Here is an essay on the foreign policy in India especially written for school and college students in Hindi language.

किसी भी व्यवस्था में उस देश की विदेश नीति का स्थान भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है जिसके बल पर अन्तराष्ट्रीय सम्बंध निर्भर करते हैं । जो विश्व स्तर पर किसी देश को आगे बढ़ने या पीछे हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं ।

जिस देश की विदेश नीति उत्तम श्रेणी की होती है वह देश ही विश्व में अग्रणी बने रहते हैं यह आवश्यक नहीं होता है कि जो देश आर्थिक या सामाजिक रूप से शक्तिशाली हो वह देश ही विश्व में अग्रणी है बल्कि आवश्यक यह भी होता है कि आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से शक्तिशाली होने के साथ-साथ उस देश की विदेश नीति भी शक्तिशाली हो ।

तभी वह देश विश्व स्तर पर अपना प्रभाव छोड़ पाने में सफल होगा । विश्व में ऐसे देशों की कमी नहीं है जो आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से तो अत्यधिक शक्तिशाली है परन्तु विदेश नीति के रूप में अत्यधिक कमजोर सिद्ध होते हैं जबकि प्रत्येक देश की विदेश नीति स्पष्ट व स्वतन्त्र होनी चाहिए ।

किसी भी देश के लिए स्वतन्त्र विदेश नीति ही उस देश के सम्मान का परिचायक है । अन्यथा ऐसे देशों की कमी नहीं है जो कहने को तो स्वतंत्र और निष्पक्ष विदेश नीति के पक्षधर हैं लेकिन उनको विश्व के चंद देशों के इशारों पर नाचते देखा जा सकता है ।

ऐसे देशों की न तो अपनी कोई विदेश नीति होती है और न ही अपना कोई अस्तित्व, तभी तो दूसरे देशो के इशारों पर नाचते देखा जा सकता है । वर्तमान समय में अन्तराष्ट्रीय समुदाय भी कहीं न कहीं गुटों में बंटा हुआ है ।

विश्व युद्ध के समय सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में विभाजित था । जिसमें मित्र राष्ट्रों का गुट और धुरी राष्ट्रों के गुट थे उसके बाद विश्व के तीन प्रमुख नेताओं नासिर, टीटों और नेहरू द्वारा गुट निरपेक्षता की नींव रखी ।

जिसमें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू द्वारा गुट निरपेक्षता को आगे बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । तभी तो भारत एक गुट निरपेक्ष देश के रूप में अपनी नीतियों को प्रसारित कर रहा है ।

जब विश्व गुटों में विभाजित हो और तब भारत गुट निरपेक्षता की पक्षधरता का प्रबल समर्थक हो तो इस भूमिका से भारतीय विदेश नीति को सम्पूर्ण विश्व समुदाय से एक अलग प्रकार का बल मिलता है । गुट निरपेक्षता भारतीय विदेश नीति को उसी प्रकार चमक प्रदान करती है जिस प्रकार कमल का फूल अपनी सुन्दरता प्रदर्शित करता है ।

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प्राचीन काल में भारत को आर्थिक, सामाजिक व बौद्धिक दृष्टि से विश्व गुरू के रूप में देखा जाता था । लेकिन समय चक्र के अनुसार भारत ने अपना वह दर्जा खो दिया । वक्त बदला नई नीतियां आयी, नई तकनीकी आई और नई जेनरेशन ने अपने अतीत को पहचाना अपने खोये हुए मान-सम्मान को पहचाना और आज फिर से भारत अपने पुराने रूतबे को पाने की ओर अग्रसर हो रहा है ।

जिसमें भारतीय नीतियो और भारतीय जनता की मेहनत व योगदान की सराहना को इंकार नहीं किया जा सकता है तभी तो भारतीय महत्व की उपेक्षा किया जाना वर्तमान समय में नामुंकिन है । लेकिन इतना सब होने के बाद भी भारतीय नीतिकारों को अपना अस्तित्व पहचान पाना मुश्किल हो रहा है वो कहीं न कहीं समझौते कर रहे हैं ।

