनाओं में सहकारिता को महत्त्व दिया गया है । छोटी-छोटी सहकारिता समितियों में सहकारिता के सफल होने पर उस पर जनता का विश्वास जमता है तथा जनता का भरपूर सहयोग भी मिल सकता है ।

इसके लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र देहात है, जहाँ के लोग प्राय: गरीब होते हैं और अपने साधनों का समुचित उपयोग नहीं कर पाते हैं । वे छोटे-मोटे काम-धंधे कर सकते हैं, मगर पूँजी उनके पास नहीं होती है । अत: उन्हें ऋण दिलाने की व्यवस्था हो । उनके पास जमीन तो है, मगर वह छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखरी पड़ी है । अत: उसे सबकी भूमि बनाकर सहकारी खेती की जाए ।

इस प्रकार ग्रामीणों के साधनों द्वारा उत्पादन बढ़ाने और तैयार माल की बिक्री करने के लिए वहाँ सहकारी संगठनों की आवश्यकता है । सामान्य तथा सामूहिक प्रयत्नों में व्यक्ति में आस्था का अभाव रहता है, क्योंकि व्यक्तिगत कार्य के साथ व्यक्ति का अपनापन रहता है ।

समूह हित के लिए व्यक्ति के सेवा-भाव को जगाना कठिन होने पर भी समूह-भाव का संस्कार लाए बिना सहकारिता का कार्य सफल नहीं हो सकेगा । इसके लिए उन्हें सतत व्यावहारिक प्रेरणा मिलती रहती है । उनको उपज  के  संग्रह, उसकी बिक्री की व्यवस्था, कारीगरों की  समितियों का गठन, उनके हितों की रक्षा आदि कार्यों में स्थानीय सहकारी समितियों के समर्थन-प्रवर्तन से ग्रामीणों में सहकारिता का भाव दृढ़ हो  सकेगा.

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इस कार्य में सरकार स्वयं हिस्सेदार बनकर बैंकों, ऋण-समितियों, भूमि प्रबंधन बैंकों, उपज संग्रह के लिए गोदामों के निर्माण आदि के जरिए सहकारिता सिद्धांत को प्रयोग में लाने का प्रयत्न कर रही है । सहकारिता के अनेक लाभ हैं ।

सम्मिलित प्रयास से बड़े-बड़े कार्य भी सरलता से पूरे किए जा सकते हैं; आय का वितरण किया जा सकता है । कम ब्याज में पूँजी आसानी से हासिल हो सकती है । लोगों में परस्पर विश्वास की वृद्धि होगी । वैर-विरोध, मुकदमेबाजी घटेगी । सेवाशील व्यक्तियों की पहचान और चुनाव का कार्य आसान होगा ।

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सहकारिता की योजना को सफल बनाने के बीच की बाधाओं का निवारण आवश्यक है । सरकारी कार्यालयों के कागजात किसानों के लिए मुसीबत न बनें, साथ ही किसान जिस कार्य के लिए ऋण लेता है, वह और किसी मद में खर्च न करे तथा ऋण की अदायगी में असमर्थता न दिखाए । इन बातों पर सरकार का नियंत्रण रहे, तभी यह योजना लाभकारी रह पाएगी ।

सहकारिता को अपनाकर ही भारत में दुग्ध-क्रांति को सफल बनाया जा सका । इसके लिए दुग्ध एकत्रित करने के लिए गाँव-स्तर पर सहकारी समितियाँ गठित की गईं । इससे किसानों और दुग्ध-उत्पादकों को भारी लाभ हुआ । इसमें बिचौलियों का कोई स्थान न रहा ।

जो सामूहिक लाभ होता है, उसे अंशधारियों में बाँट दिया जाता है । ‘अमूल’ दुनिया का दूध के क्षेत्र में सबसे बड़ा सहकारी संगठन हें । इसके अलावा सहकारी कृषि उपज मंडी समितियों का गठन ब्लॉक स्तर तक कर दिया गया है । इससे किसानों को अपनी उपज का पूरा-पूरा दाम मिल रहा है ।

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