दशहरा पर निबंध | Essay on Dusshera in Hindi!

भारत में विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं । ये जातियां अपने त्योहारों को मनाती हैं और राष्ट्र के जीवित होने का संकेत देती है । भारत की सभी जातियां अपने त्योहारों को बड़ी धूमधाम से मनाती हैं ।

इसीलिए यह त्योहारों का देश भी कहलाता है । भारत की प्रत्येक ऋतु अपने साथ कोई न कोई त्योहार लेकर आती है । विजय दशमी या दशहरा हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहार है । यह वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद् ऋतु के आरम्भ होने पर आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है ।

दशहरा ही एक ऐसा पर्व है जिसे मनाये जाने के अनेक कारण हैं । पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवती दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ दानवों चर विजय प्राप्त की थी । इसलिए बंगाल में श्रीराम की याद में दशहरा नहीं मनाया जाता अपितु शक्ति की देवी भगवती दुर्गा की पूजा होती है ।

हिन्दुओं में विशेषकर नवरात्रों में माँ दुर्गा की पूजा होती है । लोग आठ दिन तक उपवास रखते हैं । श्रद्धा और भक्ति से माँ दुर्गा की झाकियाँ निकाली जाती हैं । सजी हुई प्रतिमाओं को विजय दशमी वाले दिन जल में विसर्जित कर दिया जाता है ।

दशहरे का सम्बन्ध अभिन्न रूप से श्रीराम से है। श्रीराम ने लंकापति रावण से युद्ध करके अपनी पत्नी सीता को उसके चंगुल से छुड़ाया था । यह युद्ध दो व्यक्तियों का युद्ध नहीं था, अपितु दो विचारधाराओं का युद्ध था । जिसमें एक ओर भोगी भौतिकतावादी रावण दूसरी और संयमी राम ।

जिसमें विजयश्री मिली राम को । पाण्डवों के अज्ञातवास की अवधि पूरी होने पर, दुर्योधन द्वारा उनका राज्य वापिस न दिए जाने पर महाभारत का युद्ध भी विजयदशमी वाले दिन ही प्रारम्भ हुआ था । दशहरे के साथ मानवतावादी दृष्टिकोण भी जुड़ा है । घरों में इस दिन पहले ही बर्तनों में जौ बोया जाता है ।

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दशहरे वाले दिन इस जौ को तोड़ लिया जाता है । बहनें अपने भाइयों के सिर या कानों पर जी रखकर तिलक लगाती हैं और दीर्घायु होने की कामना करती हैं । इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारी संस्कृति में अन्न की भी पूजा होती है, क्योंकि मानव के प्राण अत्र में ही बसते हैं ।

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दशहरा मनाने की विधि भी अलग-अलग है । भारत में नौ दिन पहले से ही राम लीला शुरू हो जाती हैं । जिसमें श्रीराम के जन्म से लेकर लंकापति रावण पर विजय का पूर्ण चित्रण दर्शाया जाता है । दशहरे वाले दिन सजी हुई झाकियां, गलियों, नुक्कड़ों से होती हुई रामलीला मैदान में पहुँचती है ।

वहां राम-रावण युद्ध होता है । रावण की मृत्यु होते ही वहाँ खड़े रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतलों में आग लगा दी जाती है । पुतलों में आग लगाने से पूर्व आकाश में रंग-बिरंगी आतिशबाजियां छोड़ी जाती हैं । जिसे देखकर बच्चे बहुत प्रसन्न होते हैं । दशहरा असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है ।

हिमालय में कुल्लू का दशहरा भारतीयों और विदेशियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र होता है। रघुनाथ मन्दिर से भगवान राम की शोभायात्रा अन्य देवताओं के साथ पालकी में निकलती है । पहाड़ी वाद्यों, गायन और नृत्य से सारी घाटी गूंज उठती है ।

दशहरे का त्योहार प्राचीन काल से चला आ रहा है जो अपनी सभ्यता, प्राचीनता और संस्कृति की पवित्र विचारधारा की कहानी स्वयं कहता चलता है । आज का मानव महत्वाकांक्षी है । वह हर वस्तु को पा लेना चाहता है। हार से वह दु:खी और जीत पर प्रसत्र होता है । अपनी जीत की सफलता को राम के आदर्शो के रूप में अपनाना चाहिए, रावण की तरह नहीं ।

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