अपने गौरव के साथ अपनी सवा सौ करोड़ जनता की भावनाओं के साथ अपने आत्म सम्मान के साथ जिसमें हमारी कमजोरी साफ दर्शित हो रही है । अन्यथा ऐसे देश जो जनसंख्या और क्षेत्रफल में भी हमारे राज्यों के बराबर भी नहीं हैं और उनके वक्तव्य हम सवा सौ करोड़ जनता के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले होते हैं ।

यह किसी एक देश का सवाल नहीं है । सर्वाधिक गम्भीर सवाल ऐसे देशों के विषय में है जो हमारी तुलना में न तो आर्थिक रूप से मजबूत हैं और न ही सैन्य शक्ति के रूप में, लेकिन फिर भी हम ऐसे छुटभैये देशों के साथ उनकी कटुवाणी होने पर भी दोस्ताना सम्बंध रखने के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं ।

यह हमारी कमजोरी है या हमारा बड़प्पन इसके विषय में केवल भारतीय नीतिकार ही बेहतर जवाब दे सकते हैं । लेकिन यहां पर इतना कहना अवश्य प्रसांगिक है कि यदि अपनी विदेश नीति धारधार शक्तिशाली नहीं है बेशक आप कितने शक्तिशाली हैं लेकिन आपका प्रभाव ऐसे देशों पर बिल्कुल नहीं होने वाला ।

जो केवल बुलेट की भाषा को समझते हों उनको वेद, उपनिषद की भाषा को समझाना मुर्खतापूर्ण कार्य है यह आवश्यक नहीं है कि हम प्रत्येक मौके पर बुलेट का प्रयोग करें । लेकिन इतना आवश्यक अवश्य है कि बुलेट की भाषा का प्रयोग करें क्योंकि आमतौर पर भारतीय जनता में एक कहावत प्रचलित है कि “लातों के भूत बातों से नहीं माना करते” और इसकी प्रमाणिकता भी अनेकों अवसरों पर देखने को मिली है ।

जब भारत चीन का युद्ध हुआ था उस समय एक नारा था, हिन्दी चीनी भाई-भाई, लेकिन उस नारे की आड़ में चीनीयों द्वारा भारत पर अचानक आक्रमण कर एक बहुत बड़े भारतीय भू-भाग पर अपना आधिपत्य जमा लिया ।

आज तक वह भू-भाग ही वापिस नहीं आ सका और न ही भारतीय गौरव, भारत पाक युद्धों में भी कुछ ऐसा ही हुआ जिसमें हम मुकालते में रहे और दुश्मन देश द्वारा हमारे गौरव के साथ खिलवाड़ किया गया । विश्व मंच पर यह दर्शित हुआ है कि एक मामूली सा देश जो भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश से जनसंख्या में भी छोटा है साथ ही भारत का बिगड़ा हुआ और अलग किया हुआ पुत्र है जो समय-समय पर अपने पिता के साथ बदतमीजी करने से बाज नहीं आता ।

यह उस भारतीय पिता के धैर्य की परीक्षा लेने से भी बाज नहीं आता जो अपने बिगड़ैल पुत्र की गलती दर गलतियों को नजर अंदाज करता रहता है लेकिन पुत्र है कि फिर भी अपनी आदतों में सुधार करने के स्थान पर और अधिक गलती करता है आखिर पिता तो पिता ही होता है । जो पुत्र के कितने ही निकम्मे होने पर भी उसको माफ करता रहता है ।

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लेकिन वर्तमान समय वह आ चुका है जब पुत्र की गलती को माफ करना उसको पुन: गलती करने के लिए प्रेरित करना है । इससे वह पुत्र अपने रास्ते से भटक सकता है और ऐसा ही हो रहा है यदि समय रहते पिता अपने पुत्र की गलती पर अंकुश लगा देता है तो निश्चित ही पुत्र अपने सही रास्ते पर होता है लेकिन यहां भारत जैसे महान पिता जो अपनी इसी महानता के लिए जाना जाता है ने अपने बिगडैल पुत्र को अनेकों बार उसकी गलती के लिए माफ किया ।

जिसका परिणाम यह रहा है कि वह बार-बार अपनी गलतियां दोहराने से नहीं चूका । इसे भारतीय विदेश नीतियों की कमी कहें या भारतीय नीतिकारों की कमी या फिर हमारी संस्कृति का प्रभाव जो सम्पूर्ण विश्व को अपना घर और सम्पूर्ण विश्व की जनता को भाई चारे की दृष्टि से देखता है ।

