सोशल नेटवर्किंग की आवश्यकता पर निबंध | Essay on Need of Social Networking in Hindi!

सोशल नेटवर्किंग की एक वेबसाइट के जरिये कुछ लोग दोस्त बने । उनमें से कुछ के मन में पाप जागा और उन्होनें एक दोस्त का अपहरण करके दो करोड़ रूपये की फिरौती मांगी ।

जब मामला मीडिया और पुलिस तक पहुचा, तो नौसिखिए अपराधियों ने घबराकर अपहृत दोस्त को मार डाला । मारा गया अदनान 16 बरस का था, जो बड़ा होकर हवाई जहाज चलाना चाहता था । विलासिता के जितने उपकरण संभव हैं, सब उनके पास थे । उसे मारने वाले दोस्त भी उसकी जैसी सुविधाओं के साथ जीना चाहते थे । सो उन्होंने अपहरण का एक आसान रास्ता चुन लिया ।

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अदनान की मौत के जिम्मेदार लड़कों को तो कानून सजा दे देगा, पर अदनान की मौत से उपजे कुछ सवालों के जवाब हम सबको देने ही होंगे । मसलन, तकनीकी विकास, आर्थिक उन्नति और सामाजिक बदलाव के बीच ऐसा क्या घटित हो रहा है, जिसकी वजह से हमारी आने वाली पीढ़ी और बर्बर होती जा रही है? एक तरफ अदनान की जान जाती है, तो दूसरी तरफ उसके कई दोस्त हत्यारों की कतार में खड़े हो जाते हैं ।

तकनीकी विकास हमें जो दे रहा है, कहीं उससे कई गुना ज्यादा छीन तो नहीं रहा? सवाल यह है कि विकास के लिए हमें तकनीकी का इस्तेमाल करना है या तकनीकी और आर्थिक विकास के लिए अपना सब कुछ इस्तेमाल कर देना है? हमारी औसत आयु तो बढ़ती जा रही है, मगर जिंदगी उतनी ही तेजी से बेमकसद भी होती जा रही है । स्वयं कुछ पाने के लिए दूसरों से सब कुछ छीन लेने को तैयार एक सामाजिक परिवेश हमारे समय का कठोर सच है ।

साथियों के हाथ अदनान को मिली मौत को युवाओं में बढ़ते अपराध, अभिभावकों का बच्चों के प्रति सजग न होना जैसा आम और सतही निष्कर्षो तक नहीं रोका जा सकता । यह सोचने की भी जरूरत है कि तकनीकी विकास से आर्थिक विकास का जो क्रम जुड़ता है, उसमें वह कौन-सी कड़ी है, जो सामाजिक परिवेश को अपने साथ लेकर नहीं चल पाती? हम मोबाइल का आविष्कार करते हैं और अरबों डॉलर का बाजार विकसित हो जाता है । लेकिन मोबाइल पर क्या बात की जाय, यह समझ परिवेश से नदारद है । ऐसे में, मोबाइल के दुरूपयोग के मामले ज्यादा नजर आते हैं ।

इंटरनेट ने दुनिया भर के समाजों को बदलकर रख दिया है । सूचनाओं की सुलभता और संवाद में अतिरिक्त गतिशीलता के लाभ के मध्य कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास की एक ही माला में पूरी दुनिया को पिरोने वाली तकनीकी समाज के लिए अलग-अलग रूप में तबाही का काम ज्यादा कर रही हो? इस समय इंटरनेट पर सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल नेटवर्किग की अवधारणा से मिले नतीजे नुकसान की गिनती ज्यादा बताते हैं।

अदनान के मामले में अपहरण और फिरौती के लिए वेबसाइट का सहारा लेना एकदम नया आयाम है । इससे पहले ‘ऑरकुट’ नाम की यही बेबसाइट तरह-तरह के विवादों के कारण चर्चा में रही है । इस वेबसाइट पर भारत विरोधी कम्युनिटी बनाने और एक-से-एक अभद्र संदेश लिखने के मामले सामने आए ।

