Hindi Story on Borrowed Wings!

उधार के पंख |

किसी जंगल में एक कौआ रहता था । पूरा जंगल तरह-तरह के रंगीन पक्षियों से भरा पड़ा था । मगर पूरे जंगल में एक यही कौआ था-बिल्कुल काला भुजंग । कौआ भी अपने काले रंग के प्रति बहुत सचेत रहता था ।

अपने काले रंग के कारण वह हीनभावना से ग्रस्त रहता था । अपनी इस भावना से छुटकारा पाने के लिए उसने एक दिन तरह-तरह के पक्षियों के जंगल में इधर-उधर पड़े हुए पंख बटोरे । उसने वे सभी रंगीन पंख अपने शरीर में लगा लिए ।

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उसने अपना इतना बनाव-श्रुंगार किया कि लगता था संसार की कोई अति सुंदर चिड़िया जंगल में आ गई हो । अब काला कौआ अपने नए रूप में जंगल के अन्य पक्षियों के साथ-साथ घूमने लगा । वे पक्षी भी, जो उससे प्रतिदिन मिलते थे, उसे पहचान नहीं पाए । वे उससे बहुत अधिक प्रभावित दिख रहे थे ।

ऐसा आदर पाकर काला कौआ घमण्ड से चूर हो गया और सभी के सामने अकड़ कर चलने लगा । वह हमेशा गर्व में भरकर उछलता-कूदता रहता । एक दिन पक्षियों को अपनी ओर प्रशंसा भरी दृष्टि से देखते हुए देखकर वह बोला : ”मेरा विचार है, यह स्थान मेरे रहने योग्य नहीं है ।

जरा मेरे रंग-रूप और मेरी प्राकृतिक छठा को देखो और अपने को देखो । भला मेरा तुम्हारा क्या मुकाबला… उ हूं ।”  काले कौए की इस अशोभनीय बातों से जंगल के सभी पक्षी क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने मिलकर इस पर आक्रमण कर दिया ।

उन्होंने उसके रंगीन पंख नोचने आरम्भ कर दिए । कुछ देर बाद ही काले कौए के रंगीन पंखों के साथ उसके अपने पंख भी उखड़ गए । काला कौआ लहूलुहान हो गया । सभी पक्षी उसे घायल अवस्था में छोड़कर चले गए । मरते-मरते काले कौए ने सोचा: ‘आह ! कितना अच्छा होता, अगर मैं अपना मुंह बंद रखता और अनाप-शनाप नहीं बोलता ।’

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निष्कर्ष: अनाप-शनाप बोलना हमेशा दुखदायी होता है ।

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