जिसका प्रमाण है स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा शिकांगों में विश्व धर्म सम्मेलन में सम्पूर्ण विश्व के सम्मुख विश्व बिरादरी को भाई व बहन कहकर सम्बोधित करना, जिससे विश्व में भारत की संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ संस्कृतियों में माना जाता है और उसी का प्रभाव है कि हम आक्रमण की अपेक्षा अपनी रक्षा में विश्वास करते हैं ।

हम कभी भी आक्रमक नहीं हैं इतिहास इस बात का गवाह है कि हमने कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया लेकिन जहां जब किसी देश ने अपनी कुदृष्टि हमारी और डाली है तो हमने उसका मुंह तोड जवाब भी दिया है । हम सदैव आत्म रक्षा के लिए ही सैन्य शक्ति का प्रयोग करते हैं ।

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ऐसा मौका कभी भी नहीं आया जब हमने किसी दुर्बल देश पर आक्रमण किया हो । हम सदैव अपने पडोसी देशों से मधुर सम्बंधों के पक्षधर रहे हैं । तभी तो हम विश्व की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं हमारी विदेश नीति सदैव निर्गुट और ”सर्वे भवन्तु सुखिन:” की रही है तभी तो हम आज ऐसे स्तर पर पहुंचे हैं जहा हमारे दुश्मनों को पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुंकिन है ।

हमारी आर्थिक शक्ति को अब विश्व मंच पर उपेक्षित करना मुश्किल ही नहीं नामुंकिन है यही कारण है कि अब हमारे दुश्मन हमसे ईर्ष्या करने लगे हैं । हमारी विदेश नीति इस बात की इजाजत नहीं देती कि हम अपने से कमजोर या हल्के मुल्क पर आक्रमण करें ।

हम शान्ति प्रिय विदेश व्यवस्था के पक्षधर हैं तभी तो आज आजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी कश्मीर समस्या ज्यों की त्यों खड़ी है अन्यथा यह इतनी गम्भीर समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो सके और छोटी-मोटी समयाओं के लिए हम अपनी शक्ति का प्रदर्शन करें ।

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यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बिल्कुल विरूद्ध है अन्यथा तिरेसठ वर्ष तक इस बीमारी का इलाज नही हो सकता था जब हमारे पास बड़े-बड़े अनुभवी डाक्टर आधुनिक चिकित्सकीय मशीनरी और बेहतर से बेहतर औषधि उपलब्ध है हमारे पास ऐलोपैथिक पद्धति से लेकर आयुर्वेदिक पद्धति यूनानी पद्धति सभी चिकित्सा पद्धति उपलब्ध हैं तो क्या हम इस छोटी सी बीमारी का ईलाज नहीं कर सकते ? हम कर सकते हैं कभी भी कर सकते हैं ।

लेकिन भारतीय संस्कृति ऐसी छोटी सी बीमारी का ईलाज किसी उच्च तकनीकी द्वारा करने की पक्षधर नहीं रही है । यही कारण है कि हम अपनी मर्यादाओं की सीमा लांघना नहीं चाहते वरना हमारे लिए यह कोई समस्या नहीं है ।

समस्या है तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय संस्कृति इसकी पक्षधर नहीं है कि हम किसी छोटी सी बीमारीका ईलाज करने के लिए इतने अत्यधिक संसाधनों का प्रयोग करें । मानवता के विरूद्ध कुछ ऐसा हो जाये जिसके लिए आने वाली पीढी माफ न कर सके, यहां चिन्तन का विषय उस मर्यादित पिता के बिगडैल पुत्र के लिए है जो शायद यह सोचता है कि तुम गलती दर गलती करते जाओगे और तुम्हारा पिता माफ करता जायेगा ।

जिस दिन पिता गलती करना शुरू कर देगा उस दिन निश्चित रूप से पुत्र को पैरों के बल घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ेगा । हम गलतियों को माफ करने में ही अपनी महानता समझते हैं । लेकिन नीति कहती है कि सठे साठयम समाचरेत अर्थात दुष्ट के साथ दुष्टता का ही आचरण करना चाहिए नहीं तो वह अपनी दुष्टता और दूसरे की शान्ति प्रियता को अपनी ताकत और दूसरे की कमजोरी समझने की भूल कर बैठता है और भूलवश हमारा पड़ोसी पिछले तिरेसठ वर्ष से हमारे साथ दुष्टता का आचरण करता आ रहा है यह उसकी संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है ।