ऑरकुट पर ही छत्रपति शिवाजी के खिलाफ अश्लील टिप्पणी प्रसारित होने के विरोध में पुणे और महाराष्ट्र के दूसरे शहरों में शिव सैनिकों ने साइबर कैफे पर धावा बोला और तोड़ फोड़ की थी । इस समय भी ऑरकुट पर देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी आदि तक के बारे में ऊटपटांग टिप्पणियां दर्ज हैं । पुणे में कुछ दिनों पहले ऑरकुट के जरिये दोस्त बनी रांची की एक लड़की की उसके प्रेमी ने ही हत्या कर दी ।

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सोशल नेटवर्किंग के इस प्रकार के नुकसान को समझते हुए देश के ज्यादातर शिक्षा संस्थानों और राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कार्यालयों ने ऑरकुट समेत कई अन्य सोशल नेटवर्किंग की साइट्‌स को प्रतिबंधित कर दिया है । लेकिन यह एक तात्कालिक व्यवस्था है, जो एक सिस्टम को चलाने में कुछ हद तक कारगर हो सकती है । बात घूमकर अंतत: वहीं आती है कि हमें सोशल नेटवर्किंग की इस कल्पनाजीवी दुनिया की जरूरत क्यों पड़ती है? जरूरत भी इतनी अधिक कि कई बार वह बीमारी में तब्दील हो जाती है ।

आईआईटी, कानपुर उन प्रमुख संस्थानों में एक है, जहां अब ऑरकुट पर प्रतिबंध है । जब नहीं था, उन दिनों की घटना है कि एक दिन एक छात्र लैब की खिड़की से नीचे कूद पड़ा । उसकी तकलीफ यह थी कि ऑरकुट की उसकी प्रोफाइल से जुड़ी पांच लड़कियों ने उसे एक ही दिन में ‘डिलीट’ कर दिया था । छात्र के भीतर अवसाद इतना सघन हो गया कि वह अपनी जान तक जोखिम में डाल बैठा । उसके मन में यह कुंठा घर कर गयी कि उसका व्यक्तित्व प्रभावहीन है, इसलिए लडकियां उसे पसद नहीं करती ।

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आई आई टी के छात्र 10-12 घंटे तक ऑरकुट पर बने रहते थे । अगल-बगल के कमरे के छात्र एक-दूसरे से मिलने और बात करने की जगह स्क्रैप और मेसेज भेजकर काम चलाते थे । कई छात्रों पर ऑरकुट का नशा इतना गहरा हो गया था कि उनके परीक्षा परिणाम प्रभावित हो गये थे ।

सोशल नेटवर्किंग की यह वेबसाइट परिसर में एक बीमारी की शक्ल ले चुकी थी । प्रबंधन ने ऑरकुट प्रतिबंधित कर दिया । इससे आईआईटी में कुछ हद तक पठन-पाठन सुचारू भले हो जाये, तकनीकी के दुष्परिणाम का यह प्रश्न तब भी अनुत्तरित ही रहता है ।

तकनीकी और आर्थिक विकास को मनुष्य का मूल विकास मानने वाले यह कहते नजर आएंगे कि धन पक्ष के पीछे यह पक्ष तो स्वाभाविक तौर पर होगा ही । लेकिन यह जांचने की फुरसत हममें से किसी को नहीं है कि तकनीकी के इस ब्लास्ट ने हमें कितना फायदा दिया है, कितना नुकसान, और यह कि किस समाज को किस स्तर का तकनीकी विकास चाहिए ।

दुनिया के सारे अमीर-गरीब देशों के लिए क्या एक-जैसी तकनीकी और आर्थिक विकास संभव है? या हम एक भ्रम की स्थिति में हैं और तकनीकी के जोर पर दुनिया को अपने कब्जे में करने वाले कुछ अमीर मुल्कों के उपकरण बने हुए है । सामाजिक तौर पर हम उनकी नकल करते हैं और कहीं के नहीं रहते ।

इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि आज के कंप्यूटर-आधारित समाज में हम इंजीनियर तो बखूबी बना पायेंगे, लेकिन लेखक और कलाकार नहीं । यानी हम एक ऐसा समाज बनायेंगे, जहाँ न विचारों की कोई भूमिका होगी और न संवेदना के लिए कोई जगह । तकनीकी क्रांति के बल पर विकसित बताए जा रहे समाज में घट रही घटनाओं से कुछ इसी तरह की आहट मिल रही है । विचार और संवेदना विहीन समाज का आगाज साफ दिख रहा है ।

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