ईद  | Eid in Hindi!

रोजी और रोटी जुटाने में जो प्रनिदिन भागदौड़ होती है । उससे हम थम जाते हैं । जीवन नीरस लगता है । ऐसे में पर्व और त्योहार हमें प्रतिदिन के संघर्ष से मुक्ति दिलाते हैं । नई खुशियाँ लाते है । नई आशाएँ जगाते हैं ।

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महापुरुषों से जुड़े पर्व हमें महापुरुषों का स्मरण करने तथा उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करते है । ऐसे अवसरों पर हम अपने अतीत पर नजर डालते हैं, आत्म-निरीक्षण करते हैंऔर अपनी उन्नति के लिए अतीत में की गई भूलों को भविष्य में पुन: न दुहराने का संकल्प लेते हैं । यदि पर्व और त्योहार न हों तो हमारा जीवन नीरस हो जायेगा।

ईद भी उल्लास और खुशियों का त्योहार है । वैसे तो यह दूर भारत में सभी धर्मो और जातियों के लोगों द्वारा मनाया जाता है और इस दिन सार्वजनिक छुट्टी रहती है, यह त्योहार मुख्यत: मुमलमान भाइयों द्वारा मनाया जाता है ।

मुसलमानों का यह सबसे पावन त्योहार है । यह त्यौहार भाई-चारे का प्रतीक है । सभी इस दिन गले मिलते हैं तथा बैर और शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं । इस दिन न कोई छोटा होता है न बड़ा। न कोई धनी होता है और न निर्धन ।

इस्लाम धर्म की स्थापना हजरत मोहम्मद साहब ने की थी । उन्होंने एक महीना भूखे तथा प्यासे रहकर मक्का की एक गुफा में तपस्या की थी । उसके बाद उन्होंने मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ कीरचना की थी । ईद कुरान शरीफ की वर्षगांठ है ।

ऐसा कहा जाता है कि उक्त घटना की याद में प्रत्येक मुसलमान व्रत (रोजा) रखता है और उपवास करता है । इस व्रत को रोजा कहते हैं । यह एक महीना रमजान का महीना कहलाता है । रोजा या उपवास रखके मन और शरीर को पवित्र किया जाता है। रमजान के महीने के बाद जब चाँद दिखाई देता है तो अगले दिन कुरान की उत्पत्ति का दिन ईद के रूप में मनाया जाता है ।

इस त्योहार का पूरा नाम ईद-उल-फितर है । ‘ फितर ‘ का अर्थ है खाना-पीना और ईद शब्द का अर्थ है – वापस लौटना । एक माह के उपवास के बाद खाना-पाना लौटता है अर्थात् शुरू कर दिया जाता है । इस कारण इस त्योहार को को ईद-उल-फितर कहते हैं ।

ईद भी दो प्रकार की होती है । एक तो उपरोक्त ईद-उल-फितर है । दूसरी ईद बकरीद है । इसे ईद-उल-जुहा भी कहते हैं । यह ईद-उल-फितर के दो महीने और नौ दिन बाद आती है । कभी ईद-उल-जुहा लगताथा । उस दिन लोग तरह-तरह के खेल तमाशों का आयोजन करते और अपनी प्रशंसा स्वयं करते थे ।

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इस्लाम के मानने वालों ने खेल-तमाशे के इस मेले को धार्मिक स्वरूप प्रदान किया और अपनी प्रशंसा छोड़कर ईश्वर का प्रशंसा में नमाज पढ़ने की परिपाटी शुरू की । कहते हैं कि इस दिन अहंकार की बलि चढ़ाई जाने लगी । इस कारण इस ईद को बकरीद कहते हैं ।

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ईद का त्योहार खुशियाँ लेकर आता है । बच्चे उत्सुकता से इस त्योहार की प्रतीक्षा करते हैं । बच्चे रोजे तो रखते नहीं हैं, किन्तु दिन होते ही ईदगाह जाने को तत्पर रहते हैं । इसी अवसर पर बच्चे नए-नए वस्त्र सिलवाते है ।

घर वालों से पैसा लेकर इद के अवसर दर आयोजित मेले पर जाते हैं । वहाँ खेल-तमाशों तथा झूलों का आनन्द लेते हैं खिलौने खरीदते हैं और भाँति – भाँति की मिठाइयों का आनन्द लेते हैं । चारों ओर चहल-पहल रहती है । बाजार सजे रहते हैं । चारों ओर हर्षोल्लास का वातावरण रहता है ।

सुबह होते ही लोग ईदगाह पहुँचने शुरू हो जाते हैं । सब मिल कर नमाज पढ़ते हैं और ईश्वर का धन्यवाद करते है कि वे उसकी कृपा से रोजे रखने में सफल हुए । वे विनीत भाव से ईश्वर याचना करते हैं कि यदि उनसे जाने अथवा अनजाने में कोई अपराध हुआ हो तो उन्हें क्षमा कर दिया जाए ।

ईद भ्रातृभाव का त्योहार है । यह प्रयत्न किया जाता है कि जब यह त्योहार मिलकर मनाया जाए । अत: बैर-विरोध को भूलकर अमीर-गरीब का भेदभाव किए बिना सब मिलकर ईद मनाते हैं । नमाज पढ़ते है । ईद मुबारक कहकर एक दूसरे के गले मिलते है और अपनी पिछली शत्रुता यदि हो तो भूल जाते हैं । ईद मैत्री तथा भ्रातृत्व के परस्पर एकता का त्योहार है ।

ईद-उल-फितर के दौरान नमाज पढ़ने के बाद मीठी सेवईयाँ खाई जाती हैं और इस तरह उपवास का लम्बा सिलसिला समाप्त होता है । उसके बाद मिठाईयाँ और उपहार बांटे जाते हैं ।

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