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जो यह समझने की भूल कर रहा है कि तुझे पुत्र समझकर तीन बार माफ किया जा चुका है । महाभारत में श्रीकृष्ण ने शिशुपाल को एक सौ गलती के लिए माफ करने का वचन अपनी बुआ को दिया था क्योकि शिशुपाल उनके रिश्ते का भाई था लेकिन एक सौ से ऊपर गलती करने पर शिशुपाल को श्रीकृष्ण के हाथों अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी ।

भारतीय विदेश नीति सदैव शान्ति प्रियता की पक्षधर रही है यही कारण है कि छोटे-छोटे देश जो अपनी जनता की भूख तक नहीं मिटा पा रहे है । वो हमारे विषय में कुछ भी कटु वाणी बोलने से नहीं चूकते । भारतीय विदेश नीति ऐसी नीति है जिसमें दूसरे देशों के हितों का अधिक ध्यान रखा जाता है ।

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बैशक हमारा नुकसान हो जाये लेकिन दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए । हम दुश्मन पर विपत्ति पड़ने पर दुश्मन की भी मदद करने से नहीं चूकते, ताजा उदाहरण पाकिस्तान में बाढ़ पीड़ितों के लिए कई करोड़ रूपये की आर्थिक मदद उपलब्ध कराना इसका प्रमाण है ।

ऐसी विदेश नीति होने पर भी हम विश्व स्तर पर अपना प्रभाव दिखाने की ललक नहीं रखते क्योंकि हम केवल कार्य प्रधानता को ही महत्व देते हैं हम गीता के उपदेश कर्म ही महान हैं के पक्षधर हैं यही कारण है कि हम विश्व मंच पर अभी अपना प्रभाव छोड़ पाने में कामयाब नहीं हुये हैं ।

हम आर्थिक रूप से शक्तिशाली होने की ओर अवश्य अग्रसर हो रहे हैं । लेकिन हम विदेश नीति के स्तर पर अभी काफी पीछे हैं जब विश्व समुदाय भारतीय विदेश नीति की सराहना कर उसका पीछा करेगा । वह दिन सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए गर्व का दिन होगा और इसके लिए आवश्यक होगा कि भारतीय नीतिकारों को अपनी विदेश नीति को धारदार बनाये और विश्व स्तर पर होने वाले सम्पूर्ण घटना क्रम पर अपनी दृष्टि बनाये रखने तथा त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करना अपनीनीति का हिस्सा बनायें ताकि अन्तराष्ट्रीय समुदाय भारतीय विदेश नीति को समझने व अध्ययन करने के साथ-साथ भारतीय विदेश नीति का अर्थ घटित अन्तराष्ट्रीय घटनाक्रम के विषय में जान सकें ।

जब तक प्रत्येक अन्तराष्ट्रीय घटनाक्रम पर त्वरित और सुविचारित प्रतिक्रिया करना भारतीय विदेश नीति का हिस्सा नहीं बन पायेगा । तब तक भारतीय विदेश नीति की धार कुंद ही बनी रहेगी । अब वह समय आ गया है जब भारतीय विचारों को एकदम से खारिज किया जाना मुश्किल ही नहीं नामुंकिन जान पड़ता है तभी तो भारतीय नीतिकारों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बन पड़ी है कि बिना समय गंवायें अन्तराष्ट्रीय घटनाक्रमों पर त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करें तो निश्चित ही भारतीय विदेश नीति की धार में तेजी आयेगी और भारतीय विदेश नीति की धार तेज होना भारत के अन्तराष्ट्रीय प्रभाव को भी इंगित करेगी ।

यही वह वक्त है जब भारत को अन्तराष्ट्रीय मंच पर आकर खुले विचारों से निष्पक्ष होकर अपनी नीतियों को अन्तराष्ट्रीय समुदाय को बताना होगा और जब हम अपनी विदेश नीति को अन्तराष्ट्रीय समुदाय को समझाने में सफल होते हैं तो निश्चित ही हम अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव छोड पाने में भी सफल होंगे ।

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